Monday, October 18, 2010

दें सदा बचपन को हम,फिर से करें अठखेलियाँ


दिल मिले दिल से फ़क़त इतना ज़ुरूरी है मियां
क्यूँ मिलाते फिर रहे हो प्यार में तुम राशियाँ

बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

किसलिए मगरूर इतने आप हैं, मत भूलिए
ख़ाक में इक दिन मिलेंगी आप जैसी हस्तियाँ

आ गए वो सैर को, गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयीं लेने को बोसा, मोगरे की डालियाँ

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां

चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ
डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ


(इस गज़ल के फूल मेरे हैं लेकिन खुशबू गुरुदेव पंकज सुबीर जी की है)



57 comments:

vandana gupta said...

फूल और फूल की सुगंध दोनो ही इतने भावभीने हैं कि सीधे दिल मे उतरते हैं……………कोई एक शेर हो तो कहें भी हर शेर जैसे एक दर्पण है और हम उसमे खुद को देख रहे हैं………………बेह्तरीन , लाजवाब प्रस्तुति के लिये आभार्।

Majaal said...

कैसे कर सकते हम नज़रंदाज़, किसी कलाम को,
हर एक शेर में मौजूं, तबियत-ए-नीरज की झलकियाँ ..

बहुत उम्दा.. हर एक शेर लाजवाब है.. लिखते रहिये ...

Anonymous said...

वाह....वाह....शानदार....बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.......कुछ शेर बहुत अच्छे लगे....

"घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

किसलिए मगरूर इतने आप हैं, मत भूलिए
ख़ाक में इक दिन मिलेंगी आप जैसी हस्तियाँ

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां"

ऐसे ही लिखते रहिये नीरज जी ...शुभकामनाये|

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

मतला और बारिशों का तकाज़ा कमाल का है नीरज जी...
घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ
हासिले-ग़ज़ल शेर

आ गए वो सैर को, गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयीं लेने को बोसा, मोगरे की डालियाँ

आज तो आपके ही कुछ अल्फ़ाज़ यूं बयान करने की ख़्वाहिश है-
पुख्तगी शेर-सुखन की, और ये नाज़ुक बयां
दाद अहले-ज़ौक़ देते हैं बजाकर तालियां

रचना दीक्षित said...

शानदार,बहुत खुबसूरत ग़ज़ल, हर एक शेर लाजवाब है .फूल और खुशबू दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं ये इस कृति में साफ झलक रहा है

अजित गुप्ता का कोना said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
अभी कुछ लिखने का मन कर रहा था और कुछ यही मन में चल रहा था। बस आपके शब्‍द अन्‍दर तक चले गए। ताजा खुशबू जैसा झौंका है आपके सारे ही शेर। आभार।

डॉ .अनुराग said...

चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ
डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ




सौ टके की बात हज़ूरे वाला ......

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
वाह-वा कितना खूबसूरत मतला है,
अगला शेर "बारिशों का है तकाजा..............", फिर से मन को बूंदों में भिगो रहा है
"खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद .." वाह-वा

!!अक्षय-मन!! said...

aapka last shar bahut pasand aaya

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आ गए वो सैर को, गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयीं लेने को बोसा, मोगरे की डालियाँ
~~
खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
~~
घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

~~
चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ
डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ


Baar Baar gungunaane yogya hai ye shaayri

पंकज सुबीर said...

आ गए वो सैर को, गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयीं लेने को बोसा, मोगरे की डालियाँ

रंग-ए-नीरज से झमकता झूमता है शेर ये
सुन रहे हैं मौन होकर, क्‍या बजाएं तालियां
वाह वाह वाह

स्वप्निल तिवारी said...

Badhiya ghazal hai neeraj ji..par sab kuch bahut kaha suna laga..

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आपके नाम और क़द के अनुसार एक शानदार गजल। बहुत बहुत बधाई।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इसीलिए तो महक के साथ चहक भी बरकरार है…
--
कल 19 अक्टूबर के चर्चा मंच पर
इस पोस्ट की चर्चा है!

RAJ SINH said...

नीरज भाई ,
खुशबुएँ ही खुशबुएँ मिलती हैं हवाओं में आपके यहाँ ....................
मोगरे की डाली जो है .
हमेशा की तरह आप को पढना एक अनुभव ही होता है !

Himanshu Mohan said...

ऊँहूँ! अभी कसर है। नीरज साहब! - एक शे'र और । ये सारे शेर अच्छे या बहुत अच्छे हैं - मगर कुछ कसर है, जो हस्तियों को ख़ाक़ में मिलाने के बाद भी दूर नहीं हुई है। मेरे इसरार पर - एक शे'र और …

Unknown said...

