Monday, September 3, 2012

किताबों की दुनिया - 73

श्री अवनीश कुमार जी की किताब "पत्तों पर पाजेब", जिसकी चर्चा आज हम इस श्रृंखला में करेंगे, की भूमिका के आरम्भ में दी गयी इन पंक्तियों ने मुझे इस किताब को खरीद कर पढने के लिए प्रेरित किया.

“कविता एक कोशिश करती है-जीवन का चित्र बनाने की, यथार्थ और उस से कुछ बेहतर...रंग वही हैं जो कायनात ने दिए हैं, तमाम कोशिशों के बाद भी तस्वीर मुकम्मल नहीं होती, फिर नयी कोशिश होती है. ये किताब भी ऐसी ही एक कोशिश है...”


वो बेहतर जानते हैं चोट क्या होती हथोड़े की
मिली तकदीर लोहे की, पड़े हैं जो निहाई पर

वो जिसके हाथ में खंज़र था, अब भोला कबूतर है
सभी की आँख दीवानी है हाथों की सफाई पर

नीली ओढ़नी पर रौशनी का एक दरिया सा
सितारे दे गया है चाँदनी की मुंह दिखाई पर

आज कल ग़ज़लें थोक के भाव लिखी जा रही हैं और छप भी रही हैं. हर पत्रिका में एक आध ग़ज़ल का होना अनिवार्य हो गया है. बहती गंगा में हाथ धोते हुए हमें बहुत से नौसिखिये कच्चे शायर बहुतायत में नज़र आ जाते हैं. जिस विधा में सदियों से कहा जा रहा हो उसमें कोई नयी बात कहना या फिर किसी पुरानी बात को नए अंदाज़ से कहना आसान काम नहीं है. और जब कभी ऐसा नज़र आता है तबियत खुश हो जाती है:

बाढ़ का पानी घरों की छत तलक तो आ गया
रेडियो पर बज रहा मौसम सुहाना आएगा

सड़क पर ठंडी बियर के बोर्ड को पढ़ते हुए
सोचता हूँ कब एक छोटा चायखाना आएगा

ढूध से चलती हों जिसमें रोटी के चक्के लगे
देखना ऐसा भी कारों का ज़माना आएगा

अवनीश कुमार के लिए कविता न तो उच्छ्वास है और न अदाकारी. अवनीश इस चलताऊ माहौल के रचनाकार नहीं हैं यद्दपि उनकी हर ग़ज़ल पहले मिसरे से ही हमें बाँध लेती है और आखिरी शेर तक पहुँचते -पहुँचते हमारे एहसास की दुनिया एकदम बदल जाती है :

बहुत था बीमार सूरज हड़बड़ाकर धूप ने
गिरवी रख दीं तीरगी के हाथ अपनी चूड़ियाँ

ज़िन्दगी भर रामलीला में लड़े सच की तरफ
मज़हबी दंगे में वो मारे गए रहमत मियां

जब वो बोले लगे कानों में शहद सा घुल गया
पहन रक्खीं नीम की सीकों की जिसने बालियाँ


उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के भूड़नगरिया गाँव में 1969 में जन्में अवनीश कुमार वनस्पति विज्ञानं में एम.एस.सी. हैं और बी.एड करने बाद शिक्षा विभाग में सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. उनका पहला कविता संग्रह "आइना धूप में " 1993 को प्रकाशित हुआ था उसके बाद अब 2011 में "पत्तों पर पाजेब " ग़ज़ल संग्रह.

मोहब्बत कैद हो जाती है सोने की जंजीरों में
महज़ अफवाह है यारों, ज़माने ने उड़ाई है

ज़मूरे ने कहा-सारा तमाशा पेट की खातिर
कोई जादू नहीं है सिर्फ हाथों की सफाई है

उतर जाते हैं रिक्शे से उसे धक्का लगाते हैं
पता है छोटे बच्चों को बहुत ऊंची चढाई है

हमारे चारों और घटने वाली छोटी छोटी घटनाओं पर उनकी पैनी नज़र जाती है और वो उसे शेर में ढाल देते हैं: इस संग्रह में रोमांटिक ग़ज़लें भी हैं, पर उनका मिजाज़ यथार्थवादी है. उड़ान है, पर मिटटी की खुशबू के साथ. ग़ज़लों में अपनी बात कहने का उनका निराला अंदाज़ उन्हें अपने सम कालीन शायरों से अलग करता है और भीड़ में अपनी पहचान बनाता है.

