Monday, November 10, 2008

ख़ौफ़ का ख़ंज़र




ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ

साथियो ! गर चाहते हैं आप ख़ुश रहना सदा
लीजिए फिर हाथ में जो काम है छूटा हुआ

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यार,जिसका ध्यान है अटका हुआ

फूल ही बिकता हैं यारो, हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है, ख़ार का सौदा हुआ

झूठ सीना तान कर, चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ

अपनी बद-हाली में भी,मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है, फूल भी मसला हुआ

तजरिबों से जो मिला हमने लिखा ‘नीरज’ वही
आप की बातें कहाँ हैं, आप को धोखा हुआ



( शुक्रिया छोटे भाई द्विज जी का जिनकी मदद के बिना ये ग़ज़ल लिखनी सम्भव नहीं थी )

36 comments:

seema gupta said...

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
" what a wonderful imaginary and thoughts......real words to decsribe facts of life"

Regards

जितेन्द़ भगत said...

वि‍डम्‍बना है कि‍-
झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
मौलि‍क बि‍म्‍ब-
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ

Unknown said...

नीरज जी, माफ़ कीजियेगा दख़ल-अंदाजी के लिए. क्या आपकी यह ग़ज़ल कुछ इस तरह नहीं हो सकती ?
खौफ का खंजर जिगर में जैसे हो उतरा हुआ.
आजका इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ.
चाहते हैं आप खुश रहना अगर, तो लीजिये,
हाथ में वो काम जो मुद्दत से है छूटा हुआ.
दीनो-ईमाँ की नसीहत उस से है करना फुजूल,
जिसका दिल दो वक़्त की रोटी में है अटका हुआ.
फूल की खुशबू ही तय करती है उसकी कीमतें,
क्या कभी तुमने सुना है, खार का सौदा हुआ.
झूठ सीना तानकर चलता हुआ मिलता है अब,
सच तो बेचारा है दुबका, कांपता डरता हुआ.
तजरबों से जो मिला हमने लिखा नीरज वही,
हम-ज़बां हैं आप मेरे, ये बहुत अच्छा हुआ.
*************
motamulashbal.gmail.com

ताऊ रामपुरिया said...

ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ


बहुत सही कहा आपने ! माहोल ही कुछ ऐसा है ! आपके खंजर को देख कर डर लग रहा है ! जब शायर खंजर उठा लेते हैं तो परिवर्तन अवश्य आयेगा ! उम्मीद करते हैं की सब ठीक हो जायेगा ! धन्यवाद !

Shuaib said...

आपतो बहुजत जिगर वाली बातें लिखी हैं।

Shiv said...

बहुत शानदार गजल. हमेशा की तरह.

डॉ .अनुराग said...

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ

काश समझदार लोग भी इस बात को समझे .....

Dr. Amar Jyoti said...

'झूठ सीना तान कर…'
बहुत ख़ूब। फ़ैज़ की नज़्म 'निसार मैं तेरी गलियों पे ऐ वतन…' की याद ताज़ा हो गई।
हार्दिक बधाई।

गौतम राजऋषि said...

अलफ़ाज...मेरे अल्फ़ाजों कहाँ हो तुम!!! मुझे इस गज़ल की जरा-सा हट के तारीफ़ करनी है!!!

नीरज जी मैं दंडवत हो चरण-स्पर्श करता हूँ

अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ

...शब्दों से परे हर शेर,भाव और इनकी बिनावट

कंचन सिंह चौहान said...

फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ

bahut khobb... sach kaha...!

बवाल said...

Vaah vaah Neeraj jee kya baat hai, oho badee khoob ghazal. dhoka hua aha!

Udan Tashtari said...

झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ


-बेहतरीन!!

पुनीत ओमर said...

मौजूदा परिप्रेक्ष्य को खूबसूरती से उकारा है आपने..
"दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ"

mehek said...

फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ

झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
waah bahut khub

Abhishek Ojha said...

'दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ'

वाह ! वाह ! क्या बात है !

कुश said...

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ

इस शेर की गहराई अगर सब समझले तो क्या बात है.. बेजोड़ ग़ज़ल

शोभा said...

फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ

झूठ सीना तान कर चलता हुआ मिलता है अब
हाँ, यहाँ सच दिख रहा है काँपता-डरता हुआ
बहुत अच्छा लिखा है.

Smart Indian said...

बहुत सुंदर, नीरज जी!

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ

क्या बात है मीरज जी...

--मानोशी

बवाल said...

Khauf kaa khanjar ! khaar ka sauda ! Kitnee behatareen baat Neeraj jee. Aaj to phir ghazab likha sir aapne. Aha !

