Monday, February 22, 2010

भलाई किये जा इबादत समझ कर


गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर तरही मुशायरा हुआ था जो बहुत चर्चित और लोकप्रिय रहा. उसी तरही में मैंने भी अपनी एक ग़ज़ल भेजी थी जिसे वहां पाठकों ने पढ़ कर अपना प्यार दिया. उसी ग़ज़ल को आज अपने ब्लॉग पाठकों के लिए फिर से पोस्ट कर रहा हूँ.


सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये

न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये

बनेगा सफल देश का वो ही नेता
सुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये

बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये

गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये

62 comments:

ताऊ रामपुरिया said...

वाह वाह बहुत ही लाजवाब रचना. आनंद आगया नीरज जी.

रामराम.

Shiv said...

बहुत बढ़िया गजल है.

ये शेर सबसे अलग हैं;

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये


न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये

कुश said...

गज़ल की एक खास बात है.. टिपण्णी करने के लिए कोई कुछ सोचता नहीं है. बस एक शेर उठाकर डाल देता है..

वैसे मुझे तो नहाने बहाने वाला शेर ही पसंद आया.. :)

कुश said...

सोरी! बहाने बहाने वाला

मनोज कुमार said...

एक बहुत ही अच्छी ग़ज़ल है, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
*** *** ***

Apanatva said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

vaise sacchee to ye hai ki har sher ek se bad kar ek hai.
mubarakho !

Gyan Dutt Pandey said...

बनेगा सफल देश का वो ही नेता
सुनें गालियाँ पर सदा मुसकुराये

---------
बिल्कुल सिद्धू समझ शास्त्री कह गये हैं मुंह पे हमेशा स्माइलिंग फेस रखो! :)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
Bahut khoob neeraj ji ! Laajabaab !!

कंचन सिंह चौहान said...

बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये

vaaaaaah

रंजू भाटिया said...

हर शेर लाजवाब है बहुत सुन्दर पसंद आई आपकी यह गजल शुक्रिया नीरज जी

अनिल कान्त said...

वाह !
बेहतरीन

गौतम राजऋषि said...

लीजिये आज हमने भी अपनी वही तरही लगायी है पोस्ट पर आपके संग-संग....

अभी अपकी होली वाली तरही का बेसब्री से इंतजार कर रहा हूं।

शारदा अरोरा said...

वाह नीरज जी , आनन्द आया ग़ज़ल गुनगुना के

दिगम्बर नासवा said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

सुखी जीवन का फलसफा है शेर ....... धन्यवाद नीरज जी दुबारा पढ़वाने का .... कमाल का लिखते हैं आप ........

निर्मला कपिला said...

वाह मै भी लगाती हूँ अभी कहानी चल रही है आपकी हर गज़ल लाजवाब होती है
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये --- वाह वाह क्या शेर कहे हैं । अब होली के तरही मे आपका इन्तज़ार है धन्यवाद और शुभकामनायें

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आदरणीय नीरज जी, आदाब
वहां भी..और यहां भी....
ये ग़ज़ल जहां भी होगी
अपनी खुशबू हर जगह बिखेरेगी

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये

न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

हर एक शेर...नसीहत हैं समाज के लिये

सुशील छौक्कर said...

वाह जी वाह वाह वाह वाह.. । वैसे हम बडे दिनों बाद आए है और एक बेहतरीन गजल पढने को मिल गई।

रश्मि प्रभा... said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
.......
is ibadat me hi khuda ka didar hai

Alpana Verma said...

'बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये '
वाह! वाह! वाह !
बहुत सुन्दर!

shikha varshney said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

waah kya baat kahi hai ...MASHAALLAH..

अंजना said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये


वाह बहुत खुब कहा आप ने

M VERMA said...

सितम जब ज़माने ने जी भर के ढाये
भरी सांस गहरी बहुत खिलखिलाये
सितम सहने का यह अन्दाज़ वाह क्या कहने
बहुत खूब्

shama said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
Pooree rachanake liye ek hee shabd..waah!

नीरज मुसाफ़िर said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
...
कितनी उत्साहवर्धक पंक्तियां

डॉ. मनोज मिश्र said...

vaah sir jee,behtreen.

chandrabhan bhardwaj said...

