मेरा ख्याल है, मिरी पहचान है ग़ज़ल
गोया कि मेरा जिस्म, मिरी जान है ग़ज़ल
तहज़ीब और समाज की पहचान है ग़ज़ल
इस दौरे हाजिर में परेशान है ग़ज़ल
ग़ज़ल की जब बात आएगी तो जनाब रघुपति सहाय फ़िराक गोरखपुरी, आनंद नारायण मुल्ला,त्रिलोक चंद 'महरूम',पंडित लभ्भूराम जोश मलसियानी, कुमार पाशी, कृष्ण बिहारी नूर, कुंवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर', कुंवर बैचैन, दुष्यंत कुमार, सूर्यभानु गुप्त, बाल स्वरुप राही आदि का जिक्र किये बिना अधूरी रहेगी. इन शायरों ने ग़ज़ल को नयी बुलंदियां दी हैं और ये किसी भी उर्दू शायर से कम नहीं हैं. मैं ये सब इसलिए लिख रहा हूँ क्यूँ की हमारे आज के शायर को उनके ज़माने में सिर्फ इसलिए हिकारत की नज़र से देखा गया क्यूँ के वो मुसलमान नहीं हैं और इस बात का जिक्र उन्होंने अपनी इस किताब में किया भी है.
हमारे आज के शायर हैं जनाब "रामकृष्ण पाण्डेय 'आमिल' " और किताब का नाम है "साँसों की सरगम". खालिस उर्दू शायरी का पूरा मज़ा देने वाली इस किताब को वाणी प्रकाशन वालों ने प्रकाशित किया है.
यार अब है ज़िन्दगी किस काम की
प्रश्न खुद से कर रहा है आदमी
इश्तिहारों में तलाशा आदमी
गुमशुदी-दर-गुमशुदी-दर गुमशुदी
इंक़लाब अब यूँ न 'आमिल' आएगा
ज़िन्दगी को चाहिए इक फुलझड़ी
उर्दू में आमिल का मतलब होता है जादूगर या तांत्रिक ,अपने नाम को वो अपनी शायरी में बखूबी सिद्ध करते हैं. अम्बाला छावनी में सन १९३१ में जन्मे आमिल साहब की कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. बहुमुखी प्रतिभा के धनी आमिल जी शायरी के अलावा तांत्रिक साधना मार्ग के दीक्षा गुरु, संस्कृत और हिंदी भाषा साहित्य के सुधि मर्मज्ञ भी हैं. उनके उपनाम 'आमिल' की कड़ी शायद उनकी तांत्रिक साधना से जुडी है.
उनकी चाहत का यह करिश्मा है
सर झुकाया जहाँ-जहाँ देखा
दिल में उभरा ख्याल जब उनका
हमने दिल को जवाँ-जवाँ देखा
जो भी उठ्ठा है उनकी महफ़िल से
उसका चेहरा धुआं-धुआं देखा
लाख हो दुश्वार जीना फिर भी जीना चाहिए
आदमी में अज़्मो-हिम्मत और भरोसा चाहिए
हौसला टूटा हुआ और अश्क आँखों में भरे
ज़िन्दगी को इस तरह हरगिज़ न जीना चाहिए
इसी मिजाज़ की एक ग़ज़ल के चंद शेर और पेश करता हूँ.
हसरतों के फूल खिलने चाहियें
वक्त के तेवर बदलने चाहियें
वो अकीदा हो कि बिन मर्ज़ी तिरी
पेड़ के पत्ते न हिलने चाहियें
रौशनी हर इक को 'आमिल' मिल सके
यूँ चिरागे - ज़ीस्त जलने चाहियें
आमिल साहब की शायरी के सारे रंग इस पोस्ट में समटने तो मुमकिन नहीं है लेकिन मेरी कोशिश उनके अधिक से अधिक रंग आप तक पहुँचाने की रहेगी. सीधी सी बात को अलग अंदाज़ से यूँ पेश करना के पढने सुनने वाला वाह कह उठे हर किसी के बस की बात नहीं होती. बरसों बरस की तपस्या के बाद भी ये हुनर आ जाए तो खुदा का शुक्र मनाना चाहिए. आमिल साहब के ये शेर उसी श्रेणी के हैं:-
बेवफ़ा होते हुए भी, बावफ़ा हो जायेगा
पूजते रहने से पत्थर देवता हो जायेगा
वक़्त के तब्दील होने में नहीं है शर्ते-वक़्त
नामवर से नामवर गुमनाम सा हो जाएगा
रोज़े-अव्वल ही से रिश्ता रूह से इस तन का है
तन ये समझा ही नहीं वो यूँ जुदा हो जाएगा
गर तमन्नओं को ज़ाहिर कर दिया उस शोख पर
ये समझ लें आप 'आमिल' वो खुदा हो जाएगा
मौसम बहार का है मगर सब उदास हैं
सहमे हुए हैं लोग, मियां ! अब हंसी कहाँ
चेहरे पे ऐसे चेहरे हैं कुछ सूझता नहीं
कहने को आदमी हैं मगर आदमी कहाँ
'आमिल' तुम्हारे लब पे तबस्सुम तो है मगर
दुनिया जिसे ख़ुशी कहे ऐसी ख़ुशी कहाँ