Dr. Chandra Kumar Jain said...

साथियो ! गर चाहते हैं आप ख़ुश रहना सदा
लीजिए फिर हाथ में जो काम है छूटा हुआ

क्या बात है नीरज भाई,
आपने आत्म प्रबंधन की सीख दे दी
इस लाज़वाब शेर में.
ग़ज़ल का हर शेर उपहार की तरह है.
=============================
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेहद सुँदर रचना के लिये बधाई नीरज जी ~~
- लावण्या

Mumukshh Ki Rachanain said...

भाई नीरज जी,

सुंदर ग़ज़ल प्रस्तुति पर एक बार फिर से आपको बधाई.
आदत से मजबूर सो कुछ और भी लिखने की जुर्रत कर रहा हूँ, क्योंकि ये जुर्रत है , सीना तान कर
है इसलिए झूंठ ही होगा.............झूंठा ही सही, पर बिना लिखे रहा नही जा रहा है , सो लिख रहा हूँ ......................

"जमाना आज दिखाने का है.
जो है नही उसे भी दिखाना पड़ता है.
जब दिखाते हैं तो पूरा मेक अप कर ही दिखाना पड़ता है.
अविश्वाश न हो , इसी लिए सीना तान कर बोलना पड़ता है.

सच को मेक अप की नही , किसी को बताने की जरूरत नही है,
वह तो कांपता इसलिए है कि सामने वाला नासमझ, कम अक्लमंद, सच और झूठ में फर्क करने में असमर्थ है. अब आप ही बताइए कि सामने वाले ऐसे बन्दर के हाथ जब उस्तरा हो तो कौन समझदार व्यक्ति है जो काँपेगा नही. "

हमारी टिप्पणी को अन्यथा न लें, यह मेरी अपनी समझ और नितांत अपने विचार हैं.

चन्द्र मोहन गुप्त

pallavi trivedi said...

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ

umda...bahut khoob

राज भाटिय़ा said...

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ
बहुत ही सुंदर कविता कहीआप ने, काश हम सब इसे मह्सुस करे.ओर इस से कुछ नसीहत लै.
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

is khanzar se dar bhi laga...magar usase jyaadaa to acchha hi laga....
फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
khari-khari baat hai.....bhaai..

अमिताभ मीत said...

कमाल ! कमाल भाई. एक बार फिर वही असमंजस है .... किस - किस शेर की तारीफ़ हो.

Ratan said...

त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ...
Awesome...

Regards,
Ratan

Vinay said...

हर शे'र में आवर्द सफल रहा है और रचना बहुत निखर आयी है!

Ankit said...

bahut umda ghazal kahi hai aapne, har sher me tazgi hai.

अनुपम अग्रवाल said...

फूल ही बिकता हैं यारो हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ
अपनी बद-हाली में भी मत मुस्कुराना छोड़िये
त्यागता ख़ुशबू नहीं है फूल भी मसला हुआ
जीवन की सच्चाइयां ,
जीवन जीने की कला ,
सीख पायें हम कभी ,
इस कविता से भला |

Asha Joglekar said...

पूरी गज़ल ही अपने आप में मुकम्मल और बेहद खूबसूरत है पर मुझे यह सेर बहुत अच्छा लगा

फूल ही बिकता हैं यारों हाट में बाजार में
क्या कभी तुमने सुना है ख़ार का सौदा हुआ

राकेश खंडेलवाल said...

नीरजजी,

सुन्दर रचना है. मधु माहेश्वरी की पंक्तियां याद आ गईं

झूठ सीना तान कर चलता भरे बाज़ार में
कल यहां की रहगुजर में कत्ल सच का हो गया

दिगम्बर नासवा said...

दीन की , ईमान की बातें न समझाओ उसे
रोटियों में यारो ! जिसका ध्यान है अटका हुआ

हमेशा की तरह, अच्छी ग़ज़ल
कुछ पंक्तियाँ याद आ गयीं आपका शेर पड़ कर

एक भूखे की कला का रूप तो देखो
चाँद में भी उसने रोटी तलाशी है

Girish Kumar Billore said...

अति सुंदर से भावः संग ,सहज शब्द प्रवाह
पढ़ हिय से निकला सहज वाह वाह अरु वाह

निर्झर'नीर said...

ख़ौफ़ का ख़ंज़र जिगर में जैसे हो उतरा हुआ
आजकल इंसान है कुछ इस तरह सहमा हुआ


kya baat kahi hai neeraj jii

gahri or sacchi

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