Tuesday, January 13, 2009

सिर्फ इक मुस्‍कान से




जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से

आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से

शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से

हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से



( वो खुशनसीब हैं जिन्हें गुरु की डांट मिलती है...क्यूँ की डांटता वो ही है जो अपना समझता है... ये ग़ज़ल उसी का नतीजा है. शुक्रिया गुरुवर पंकज जी )

67 comments:

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

What a pretty little Lady & a pretty Pink car !!
Both r adorable ...:-)
&
सुँदर शिल्प और कथ्य दोनोँ ही -
स्नेह सहित,
-लावण्या

Vinay said...

वाह साहब, लाजवाब, हर शे'र में अपनी ख़ूबसूरती, पढ़के मज़ा आ गया!


---मेरा पृष्ठ
गुलाबी कोंपलें

महेन्द्र मिश्र said...

उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से

नीरज जी बहुत बढ़िया रचना है आभार

Vinay said...

नीरज जी आपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,

ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

आपकी गज़ल बहुत सरल और असरदार होती है।

"अर्श" said...

बहोत खूब लिखा है आपने नीरज जी ढेरो बधाई आप पे तो गुरु देव का आशीर्वाद बना रहे क्रमशः यही उम्मीद करता हूँ ... बहोत बधाई और गुरु देव को मेरा सादर प्रणाम .....

अर्श

गौतम राजऋषि said...

अब क्या कहें...पहले गुरू जी के वो तमाम शेर और फिर ये आपकी गज़ल

इस एक शेर ने तो जान ही निकाल दी है "उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर / आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से"

पढ़ के तेरी ये गज़ल तारीफ में हम क्या कहें
खुल के देते दाद हैं,करते दुआ ईमान से

Alpana Verma said...

आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से

वाह!
बहुत खूब नीरज जी !

बहुत ही बढ़िया गजल लिखी है.
बहुत सुंदर!

बवाल said...

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से
क्या बात कही नीरज जी आपने. बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही. सुबीर गुरू को प्रणाम. मेरे दिल की बात बतलाऊँ ? मेरे फ़ेवरेट तो आप ही हैं.तमाम सार भर देते हैं ग़ज़ल में आप और वो भी सहज सुलभ ज़बान में.
सदा आपके आशीर्वाद की चाह में.
--- आपका बवाल

बवाल said...

लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से

और इस मक्ते के शेर ने बेहतरीन बात अदा कर दी.

seema gupta said...

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से
" ग़ज़ल का तो जवाब ही नही ...एक एक शेर बेमिसाल और नन्ही मिष्टी की भोली और मासूम मुस्कान ने सच मे सुबह सुबह मन मोह लिया "

regards

सुशील छौक्कर said...

वाह नीरज जी क्या खूब लिखा हैं। एक बात कहूँ आप हमें भी सिखा दो ये हुनर लिखने का। सच बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप।
हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से

बहुत ही उम्दा।

सुशील छौक्कर said...

और हाँ एक बात तो कहना ही भूल गया मिष्टी की हँसी देखकर हम भी मुस्करा दिए। जब बच्चें मुस्कराते है तो अतिरिक्त जान सी आ जाती है। मिष्टी को बहुत प्यार और आशीर्वाद हमारी तरफ से और नैना की तरफ से हेल्लो।

विवेक सिंह said...

बाकी तो सब ठीक है पर ये 'लोबान' क्या होता है . कृपया हमारा ज्ञान बढाएं !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

नीरज जी,
बेहद अक्लमंद अशआर
नितांत भोलेपन के साथ
साझा करने का हुनर कोई
आप से सीखे....आपकी ये ग़ज़ल
इसकी मिसाल जो है !
=================
शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

vandana gupta said...

kya khoob likha hai aapne.......hosla deti kavita,zindagi kaise jini chahiye........yeh batati hai.

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
बहुत उम्दा ग़ज़ल है.
मतला बहुत खूबसूरत है, हर शेर अपने हिस्से की कहानी बयां कर रहा है, मुझे "सिर्फ़ इक मुस्कान से", "ज़िन्दगी की रस में..", और "शानो शौकत......" बहुत ज्यादा अच्छे लगे.

