लगातार ग़ज़ल पर ग़ज़ल पोस्ट करते जाने के बाद मैंने सोचा की ये पढने वालों के साथ बहुत बेइन्साफी हो जायेगी.इसलिए कुछ और विषय पर बात की जाए. तो पेश है जायका बदलने को ये पोस्ट.
आप ने ज्ञान चतुर्वेदी जी का नाम जरूर सुना होगा यदि नहीं सुना तो अब सुन लीजिये वो हिन्दी व्यंग के बहुत बड़े हस्ताक्षर हैं. अगर आप ने अभी तक उनको नहीं पढ़ा है तो सच मानिए अपने जीवन के ये वर्ष व्यर्थ ही गवां दिए हैं. ज्ञान जी पेशे से डाक्टर हैं और वो भी दिल के लेकिन उनके काम अपने पेशे से बिल्कुल विपरीत हैं.कोई डाक्टर नहीं चाहता की उसके मरीजों की संख्या मैं इजाफा न हो लेकिन ज्ञान जी के व्यंग लेख पढने के बाद शायद ही किसी को दिल की बिमारी हो.व्यंग और हास्य का ऐसा अद्भुत मिश्रण शरद जोशीजी, परसाई जी, श्रीलाल शुक्लजी और रविद्र नाथ त्यागी जी के बाद देखने को नहीं मिला.
अभी हाल ही मैं जयपुर अपने घर जाना हुआ जहाँ एक पुस्तक मेला लगा हुआ था. वहाँ से ज्ञान जी की लिखी दो पुस्तकें "जो घर फूंके आपना " और "दंगे में मुर्गा "खरीद लाया. दोनों पुस्तकें उनकी विलक्षण व्यंग लेखन प्रतिभा का ज्वलंत प्रमाण हैं. उनकी "दंगे में मुर्गा" की पहली रचना का एक अंश आप को पढ़वाता हूँ जिसमें ज्ञान भाई ने अपने एक वरिष्ट सरकारी मित्र के लिए, जो देश के प्रधान मंत्री को बताना चाहते थे की किसान क्या होता है ये नोट लिख के दिया, बकौल उनके :
"एक वरिष्ट अधिकारी मेरे मित्र हुआ करते हैं उन्होंने मुझसे किसान पर कुछ लिख कर देने को कहा क्यों की वो दिल्ली से बाहर बरसों से नहीं गए थे, और किसान किस चिडिया का नाम है नहीं जानते थे मैंने किसान पर एक परिचय लिख कर दिया :
"किसान क्या है ?
भारतीय किसान एक दोपाया जानवर है, जो प्रथम दृष्टि मैं देखने पर इंसानों से मिलता जुलता दिखाई पड़ता है. इसी कारण से कई नासमझ लोग किसानों को भी इंसान मान लेते हैं तथा चाहते हैं की इनके साथ आदमियों जैसा व्यवहार किया जाए, परन्तु मात्र दो पैरों पर चल लेने से ही कोई इंसान नहीं बन जाता है. कुत्ते भी उचित ट्रेनिंग लेने पर दो पैरों पर चल लेते हैं, जैसा की श्रीमान ने देखा ही होगा. अतः मेरी विनम्र राय में भारतीय किसान भी कुत्ता, भेड़,बकरी, गाय, भैंस आदि की भांति गावों में पाए जाने वाला एक जानवर है. अलबत्ता कुछ मामलों में ये इन पशुओं से भिन्न भी है . उदाहरण के लिए देखें तो गाय थानेदार से नहीं डरती,कुत्ता पटवारी को देख कर दुम नहीं दुबकाता तथा बकरी तहसीलदार को सामने पा कर जमीन पर नहीं लौटती. किसान ऐसा करता है. बल्कि गाय बैल इत्यादी की भीड़ में खड़े किसान को पहचानने का सबसे सटीक तरीका ही ये है इस झुंड के बीच सिपाही, पटवारी, कानूनगो, थानेदार या तहसीलदार को भेज दिया जाए.उसको देख कर किसान की पेशाब निकल जायेगी जबकि बैल इत्यादी की नहीं.कुत्ते गिरदावर या बी.डी.ओ. साहेब से नहीं डरते. कुछ कुत्ते तो थानेदार पर भोंकते हुए पाये गए हैं. पर किसान ने ऐसा कभी नहीं किया. उसने जब जब भी किसी साफ सुथरे, कोट पेंट पहने आदमी को अपने सामने पाया, वो कांपने लगा. किसान ने हर ऐसे ऐरे गेरे को झुक कर नमस्ते की है, जो उसे शाशन के गिरोह का नज़र आया. किसान के इस व्यवहार को छोड़ दें, तो अन्य उल्लेखित जानवरों से वो किसी भी तरह भिन्न नहीं है.किसान भी धूल मैं लौटता है, गंदा पानी पीता है, नंगा घूमता है, डंडे खाता है, और अब तो हमारे सूखा राहत कार्यक्रमों के चलते बकरियों की तरह पेड़ों की पत्तियां तथा छाल आदि भी खाता पाया गया है. इन सारी बातों से स्पष्ट हो जाता है की किसान एक पशु है, ढोर-डंगर है. शायद इसी सोच के तहत बहुत से गावों मैं ढोर-डाक्टर ही इनका इलाज भी करते हैं और ये ठीक भी हो जाते हैं . "
ज्ञान भाई अपना ये लेख यहीं खत्म नहीं करते बल्कि और भी बहुत कुछ बताते चलते हैं, जो में आप को नहीं बता रहा.कारण साफ है की किताब में खरीद के लाया और मजे मुफ्त में आप उठाएं ये कहाँ तक ठीक है? दूसरी बात ये की मैंने उनकी पुस्तक से ये प्रसंग बिना उनकी अनुमति के पोस्ट किया है इसलिए हो सकता है की वो नाराज हो कर व्यंग लेखन ही छोड़ दें
अरे आप निराश न हों एक आध दिन में आप को उनके लेखन की और बानगी भी पेश करूँगा.. इंतज़ार कीजिये.