क्या बात है अंकल! बहुत दिनों बाद दिल से निकली ग़ज़ल है। या मैं ही दिल से बहुत दिनों बाद पढ़ रहा हूँ। वाकई मजा आ गया। रोमांटिक, नसीहत और फिलॉसाफी से भरपूर ग़ज़ल।

Mumukshh Ki Rachanain said...

किसलिए मगरूर इतने आप हैं, मत भूलिए
ख़ाक में इक दिन मिलेंगी आप जैसी हस्तियाँ

***********************
खाक में मिल भी जाये तो गम नहीं सरकार अब
स्वीकार ली मेरी हस्ती, गूंज उठेगी अब बस्तियां

चन्द्र मोहन गुप्त

Udan Tashtari said...

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ


-फूल और खुशबू से महक उठा चमन!!

rashmi ravija said...

किसलिए मगरूर इतने आप हैं, मत भूलिए
ख़ाक में इक दिन मिलेंगी आप जैसी हस्तियाँ

हर शेर लाज़बाब है...बहुत ही उम्दा ग़ज़ल

daanish said...

बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां

किस हुनरमंदी से
कैसी कैसी नफ़ीस बातें कह दी हैं आपने
हर शेर में मस्ती भी है,,,
और महसूस करें तो इक संजीदगी भी...

ज़बान का ऐसा उम्दा इस्तेमाल .... वाह !!

खूबसूरत बोल हैं, खुश रंग है तर्ज़े-बयाँ
झूम कर हमने पढ़ी है ये ग़ज़ल, नीरज मियाँ

राजेश उत्‍साही said...

हमारी हाजिरी भी दर्ज कर लें।

तिलक राज कपूर said...

ये प्रॉब्‍लम क्‍या होती है शायरों के साथ, पूरे के पूरे उतर जाते हैं अशआर में और इतनी गहरी गहरी डुबकिया लगाते हैं लेकिन कॉमनवैल्‍थ में भाग नहीं लेते बल्कि वहॉं से भाग लेते हैं।
अगर कभी शायरी का कॉमनवैलथ हो गया तो आपका मैडल पक्‍का जानिये।

चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला 'नीरज' यहाँ
डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ
क्‍या बात कही आपने।

लोग फौरन सिला चाहते हैं इसीलिये तो गारमेंट्स में इतने ब्रॉंड आ गये हैं। आप नेकियॉं दरिया में डालने की बात कर रहें हैं, यहॉं तो करना दूर ये भी नहीं पता कि ये नेकी होती क्‍या है।
बहरहाल गजल पढ कर मजा आ गया।

मेरी टीप में नुक्‍ते का दोष न पकडें ये मेरे टंकण यंत्र की समस्‍या है।

पंकज सुबीर said...

और कहीं नहीं टिपियाने की मेरी पिछले पांच छ: माह की क़सम जो इस ग़ज़ल ने तुड़वा दी उसकी पैनल्‍टी अलग से लगेगी ।

Kailash Sharma said...

दिल मिले दिल से फ़क़त इतना ज़ुरूरी है मियां
क्यूँ मिलाते फिर रहे हो प्यार में तुम राशियाँ...

हरेक शेर लाज़वाब...बहुत सुन्दर गज़ल..बधाई

Coral said...

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

कमाल की ग़ज़ल .. हरेक शेर नगीना है ...

डॉ टी एस दराल said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां

सार्थक और सकारात्मक का सोच का परिचय दे रही हैं ये पंक्तियाँ ।
बहुत सुन्दर ग़ज़ल , बेहतरीन अशआर के साथ ।

अजय कुमार said...

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

बेहद खूबसूरत और लाजवाब ।

Mansoor ali Hashmi said...

बहुत ख़ूब नीरज जी, आप की सोच का दायरा बहुत वसीअ है.

बात दिल की, बारिशो-बचपन की, खुशबू की पढी,
'नीरजी' खिड़की से घुस आई है सारी शौखियाँ .

'साहिल' said...

वाह! मतले से मकते तक सब लाजवाब !

उस्ताद जी said...

3.5/10


एक हल्की ग़ज़ल
नयेपन जैसा कुछ भी नहीं
एक-आध शेर के अलावा बाकी की उम्र
दो-चार वाह-वाह से ज्यादा नहीं है

Sunil Kumar said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
खुबसूरत शेर बहुत बहुत बधाई

Abhishek Ojha said...

बहुत सही लेकिन बस एक बात आई दिमाग में. मेरे घर में अभी खिड़की खोलने का आप्शन ही नहीं है ! शीशे की खिड़की जिसे खोलने का आप्शन ही नहीं ! बड़ी समस्या है :)

राज भाटिय़ा said...

अति सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

फूल और ख़ुशबू मुअत्तर कर गए रूह तक!!

S.M.Masoom said...

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां

प्रवीण पाण्डेय said...