Bhai Neeraj ji
Poori ghazal ka har sher apne aap men purna hai.Is sunder ghazal ke liye badhai sweekaren.
Chandrabhan Bhardwaj

डॉ टी एस दराल said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

वाह नीरज जी , कितने सुन्दर भाव हैं।
पूरी ग़ज़ल आनंदमयी ।

Yogesh Verma Swapn said...

ek ek ashaar dil ko chhoota hua. behatareen. neeraj ji, badhaai.

Udan Tashtari said...

फिर से पढ़ी..उतनी ही ताजा!! आनन्द आया.

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

बहुत उम्दा रचना......पढने के बाद दिल से बेसाख्ता निकल गया........सुभानाल्लाह

===========

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रंजन (Ranjan) said...

vaah vaahh!!!

Manish Kumar said...

sahaj aur sundar !

देवेन्द्र पाण्डेय said...

चली एक बार फिर सही...मोहन भोग मिले तो बार-बार सही..
कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
..अच्छी गज़ल का यह शेर कुछ ज्यादा अच्छा लगा.

Urmi said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये..
हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! बेहद ख़ूबसूरत रचना! बधाई!

तिलक राज कपूर said...

वाह साहब वाह। अशआर तो आपके एक से बढ़कर एक हैं बस एक बात समझ नहीं आई कि ये किस के साथ निसबत हो गई आपकी कि खिली चॉदनी और बरसती घटा में सोचने मात्र से थरथराने की नौबत आ गई। अय-हय बड़ा जीना दुश्‍वार हो गया होगा।

रानीविशाल said...

वाह!क्या बात है.... बहुत ही लाजवाब रचना!!
आभार
http://kavyamanjusha.blogspot.com/

राज भाटिय़ा said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
बहुत सुंदर इबादत
धन्यवद

संजय भास्‍कर said...

बहाने बहाने बहाने बहाने
न आना था फिर भी हजारों बनाये

RAJ SINH said...

हमेशा की तरह दिलकश .....................बहाने !
मन लुभाने के :)

वीनस केसरी said...

नीरज जी हर शेर लाजवाब है बस मकता से शिकायत है जो आखिर में हादसों की याद दिला देता है इस शेर को बीच में कही डालिए

-वीनस

पारुल "पुखराज" said...

न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये :)

नीरज गोस्वामी said...

E-mail received from Om Sapra Ji:-

Shri neeraj ji
namastey
Really a good gazal, especially the following lines:-
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

खिली चाँदनी या बरसती घटा में
तुझे सोच कर ये बदन थरथराये
congrats for such a beautiful gazal,

i told you few months ago about "mushaira" in delhi university where munnavar rana and prof kuldip salil were among the speakers and a large audience enjoyed it.
Now a similar mushaira is going to be organised on 25th feb 2009 in delhi unversity. i will try to send you a brief report to you.

kindly send some of your collection by post, if possible.

-regards,
-om sapra,
delhi-9

अमिताभ मीत said...

बेहतरीन ग़ज़ल ... हमेशा की तरह ........... वाह !

Pushpendra Singh "Pushp" said...

bahut sundar gajal
abhar..........

Pawan Kumar said...

वाह नीरज जी वाह क्या कमाल की ग़ज़ल कही, उस्तादी शायद इसी को कहते हैं......

रचना दीक्षित said...

लाजवाब!!!!!!!!!!!!!! और अब क्या कहूँ हर एक शेर बेमिसाल

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

सचमुच बार बार पढने लायक शेर है. ये तो ख़ास है भलाई किये जा...

सर्वत एम० said...

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये
लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ भी नहीं है. मैं ने ऐसा कभी चाहा ही नहीं. दरअसल इन दिनों काम इतना ज्यादा है कि फुर्सत नहीं मिल रही है. लगातार एक शहर से दूसरे शहर भागना पड़ रहा है. मुझे खुद इस बात का अफ़सोस है कि मैं कहीं कमेन्ट तक नहीं पहुंचा पा रहा हूँ. लेकिन ऐसा बिलकुल भी नहीं कि मैं आप सब के प्यार को भूल बैठा हूँ. यकीन कीजिए, शायद होली के बाद एक बार फिर मैं थोड़ी फुर्सत निकाल लूँगा. आपकी शिकायत अच्छी लगी.
जब तक आप, अच्छे लिखने वाले मौजूद हैं, किसी सर्वत की क्या मजाल कि गजल की कमी महसूस हो. इतनी उम्दा गजल पेश करने के बाद ये खाकसारी, यही इन्किसारी तो नीरज भाई बांधे रखती है आपसे. हाँ वो बरसात और चांदनी में मन थरथराने की बजाय बदन थरथराने वाला मामला जरा हजम नहीं हुआ.
कुछ दिन मेरी गैर हाजिरी पर मुझे माफ़ करें और बकिया मित्रों को भी इस मजबूरी से अवगत करा दें. हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे.

