Thursday, July 24, 2008

तू अगर बाँसुरी सुना जाए


पिछली १५ और २२ जुलाई को महावीर जी के ब्लॉग पर एक मुशायरे का आयोजन हुआ जिसे बहुत से सुधि पाठकों ने देखा सुना पढ़ा...उसमें दुनिया के नामचीन कवियों और शायरों जैसे श्री प्राण शर्मा, लावण्या शाह, तेजेन्द्र शर्मा, सुरेश चंद्र "शौक", देवमणि पांडेय, द्विजेन्द्र ’द्विज’, राकेश खण्डेलवाल, पारुल, सुरेश चन्द्र “शौक़”,कवि कुलवंत सिंह, समीर लाल “समीर”, चाँद शुक्ला “हदियाबादी”,देवी नागरानी, रंजना भाटिया, डॉ. मंजुलता, कंचन चौहान,डॉ. महक, रज़िया अकबरमिर्ज़ा, अहमद अली "बर्की" , हेमज्योत्सना “दीप”, सतपाल "ख्याल", नीरज त्रिपाठी आदि ने शिरकत की. श्री महावीर जी और प्राण शर्मा साहेब ने मुझे भी इन प्रतिष्ठित रचनाकारों के मध्य अपनी रचना सुनाने का मौका दिया.

जिन बहिन भाईयों ने इस मुशायरे का लुत्फ़ श्री महावीर जी के ब्लॉग पर नहीं उठाया उनके लिए अपनी वो रचना जो मैंने उस मुशायरे में पढ़ी थी पेश कर रहा हूँ.बाकि रचनाकारों की रचनाएँ पढने के लिए कृपया महावीर जी के ब्लॉग पर क्लिक करें


तू अगर बाँसुरी सुना जाए
मेरे दिल को करार आ जाए

कोई बारिश बुझा नहीं सकती
आग जो चाँदनी लगा जाए

इक दिये —सा वजूद है मेरा
तेरी राहों में जो जला जाए

लौटती है बहार गुलशन में
फिर ख़िज़ाँ से भी क्यूँ डरा जाए?

याद तेरी नदी पहाड़ों की
राह में जो पड़े बहा जाए

हमने माना कि दौड़ है जीवन
पर कहीं तो कभी रुका जाए!

दिल का क्या ऐतबार है ‘नीरज’!
क्या ख़बर कब ये किस पे आ जाए

( इस ग़ज़ल का जिस्म मेरा है जिसमें आत्मा प्राण शर्मा जी और द्विज भाई ने डाली है )

Monday, July 21, 2008

मिल बाँट कर के खाएं


गुणी जनों ब्लॉग जनों...देश के बदलते हुए हालात पर लिखी कुछ पंक्तियाँ कभी लिखी थीं जिन्हें आज सुनाने का मन हो रहा है...ना ये ग़ज़ल है, कविता, रुबाई, छंद या मुक्तक सिर्फ़ अंतरात्मा की आवाज है... इसलिए इसमें व्याकरण की अशुद्धि आप को मिल सकती है लेकिन भाव शुद्ध हैं मेरा सिर्फ़ ये ही कहना है...अगर लगे की जो कहा गया है सच है तो आशीर्वाद दीजिये...

शायद ये रिवायत है
नेताओं की आदत है
जब चाहें देश अपना
मिल बाँट कर के खाएं!!

ये खेल है कुर्सी का
इसमें तो यही देखा
कव्वे बदलके सुर को
कोयल से गीत गायें !!

बेशर्म कौम सारी
अब बन गयी मदारी
तहजीब को सड़क पे
बन्दर सा ये नचायें !!

जब हो न मुंह मैं दाना
तब तुम हमें बताना
मजलूम इमाँ-इज्ज़त
फिर किस तरह बचाएं!!

“नीरज" हुए पुराने
जैसे “तलत" के गाने
ना क़द्र दाँ रहे अब
दिल की किसे सुनाएँ???