Unknown said...

bahut hi acchi kavita hai..accha laga padh kar...

Ashutosh said...

aap ne bahut sundar gajal likha hai,aap aisi hi sundar gajal likhte rahe,aisi meri subhkamna hai,aap kabhi mere blog ke follower baniye,aap ka swagat hai.
http://meridrishtise.blogspot.com

डॉ .अनुराग said...

खुदा कसम दो बातें तय है की अगर मै मार्च में जयपुर गया तो इस नन्ही परी से मिलकर आयूंगा......या बॉम्बे आया तो आपको इसे बुलाना पड़ेगा......


लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमे
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से
आप बस ये शेर भी लिख देते नीरज जी.......तो ये गजल मुकम्मल हो जाती......subhanallah......

कंचन सिंह चौहान said...

उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से

कितनी छोटी सी बात और कितना बड़ा एहसास...!

आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से

कितनी सात्विकता...!
जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

कितनी बड़ी सीख...!
लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से
कितनी सच्ची बात...

Nitish Raj said...

आप क़त्ल करते हैं अपनी कलम से। आसान शब्दों में बड़ी अभिव्यक्ति। खूब, बहुत खूब।

रश्मि प्रभा... said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
......... कितनी सही बात है,बहुत ही बढिया

Gyan Dutt Pandey said...

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

---------
हमें अपनी बगलें झांकने को मजबूर करती पंक्तियां।

हमेशा की तरह शानदार।

Unknown said...

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से

bahoot accha likha h aapne or muskan agar asi ho to sach m sab dushmani kahtm ho jay.

Dr. Amar Jyoti said...

'ज़िन्दगी की दौड़ में…'
बहुत ख़ूब!

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत सुंदर गज़ल है बहुत-२ बधाई...

Abhishek Ojha said...

लाजवाब ! अनमोल रचना.

ताऊ रामपुरिया said...

लाजवाब रचना. बहुत बधाई.

राम्राम.

पंकज सुबीर said...

ये ग़ज़ल बताती है कि उस कहावत का अर्थ क्‍या है जिसमें कहा गया है कि ''गुरू तो गुड़ ही रहा और चेला शक्‍कर हो गया '' सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं ।

रंजू भाटिया said...

हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से

बहुत खूब ..बहुत बढ़िया लिखते हैं आप

Anonymous said...

चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से
bahut khub
aur naanhi pari ko pyaar

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर भाव, सुंदर कविता.
धन्यवाद

Smart Indian said...

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

वाह नीरज जी! गज़ब की बात कही है, चंद अल्फाज़ में!

Shiv said...

जबतक आपकी लिखी गजलों से सीख लेते रहेंगे, ज़िन्दगी ठीक चलेगी.
अद्भुत गजल है.
मिष्टी के तो क्या कहने. उसे देखकर जो सुकून मिलता है वो कहीं और नहीं मिलेगा.

makrand said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

bahut umda

दिगम्बर नासवा said...

हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान सेनीरज जी

आपकी shayeri बहुत खूबसूरत है, हर शेर तराशा हुवा हीरा है. हमेशा नयापन लिए, ताज़ापन लिए होती है आपकी ग़ज़ल,
बहुत बहुत बधाई

जितेन्द़ भगत said...

बहुत ही मुश्‍कि‍ल चीज की गुजारि‍श है-
सिर्फ इक मुस्‍कान,
(कहॉ मि‍लती है इतनी आसानी से)

!!अक्षय-मन!! said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

हार निश्चित है अगर तुमने समर्पण कर दिया
हौसलों की तेग लेकर लड़ पड़ो तूफान से

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से



बहुत ही अच्छा लिखा है.....
प्रोत्साहित करती हुई बेहतरीन प्रस्तुति \

आप कभी कभी मुझे भी डांट दिया करें.....)


अक्षय-मन

Ratan said...

Bahut hinn alag tarike se likha hai aapne iss baar. Har ek pankti mein Josh hai, ek pukaar hai, ek chunauti aur lalkaar hai..

Aap se gujarish hai aap aise hinn likhte rahein, aur ham jaise naw yuvakon mein josh laate rahein..

