Thursday, September 18, 2008

काव्य संध्या: दूसरी तेज असर खुराक


नमस्कार लीजिये फ़िर से हाजिर हैं एक ब्रेक के बाद....उम्मीद है आप अभी तक डटे हुए होंगे यदि नहीं तो अब डट जाईये और अपने इष्ट मित्रों को भी बुला लीजिये क्यूँ की जैसा मैंने पहले कहा अब बारी है...ओम प्रकाश तिवारी जी की


परिचय: हिन्दी भाषा के प्रकांड पंडित श्री ओम प्रकाश तिवारी जी "दैनिक जागरण" समाचार पत्र के विशेष संवाद दाता हैं और वर्षों से साहित्य सेवा में लीन हैं. देश के विभिन्न कवि सम्मेलनों में अपनी रचनाओं के माध्यम से ख्याति प्राप्त कर चुके हैं.

ओम जी छंदों के जादूगर हैं...शब्द जब उनके मुहं से झरते हैं तो समां देखते ही बनता है...उन्होंने काव्य रसिकों को सबसे पहले अपनी इस गणेश वंदना से भक्ति मय कर दिया.

गणेश वंदना -
गणईश कृपा जो मिले तो खिले जग में हर साधक का सपना ।
विघ्नेश्वर दृष्टि दयालु करें तो कटे घन विघ्न का हो जो घना ।
जब ध्यान करूं गणनायक का तब बोल उठे मन ये अपना ।
प्रभु शीश तुम्हारे समक्ष झुका जो रहे सर्वत्र सदैव तना ।
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सरस्वती वंदना-
ब्रह्मदेव व्यस्त हैं सुनत नांहीं कोहू केरि,
देखि के आबादी वृद्धि सारा विश्व हारा है ।
विष्णु महाराज राज आपका नाकारा हुआ,
मानवों को अन्न नाहीं तन भी उघारा है ।
मस्त हैं महेश राज करके संहार सृष्टि,
वृष्टि है अशांति की न शांति का गुजारा है ।
ऐसे में अनाथ विश्व हुआ है विवेकहीन ,
मातु वीणापाणिनी जी तेरा ही सहारा है ।
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स्वप्न में आए त्रिदेव -
देखा एक ख्वाब स्वर्ग में लगा है दरबार ,
ब्रह्मा-विष्णु-रुद्र निज आसन आसीन हैं ।
गांधी-नेहरू-पटेल जोरि हाथ टेकि माथ,
भारत बचाने हेतु स्तुति में लीन हैं ।
किंतु बोले विष्णु आज द्वापर व त्रेता नाहिं,
कलिकाल मांहिं अपनी दशा भी दीन है ।
बोलो वत्स इज्जत बचाएं याकि भिड़ जाएं,
रावण अनेक और देव सिर्फ तीन हैं ।
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शिव-विवाह के तीन छंद-
प्रथम दृश्य - शिव की बारात का दृश्य
बजने लगी मृदंग ताल बेमिसाल सुर
पुर व असुर निज सुधि बिसरा गए ।
डमरू की डम पे मिलाए ताल झम झम
नंदी नृत्य से स्वयं शिव शरमा गए ।
चित्कार फुफ्कार चिमटों की झनकार
बिजली तड़प उठि मेघराज छा गए ।
ऐसी ध्वनि सुनि कहें सखी एक-दूसरे से
शिव ले बारात ग्राम के नगीच आ गए ।
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दूसरा दृश्य- द्वार पूजा (सिंहावलोकन सवैया)


(पाठकों जरा गौर करें इन सवैयों में एक विशेषता है हर पंक्ति का आखरी शब्द दूसरी पंक्ति का प्रथम शब्द होता है जैसे यहाँ प्रथम पंक्ति का अन्तिम शब्द धायी है और दूसरी पंक्ति का प्रथम शब्द भी धायी है. हिन्दी में इस तरह के छंद लेखन की प्रथा अब लुप्त हो चुकी हैं लेकिन हमारा सौभाग्य है की ओम जी अपने अथक प्रयास से इसे अभी तक जीवित रखे हुए हैं:)