देखिये साहेबान " वाणी प्रकाशन " द्वारा प्रकाशित इस किताब के लगभग सौ पन्नो में फैली आमिल साहब की अस्सी के ऊपर की ग़ज़लों में से शेर छंटना अपने बस की बात तो है नहीं, जिस पन्ने पर नज़र डालता हूँ वहीँ से कुछ न कुछ आपको पढवाने का दिल करता है, इसलिए आपसे गुज़ारिश है के इस किताब को खरीदिये पढ़िए और मुझे इस छाँट-छाँट कर पढवाने वाली उलझन से निज़ात दिलवाइए...:))
मिट जाती हमारी भी तहज़ीब ज़माने से
जो सुबह को तुलसी के पौधे को न जल देते
तलवों में हमारे भी चुभते न कभी कांटे
उगते ही अगर यारो! हम इनको कुचल देते
दिलो दिमाग में सहरा बसाए फिरता है
वो अपनी सोच में कैक्टस उगाए फिरता है
फ़रेबे-दौर ने इतना सताया है उसको
कि तल्खियों में भी वो मुस्कराए फिरता है
41 comments:
अच्छी पुस्तक की जानकारी देने के लिए धन्यवाद.
तलवों में हमारे भी चुभते न कभी कांटे
उगते ही अगर यारो! हम इनको कुचल देते
कितने सुन्दर शेर हैं....आमिल साहब से मिलाने का शुक्रिया किन शब्दों में अदा करूँ....सचमुच हर अशआर लाज़बाब है.... अब तो यह किताब खरीदनी ही पड़ेगी...
ज़बान दरअसल किसी मज़हब की बपौती नहीं होती. ये अवाम की होती है. चाहने वालों की होती है. गुलाब के फूल और उसकी खुशबू से भला आप किसी खास मज़हब के मानने वालों को दूर रख सकते हैं ?
ज़रूर पढ़ें
ख़ामोशी के ख़िलाफ़ http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_08.html
हमेशा की तरह लाजवाब किताब की जानकारी दी है। गज़ल समीक्षा के आप माहिर हैं। रामकृष्ण पाण्डेय 'आमिल जी को बहुत बहुत बधाई। कुछ शेर पढ कर ही आनन्द आ गया पूरी पुस्तक ही लाजवाब लग रही है। धन्यवाद।
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी
नमस्कार !
किताबों की दुनिया का हर अंक आप इतनी ख़ूबसूरती से पेश करते हैं कि कुछ कहते ही नहीं बनता ।
आज रामकृष्ण पाण्डेय 'आमिल' साहब और उनकी किताब "सांसों की सरगम" की चर्चा उठाए गए सवालात की वजह से और भी ज़्यादा पसंद आई ।
उर्दू शायरी सिर्फ मुसलमान शायरों की बपौती नहीं इस मुद्दे को ले'कर औरों की तरह मेरी भी बहस होती रहती है ।
लेकिन हमें किसी का एकाधिकार , और उससे उत्पन्न दंभ समाप्त करने के लिए कुछ ठोस काम भी करना होता है ।
मेरी अनेक ग़ज़लों में से एक के चंद अश'आर मुलाहिजा फ़रमाएं -
मियां , तू ख़ुदपरस्ती में है ख़ुदमुख़्तार नुक़्ताचीं
ज़ुबां उर्दू का बनता ख़ुश्क़ ठेकेदार नुक़्ताचीं
बना फिरता अदब का तू अलमबरदार नुक़्ताचीं
हुनर फ़न इल्म का कबसे है पहरेदार नुक़्ताचीं
ग़ज़ल गर थी तेरी जोरू तो बुर्क़े में छुपा रखता
न मिलते हर गली ख़ाविंद फिर दो चार नुक़्ताचीं
ग़ज़ल को भी जो फ़िर्क़ाबंदियों में बांटते, उनको
लगाता हूं सरे - बाज़ार मैं फ़टकार नुक़्ताचीं
बहुत राजेन्द्र ने समझा दिया फ़िर भी नहीं समझा
दिमागो - दिल से लगता है ज़रा बीमार नुक़्ताचीं
शस्वरं पर आपके सब चाहने वालों का हार्दिक स्वागत है , समय मिले तो पधारने का आमंत्रण है …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
आपकी करी हुई समीक्षा लाजवाब होती है....पढते हुए लगता है कि काश यह पुस्तक हाथ में होती ...एक एक शेर चुना हुआ ....बहुत बढ़िया प्रस्तुति
मेरा ख्याल है, मिरी पहचान है ग़ज़ल
गोया कि मेरा जिस्म, मिरी जान है ग़ज़ल
तहज़ीब और समाज की पहचान है ग़ज़ल
इस दौरे हाजिर में परेशान है ग़ज़ल
badee khoobsurat shuruaat
बेवफ़ा होते हुए भी, बावफ़ा हो जायेगा
पूजते रहने से पत्थर देवता हो जायेगा
हमेशा की तरह इस बार भी आपने बेहतरीन प्रस्तुति दी है, आभार ।
उपयोगी जानकारी पढ़ने को मिली!
