किताब अपने कलेवर से इतना आकर्षित नहीं करती जितना की अपने कथ्य की विविधता से. स्नेही जी ने इस किताब में हिंदी की लगभग साठ ग़ज़लों में अनूठे रदीफ़ प्रयोग किये हैं.
भूख बिठाकर घर में उसका यार हुआ है घूरे लाल
जैसे कोई पढ़ा हुआ अखबार हुआ है घूरे लाल
बिना काम के गुज़र रही ज़िन्दगी बिना उद्देश्य यहाँ
जैसे कोई दफ्तर का इतवार हुआ है घूरे लाल
इसे उठा कर लड़ना है तो धार धरो, तैयार करो
बिना धार की जंग लगी तलवार हुआ है घूरे लाल
श्री
राम निवास शर्मा 'अधीर' जी पुस्तक की भूमिका में लिखते हैं की "
डा.यायावर जी की ग़ज़लों में प्रेम है,किन्तु वह अकर्मण्य वासना के घेरे से मुक्त है,वेदना भी है, किन्तु वह यंत्रणा कक्ष में घुटने वाली नहीं है. इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी ग़ज़लों में जहाँ सुरमई सांझ की उदासी है, वहीँ रेशमी भोर का उजास भी है. "
जो संबोधन आस पास हैं
आम नहीं हैं, बहुत खास हैं
तुम तो पूरा महाकाव्य हो
हमीं अधूरा उपन्यास हैं
अधर आपके गंगा जल, हम
युग युग की अनबुझी प्यास हैं
हम तो कोरा भोजपत्र हैं
कुछ भी लिखिए आप व्यास हैं
जीवन में हम सब की समस्याएं लगभग एक सी हैं, इन्हीं समस्याओं पर सभी शायरों और कवियों ने अपनी कलम चलाई है, एक से ही विषय होते हुए भी किसी बात को कहने का और उसे महसूस करने का अंदाज़ ही उन्हें एक दूसरे से अलग करता है. इस किताब में एक ग़ज़ल है जिसमें
रामसनेही जी ने अपने नाम को ही रदीफ़ की तरह इस्तेमाल किया है और क्या खूब किया है:
कबीरा की चादर को बैठे क्यूँ सीते हो रामसनेही
बाहर भरे-भरे हो पर भीतर रीते हो रामसनेही
भोर उदासी, दुपहर कुंठा, सांझ ढले सूनापन मन का
रोज-रोज इतने विष पी कर भी जीते हो रामसनेही
बौने पाँव, अँधेरे पथ हैं, इच्छाएं आकाश चूमती
तन से मृग हो किन्तु कर्म से तुम चीते हो रामसनेही
डा.यायावर की ग़ज़लों का केनवास काफी विस्तृत है. व्यक्ति से लेकर साहित्य, संस्कृति, समाज, परिवार, देश, अर्थ तंत्र, धर्म, शिक्षा, राजनीती, आतंक आदि विषयों पर उनके शेर कमाल का प्रभाव पैदा करते हैं. उन्होंने अपनी दार्शनिक सोच को भारतीय संस्कारों के तहत अपने शेरों में रूपायित किया है.
आंसू, पीडा, कलम, प्रतिष्ठा ओ' ईमान दुकानों पर
मत पूछो, क्या क्या देखा हमने सामान दुकानों पर
शो केसों में धरे धरे क्यूँ तलवारों में बदल गए
आदि ग्रन्थ, रामायण, गीता और कुरान दुकानों पर
धूप, चांदनी कैद करेंगे अपनी अपनी मुठ्ठी में
लेकर बैठे हैं कुछ पागल ये अभियान दुकानों पर
सन 1949 में जन्में
डा.राम सनेही लाल शर्मा 'यायावर' जी एम् ऐ, पी एच डी., डी.लिट हैं और एस. आर. के. स्नातकोत्तर महाविद्यालय फिरोजाबाद के हिंदी विभाग में रीडर के पद पर काम कर रहे हैं. आपकी गीत ग़ज़ल मुक्तक,व्यंग रचनाओं ,हायकू, लघु कथाओं एवम दोहों की बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. पाठक उनसे मोबाईल न.
094123 16779 या उनके ई-मेल
dr_yayavar@yahoo.co.in पर संपर्क कर इस पुस्तक की प्रति मंगवाने का आसान तरीका पूछ सकते हैं.
संत्रास, वेदना, कुंठाएं, सपने, भ्रम और निराशाएं
जर्जर पुतले की साँसों में है कितनी ठेलमठेल यहाँ
हर ऋषि के लिए सलीब नई हर पाखंडी को शिव मंदिर
हर नयी व्यवस्था गढ़ जाती है 'यायावर' को जेल यहाँ
इस से पहले की हम आपके लिए कोई नयी किताब ढूढने निकलें चलिए 'यायावर' जी की इस किताब की एक ग़ज़ल के शेर और सुनाते चलते हैं.
पीर तुम्हारी पतिव्रता है
इसे न झटको यायावर जी
साँसों की कड़वी कुनैन है
चुपके गटको यायावर जी