Monday, September 25, 2017

किताबों की दुनिया -144

पुरानी साइकल की हम मरम्मत को तरसते हैं 
हमारे गाँव का सरपंच नित कारें बदलता है 

पड़ौसी का जला कर घर तमाशा देखने वालों 
हवा का रुख बदलने में ज़रा सा वक़्त लगता है 

अंधेरों से ज़रा भी हिम्मतों को डर नहीं लगता 
हमारी आँख में उम्मीद का सूरज चमकता है 

उर्दू के भारी भरकम लफ़्ज़ों, बोझिल दार्शनिकता और लफ़्फ़ाज़ी से कोसों दूर सीधी सादी जबान में अपनी बात आप तक पहुँचाने वाले, आज हम उस शायर की किताब को आपके सामने ला रहे हैं जो अभी लोकप्रियता की सीढ़ियां ख़रामा ख़रामा चढ़ रहा है,  ये शायर खुद्दार है तभी इसका नाम किसी खेमे से नहीं जुड़ा और न ही इसकी किसी मठाधीश के चरणों में अपना माथा रगड़ने की ख़बर है। शायर का नाम है श्री " राम नारायण हलधर" और किताब का उन्वान है "अभी उम्मीद बाकी है " जिसे जयपुर के "बोधि प्रकाशन " ने जून 2017 में प्रकाशित किया है :


अलावों पर मुसीबत की, मुसल्सल मावठें बरसीं 
मग़र इस राख़ में उम्मीद का, शोला दबा सा है 

दिलासे और मत दो, दिल हमारा यार रो देगा 
ये बच्चा भीड़ में माँ-बाप से, बिछड़ा हुआ सा है 

कबूतर भी उसे लगता है मानो, बाज़ हो कोई 
वो जोड़ा हंस का, घर से अभी भागा हुआ सा है 

जब तक आप शायरी के घिसे पिटे बिम्ब और विषयों से अलग कुछ नया नहीं कहते तब तक आप कितना भी लिखें आपकी पहचान बनना मुश्किल है। नया विषय और नयी ज़मीन तलाशने के लिए जोख़िम उठाना पड़ता है ,गुलिवर की तरह अनजान जगहों की यात्रा करनी पड़ती है जो मन के अंदर और बाहर दोनों ओर होती है। युवा शायर हलधर जी ने इस जोख़िम को उठाया है और वो नए रास्तों की तलाश में चलते दिखाई देते हैं।

मुस्कानों का क़र्ज़ लिए हम चेहरा जोड़े बैठे हैं 
अंदर-अंदर सब कुछ टूटा इक बस्ती वीरान हुई 

चंदा जैसी हंसमुख लड़की जब देखो घर आती थी 
माथे पर सूरज चमका है, उस दिन से अनजान हुई 

जब सूरज ने बेमन से ये पूछा कौन कहाँ के हो 
इक जुगनू को अपने क़द की तब जा कर पहचान हुई 

राम नारायण हलधर 01 अप्रेल 1970 को राजस्थान के बारां जिला की छीपाबड़ौद तहसील के अंतर्गत आये गाँव तूमड़ा में पैदा हुए. राजकीय महाविद्यालय कोटा से उन्होंने हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। वर्तमान में राम नारायण जी आकाशवाणी कोटा में वरिष्ठ उद्घोषक हैं। उन्होंने अपने पिता के अदम्य साहस को जिसके बल पर वो प्राकृतिक आपदाओं से लड़ते हुए विजय प्राप्त करते रहे और माँ के मधुर कंठ से सुनी लोकगीत की स्वर लहरियों को अपनी ग़ज़लों में ढाला है।

ख़ुशी से दिल हमारा आज मीरा होने वाला है 
झुकी खेतों के ऊपर श्यामवर्णी मेघमाला है 

हिना का रंग उनके हाथ पे यूँ ही नहीं महका 
सुबह से शाम तक हमने, रसोई घर संभाला है 

वज़ीफ़ा कौन देता है हमें, हम गाँव वाले हैं 
हमारा इल्म केवल ढाई आखर वर्णमाला है 

हलधर जी ग़ज़लें पढ़ते वक्त वैसी ही ताज़गी का अहसास होता है जैसे भरी दोपहरी में किसी बरगद की छाँव में बैठने से होता है। गाँव की मिटटी और चूल्हे पर पकती रोटी की सी खुशबू आप उनकी ग़ज़लों से उठती महसूस कर सकते हैं। हो सकता है कि महानगर की चकाचौंध में रह रहे पाठकों को ये ग़ज़लें अपील न करें लेकिन जिन के मन में गाँव और उसकी सहजता सरलता बसी है वो तो जरूर पसंद करेंगे।