गुलों में ढूढती फिरती है बेकल
तितलियाँ खुशबुओं के ख़त पुराने

आज फिर अब्र के घूंघट से साधे
शिकारी चाँद ने सौ सौ निशाने

सोचता हूँ तेरी भीगी पलक पर
मैं रख दूं धूप के मौसम सुहाने

तेरी चाहत की चिंगारी रखी है
हमारे फूस के हैं, आशियाने

"पत्तों पर पाजेब" की ग़ज़लें, नए अंदाज़ की ग़ज़लें हैं जिनमें नए बिम्ब और प्रतीक निहायत ख़ूबसूरती से पिरोये गए हैं. और तो और पौराणिक, ऐतिहासिक पात्रों और घटनाओं के माध्यम से भी आज के व्यक्ति की व्यथा कही गयी है. अविनीश जी को पढने के बाद आप ग़ज़लों में आ रहे परिवर्तन को भलीभांति महसूस कर सकते हैं. ये ग़ज़लें हमारे जीवन से इस कदर जुडी हैं के हर शेर हमें अपनी आपबीती लगने लगता है.

परेशां हैं कई घर की घुटन से
बहुत से हैं कि जिनपे घर नहीं है

ऐ मीरे-फौज तू है जंग भी है
कि तेरे साथ अब लश्कर नहीं है

सुबह सय्याद ने देखा, कफस में
फलक का ख्वाब है...ताईर नहीं है

मीरे-फौज=सेनापति, कफस=पिंजरा, ताईर=परिंदा

वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब की भूमिका में अवनीश ने लिखा है " हम सब कला-रूपों के 'ग्लैमर' से सम्मोहित थे. लेकिन 'ग्रीन रूम' में झांकना दुःखदायी था क्यूंकि सारे मेकअप उतर चुके थे. किरदारों के चमकते चेहरे अब बीते ज़माने की बात हो गयी थी. एक अदद 'रोल माडल' की तलाश करने वाले बहुत मायूस हुए." अवनीश ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से ग्रीन रूम में झाँका है और चेहरों की बेबसी को उकेरा हैं जिन्हें अब तक मेकअप ने ढका हुआ था.

कोई तो बात है जिससे कि हमने कलम ही पकड़ी
हमारे वक्त भी मौजूद थी तलवार मौलाना

नहीं आदाब कर पाए हमारे बेबसी देखो
हमारे हाथ में रक्खे रहे अंगार मौलाना

वक्त का दर्द गाती है -दिलों पर राज करती है
ग़ज़ल मुजरा नहीं करती किसी दरबार मौलाना

इस किताब की हर ग़ज़ल और वो सभी नज्में जो आखिर में दी गयी हैं, अवनीश जी की विलक्षण सोच का लोहा मनवा देती हैं. उनकी कलम के जादू से पाठक बाहर नहीं निकल पाता. शायरी की ऐसी बेजोड़ किताब हर उस शख्स के पास होनी चाहिए जिसे शायरी से मोहब्बत है. मेरा अपने पाठकों से निवेदन है के चाहे वो इस किताब को न खरीदें लेकिन अवनीश जी को उनके मोबाइल 9410043814 पर फोन कर उन्हें इस लाजवाब शायरी के लिए बधाई जरूर दें ,और कुछ हो न हो लेकिन एक अच्छे शायर की हौसला अफ़जाही करना हमारा फ़र्ज़ होना चाहिए

तुम साथ हो तो घर की कमी फिर नहीं खलती
ये बात है जो घर से निकल, सोच रहा हूँ

हाँ! वक्त मुश्किलों से भरा है बहुत मगर
कीचड़ में ही खिलते हैं कमल, सोच रहा हूँ

सदियों से रहते आये हैं फुटपाथ पे जो लोग
मैं उनके लिए ताज महल, सोच रहा हूँ

अब हम निकलते हैं एक नयी किताब और नए शायर की तलाश में...

26 comments:

शारदा अरोरा said...

bahut badhiya Neeraj ji ...shayar ki soch ko salaam...

Pratik Maheshwari said...