आयी बरात हिमाचल द्वार सुनी सगरी नगरी उठि धायी ।
धायीं कहांरिन नाउन बारिन शीश धरे कलशा इठलायीं ।
लायीं असीस भरे निच आंचल नारिहिं गीत सुमंगल गायीं ।
गायीं सखी सकुचाईं उमा अस की उपमा कवि को नहिं आयी ।
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तीसरा दृश्य - बारात का भोजनकाल
छप्पन भोग धरे थरिया मंहिं नारद बांचहिं मंत्र अधूरा ।
पूरी ही पूरी तहावहिं ब्रम्हा व विष्णु दही संग चाटहिं चूरा ।
इंद्र खड़े चटकार लगावहिं हाथ लिये बस पापड़ झूरा ।
रुद्र हिमाचल के पिछवाड़े हैं खोजत जाइके भांग धतूरा


हिन्दी के इन विलक्षण छंदों को सुनने के बाद आयीये सुने अब चेतन जी को


परिचय: श्री चेतन जी गुजराती हैं और नवी मुंबई में इनका अपना फर्नीचर का बहुत बड़ा व्यापार है, इस व्यापारी को शायरी के कीडे ने एक दिन काट लिया और तब से शायरी इनका जूनून है.

शर्मीले स्वाभाव के चेतन जब मंच से शायरी करते हैं तो श्रोता इनके साथ एहसास के समंदर में डूबते उतरते हैं. गुजरात दंगों से आहत हो कर उन्होंने अपनी लिखी ये ग़ज़ल बहुत संजीदगी से सुनाई

मैं तनहा हूँ, तनहा तू भी
लूटा हूँ मैं, लूटा तू भी
ये आग क्यूँ है हर कूंचे
जलता मैं हूँ, जलता तू भी
आँखें मेरी रोने ना दें
भीगा मैं हूँ, भीगा तू भी
ये रात अब जैसे कटे
जागा मैं हूँ जगा तू भी
अब हाथों से पत्थर लेलो
शीशा मैं हूँ शीशा तू भी
चेतन अब क्या तेरा मेरा
हारा मैं हूँ, हारा तू भी
मैं तनहा हूँ, तनहा तू भी
लुटा मैं हूँ लुटा तू भी

****

तालियों की गडगडाहट के बाद अपनी पहली ग़ज़ल के जज़्बात को आगे बढाते हुए उन्होंने अपनी दूसरी ग़ज़ल सुनाई. .

ये तेरा ये मेरा क्यूँ है
हर दिल में अँधेरा क्यूँ है
शीशा टूटा दिल भी टूटे
नफरत का ये डेरा क्यूँ है
अपनी अपनी किस्मत सबकी
रेखाओं का घेरा क्यूँ है
मेरी आँखें अश्रु तेरे
अब आंखों पर पहरा क्यूँ है
जैसे भी हो खुल के आओ
हर चेहरे पर चेहरा क्यूँ है
दुश्मन भी अब मीत हैं मेरे
चेतन फ़िर तू ठहरा क्यूँ है

दोस्तों तैयार हो जाईये क्यूँ की अब आप के सामने आ रहीं हैं जवां दिल हम सब की प्यारी शायरा मरयम गजाला जी


परिचय:लगभग सत्तर वर्षीय,ऊर्जा से भरपूर मरयम गजाला जिन्हें मैं आदर से आपा केहता हूँ ने एम्.ऐ. इंग्लिश तथा मनोविज्ञान,एम्.एड. शिक्षण, साहित्य रत्न की उपाधियाँ प्राप्त की हैं और पिछले कई वर्षों से लिख रहीं हैं. आपकी इंग्लिश, उर्दू तथा हिन्दी भाषा में बहुत सी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.

बड़े ही मस्त अंदाज़ में उन्होंने अपनी कुछ गज़लों के शेर सुनाये और श्रोताओं को अभिभूत कर दिया. अब मैं उनके और आप के बीच से हट जाता हूँ ताकि आप बिना किसी बाधा के उन्हें सुनते रहें:

उसने मेरी नजर से सितारे चुरा लिए,
चेहरे से मेरे सारे उजाले चुरा लिए
नोटों भरी समझ के क़तर ली किसी ने जेब
जितने थे तेरे ख़त वो पुराने चुरा लिए

*****

सफर में खुशनुमा यादों का कोई कारवां रखना
बुजुर्गों की दुआ का धूप में इक सायबां रखना

भुलाने का तरीका ये नहीं है अपने माजी को
जला देना खतों को और फ़िर दिल में धुआं रखना