Mishti hamesha ki tarah bahut hin pyari lag rahi hai..

Regards,
Ratan

Udan Tashtari said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

--क्या बात कह गये हमारे नीरज बाबू-देखते देखते कहाँ चले जा रहे हो??

और ’नीरज’ लिख गया आज फिर ऊँची गज़ल
रह गये हम ताकते, इस आखिरी पायदान से.


मिष्टी बिटिया बहुत ही प्यारी है. हमारा शुभाषिश उसको दिजिये.

इधर परिवारिक कारण कुछ ज्यादा समय ब्लॉग को देने की राह में सुखद अडंगा बन खड़े है. :)

अनूप शुक्ल said...

शानदार। मिष्टी के खुले मुंह में मानो दुनिया समाई है। हम सब अर्जुन हैं और वो कृष्ण की तरह दुनिया की असलियत दिखा रही हैं, मुस्करा रही है। मनमोहनी!

alik-vani said...

saare ashaar sundar hai, khaskar yeh:

आग में नफरत की जलने से भला क्या फ़ायदा
शौक जलने का अगर है तो जलो लोबान से

शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से

m.h.

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

बाद मुद्दत के जो देखा मैँने नीरज का ब्लाग
उनकी ग़ज़लोँ मेँ नज़र आया मुझे सोज़े दुरूं

उनके एक एक शेर मेँ है ज़िंदगी की आबो ताब
जिस से मिलता है मुझे अहमद अली बर्क़ी सुकूँ

डा. अहमद अली बर्की आज़मी

admin said...

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से

बहुत प्‍यारे शेर कहे हैं, मुबारकबाद कुबूल फरमाऍं।

Vijay Kumar said...

आपके ब्लोग पर आकर संतोष हुआ कि लिखने वाले भी है ओउर पढ़ने वाले भी . आपकी गजल के मुखड़े के अर्थों के समानान्तर अर्थों से भरा मेरा गीत भी देखें ओउर कृतार्थ करें.

Amit Kumar Yadav said...

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

Renu Sharma said...

neeraj ji !! bahut hi lajavaab likha hai , aapaki jindgi bhi behad khoobsurat hai .
makar sankrati ki shubhkamnayen .

Jayant Shimpi said...

kuch to hamare liye labz chode hote Nirajaji!
Hairan hun kaise taarif ho apane
jubanse !
Bas yahi aas rakhate hai yunhi aap likha kijiye!
Hum hai kiaas lagaye baithe hai sirf
"Aapase"!

Aab aur intazar ke siva kuch bhi nahin!!

hem pandey said...

जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

इस शानदार गजल के लिए साधुवाद. ऐसी ही रचनाओं को पढ़ कर ब्लॉग-जगत से जुड़ना सार्थक हो जाता है.

Tapashwani Kumar Anand said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से

लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमें
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से

बहुत ही असर दायक रचना है |

वीनस केसरी said...

नीरज जी,
एक अच्छा शिष्य वो होता है जो गुरु के सानिध्य का भरपूर लाभ उठा सके यह आपको देख कर जन जा सकता है
बहुत ही अच्छी गजल कही है आपने
मझे तो ये आश्चर्य होता है की आप इतनी जल्दी जल्दी इतनी अच्छी गजल कैसे लिख लेते हैं हम तो वो ही पढ़ पते हैं जो आप पोस्ट करते हैं मगर आप तो पता नही कितनी likhte होंगे
शब्दों पर आपकी पकड़ बहुत ही बेहतरीन है जो गजल की kahan में चार चाँद लगा देते हैं

आपका वीनस केसरी

Dev said...

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

राजीव करूणानिधि said...

शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से
बेबाक कविता है. बधाई.

Manish Kumar said...

bhai ghazal to aap achchi likhte hain par bitiya ki muskuraht ke aage to aapki ghazal bhi pheeki pad gayi :)

हरकीरत ' हीर' said...

Wah Niraj ji ek ek she'r umda...kiski tarif karu our kiski na karu.....sach me ye she'r padh kr to mza aa gya.....

तीर से तलवार से बंदूक से ना तोप से
दुश्‍मनी तो खत्‍म होगी सिर्फ इक मुस्‍कान से

WAH.....!!

daanish said...

