मेरी ये मेल उन ब्लॉगर भाई बहनों के लिए है जो जीवन की आपाधापी से ऊबकर प्रभु शरण में शान्ति चाहते हैं. जिन्हें गिरते झरनों के गायन और आंखों को ठंडक पहुँचने वाली हरियाली से कोई लेना देना नहीं रह जाता. जो ये समझते हैं की संसार मिथ्या है और शरीर नाशवान है. जिनको शरीर के नाश होने से पहले आत्म शुद्धी के लिए प्रभु दर्शन करना अनिवार्य लगता है. ये उनके लिए भी है पाप रूपी भोजन को पचाने के लिए भगवान रुपी चूरन की फांकी लेना चाहते हैं. ये पोस्ट उनके लिए भी है जो एक तीर से दो शिकार करने में विश्वाश रखते हैं यानि प्रभु भक्ति के साथ साथ प्रकृति का आनंद भी उठाना चाहते हैं. या जिनको ये भान हो गया है की "आए थे हरी भजन को लिखने लगे हैं ब्लॉग" अतः अब हरी भजन कर लिया जाए.
जीवन के टाट पर मखमल का पैबंद लगाने के लिए खोपोली भ्रमण से उत्तम कोई विकल्प नहीं है. मेरे इस कथन को याद रखें और मेरे साथ खोपोली भ्रमण के अन्तिम चरण की और बढ़ें...भगवान् आप का भला करेंगे.
खोपोली अगर बस या ट्रेन से आयेंगे तो सबसे पहले आपको बाण गंगा नदी के दर्शन होंगे. इस नदी का बाण या गंगा से कोई रिश्ता नहीं है ये एक नाम है जैसे की मेरा "गोस्वामी" जिसका तुलसी दास जी से कोई रिश्ता नहीं है. अस्तु, ये नदी लोनावला पर बने एक बाँध से प्रवाहित होती है और इसे "टाटा" वालों की मर्जी अनुसार बहना होता है. याने टाटा वाले बिजली बनाने के लिए इसे जब मन करता है तब प्रवाहित करते हैं. जब ये प्रवाहित होती है तब बहुत दर्शनीय होती है और जब नहीं तब दूषित. हर हाल में ये खोपोली की आन बान शान है.
पूरे रायगड जिले में आपको शिवाजी महाराज घोडे पर बैठे हाथ में तलवार लिए दिखाई देंगे और चूँकि खोपोली रायगड जिले में आता है इसलिए अपवाद नहीं है.
ये है यहाँ का रुक्मणि-विट्ठल याने राधा कृष्ण जी का मन्दिर जो एक छोटी से पहाड़ी पर बना है. नवम्बर माह में यहाँ पन्द्रह दिनों तक मेला लगता है जिसे हम हमारे यहाँ आने वाले विदेशी मेहमानों को दिखाना अपना कर्तव्य समझते हैं. मेले में भीडभाड के अलावा बड़ा सा गोल घूमने वाला झूला और "मौत का कुआँ" जिसमें चार मोटर साईकल और एक मारुती कार एक साथ चक्कर लगाती है विशेष आकर्षण के केन्द्र होते हैं. हमारे विदेशी मेहमान इसके चित्र उतारते और हैरानी से मुंह खोलते बंद करते, नहीं थकते.
ऊपरी खोपोली, याने की जहाँ से लोनावला के लिए पहाड़ी चढाई शुरू होती है, में एक बहुत पुराना शिव मन्दिर है. कहते हैं यहाँ आने वाले को एक अजीब सा कम्पन महसूस होता है और मन को अथाह शान्ति मिलती है. ये शिव मन्दिर कोई ढेढ़ सो साल या उस से भी अधिक, पुराना है और एक तालाब के किनारे बना हुआ है.
ये तालाब खोपोली का सबसे बड़ा तालाब है और गणेश चतुर्थी पर गणेश जी के विसर्जन के काम आता है. इस तालाब के किनारे बहुत सारी लाईटें लगा दी गयी हैं जो रात में नयनाभिराम दृश्य उपस्तिथ करती हैं. खोपोली में बिजली की समस्या है इसलिए अक्सर शाम को इस तालाब के पास आप को अँधेरा पसरा मिलेगा.
शिव मन्दिर से कुछ कदम की दूरी पर "गगन गिरी महाराज" का आश्रम है. ये खोपोली का सबसे बड़ा आकर्षण है. गगन गिरी महाराज एक योगी और तपस्वी थे जिन्होंने वर्षों इस स्थान पर पूजा की और कई सिद्धियाँ हासिल कीं. महाराज पानी में बैठकर समाधी लगाते थे और ये समाधी इतनी गहन होती थी की मछलियाँ उनके पाँव की उँगलियाँ कुतर डालती थीं और उन्हें पता भी नहीं चलता था. महाराज को देखने और नमस्कार करने सौभाग्य मुझे प्राप्त हो चुका है. इनका निधन अभी कुछ माह पूर्व ही हुआ था. गुरु पूर्णिमा के दिन आश्रम में प्रवेश और महाराज के दर्शनों के लिए दूर दूर के गाँव से लोग आते हैं और रात से ही कई किलोमीटर लम्बी लाइन लगनी शुरू हो जाती है.