अभी हम लोग बच्चों से कई बातें छुपाते हैं 
किसी का तो हमें है डर, अभी उम्मीद बाकी है 

दिवाली की सजावट को घरों पे ईद तक रक्खा 
किसी मासूम की जिद पर , अभी उम्मीद बाकी है 

उसी से रूठ कर बैठा, उसी की राह तकता हूँ 
मना लेगा मुझे आकर, अभी उम्मीद बाकी है 

कोटा के वरिष्ठ कवि और समीक्षक अरविन्द सरल जी इस किताब की भूमिका में लिखते हैं कि " खेत-खलियान, किसान और उसके जीवन के दुःख-दर्द जितनी भरपूर मात्रा में हलधर के यहाँ हैं, ग़ज़ल में तो संभवतः और कहीं नहीं होंगे। " अरविन्द जी की बात इस संग्रह को पढ़ते वक्त मुझे सोलह आना सही लगी लेकिन मुझे उनकी ग़ज़लों में अद्भुत काव्य सौंदर्य और शिल्प की कलात्मकता के साथ साथ उनकी सकारात्मक सोच भी नज़र आयी। खेत खलियानो और गाँव के इतर रची उनकी ग़ज़लें भी जादू सा असर करने में सक्षम हैं .

तेरे पापा का कोई फोन आया 
बड़ी उम्मीद से, पूछा करो हो 

किसी ने सांवली कह दिल दुखाया 
घटा क्यों ,रात भर बरसा करो हो

न यूँ नाराज़ हो कर सोइयेगा 
सुबह तक करवटें बदला करो हो 

हम सब जानते हैं कि छोटी बहर में ग़ज़ल कहना दोधारी तलवार पर चलने के समान है इसपर चलने के लिए जबरदस्त अनुभव और संतुलन की जरुरत होती है। बहुत से शायरों ने छोटी बहर पर अच्छी ग़ज़लें कही हैं "विज्ञान व्रत" जी को तो इसमें महारत हासिल है लेकिन हलधर जी ने भी इस संग्रह में बहुत सी ग़ज़लें छोटी बहर में कही हैं उन्हीं में से एक ग़ज़ल के चंद शेर गौर करें और देखें की किसतरह उन्होंने शब्दों का चयन किया है

वो इक आकाश गंगा है 
मेरा मन वेधशाला है 

कई अनजान लिपियों सा 
तेरा मासूम चेहरा है 

न कर चर्चा सियासत की 
यहाँ इक पौधशाला है 

बहुमुखी प्रतिभा के धनी 'हलधर" जी ग़ज़लों के अलावा दोहे, गीत, गद्य-व्यंग और आधुनिक छंद मुक्त कवितायेँ भी लिखते हैं। उनकी रचनाएँ पिछले दो दशकों से देश की प्रसिद्ध अख़बारों और पत्रिकाओं जैसे पंजाब सौरभ , पाञ्चजन्य,दैनिक जागरण, नई दुनिया, राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, सरिता, डेली न्यूज , जनसंदेश टाइम्स, व्यंग यात्रा , मधुमती आदि में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। उनका दोहा संग्रह " शिखरों के हक़दार" सं 2012 में प्रकाशित हो कर चर्चित हो चुका है। "अभी उम्मीद बाक़ी है " उनका पहला ग़ज़ल संग्रह है।

रोज़ पत्थर उछालता मैं भी 
घर मेरा कांच का नहीं होता 

तितलियों के परों को देखो फिर 
हमसे कहना , खुदा नहीं होता 

क़र्ज़ लेकर उजास करता है 
हर कोई चाँद सा नहीं होता 

लोकप्रिय शायर "आलोक श्रीवास्तव" ने इस किताब की भूमिका में लिखा है कि "इस संग्रह की ज़्यादातर ग़ज़लें हिंदी ग़ज़ल के घराने से आती हैं ,इसलिए उर्दू-ग़ज़ल के खानदान वाले यहाँ थोड़ा रुक-रुक कर, ठिठक-ठिठक कर चलेंगे ऐसा मेरा ख्याल है। " आलोक जी का ख्याल हो सकता है सही हो लेकिन मेरा ख्याल है की पाठक चाहे उर्दू ग़ज़ल का हो या हिंदी ग़ज़ल का अगर कहन में ताज़गी है तो वो उसे पसंद करता है , बहुत कम पाठक हैं जो उर्दू-हिंदी के झमेले में पढ़ते हैं और भाषा के बिना पर ग़ज़ल को पसंद नापसंद करते हैं।

