Monday, November 7, 2011

आप थे फूल टहनियों पे सजे


दीपावली के शुभ अवसर पर हमेशा की तरह इस बार भी गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर एक शानदार तरही मुशायरे का आयोजन हुआ था. तरही का मिसरा था "दीप खुशियों के जल उठे हर सू". इस मुशायरे में देश-विदेश के नामी गरामी शायरों /कवियों ने अपनी एक से बढ़ कर एक एक ग़ज़लें/ काव्य रचनाएँ प्रस्तुत कीं. उसी मुशायरे में खाकसार ने भी अपनी इस ग़ज़ल के साथ, जिसे मैं आप सब के लिए यहाँ ले आया हूँ, शिरकत की थी.

ढूंढते हो कहाँ उसे हर सू
बंद आँखें करो दिखे हर सू

दीप से दीप यूँ जलाने के
चल पड़ें काश सिलसिले हर सू

एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू

छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू

दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज
सुर्ख ही सुर्ख दिख रहा हर सू

(ये दो शेर मेरी हाल ही में जन्मी छोटी पोती जिसके निमकी/मधुरा/इष्टी/मिश्री जैसे कई नाम हैं के लिए)

जब से आई है वो परी घर में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू

है दिवाली वही असल 'नीरज'
तीरगी दूर जो करे हर सू

65 comments:

Rajesh Kumari said...

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू
vaah..vaah har panktiyan kamaal ki hain.bachchi ke vishay me to laajabaab likha hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

वाह, ताजगी भरी।

मुदिता said...

नीरज जी ,
हमेशा की तरह बेहद उम्दा गज़ल.. हर शे'र गहन ..कसी हुई बुनावट के साथ

ये शे'र बहुत अपना सा लगा

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

बिटिया को समर्पित शे'र बहुत सुन्दर हैं ..बहुत बधाई आपको पोती के जन्म की ..

अशोक सलूजा said...

पोती की खुशियाँ बहुत मुबारक हो आप को हर सू.
मेरा प्यार और आशीर्वाद हमेशा उसके साथ हर सू


छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू.......
शुभकामनाएँ!

vandana gupta said...

हमेशा की तरह शानदार प्रस्तुति।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत गज़ल ..पोती के आने की बधाई

अनुपमा पाठक said...

छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू
वाह!
सुन्दर!
छोटी मधुरा को ढ़ेर सारा प्यार!

Human said...

बहुत अच्छी रचना व पोती हेतु बधाई !!

मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है कृपया अपने महत्त्वपूर्ण विचारों से अवगत कराएँ
http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html।

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....


- संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
विदेश जाने की इच्छा छोड़ दे
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

रचना दीक्षित said...

बहुत खूबसूरत गज़ल. उम्दा. बधाई.

महेन्‍द्र वर्मा said...

दिन ढले कत्ल हो गया सूरज
सुर्ख ही सुर्ख देखिये हर सू

सभी शेर कमाल के हैं, लेकिन इस शेर का अंदाज ही निराला है।
बधाई, नीरज साहब।

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू

सभी शेर बड़े ही उम्दा हैं सर...
बेहतरीन ग़ज़ल...
आपको घर में जन्मोत्सव की हार्दिक बधाईयाँ...

pran sharma said...

JAB KABHEE CHHUP KE MUSKRAATEE HAI
FOOTTE HAIN ANAAR SE HAR SOO

BAHUT KHOOB NEERAJ JI ! SABKO DHER
SAARAA PYAR .

अरुण चन्द्र रॉय said...

बेहतरीन ग़ज़ल... हर शेर उम्दा...

रश्मि प्रभा... said...

एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू... yahi to vyatha hai

डॉ टी एस दराल said...

दूसरी बार दादा बनने के लिए बधाई ।
दीवाली पर ग़ज़ल भी सुन्दर बनाई ।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...






आदरणीय भाईसाहब नीरज जी
प्रणाम !

पूरी ग़ज़ल शानदार है , हर शे'र के लिए मुबारकबाद !
ख़ास होने के नाते ये शे'र मन के बहुत करीब आ गए हैं -
जब से आई है वो परी घर में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू

आपके आनंद में हम भी आनंदित हैं …

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छोटी पोती के आने की एक बार फिर से बधाई !
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मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार

मनोज कुमार said...

एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू
वाह! लाजवाब! बेहतरीन अभिव्यक्ति।

तिलक राज कपूर said...

आपका हर शेर पूरी शिद्दत से कहता है कि आपके दिल के अहसास कितने कोमल हैं।
आपके शेर यूँ लगे जैसे
नर्म कोमल रुई भरा तकिया।

आशा बिष्ट said...

ढूंढते हो कहाँ उसे हर सू
बंद आँखें करो दिखे हर सू

दीप से दीप यूँ जलाने के
चल पड़ें काश सिलसिले हर सू
बेहद खुबसूरत पंक्तिया ..
आपकी पोती को ढेरों शुभ आशीष
सर, अपने मेरी पोस्ट पर आकर टिप्पणी रूपी आशीष दिया आपका.........बहुत-बहुत धन्यवाद..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

नीरज जी,आपने बड़ी ही खूबसूरती से लिखी है ये प्यारी गजल मुझे तो बहुत पसंद आई ..बधाई आपकी पोती को मेरा ढेर सा प्यार और आशीर्वाद..
मेरा मुख्य ब्लॉग काव्यांजली में आपका स्वागत है..