आप तो ढेर सारी पुस्तकों के बारे में बताते हैं..अच्छा लगता है.
_____________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
उनकी चाहत का यह करिश्मा है
सर झुकाया जहाँ-जहाँ देखा
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
सुभानल्लाह !
लगता है आज फिर बढ़िया शायरी पढने को मिलेगी । लेकिन अभी नहीं , थोडा जल्दी है । फिर पढ़ते हैं ।
मौसम बहार का है मगर सब उदास हैं
सहमे हुए हैं लोग, मियां ! अब हंसी कहाँ
चेहरे पे ऐसे चेहरे हैं कुछ सूझता नहीं
कहने को आदमी हैं मगर आदमी कहाँ
'आमिल' तुम्हारे लब पे तबस्सुम तो है मगर
दुनिया जिसे ख़ुशी कहे ऐसी ख़ुशी कहाँ
एक बार फिर नायाब मोती ढूँढ कर लाये हैं …………………किसी भी शेर के बारे मे हम जैसे लोग क्या कह सकते हैं…………एक से एक नायाब शेर्।
हिकारत या सम्मान से देखने की बात तो तब हो जब आप इल्म को खोलकर रखें। साहित्यिक मंचों पर गुटबाजी, भाई-भतीजावाद और न जाने क्या-क्या है। दु:खद तो यह होता है कि मॉं सरस्वती की पूजा अर्चना से प्रारंभ होने वाले आयोजन भी भेदभाव के अज्ञान से ग्रसित रहते हैं। ग़ज़ल की जितनी समझ अन्य भाषाओं को प्राप्त हुई उस दायरे में उस भाषा में ग़ज़ल कही गयी हैं। सौभाग्य से हिन्दी इससे अछूती नहीं है और इस भाषा में बेहतरीन शाइरी उपलब्ध है। अच्छे संग्रह पढ़ना और उसमें से से नगीने चुन कर लाने वाले आप जैसे प्रतिबद्ध शाइर भी।
बधाई।
हमेशा की तरह बहुत लाजवाब जानकारी, शुभकामनाएं.
रामराम.
आमिल साहब से परिचय करवाने के लिए आभार... समीक्षा हर बार के तरह लाजवाब... ज़ुबान सच में किसी का बपौती नहीं होता है... यह बात तो आपका भी सायरी के बारे में हम कह सकते हैं...बहुत बहुत आभार!!
मिट जाती हमारी भी तहज़ीब ज़माने से
जो सुबह को तुलसी के पौधे को न जल देते
तलवों में हमारे भी चुभते न कभी कांटे
उगते ही अगर यारो! हम इनको कुचल देते
एक नई ताज़गी महसूस हुई इन अशआरों में..
रौशनी हर इक को 'आमिल' मिल सके
यूँ चिरागे - ज़ीस्त जलने चाहियें
...एक उम्दा किताब और एक उम्दा शायर से रू-ब-रू कराने के लिए शुक्रिया.
बहुत अच्छे रचनाकार से परिचय कराया। रचनायें उत्कृष्ट हैं।
Rachna dekho mere blog par .
आप कितने अलग अंदाज़ में बात को रखते हैं... आपका यह बयाँ करने का अलग अंदाज़ बहुत अच्छा लगा...
आपके द्वारा ही छुपी किताबो से मुलाकात हो जाती है .
शायर आमिल साहब से परिचय करवाने के लिए आभार...हर इक शेर पर "वाह वाह" निकले हैं.