भले सर पर सफेदी है इरादों को जवां रखना
कलम में जो सियाही है गजाला वो रवां रखना

*****

तालियों की गडगडाहट के बीच उन्होंने अपनी एक और ग़ज़ल के ये शेर सुनाये

चले चलो कि बस्तियों में नफरतों का है चलन
गली गली में मुफलिसी मकाँ मकाँ घुटन घुटन

उदास उदास शाम में धुआं धुआं चराग हैं
हमें तेरे ख्याल में मिली फकत चुभन चुभन

दिलों में देश प्रेम कि वो भावना नहीं रही
भले ही चीखते हों सब मेरा वतन मेरा वतन

कटे न जब तलक कपट न मैल मन का ही धुले
अजान भी फरेब है फरेब है भजन भजन

श्रोताओं कि फरमाइश ने उन्हें वापस अपनी जगह पर लौटने नहीं दिया, मुस्कुराते हुए उन्होंने चंद और शेर सुनाये

प्यासे को रेगज़ार भी दरया दिखाई दे
सोना किसी फकीर को लोहा दिखाई दे

सरकारी दफ्तरों की तरह है ये ज़िन्दगी
कुछ भी न हो रहा हो प होता दिखाई दे

फैला के हाथ हंस दिया हर इक के सामने
बच्चे को जो मिला वही अपना दिखाई दे

जाने से पहले उन्होंने कहा की अपनी ग़ज़ल के दो शेर सुना रही हूँ इसी याद रखें

क्यूँ कुरेदे जा रहे हो याद के नाखून से
ज़ख्म जो दिल में है इक गहरा कुआँ हो जाएगा

पत्थरों पर तुम निशां छोडो तो हम माने तुम्हें
रेत पर चींटी के चलने से निशां हो जाएगा

मुझे दुःख है पाठकों लेकिन क्या करें हमें एक ब्रेक लेना ही होगा ये आप के और मेरे दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है. अति तो हर चीज की बुरी होती है और फ़िर कविता श्रवण की..बाप रे बाप...याने करेला और नीम चडा वाली बात हो गयी...आप इतनी देर बिना चेनल बदले बैठे रहे....इतना सह लिए,अब क्या हम बच्चे की जान ही ले लें ?चलिए मुहं हाथ धो आयीये क्यूँ की अब आने वाली हैं अपने खूबसूरत अशआर से जादू बिखेरनी वाली हर दिल अजीज....(कट)

{कमर्सिअल ब्रेक}

तीं ईन इन् इन् वाशिग पाउडर निरमा वाशिंग पाउडर निरमा...ढूध सी सफेदी निरमा से आए...रंगीन कपड़े भी धुल धुल जायें...सबकी पसंद निरमा.....

31 comments:

कुश said...

आपके आदेश का पालन कर रहे है जी.. आप ही ने कहा था की बिना नागा सारी खुराक लेते रहना तो पहुच गये बस.. और हा ईष्ट मित्र भी साथ है.. पर शंकावश टिप्पणी नही कर रहे.. हे हे हे

Gyan Dutt Pandey said...

कमाल है नीरज जी! आपके पोस्ट लेखन का तो लोहा मान गये।
यह तो मेरा आजका उत्कृष्टतम पठन है - स्टार चयन!

पंकज सुबीर said...

हे संजय इस अंधे धृतराष्‍ट्र पर रहम खाओ और वहां कुरूक्षेत्र में जो कुछ भी हो रहा है उसे बिना ब्रेक के बतलाओ ।

जितेन्द़ भगत said...

नीरज जी, मैं भी ब्रेक ले रहा हूँ,
(लाजवाब प्रस्‍तुति‍।)

Shiv said...

बहुत शानदार रिपोर्टिंग.

एक से बढ़कर एक शायर और कवि. एक बात साबित हो गई. कविता और शायरी अब बड़े-बड़े बालों और कुर्तों से निकल कर बहुत आगे निकल चुकी है.