आश्रम में बहती बाण गंगा का दृश्य आप को हरिद्वार की हरकी पैडी की याद दिला देगा. गगन गिरी महाराज एक पहाड़ी की गुफा में रहा करते थे, कोई १५-२० मिनट की चढाई के बाद आप उस गुफा में पहुँच सकते हैं वहां ध्यान मग्न महाराज की आदमकद मूर्ती रखी हुई है.बरसात के दिनों में इस आश्रम के चारों और बहते झरने देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे आप कभी भूल नहीं पाएंगे.
आश्रम से आधा की.मी. पहले पहाडियों के बीच बिरला जी ने एक फैक्ट्री डाली पाईप बनाने की,नाम रखा "जेनिथ पाईप" यहाँ उन्होंने एक खूबसूरत मन्दिर भी बनवाया जिसमें विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया.
इस मन्दिर के पीछे बरसातों में खोपोली का सबसे विशाल झरना गिरता है जिसे "जेनिथ फाल" कहते हैं. इस झरने की आवाज आप एक की.मी. दूर से सुन सकते हैं. सप्ताहांत में मुंबई और आप पास के इलाकों से हजारों लोग इसके नीचे नहाने का लुत्फ़ लेने आते हैं.
भूषण स्टील जब 2003 में बनी तब यहाँ भी एक मन्दिर बनवाया गया, जिसमें मुख्या रूप से गणेश प्रतिमा को स्थापित किया गया. जयपुर से मंगवाई गयी शिव, हनुमान , बालाजी और गणेश जी की प्रतिमाएँ देखते ही बनती हैं।
इसके अलावा खोपोली से 4 की.मी. पहले महद नमक स्थान पर अष्टविनायक में से एक विनायक स्थापित हैं तो कोई 25 की.मी. दूर दूसरे विनायक पाली नामक गाँव में हैं. खोपोली से पाली तक का रास्ता हरियाली पहाडों से बहते झरनों से भरा पढ़ा है यहाँ गरम पानी के कुण्ड भी हैं जिसमें नहा कर आप चमड़ी के रोगों से मुक्त हो सकते हैं ( ऐसी मान्यता है)।
आख़िर में मैं आप सब याने
शिव कुमार मिश्रा जी, ज्ञान भईया, पंकज सुबीर जी, महावीर शर्मा जी, रंजू भाटिया जी, समीर लाल जी, कुश जी,अशोक पांडे जी , डा.अनुराग जी, डा. चंद्र कुमार जैन जी, महेंद्र मिश्रा जी,अल्पना वर्मा जी, योगेन्द्र मुदगिल जी, ममता जी, युनुस जी, प्रियंकर जी, दीपांशु गोयल जी, विमल वर्मा जी, विजय गौड़ जी, हरी मोहन सिंह जी, यू.पी.सिंह जी, अशोक पाण्डेय जी, अभिषेक ओझा जी, मिनाक्षी जी, हर्ष वर्धन जी, पंकज अवधिया जी, महामंत्री तस्लीम जी,अरुण जी, मनीष जी, डा.प्रवीण चोपडा जी, द्विज जी , चंद्र मोहन गुप्ता जी और बालकिशन जी, का तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ जिन्होंने खोपोली श्रृखला की सभी कड़ियों को पढ़ा और सराहा.
इस अन्तिम कड़ी में मैं आप सब को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्यूँ की आपने अपना बटुआ, पति/पत्नी का मूड, बच्चों का स्कूल, नौकरी, छुटियाँ, स्वास्थय आदि को देखते हुए खोपोली आने का प्रोग्राम खारिज कर दिया.
उम्मीद करता हूँ की उपरोक्त कारणों को मध्ये नजर रखते हुए आप इस पोस्ट को पढ़ कर भी खोपोली नहीं पधारेंगे और अपने अपने घर पर प्रसन्न रहेंगे. चलिए, असली ना सही चित्रों के माध्यम से ही सही जो मिला उसे अधिक समझ कर उपयुक्त समय का इन्तेजार करें क्यूँ की ना तो कहीं खोपोली जाने वाली है और ना ही आप.
आप नहीं आए या नहीं आ पाए कोई बात नहीं कम से कम इस गलती के लिए अपने कान ही पकड़ लीजिये, शायद इश्वर आप को माफ़ कर दे, क्यूँ की आप नहीं जानते आप ने यहाँ नहीं आ कर क्या खोया है.
जय हो...खोपोली ना आने के कारण...हे ब्लॉगर भाई बहनों आप की सदा ही जय हो.