डॉ. मनोज मिश्र said...

वाह,बहुत अच्छा.

इस्मत ज़ैदी said...

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल !!

और "परी" के लिये कहे गए अश’आर तो बेहद ख़ूबसूरत और प्यारे हैं

Santosh Kumar said...

जब से आई है वो परी घर में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

बड़ी सुन्दर पंक्तियाँ.

पोती के जन्म की शुभकामनायें..प्रभु उसे लंबी उम्र दें.

मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है..
www.belovedlife-santosh.blogspot.com

Amrita Tanmay said...

सबसे पहले दादा बनने की ढेर सारी बधाईयाँ..शेर तो हमेशा की तरह ..कमाल है ही.

Smart Indian said...

ढूंढते हो कहाँ उसे हर सू
बंद आँखें करो दिखे हर सू


जब से आई है वो परी घर में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू


अध्यात्म और वात्सल्य दोनों के रंग एक साथ। बहुत सुन्दर नीरज जी।

Shiv said...

बहुत खूब ग़ज़ल!
एक से बढ़कर एक शेर सारे. मिसिरी के लिए लिखे गए शेर तो और भी बढ़िया.
आप जैसी गज़लें देते हैं, उसके बाद और क्या चाहिए?

Manvi said...

बेहतरीन गजल। हिन्‍दी की 'समस्‍या पूर्ति' परम्‍परा का बेहतरीन नमूना इस गजल में देखा जा सकता है।

आकर्षण गिरि said...

bahut khoob.....

दीपक बाबा said...

सुंदर गज़ल..


छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू

इस शेर पर दाद दूँगा.

दिगम्बर नासवा said...

कुछ नए शेरों के साथ ये गज़ल खुशबू बिखेर रही है हर सू ... मज़ा आ गया नीरज जी ...अनूठा कहन होता है आपकी गज़लों में हमेशा ... बेहतरीन लिखते हैं आप ...

हरकीरत ' हीर' said...

जब से आई है वो परी घर में
दीप खुशियों के जल उठे हर सू

मिसरे का बखूबी इस्तेमाल किया आपने नीरज जी ....
और बाकी शेर तो माशाल्लाह हैं हीं ....

छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू

क्या बात है ....
ढेरों दाद कबूल करें ....

Anonymous said...

सुभानाल्ल्ह.......हर शेर बढ़िया और गहरी बात समेटे हुए.........बेहतरीन ग़ज़ल.........काश हमने भी इसे बाकायदा सुना होता...........बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें साहब |

डॉ.त्रिमोहन तरल said...

आदरणीय नीरज जी ,
मैं आपकी लगभग हर पोस्ट पढ़ता हूँ । हाँ,टिपण्णी करने के लिए कम ही आता हूँ । कारण अधिकतर तो समयाभाव ही होता है। आदतन भी नेट पर कम ही बैठता हूँ। लेकिन आज की आपकी ग़ज़ल पढ़कर रुका ही नहीं गया। यों तो ग़ज़ल का हर शेर अपनी अहमियत रखता है लेकिन दो-तीन शेर तो गज़ब के हैं:

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू
और ये तो लाजबाब है

दिन ढले क़त्ल हो गया सूरज
सुर्ख ही सुर्ख देखिये हर सू
तरमीम नहीं कर रहा हूँ क्यों कि वह तो उस्तादों का काम है लेकिन आखिरी मिसरा अगर मुझे कहना होता तो मैं 'सुर्ख ही सुर्ख दिख रहा हर सू' कहता ।क्यों कि क़त्ल तो बेचारा सूरज हुआ है आप देखें या न देखें खून से लथपथ सूरज को तो सुर्ख दिखना ही है। बहरहाल, एक बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मेरी हार्दिक बधाई ।

डॉ० त्रिमोहन तरल , आगरा

Asha Joglekar said...

हार्दिक बधाई । परी की मुस्कुराहट से खुशियों के दीप यूं ही जगमगाते रहें । सुंदर गज़ल, ताजगी भरी ।

Urmi said...

छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू
आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू...
लाजवाब पंक्तियाँ !सुन्दर शब्दों से सुसज्जित उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.com/

Vandana Ramasingh said...

दीप से दीप यूँ जलाने के
चल पड़ें काश सिलसिले हर सू

बहुत सुन्दर

'साहिल' said...

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू..

वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू

वाह नीरज जी, बहुत खूब ग़ज़ल कही है!

kanu..... said...

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू
mujhe to sabse payari ye panktiyan lagi.,....:)

Ankur Jain said...

bahut hi sundar rachna....

Jeevan Pushp said...