(फिर वही सवाल...कलकत्ते से कवियों को नहीं बुलवाते क्या? अगर बुलवाते हों तो अगले साल की बुकिंग तय करवा दें. आने जाने का खर्च कवियों का. ऊपर से कविता सुनाने का मौका देने के लिए
के लिए आयोजकों को कुछ रकम कवि स्वयं दे जायेंगे....:-)

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
बेशक ये दूसरी खुराक
तेज़ असर है,लेकिन ये
क्या कम है कि इसका भी
कोई साइड इफेक्ट नहीं हुआ !
आप कविता में भी प्रस्तुति का
देशी दवा वाला मिश्रण थमा देते हैं.
नमन आपकी काव्य-वैद्यिकी को !!
==========================
...खैर,सचमुच आपने बहुत
सुंदर आयोजन किया
और पेश करने का सरस
अंदाज़ भी मन को भा रहा है.

डॉ.चन्द्रकुमार जैन

Nitish Raj said...

नीरज जी ऐसी खुराक मैंने कभी नहीं ली और ये खुराक मैंने बड़े आराम आराम से ली है।

ताऊ रामपुरिया said...

नीरज जी , आपको कितने धन्यवाद दे यो ताऊ ? आप तो ये बताओ !
आपकी ये पोस्ट एक धरोहर हो गई ब्लॉग जगत की ! यहाँ से जाने को
दिल ही नही कर रहा ? आपके ब्लॉग से मैंने पहले ही दिन तस्वीरें
चुराई थी ! और आज ये माँ सरस्वती का प्रसाद आपकी मेहरवानी
से ले जा रहा हूँ ! जितना भी बड़ा धन्यवाद लिखने में हो सकता है !
उससे भी बड़ा धन्यवाद और अनंत शुभकामनाएं !

और हाँ आपका ब्रेक अखर रहा है ! यूँ तो आदमी पोस्ट पढ़ते २
ब्रेक आते ही चैन की साँस लेता है , पर आज पहली बार अखर
गया निरमा ब्रेक ! अगले भाग का इतजार है................. !

Abhishek Ojha said...

तालियाँ !

रंजू भाटिया said...

उसने मेरी नजर से सितारे चुरा लिए,
चेहरे से मेरे सारे उजाले चुरा लिए
नोटों भरी समझ के क़तर ली किसी ने जेब
जितने थे तेरे ख़त वो पुराने चुरा लिए


बहुत ही वधिया ..कमाल की महफ़िल सजाई आप सब ने ..बहुत अच्छा लगा यह पढ़ कर ..ब्रेक जल्दी ख़त्म करे

Manish Kumar said...

kya baat hai huzoor ! Maryam ghazala ji ka jawab nahin.

Bahut achcha laga unhein padhna..

महेन्द्र मिश्र said...

joradaar khurak jo asar kar gai . badhut sundar shrankhala se labarej shanadar post . vah bhai maan gaye . dhanyawad neeraj ji.

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,
पहली खुराक ने तो पुनः जीवंत किया था, तो दूसरी खुराक ने तिर्कन भी ला दी. बधाई हो आपको, इस शानदार प्रस्तुति के लिए.
आपकी निम्न पंक्तियाँ कुछ विशेष बोझिल लगी

"अति तो हर चीज की बुरी होती है और फ़िर कविता "
कविता न हो तो फिर कद्रदान कहा मिलेगें? पर ब्रेक लिया भी तो निम्न विज्ञापन से

वाशिग पाउडर निरमा
वाशिंग पाउडर निरमा
...ढूध सी सफेदी निरमा से आए...
रंगीन कपड़े भी धुल धुल जायें...
सबकी पसंद निरमा.....
जो स्वयं में एक कविता है, यदि हम विज्ञापन रूपी कविता कमर्शियल ब्रेक के नाम पर झेल सकते हैं तो ज्ञानी कवि -कवियत्रियों की कविताओं में आनंद क्यों नही पा सकते????????????????????????????
तीसरी खुराक कब मिल रही है ???????????????

चन्द्र मोहन गुप्त

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

शुक्रिया ! जी शुक्रिया !!
वाह वाह! क्या कहने !!
आदरनीया गज़ालाजी को
पहली मर्तबा सुन / पढ रही हूँ
..बहुत खूब !
और
ओम प्रकाशजी के सवैयोँ का क्या बखान करूँ ?
माँ सरस्वती प्रसन्न हैँ !
यही कहूँ ..
भाई चेतनजी के भाव भी गहरे रहे... आपकी प्रस्तुति...लाजवाब !
- लावण्या

वीनस केसरी said...