श्रद्धा जैन said...

कसीदे पढ़े जब तलक खुश रहे वो
खरी बात की तो बहुत तिलमिलाये

bahut sachcha sher hai


न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये

ahaaaaaa kya baat kah di


भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये

hmm bahut mushkil hai ye



गया साल 'नीरज' तो था हादसों का
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
bahut sach kaha hai

Neeraj ji
kamaal gazal ek baar phir

"अर्श" said...

नीरज जी नमस्कार ,
जीतनी बार इस बहाने को पढता हूँ दिल झुमने लगता है ... फिर से इस ग़ज़ल को पढवाने के लिए शुक्रिया नीरज जी .........


अर्श

haidabadi said...

जनाबे मन
आज एक मुद्दत के बाद आपके यहाँ
गशत करने का मौका मिला ग़ज़ल से रूबरू
हुए दिल को तस्कीन मिली जेहन को सकूँ नसीब हुआ
किबला तहरीर जारी सारी रखें
आदाब

चाँद शुक्ला हदियाबादी डेनमार्क

Kusum Thakur said...

वाह नीरज जी ,
अब इतनी तारीफ़ के बाद मैं क्या कहूँ .......लाज़वाब हैं आपके सारे शेर !!

Mumukshh Ki Rachanain said...

भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
लिखकर आप ग़ज़ल पे ग़ज़ल ज़माने का कर रहे भला
हमको फुर्सत भी नहीं कि थपथपाते पीठ तो रहते भला

सच कहूँ तो आपने मुझे आइना भी निम्न शेर में दिखा दिया और तदनुसार बहुत ही सकपका रहा हूँ ,,,,,
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
सच को स्वीकार करने कि हिमाकत कर रहा हूँ............

होली की हार्दिक बधाई, वैसे इस होली पर आपका जयपुर में इंतजार कर रहा हूँ .......

चन्द्र मोहन गुप्त

kshama said...

Holi kee anek shubhkamnayen!

Apanatva said...

Happy holi......

रचना दीक्षित said...

आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें

दीपक 'मशाल' said...

इस बार रंग लगाना तो.. ऐसा रंग लगाना.. के ताउम्र ना छूटे..
ना हिन्दू पहिचाना जाये ना मुसलमाँ.. ऐसा रंग लगाना..
लहू का रंग तो अन्दर ही रह जाता है.. जब तक पहचाना जाये सड़कों पे बह जाता है..
कोई बाहर का पक्का रंग लगाना..
के बस इंसां पहचाना जाये.. ना हिन्दू पहचाना जाये..
ना मुसलमाँ पहचाना जाये.. बस इंसां पहचाना जाये..
इस बार.. ऐसा रंग लगाना...
(और आज पहली बार ब्लॉग पर बुला रहा हूँ.. शायद आपकी भी टांग खींची हो मैंने होली में..)

होली की उतनी शुभ कामनाएं जितनी मैंने और आपने मिलके भी ना बांटी हों...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

Urmi said...

आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

Satish Saxena said...

आपके आने से होली का आनंद दोगुना हुआ , आभारी हूँ ! स्नेह के लिए धन्यवाद ! ईश्वर से आपके लिए प्रार्थना होगी !
सादर

शरद कोकास said...

बढ़िया गज़ल है और बढ़िया चित्र भी ।

नीरज गोस्वामी said...

E-Mail received from Respected C.Bhardwaj Ji:-

Bhai Neeraj ji
Poori ghazal ka har sher apne aap men purna hai.Is sunder ghazal ke liye badhai sweekaren.
Chandrabhan Bhardwaj