"hai ghazal naheed.si tamheed
paighamaat ki ,
hr bashar parh kr isse
ooncha utha abhimaan se"

Neeraj ji ! bahot hi umda aur meaari ghazal kahi hai aapne..
ek.ek sher nafees aur asardaar bn parha hai hmesha hi ki tarah...
mubarakbaad qubool farmaaeiN.

---MUFLIS---

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

उसने देखा था पलट कर के हमें जिस मोड़ पर
आज तक भी हम खड़े हैं बस वहीं हैरान से

जीतने के गुर सिखाते हैं वही इस दौर में
दूर तक जिनका नहीं रिश्‍ता रहा मैदान से

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से


जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से



काश यह कृतज्ञता प्रत्येक भारतवासी के हृदय में हो.हर समय जेह्नो-दिल पर अंकित रहने वाला मतला...


बहुत दिनों बाद आया हूँ. यहाँ तो अशआर के खूबसूरत फूल खिले हुए हैं.


वाह-वाह -वाह...

बहुत- बहुत बधाई.

निर्झर'नीर said...

शानौ शौकत माल दौलत चाह में शामिल नहीं
चाह है इतनी कटे ये जिंदगी सम्‍मान से


neeraj jii
..
aapko padh ke zehan mai kuch lafz takrane lage hai..jaise ki

vo taroN mein rahne vale kya unki tariif kareN !
Zarre the hum Zarre hai bas Zarre jaisi baat kareN !!

vaise aapka hosla_afzaaii ka andaaj bhi nirala hai.aapne mere likhe lafzoN ko padha or saraha ye mere liye fakr ki baat hai.

haidabadi said...

जनाबे नीरज साहिब
आज एक मुद्दत के बाद आपके कलाम को देखना नसीब हुया
आपकी तखलीक एक दर्पण है जिसमें वर्तमान की तस्वीरें
झलकती हैं साफ सुथरी ज़बान का इस्तेमाल आपकी खासीयत है
आपकी शायरी में भारत के ज़ख्म हुस्न और हुनर दिखते हैं और
प्रवास में मुकीम एक अदना दोस्त को रुला भी जाते हैं

जी रहे उनकी बदौलत ही सभी हम शान से
जो वतन के वास्ते यारों गए हैं जान से
और हौसला भी दे जाते है ख़ुश रहो आबाद रहो

चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क

पारुल "पुखराज" said...

gazab!

vijay kumar sappatti said...

Neeraj ji ,

sorry for late arrival , iwas on tour ...

lekin aaj ye gazal padhkar manki ki pyaas bhuj gayi , sir ji , aapki lekhni ko salaam , aapko salaam ..

kya gazab likha hai ,,,,

लोग वो 'नीरज' हमेशा ही पसंद आये हमे
भीड़ में जो अक्‍लमंदों की,मिले नादान से


poona men mile to , jarur apna hunar hame sikha dijiyega..
wah ji wah

aapka

vijay

sandhyagupta said...

Utsah badhane wali sarthak rachna.
Badhai.

कडुवासच said...

जिंदगी की रेस में तुम दौड़ते बेशक रहो
पर चले मत दूर जाना खुद की ही पहचान से
... अत्यंत प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।

RAJ SINH said...

sab kuch to sab ne kahaa hee hai .fir bhee tareef kam hee padegee koyee.main to tastaree se bhee nichlee paidan pe hoon.shukriya !

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

शब्दों से बनती तस्वीरों को आंखों में उतार लेता हूँ....
अय नीरज मैं तुझे अपने दिल का प्यार देता हूँ...!!
कुछ हर्फ़ मेरी भी गज़लों को जिंदा कर के जाएँ
कुछ हर्फ़ मैं गाफिल आज तुझसे उधार लेता हूँ !!

RAJ SINH said...

wah neeraj jee ! wah !!

apnee kisee bhee tippanee se apna sara aanand bayan naheen kar paoonga .sambhav naheen hoga........fir bhee.

haunsalon kee teg lekar ladenge toofan se .
haar kaisee ? jeetna hai, yuddha har, armaan se .

shukria !