किताबें खरीदने का समय आ गया है..
आपके ब्लॉग पर कई किताबों की विवेचना की गयी है.. कुछ तो इन्हीं में से खरीदूंगा :)

Shiv said...

अवनीश जी की शायरी के तेवर बहुत अलग लगे मुझे. एक से बढ़कर एक नए तरह के शेर पढ़ने को मिले.

सड़क पर ठंडी बियर के बोर्ड को पढ़ते हुए
सोचता हूँ कब एक छोटा चायखाना आएगा

जब वो बोले लगे कानों में शहद सा घुल गया
पहन रक्खीं नीम की सीकों की जिसने बालियाँ

उतर जाते हैं रिक्शे से उसे धक्का लगाते हैं
पता है छोटे बच्चों को बहुत ऊंची चढाई है

कोई तो बात है जिससे कि हमने कलम ही पकड़ी
हमारे वक्त भी मौजूद थी तलवार मौलाना

बहुत खूब!

रश्मि प्रभा... said...


परेशां हैं कई घर की घुटन से
बहुत से हैं कि जिनपे घर नहीं है... sach bahut badhiya

Narendra Vyas said...

सर्वप्रथम तो मैं श्री नीरज जी के इन वन्दनीय कार्य को सलाम करता हूँ. इतनी शिद्दत, मेहनत और बड़े ही प्रेम से आप जिस तरह अलग-अलग लेखकों की पुस्तकों की व्याख्या करते हैं, और पाठकों को उन्हें पढ़ने को प्रेरित करते हैं, वाकई माँ सरस्वती के प्रति, कलम के धनियों के प्रति, और पाठकों के प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा-समर्पण और पावन सोच ही है. और हम आपकी इस पावन सोच को नमन करते हैं. सिर्फ लेखक बन जाना ही बड़ी बात नहीं, बल्कि लेखक के अन्दर की उस संवेदना को, उस समष्टि समभाव और दूसरों को अपने से बढ़कर तरजीह देने की सोच ही एक बेहतर इंसान बनाती है.. आपसे हमने यही सीखा है...बल्कि हम सबको सीखना भी चाहिए. इस लिहाज़ से आप सम्पूर्ण सृजनकार हैं.
अब बात सम्मानीय श्री अवनीश जी की पुस्तक चर्चा की. इस समीक्ष में दिए गए शेरों को पढ़कर वाकई लगता है कि श्री नीरज जी ने जो कहा वो सौ फ़ीसदी सत्य है कि अवनीशजी इस चलताऊ माहौल के रचनाकार नहीं हैं यद्दपि उनकी हर ग़ज़ल पहले मिसरे से ही हमें बाँध लेती है और आखिरी शेर तक पहुँचते -पहुँचते हमारे एहसास की दुनिया एकदम बदल जाती है. उनकी ग़ज़लों में रोमांटिज्म और यथार्थवाद के साथ-साथ नवप्रयोगवाद भी दृष्टिगोचर होता है. किसी एक शेर को कोट करना समूचे संग्रह के साथ उपेक्षा करता होगा.. हर शेर वज़नदार और उम्दा है.
इच्छा है कि इस संग्रह को खरीदकर पढ़ सकूं. कृपया अवगत करवाईयेगा.
अंत में श्री अवनीश जी कोटि-कोटि बढियां और शुभकामनाएँ.
श्री नीरज जी का दिल से आभार इस बेहतरीन समीक्षा और जानकारी बाबत.
नमन !

दिगम्बर नासवा said...

अवनीश कुमार जी की शाएरी ... जैसे जैसे शेर पढते जा रहा हूँ ... दांतों तले उंगलियां दबा रहा हूँ ... किन किन विषयों और बातों को गज़ल में उतारा है ... बेमिसाल है ... आपका बहुत बहुत शुक्रिया उनकी किताब से मिलवाने का ... नगीना हाथ में दे दिया आपने ..

तिलक राज कपूर said...

परेशां हैं कई घर की घुटन से
बहुत से हैं कि जिनपे घर नहीं है
बहुत खूब भाई।

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 4/9/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच http://charchamanch.blogspot.inपर की जायेगी|

Ashish said...

Bahut achche sher hain kai.

सड़क पर ठंडी बियर के बोर्ड को पढ़ते हुए
सोचता हूँ कब एक छोटा चायखाना आएगा

Bahut badhiya laga.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति पंक्तियाँ..