Friday, July 18, 2008

माँ की बोली



भाषा को ले कर अक्सर बवाल उठते रहे हैं लेकिन आदरणीय प्राण शर्मा साहेब ने भाषा को एक बहुत दिलचस्प ग़ज़ल नुमा नज़्म के अंदाज़ में प्रस्तुत किया है. आप भी इसका लुत्फ़ लीजिये और महसूस कीजिये की प्राण साहेब ने अपने हुनर का जलवा दिखाते हुए कितनी सादगी से मादरी जबान ( मदर टंग) की वकालत की है

पहले अपनी बोली बोलो
फ़िर चाहे तुम कुछ भी बोलो
इंग्लिश बोलो रुसी बोलो
तुर्की बोलो स्पेनिश बोलो
अरबी बोली चीनी बोलो
जर्मन बोलो डेनिश बोलो
कुछ भी बोलो लेकिन पहले
अपनी माँ की बोली बोलो
अपनी बोली माँ की बोली
हर बोली से न्यारी न्यारी
अपनी बोली माँ की बोली
मीठी मीठी प्यारी प्यारी
अपनी बोली माँ की बोली
अपनी बोली से नफरत क्यों
अपनी बोली माँ की बोली
दूजे की बोली में ख़त क्यों
अपनी बोली का सिक्का तुम
दुनिया वालों से मनवाओ
ख़ुद भी मान करो तुम इसका
औरों से भी मान कराओ
माँ बोली के बेटे हो तुम
बेटे का कर्तव्य निभाओ
अपनी बोली माँ होती है
क्यों ना सर पे इसे बिठाओ

Monday, July 14, 2008

आओ चलें खोपोली-परलोक सवारें



मेरी ये मेल उन ब्लॉगर भाई बहनों के लिए है जो जीवन की आपाधापी से ऊबकर प्रभु शरण में शान्ति चाहते हैं. जिन्हें गिरते झरनों के गायन और आंखों को ठंडक पहुँचने वाली हरियाली से कोई लेना देना नहीं रह जाता. जो ये समझते हैं की संसार मिथ्या है और शरीर नाशवान है. जिनको शरीर के नाश होने से पहले आत्म शुद्धी के लिए प्रभु दर्शन करना अनिवार्य लगता है. ये उनके लिए भी है पाप रूपी भोजन को पचाने के लिए भगवान रुपी चूरन की फांकी लेना चाहते हैं. ये पोस्ट उनके लिए भी है जो एक तीर से दो शिकार करने में विश्वाश रखते हैं यानि प्रभु भक्ति के साथ साथ प्रकृति का आनंद भी उठाना चाहते हैं. या जिनको ये भान हो गया है की "आए थे हरी भजन को लिखने लगे हैं ब्लॉग" अतः अब हरी भजन कर लिया जाए.

जीवन के टाट पर मखमल का पैबंद लगाने के लिए खोपोली भ्रमण से उत्तम कोई विकल्प नहीं है. मेरे इस कथन को याद रखें और मेरे साथ खोपोली भ्रमण के अन्तिम चरण की और बढ़ें...भगवान् आप का भला करेंगे.



खोपोली अगर बस या ट्रेन से आयेंगे तो सबसे पहले आपको बाण गंगा नदी के दर्शन होंगे. इस नदी का बाण या गंगा से कोई रिश्ता नहीं है ये एक नाम है जैसे की मेरा "गोस्वामी" जिसका तुलसी दास जी से कोई रिश्ता नहीं है. अस्तु, ये नदी लोनावला पर बने एक बाँध से प्रवाहित होती है और इसे "टाटा" वालों की मर्जी अनुसार बहना होता है. याने टाटा वाले बिजली बनाने के लिए इसे जब मन करता है तब प्रवाहित करते हैं. जब ये प्रवाहित होती है तब बहुत दर्शनीय होती है और जब नहीं तब दूषित. हर हाल में ये खोपोली की आन बान शान है.



पूरे रायगड जिले में आपको शिवाजी महाराज घोडे पर बैठे हाथ में तलवार लिए दिखाई देंगे और चूँकि खोपोली रायगड जिले में आता है इसलिए अपवाद नहीं है.



ये है यहाँ का रुक्मणि-विट्ठल याने राधा कृष्ण जी का मन्दिर जो एक छोटी से पहाड़ी पर बना है. नवम्बर माह में यहाँ पन्द्रह दिनों तक मेला लगता है जिसे हम हमारे यहाँ आने वाले विदेशी मेहमानों को दिखाना अपना कर्तव्य समझते हैं. मेले में भीडभाड के अलावा बड़ा सा गोल घूमने वाला झूला और "मौत का कुआँ" जिसमें चार मोटर साईकल और एक मारुती कार एक साथ चक्कर लगाती है विशेष आकर्षण के केन्द्र होते हैं. हमारे विदेशी मेहमान इसके चित्र उतारते और हैरानी से मुंह खोलते बंद करते, नहीं थकते.