खुशबू आपकी कृति की भरपूर है।

M VERMA said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
बेहद खूबसूरत पूरी की पूरी गज़ल
शानदार

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.......

Arvind Mishra said...

बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ
हाय रे ये अहसास और बीत गयी बरसात

अनुपमा पाठक said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
bahut sundar!
regards,

सुनील गज्जाणी said...

1
दिल मिले दिल से फ़क़त इतना ज़ुरूरी है मियां
क्यूँ मिलाते फिर रहे हो प्यार में तुम राशियाँ
2
बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ

नीरज जी
प्रणाम !
मेरी पसंद के दो शेर आप कि नज़र है , हालाकि अन्य शेर भी उम्दा है , नए रूप में नए बिम्ब पेश करते लगे आप के अशार .
सुंदर ,
साधुवाद
सादर !

सदा said...

खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ

झाँक लें इक बार पहले अपने अंदर भी अगर
फिर नहीं आयें नज़र शायद किसी में खामियां ।

बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

रश्मि प्रभा... said...

बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ
bahut masoom khyaal

pran sharma said...

KHOOBSOORAT GAZAL . LAGTA HAI KI
PANKAJ SUBEER JEE AAPKO BHEE USTAAD
BANAA KAR HEE DAM LENGE . BADHAAEE
AUR SHUBH KAMNA .

Rajeysha said...

चाहते हैं सब, मिले फ़ौरन सिला
सॉरी नीरज जी हम आपको 45वें नम्‍बर पर सि‍ला दे रहे हैं। बधाई।

इस्मत ज़ैदी said...

पहले तो क्षमाप्रार्थी हूं कि अब तक कुछ लिखा नहीं क्योंकि पढ़ तो पहले ही लिया था

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ
बिल्कुल सही फ़रमाया आप ने आंधियां मज़हब ओ मिल्लत देख कर रंग ओ रूप देखकर नहीं आतीं


खुशबुएँ लेकर हवाएं खुद ब् खुद आ जाएँगी
खोल कर देखो तो घर की बंद सारी खिड़कियाँ
बहुत ख़ूब !
ज़ह्न ओ दिल के दरीचों के खुलने की ही तो ज़रूरत है

मतले से मक़ते तक बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है नीरज जी ,मुबारक हो

निर्मला कपिला said...

जाब गज़ल आपकी हो और सुबीर जी का आशीर्वाद हो तो फिर केवल कमाल या खूब सूरत कहने4 से काम नही चलेगा। हर शेर दिल को छूता है।देर से आन्रे के लिये क्षमा।

अनामिका की सदायें ...... said...

उम्दाय्गी लिए है गज़ल.

vins said...

घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

Kya baat hai Neeraj ji... bohot hi badiya... aaj humarey desh ko aaisi disha ki bohot sakt jarurat hai... bohot khub.

Pawan Kumar said...

नीरज भाई......
दिल मिले दिल से फ़क़त इतना ज़ुरूरी है मियां
क्यूँ मिलाते फिर रहे हो प्यार में तुम राशियाँ
क्या जबरदस्त प्रयोग है...मतला ही जान लेवा है.....!


बारिशों का है तक़ाज़ा, सब तकल्‍लुफ़ छोड़कर
दें सदा बचपन को हम, फिर से करें अठखेलियाँ
हमारे दिल की बात जैसे आप कह रहें हों.....


घर तुम्हारा भी उड़ा कर साथ में ले जाएंगीं
मत अदावत की चलाओ, मुल्क में तुम आंधियाँ

किसलिए मगरूर इतने आप हैं, मत भूलिए
ख़ाक में इक दिन मिलेंगी आप जैसी हस्तियाँ

आ गए वो सैर को, गुलशन में नंगे पाँव जब
झुक गयीं लेने को बोसा, मोगरे की डालियाँ
हरेक शेर एक से बढ़ कर एक.......किसी एक शेर के बारे में लिखना तौहीन ए ग़ज़ल होगी....!

girish pankaj said...

sundar-pyare shero se saji ghzal k liye badhai. har sher dil mey utarata gayaa. badhai aapko..

नीरज मुसाफ़िर said...

डालता है कौन अब, दरिया में करके नेकियाँ

कोई नहीं जी।

Harshad Jangla said...

Nirajbhai
V good and quite meaningful.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

Dr. Amar Jyoti said...

एक शानदार प्रस्तुति। और 'ख़ुशबुएं लेकर……' तो हासिल-ए-ग़ज़ल है।हार्दिक बधाई।

Shiv said...

गुडगाँव में था और बहुत थक गया था उसदिन. तब यह ग़ज़ल पढ़ी थी. सच कह रहा हूँ, थकान दूर हो गई थी.
अद्भुत!

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

एक-से-बढ़कर एक शे’र...मज़ा आ गया!
बधाई...!