गोस्वामी जी सबसे पहले आपकी प्यारी पोती के जन्म पे आपको और आपके पूरे परिवार को मेरे तरफ से हार्दिक बधाई !
आपने अपनी प्यारी पोती के लीये जो चंद पंक्तियाँ पेश किया बहुत ही उम्दा एवं भावपूर्ण... !
मेरे ब्लॉग पे आपका दिल से स्वागत है..

जयकृष्ण राय तुषार said...

लाजवाब भाई नीरज जी

संजय @ मो सम कौन... said...

नीरज बाऊजी,
हर शेर दाद के काबिल है।
नन्हीं परी के आने की लाखों बधाईयां।

Atul Shrivastava said...

शानदार गजल।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू
वाह वाह नीरज जी,
अल्फ़ाज़ नहीं है तारीफ़ के लिए...
क्या शेर है...हासिले-ग़ज़ल
वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू
बहुत उम्दा...
और गिरह के ज़रिये नन्ही परी की आमद की खुशखबरी देने के लिए शुक्रिया...बधाई.

Udan Tashtari said...

गज़ब भाई गज़ब...

जब ऊँगली न बचेगी तो आप जिम्मेदार कहलायेंगे..हर बार दाँतों तले ऊँगली दबवा देते हैं. :)

Kunwar Kusumesh said...

एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू.

वाह क्या बात है नीरज जी.

अब तो यही कह सकता हूँ कि:-

राम भी एक,काश,हो पैदा,
जो कि रावण को मार दे हर सू.

ahsaas said...

waah! bahut khoob

Er. सत्यम शिवम said...

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना...लाजवाब।

शाहजाहां खान “लुत्फ़ी कैमूरी” said...

Sir,you visited my blog,it is achievement for me.I read your ghazals all the ashaars were fantastic.This ghazal समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या is so appreciable.
Sir,thanx a lot.

Rajeev Bharol said...

नीरज जी,
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है.. फिर से पढवाने के लिए शुक्रिया..

Onkar said...

वाह, क्या बात है!

Kailash Sharma said...

छत की कीमत वही बताएँगे जो
रह रहे आसमां तले हर सू


वार सोते में कर गया कोई
आँख खोली तो यार थे हर सू

....बहुत खूब...लाज़वाब गज़ल...

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर
क्या कहने

Maheshwari kaneri said...

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू.....
बहुत खूब...लाज़वाब गज़ल...बधाई

नीरज गोस्वामी said...

Coment recevied from Om Sapra ji through e-mail:

bhai neeraj ji
Excellent Ghazal.
poti ke liye bhadhai,
-om sapra

kumar zahid said...

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

जब कभी छुप के मुस्कुराती है
फूटते हैं अनार से हर सू


क्या बात है! वाह!!
बेहतरीन अशआर!

Ankit said...

नमस्कार नीरज जी,
इस शेर के तो क्या कहने, एक अलग ही खूबसूरती छिपी है इसमें.
आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू

Pawan Kumar said...

नीरज जी
अच्छी ग़ज़ल......

आप थे फूल टहनियों पे सजे
हम थे खुशबू बिखर गए हर सू


इस शेर के क्या कहने.... दाद क़ुबूल फरमाएं

शोभना चौरे said...

हरेक शेर लाजवाब |बिटिया को खूब प्यार आशीर्वाद |



एक रावण था सिर्फ त्रेता में
अब नज़र आ रहे मुझे हर सू
अभी परसों के यहाँ बेंगलोर के राजस्थान पत्रिका में इक समाचार था एक वीरप्पन तो मर गया पर सैकड़ो चन्दन तस्कर का जन्म हो गया है जितनी लकड़ी सर्कार के पास है उससे तिगुनी मात्रा में इन तस्करों के पास से बरामद होती है |
शायद रक्तबीज की तरह |

कुमार राधारमण said...

नए ग़ज़लकारों के लिए एक अच्छा उदाहरण। जारी रखें।

सर्वत एम० said...

भाई अब पोती की खुशी खुद को शुभकामना और बधाई देकर पूरी कर ली और अपनी तुष्टि कर ली. घेवर क्या रेवड़ी तक के लिए तरस गया. बहरहाल छोटे दादा की बड़े दादा को बधाई. अगर पुणे आ सका तो मिष्ठान्न की रस्म भी पूरी कर दूंगा.
हाँ, दूसरी बात, ग़ज़ल ऐसी ही पेश करना कि मेरे कलेजे में तीर और पर नश्तर चल जाए. कभी तो मामूली स लिख देते, क्या बिगड जाता! लेकिन यहाँ तो इरादा कर लिया है कि सर्वत जमाल को नीचा दिखा कर ही दम लेंगे, अच्छा लग रहा है ना!!!

डॉ. जेन्नी शबनम said...

bahut umda ghazal, badhai.

Manish Kumar said...

अच्छी लगी ये ग़ज़ल !

vijay kumar sappatti said...

नीरज जी
नमस्कार

इस बार गज़ल से ज्यादा , दादा बनने के लिये बधाई देता हूँ . गज़ल तो है ही बधाई और तारीफ के काबिल , लेकिन पोती जब आपके साथ खेलेंगी , उसकी [ उस मोमेंट ] की गज़ल की बात ही कुछ और होंगी ..

बधाई और बधाई ....

आपका
विजय