ऊपरी खोपोली, याने की जहाँ से लोनावला के लिए पहाड़ी चढाई शुरू होती है, में एक बहुत पुराना शिव मन्दिर है. कहते हैं यहाँ आने वाले को एक अजीब सा कम्पन महसूस होता है और मन को अथाह शान्ति मिलती है. ये शिव मन्दिर कोई ढेढ़ सो साल या उस से भी अधिक, पुराना है और एक तालाब के किनारे बना हुआ है.



ये तालाब खोपोली का सबसे बड़ा तालाब है और गणेश चतुर्थी पर गणेश जी के विसर्जन के काम आता है. इस तालाब के किनारे बहुत सारी लाईटें लगा दी गयी हैं जो रात में नयनाभिराम दृश्य उपस्तिथ करती हैं. खोपोली में बिजली की समस्या है इसलिए अक्सर शाम को इस तालाब के पास आप को अँधेरा पसरा मिलेगा.



शिव मन्दिर से कुछ कदम की दूरी पर "गगन गिरी महाराज" का आश्रम है. ये खोपोली का सबसे बड़ा आकर्षण है. गगन गिरी महाराज एक योगी और तपस्वी थे जिन्होंने वर्षों इस स्थान पर पूजा की और कई सिद्धियाँ हासिल कीं. महाराज पानी में बैठकर समाधी लगाते थे और ये समाधी इतनी गहन होती थी की मछलियाँ उनके पाँव की उँगलियाँ कुतर डालती थीं और उन्हें पता भी नहीं चलता था. महाराज को देखने और नमस्कार करने सौभाग्य मुझे प्राप्त हो चुका है. इनका निधन अभी कुछ माह पूर्व ही हुआ था. गुरु पूर्णिमा के दिन आश्रम में प्रवेश और महाराज के दर्शनों के लिए दूर दूर के गाँव से लोग आते हैं और रात से ही कई किलोमीटर लम्बी लाइन लगनी शुरू हो जाती है.



आश्रम में बहती बाण गंगा का दृश्य आप को हरिद्वार की हरकी पैडी की याद दिला देगा. गगन गिरी महाराज एक पहाड़ी की गुफा में रहा करते थे, कोई १५-२० मिनट की चढाई के बाद आप उस गुफा में पहुँच सकते हैं वहां ध्यान मग्न महाराज की आदमकद मूर्ती रखी हुई है.बरसात के दिनों में इस आश्रम के चारों और बहते झरने देखना एक ऐसा अनुभव है जिसे आप कभी भूल नहीं पाएंगे.



आश्रम से आधा की.मी. पहले पहाडियों के बीच बिरला जी ने एक फैक्ट्री डाली पाईप बनाने की,नाम रखा "जेनिथ पाईप" यहाँ उन्होंने एक खूबसूरत मन्दिर भी बनवाया जिसमें विभिन्न देवी देवताओं की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया.



इस मन्दिर के पीछे बरसातों में खोपोली का सबसे विशाल झरना गिरता है जिसे "जेनिथ फाल" कहते हैं. इस झरने की आवाज आप एक की.मी. दूर से सुन सकते हैं. सप्ताहांत में मुंबई और आप पास के इलाकों से हजारों लोग इसके नीचे नहाने का लुत्फ़ लेने आते हैं.



भूषण स्टील जब 2003 में बनी तब यहाँ भी एक मन्दिर बनवाया गया, जिसमें मुख्या रूप से गणेश प्रतिमा को स्थापित किया गया. जयपुर से मंगवाई गयी शिव, हनुमान , बालाजी और गणेश जी की प्रतिमाएँ देखते ही बनती हैं।



इसके अलावा खोपोली से 4 की.मी. पहले महद नमक स्थान पर अष्टविनायक में से एक विनायक स्थापित हैं तो कोई 25 की.मी. दूर दूसरे विनायक पाली नामक गाँव में हैं. खोपोली से पाली तक का रास्ता हरियाली पहाडों से बहते झरनों से भरा पढ़ा है यहाँ गरम पानी के कुण्ड भी हैं जिसमें नहा कर आप चमड़ी के रोगों से मुक्त हो सकते हैं ( ऐसी मान्यता है)।