वाह वाह
तालियाँ

बहुत सुंदर आयोजन
उससे भी सुंदर प्रस्तुति
उससे भी सुंदर गज़लकार
और उससे भी सुंदर गज़लें
ये क्या कम अति है
नीरज जी सुन्दरता की अति कर दी आपने
कल भी आयेगें आपके पास अगली खुराक के लिए
हम तो गजाला जी के फैन हो गए

वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

गजब कि गजबे गजब!! अच्छा हुआ हम नहीं आये...वरना तो किस मूँह से पढ़ते इतने धुरंधरों के आगे...बस, सोचते रहते कि हाय!! यह धरती फट जाये.

बहुत उम्दा रहा!! आनन्द उठा रहे हैं..एक दो घूंट मार कर आता हूँ इन्टरवेल के बाद की सुनने. :)

अनूप शुक्ल said...

अच्छा पेश किया। गजाला जी की पंक्तियां सबसे जमीं!

रविकांत पाण्डेय said...

वाह!वाह! मजा आ गया!एक से बढ़कर एक!पहले तो आपने नशे की लत लगा दी और अब कहते हैं ब्रेक!अगली खेप जल्दी ले आईए।

फ़िरदौस ख़ान said...

सफर में खुशनुमा यादों का कोई कारवां रखना
बुजुर्गों की दुआ का धूप में इक सायबां रखना

भुलाने का तरीका ये नहीं है अपने माजी को
जला देना खतों को और फ़िर दिल में धुआं रखना

भले सर पर सफेदी है इरादों को जवां रखना
कलम में जो सियाही है गजाला वो रवां रखना

बहुत ही उम्दा...

मीनाक्षी said...

नीरजजी,, बहुत बढिया...कवियों ने तो अपना रंग जमाया ही था,,आपके कर्मिशयल ब्रेक ने भी खूब असर दिखाया... जल्दी वापिस आइएगा...

श्रद्धा जैन said...

aadarneey gazala ji ko koi bhi break nahi dena chahega
wo waqayi bhaut achha likhti hai
aur aapke anuthe andaaz ne ismein naye rang bhar diye

aage ke intezaar mein

pallavi trivedi said...

इतना अच्छा कवि सम्मेलन .....वाह समां बाँध दिया!ब्रेक के बाद जल्दी आइये...

makrand said...

फैला के हाथ हंस दिया हर इक के सामने
बच्चे को जो मिला वही अपना दिखाई दे
what a sensesible explanation
well i got some new sense to write
thanks

डॉ .अनुराग said...

क्या खुराक दी है नीरज जी.....इन दिनों तबियत नासाज है ,इसलिए इधर आने में देरी हुई...ये शेर अपने साथ ले जा रहा हूँ.......भुलाने का तरीका ये नहीं है अपने माजी को
जला देना खतों को और फ़िर दिल में धुआं रखना

मिष्टी को मेरा प्यार दे.......

वीनस केसरी said...

मान्यवर हम तो बड़ी आस ले कर आए थे की तीसरी खुराक भी मिल जाए तो मन को कुछ चैन मिले
मगर आए तो देखा वैध जी नदारद हैं
बेसब्री से तीसरी खुराक के इंतज़ार में


वीनस केसरी

Anonymous said...

kya kahu bas es lekh ko padhne ke bad bahot khus hu....

Ashok Pandey said...

वाह नीरज भाई, शानदार आयोजन करा रहे हैं। मरियम गजाला जी की शायरी ने अभिभूत कर दिया। उन्‍हें फिर बुलाया जाए।

Dr. Nazar Mahmood said...

achchi paishkash ke liye mubarakbaad, aur vibhinn shayaron ko aik manch se ham tak lane ke liye shukriya

योगेन्द्र मौदगिल said...

Behtar Prastuti
Neeraj g
sadhe hue karyakram ki sadhi hui report..
WAH>>WAH

Anita kumar said...

तीस मेरा पसंदीदा नंबर है, इस लिए टिप्पणी तीसवें नंबर पर्। आप की आभारी हूँ कि वो शाम एक बार फ़िर से जी रही हूँ, आप का प्रस्तुतिकरण बहुत मनोरम है। धन्यवाद

vijaymaudgill said...

वाह क्या बात है नीरज जी आपने रूह ख़ुश कर दी। धन्यवाद