रोने के हैं लाख बहाने रो लीजे 
हंसने में आसानी हो तो ग़ज़लें हों 

विज्ञापन से कब तक प्यास बुझाएं हम 
बादल बांटे गुड़-धानी तो ग़ज़लें हों 

करवट लेकर चाँद अकेला सोया है 
छोड़े ज़िद-आनाकानी तो ग़ज़लें हों 

हलधर जी को उनकी काव्य यात्रा के दौरान भारतेन्दु समिति कोटा द्वारा "साहित्य श्री सम्मान ", सृजन साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्था कोटा द्वारा "सृजन साहित्य सम्मान", डॉ.रतन लाल शर्मा स्मृति सम्मान और हिंदी साहित्य सभा आगरा द्वारा "ओम प्रकाश त्रिपाठी स्मृति सम्मान" प्राप्त हो चुका है। अगर आप हलधर जी लीक से हट कर लिखी ग़ज़लों का आनंद लेना चाहते हैं तो इस किताब को तुरंत अमेज़न से घर बैठे मंगवा लें या फिर जयपुर के बोधि प्रकाशन के श्री माया मृग जी से 9829018087 पर संपर्क करें , जैसा मैं हमेशा कहता आया हूँ आज फिर कहूंगा कि आप शायर से सीधा संपर्क कर उसे बधाई दें और किताब प्राप्ति का रास्ता पूछें। हलधर जी से संपर्क करने के विविध रास्ते ये हैं :

मोबाईल द्वारा : 9660325503 पर संपर्क करें
rnmhaldhar@gmail.com पर इ-मेल करें
डी -27, गली नंबर -1, कृष्णा नगर , पुलिस लाइन , कोटा-324001 पर पत्र लिखें

आप जो जी में आये रास्ता इख़्तियार करें मैं चलता हूँ उनके कुछ फुटकर शेर आपको पढ़वा कर :

दर्द घुटनों का मेरा जाता रहा ये देख कर
थामकर ऊँगली नवासा सीढ़ियां चढ़ने लगा 
*** 
बरी हो कर मेरा क़ातिल सभी के सामने खुश है 
अकेले में फ़फ़क कर रो पड़ेगा , देखना इक दिन 
*** 
मौन के शूल को पंखुड़ी से छुआ 
मुस्कुराने से मुश्किल सरल हो गयी
*** 
कभी है "चौथ" उलझन में, कभी रोज़े परेशां हैं 
किसी दिन चाँद के ख़ातिर, बड़ी दीवार टूटेगी
*** 
तेरा वादा सियासतदान ऐसा खोटा सिक्का है 
जिसे अँधा भिखारी भी सड़क पर फेंक देता है

7 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-09-2017) को रजाई ओढ़कर सोता, मगर ए सी चलाता है; चर्चामंच 2739 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Ashish Anchinhar said...

कभी समय पर तो कभी देरी से पढ़ता हूँ। जिस परिचय में आपर लिख देते हैं कि शाइर किसी खेमे का नहीं है तो लगता है कि वह परिचय मेरा अपना ही है। जब भी हलधरजी से मुलाकात हो मेरा हौसला उन तक पहुँचे खेमाबाजी के विरुद्ध में।

नीरज गोस्वामी said...

Received on Fb From Ganga Sharan Ji

ख़ुशी से दिल हमारा आज मीरा होने वाला है
झुकी खेतों के ऊपर श्यामवर्णी मेघमाला है

हिना का रंग उनके हाथ पे यूँ ही नहीं महका
सुबह से शाम तक हमने, रसोई घर संभाला है

वज़ीफ़ा कौन देता है हमें, हम गाँव वाले हैं
हमारा इल्म केवल ढाई आखर वर्णमाला है
बहुत खूब लिखते हैं हलधर साहब। आपके सुंदर विवेचनात्मक लेखन के मुरीद तो हम सब पहले से ही हैं।

gazalkamal said...

अच्छी ग़ज़लें/संभावनाओं से परिपूर्ण ग़ज़लकार का स्वागत है !

rangoli said...

बधाई हलधर जी 🌷🌺🌸 कुछ पंक्तियाँ बारम्बार पढीं। अनेक शुभकामनाएं।

Onkar said...

बहुत अर्थपूर्ण शेर

रेगिस्तानी चिट्ठियाँ said...

वाह..लाज़वाब लिखा है! बधाई स्वीकारें