शिवम् मिश्रा said...

बहुत बहुत आभार नीरज जी !

मोहब्बत यह मोहब्बत - ब्लॉग बुलेटिन ब्लॉग जगत मे क्या चल रहा है उस को ब्लॉग जगत की पोस्टों के माध्यम से ही आप तक हम पहुँचते है ... आज आपकी यह पोस्ट भी इस प्रयास मे हमारा साथ दे रही है ... आपको सादर आभार !

निवेदिता श्रीवास्तव said...

बहुत सुन्दर जानकारी ......

Andaman holiday packages said...

The post is handsomely written. I have bookmarked you for keeping abreast with your new posts.

Andaman Holidays said...

It is a pleasure going through your post. I have bookmarked you to check out new stuff from your side.

Andaman Holidays said...

It is a pleasure going through your post. I have bookmarked you to check out new stuff from your side.

Andaman Packages said...

A very well-written post. I read and liked the post and have also bookmarked you. All the best for future endeavors.

andaman honeymoon package said...

Good efforts. All the best for future posts. I have bookmarked you. Well done. I read and like this post. Thanks.

andaman tour booking said...

Thanks for showing up such fabulous information. I have bookmarked you and will remain in line with your new posts. I like this post, keep writing and give informative post...!

आनंद said...

इस बार काफ़ी दिनों बाद भाई जी के पास आ पाया आते ही दिल बाग बाग हो गया ..कितना अच्छा और नपातुला लेखा जोखा दिया है आपने और जो बात सबसे मौजूं है वो ये है

आज कल ग़ज़लें थोक के भाव लिखी जा रही हैं और छप भी रही हैं. हर पत्रिका में एक आध ग़ज़ल का होना अनिवार्य हो गया है. बहती गंगा में हाथ धोते हुए हमें बहुत से नौसिखिये कच्चे शायर बहुतायत में नज़र आ जाते हैं. जिस विधा में सदियों से कहा जा रहा हो उसमें कोई नयी बात कहना या फिर किसी पुरानी बात को नए अंदाज़ से कहना आसान काम नहीं है. और जब कभी ऐसा नज़र आता है तबियत खुश हो जाती है:

ये कहने वाला भी तो कोई होना चाहिए !

सदा said...

वाह ... बहुत ही बढिया प्रस्‍तुति।

वाणी गीत said...

समीक्षा गजलों के प्रति उत्सुकता बढाती है .

SATISH said...

आदरणीय नीरज जी,

अवनीश कुमार जी की किताब "पत्तों पर पाजेब" के चंद अशआर और अद्वितीय समीक्षा आपके हवाले से पढ़ने को मिली. कुछ अशआर बहुत भाये...
"ज़मूरे ने कहा-सारा तमाशा पेट की खातिर
कोई जादू नहीं है सिर्फ हाथों की सफाई है"
क्या कहने...

"परेशां हैं कई घर की घुटन से
बहुत से हैं कि जिनपे घर नहीं है"
जवाब नहीं.....वाह वाह
"सदियों से रहते आये हैं फुटपाथ पे जो लोग
मैं उनके लिए ताज महल, सोच रहा हूँ"
वाह वाह....
खूबसूरत अशआर पढ़वाने के लिए आपका सादर आभार.
और अवनीश कुमार जी को दिली मुबारकबाद.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू, मुंबई-49.

अशोक सलूजा said...

पत्तों की पाज़ेब बजी
तुम याद आये ....
बहुत खूब नीरज भाई जी !

Gyan Dutt Pandey said...

यहां आने पर लगता है कि मनहूसियत की उमस दूर करने के लिये गज़ल की बयार की तलाश करनी चाहिये।

ghughutibasuti said...

अवनीश कुमार जी से व उनकी गजलों से मिलवाने के लिए आभार.
घुघूतीबासूती

Asha Joglekar said...

आप एक ऐसे जोहरी हैं जो हीरों को खोजते ही नही उन्हें धो पोंछ कर हमें भी उनकी चमक से वाकिफ कराते हैं । अवनीश जी कमाल के शायर हैं आप ने जो चुनिंदा शेर पेश किये हैं एक से एक कमाल के । अवनीश जी से मिलाने का धन्यवाद ।