आपके अच्छे अच्छे सन्देश दूर दूर तक पहुंचे.
apne bahut hi achchhi jankari di hai ..mai apke blog ko pahli bar pdha hai ...bhut he achchha lga
एक बेहतरीन किताब व शानदार शायरी से परिचय करवाने का शुक्रिया
माफी चाहता हूँ। मेरा शब्दकोष इतना विस्तृत नहीं है । जहाँ से मैं हर सप्ताह आपके द्वारा किए गए तबसिरे और शायरी की सराहना के लिए अल्फाज़ ला सकूँ। अगले सोमवार तक मैं आपकी अन्य लिंक्स पढ़ता हूँ।
मेरा ख्याल है, मिरी पहचान है ग़ज़ल
गोया कि मेरा जिस्म, मिरी जान है ग़ज़ल
तहज़ीब और समाज की पहचान है ग़ज़ल
इस दौरे हाजिर में परेशान है ग़ज़ल
ग़ज़ल को केन्द्र में रखकर एक और महत्वपूर्ण ग़ज़ल बहुत बढ़ियां
इश्तिहारों में तलाशा आदमी
गुमशुदी-दर-गुमशुदी-दर गुमशुदी
जो भी उठ्ठा है उनकी महफ़िल से
उसका चेहरा धुआं-धुआं देखा
इश्तिहारों में तलाशा आदमी
गुमशुदी-दर-गुमशुदी-दर गुमशुदी
लाख हो दुश्वार जीना फिर भी जीना चाहिए
आदमी में अज़्मो-हिम्मत और भरोसा चाहिए
हौसला टूटा हुआ और अश्क आँखों में भरे
ज़िन्दगी को इस तरह हरगिज़ न जीना चाहिए
चेहरे पे ऐसे चेहरे हैं कुछ सूझता नहीं
कहने को आदमी हैं मगर आदमी कहाँ
वैसे हर शेर जो आपने चुने हैं लाजवाब. मगर ये जो मैंने चुने, ये मुझे खास तौरपर प्रभावित कर गए । आपको बधाई!
आमिल साहब की कुछ उम्दा पंक्तिया पढवाने के लिए आभार.
kya prastuti hai bhai ji...wah...
kitaab ki jaankaari ka shukriya....
Meri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Naani ki sunaai wo kahani..
Banned Area News : Two soldiers killed in Iraq violence
लाख हो दुश्वार जीना फिर भी जीना चाहिए
आदमी में अज़्मो-हिम्मत और भरोसा चाहिए
हौसला टूटा हुआ और अश्क आँखों में भरे
ज़िन्दगी को इस तरह हरगिज़ न जीना चाहिए
-- बहुत बेहतरीन!
-अच्छी समीक्षा
नीरज जी,
आरजू चाँद सी निखर जाए।
जिंदगी रौशनी से भर जाए।
बारिशें हों वहाँ पे खुशियों की,
जिस तरफ आपकी नज़र जाए।
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।
--------
सपने भी कुछ कहते हैं।
साहित्यिक चोरी का निर्लज्ज कारनामा....
नीरज गोस्वामी जी आप को जन्मदिन की हार्दिक बधाई ओर शुभकामनाये
जन्म दिन की बधाई स्वीकार करें नीरज जी ...
आपका
अर्श
Neeraj ji
Janam Din ki Dher Saari Shabhkaamnaayein
बहुत सुंदर शेर ...बहुत अच्छे लगे. सारे शेर.
एक से एक खूबसूरत शेर । आपका चुनाव हमेशा ही खास होता है उसमे से किसी एक को चुनें यह मुनासिब नही होता फिर भी
लाख हो दुश्वार जीना फिर भी जीना चाहिए
आदमी में अज़्मो-हिम्मत और भरोसा चाहिए
यह प्रेरणा दायक शेर बहुत ही पसंद आया ।
din bhar se aaj aapko wish krne ke liye pareshan hoon.. koi na koi panga ho hi raha hai.. aakhir me aakhiri pal me yahin Janmdin ki shubhkaamnaayen de deta hoon... Happy B'day sir...
बड़े शुभ दिन पर आया आज तो मैं....वर्षगाँठ की हार्दिक शुभकामनायें नीरज। ईश्वर करे आप यूं ही मुस्कुराते रहें और आपकी मोगरे की डालियाँ हमसबों पर यूं ही खुश्बू लुटाती रहे।
एक और किताब जो हमारी और आपकी आलमारी को जोड़ती है।
देखिये, जन्म-दिन की शुभकामना देने की उत्तेजना में मैं आपको नाम से पुकार गया, नीरज जी।
समस्त शुभकामनाओं सहित फिर से आपको ढ़ेरम-ढ़ेर मुबारकबाद इस दिन की।
हम पर दुःख का परबत टूटा तब हमने दो चार कहे
उस पे भला क्या बीती होगी जिसने शेर हज़ार कहे
क्या खूब लिखा है राही साहब ने
राही साहब के बारे में जानकारी का जो पिटारा आपने खोला है उसके लिए बधाई के पात्र हैं नीरज जी आप.....जिस रोचक ढंग से शायर और उनकी शायरी से जिस तरह आप मिलवाते हैं वो अद्भुत है. शायरों और उनके कृतित्व/व्यक्तित्व के बारे में हम सबकी जानकारी बढ़ाने के लिए शुक्रिया.
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