आख़िर में मैं आप सब याने शिव कुमार मिश्रा जी, ज्ञान भईया, पंकज सुबीर जी, महावीर शर्मा जी, रंजू भाटिया जी, समीर लाल जी, कुश जी,अशोक पांडे जी , डा.अनुराग जी, डा. चंद्र कुमार जैन जी, महेंद्र मिश्रा जी,अल्पना वर्मा जी, योगेन्द्र मुदगिल जी, ममता जी, युनुस जी, प्रियंकर जी, दीपांशु गोयल जी, विमल वर्मा जी, विजय गौड़ जी, हरी मोहन सिंह जी, यू.पी.सिंह जी, अशोक पाण्डेय जी, अभिषेक ओझा जी, मिनाक्षी जी, हर्ष वर्धन जी, पंकज अवधिया जी, महामंत्री तस्लीम जी,अरुण जी, मनीष जी, डा.प्रवीण चोपडा जी, द्विज जी , चंद्र मोहन गुप्ता जी और बालकिशन जी, का तहे दिल से शुक्र गुज़ार हूँ जिन्होंने खोपोली श्रृखला की सभी कड़ियों को पढ़ा और सराहा.

इस अन्तिम कड़ी में मैं आप सब को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्यूँ की आपने अपना बटुआ, पति/पत्नी का मूड, बच्चों का स्कूल, नौकरी, छुटियाँ, स्वास्थय आदि को देखते हुए खोपोली आने का प्रोग्राम खारिज कर दिया.

उम्मीद करता हूँ की उपरोक्त कारणों को मध्ये नजर रखते हुए आप इस पोस्ट को पढ़ कर भी खोपोली नहीं पधारेंगे और अपने अपने घर पर प्रसन्न रहेंगे. चलिए, असली ना सही चित्रों के माध्यम से ही सही जो मिला उसे अधिक समझ कर उपयुक्त समय का इन्तेजार करें क्यूँ की ना तो कहीं खोपोली जाने वाली है और ना ही आप.



आप नहीं आए या नहीं आ पाए कोई बात नहीं कम से कम इस गलती के लिए अपने कान ही पकड़ लीजिये, शायद इश्वर आप को माफ़ कर दे, क्यूँ की आप नहीं जानते आप ने यहाँ नहीं आ कर क्या खोया है.

जय हो...खोपोली ना आने के कारण...हे ब्लॉगर भाई बहनों आप की सदा ही जय हो.

Thursday, July 10, 2008

दोहे


(डा.राम स्नेही लाल शर्मा "यायावर")

आशाएं जोगिन हुईं,चाहें चढी सलीब
सपने यायावर हुए,अपना यही नसीब

तन-मन-चिंतन,बुद्धि-बल,घर-आँगन-परिवार
महा नगर में हो गए सबके लघु आकार

आल्हा,ढोला,लोरकी,फगुआ,गीत,मल्हार
कौन सुने?गायें कहाँ?उलझन लगी हजार

मुल्ला-पंडित,पादरी,पीर,सयाने लोग
ये कैसे बांटें दवा,बाँट रहे जो रोग

मिली जिंदगी के लिए,इतनी-सी सौगात
वित्ता भर की चाँदनी,कोसों लम्बी रात

प्रेम,त्याग,बंधुत्व,प्रण,गए मधुरता भूल
फटी जेब थी खो गए,अपने सभी उसूल

तन हो चंदन-पाँखुरी,मन फूलों का सार
कैसे कहें की प्रीति है,कठिन खडग की धार

राम,कृष्ण,ईसा,रिषभ,बुद्ध और महावीर
बेटी तेरे ही ऋणी, संत, महंत, फ़कीर

जाने कब,किस मोड़ पर,तुमसे भेंटें प्राण
भूल गए उस रोज से,हम अपनी पहचान

फागु पर चंद दोहे:


ज्ञान,ध्यान,संयम भला,कैसे रहे स्वतंत्र
जब फागुन पढने लगा,सम्मोहन के मंत्र

फागुन लेकर आ गया,है छैनी का साज
उर-पाषणों में जगी,एक अजंता आज

खोली मन की डायरी,सुधियाँ जगीं अनाम
पृष्ठ पृष्ठ पर लिख गया,फागुन तेरा नाम

चाह राधिका सी सजी,रूप हुआ घनश्याम
फागुन में होने लगा,मन वृन्दावन धाम

तुम साँसों में बस गयीं,बन बंसी अभिराम
तन वृन्दावन हो गया,पागल मन घनश्याम

ज्ञानी,ध्यानी,संयमी,जोगी,जती,प्रवीण
फागुन के दरबार में,सब कौडी के तीन



(विलक्षण प्रतिभा के धनि, डा.राम स्नेही लाल शर्मा "यायावर" एम. ए.,पी.एच.डी.,डी.लिट. फिरोजाबाद, उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं और वहीँ के एस.आर.के. स्नातकोत्तर कालेज के हिन्दी विभाग में रीडर हैं. आप की कई पुस्तकें प्रणय गीत, मुक्तक, और ग़ज़ल जैसे विषयों पर प्रकाशित हो चुकी हैं. इसके अलावा देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं जो बहुत सराही गयी हैं.
माँ सरस्वती के इस लाडले पुत्र की पुस्तक "आंसू का अनुवाद" के विभिन्न विषयों पर लिखे 720 दोहों में से चुने गए कुछ दोहे अपने ब्लॉग पर पोस्ट कर मैं अति प्रसन्न हूँ. )
{ पुस्तक "अनुसंधान" न्यू माडल कोलोनी, बरेली-243122 मोबाईल: 09410219930 से संपर्क कर के प्राप्त की जा सकती है. मूल्य:80 रु.मात्र }
{ आप लेखक से सीधे 09219412159, 09412316779 पर भी बात कर उन्हें बधाई दे सकते हैं अथवा dr_yayawar@yahoo.com पर लिख सकते हैं. }

Wednesday, July 9, 2008

प्यार बच्चा है


इस जहाँ का येही झमेला है
झूठ ने सच सदा धकेला है

लाख तारे हैं कातिलों जैसे
चाँद इन्साफ का अकेला है

प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
भीड़ वाला जहाँ का मेला है

कोई इज्ज़त नहीं करे प्यारे
पास तेरे अगर न धेला है

प्यार किससे करें यहाँ अब तो
हाथ में हर किसी के ढेला है

कूक कोयल की दब न जाए कहीं
शोर का हर तरफ़ से रेला है

जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
यूँ लगे नीम पर करेला है

(प्रणाम करता हूँ आदरणीय "प्राण साहेब" को जिनके आशीर्वाद से ये ग़ज़ल, ग़ज़ल जैसी नजर आ रही है)

Thursday, July 3, 2008

बेक्ड समोसा



बेक्ड समोसा…आप भी सोच रहे होंगे की ये क्या एक शायर के ब्लॉग पर समोसे का जिक्र? क्यूँ भाई इसमें हैरानी की क्या बात है ?शायर भी इंसान है उसके भी पेट है....चटकारे चाहने वाली जबान है…और समोसा तो हम भारतियों की खास तौर पर उत्तर भारतियों की कमजोरी है. शाम हुई नहीं की समोसा कचोरी की दूकान पर आप लम्बी लाइन देख सकते हैं.समोसा आप को जहाँ भी भारतीय बसे हैं, खाने को मिल जाएगा..चाहे वो अमेरिका हो यूरोप हो या आस्ट्रेलिया हो...हाँ स्वाद में कुछ अन्तर जरूर हो सकता है.

समोसा मुझे प्रिय है लेकिन अब डाक्टर के ये कहने पर की “सर जी आप सठिया रहे हो अब ये समोसा-वमोसा खाना छोड़ दो” मैंने समोसा लगभग छोड़ ही दिया है. पिछले कुछ दिनों से जयपुर अपने घर आया हुआ हूँ. हमारी बड़ी पुत्र वधु "रूबी" मेरे ब्लॉग को रोशन करने वाली प्यारी सी "मिष्टी, जिस पर डाक्टर अनुराग मुग्ध हैं, की माँ है और साथ ही आर्किटेक्ट और इन्टीरिअर डिजाइनर भी है ने कहा “पापा आप नाश्ते में समोसा खायेंगे?” तो मैं हैरान हुआ क्यूँ की उसे मालूम है मैं तली हुई चीजों से परहेज करता हूँ. मेरी शक्ल देख कर वो बोली “जाईये आप नहा कर आयीये आप को नाश्ते में समोसे मिलेंगे” क्यूँ की हम सब को उसकी पाक कला पर नाज है इसलियेमैं बिना कोई सवाल पूछे चुपचाप नहाने चला गया.

नहा कर डाइनिंग टेबल पर आया तो देखा प्लेट में 2 समोसे सजे रखें हैं जो आम समोसे की तरह दिख तो रहे थे पर थे नहीं.मेरी परेशानी भांप कर "रूबी" बोली ” खाईये पापा ये बेक्ड समोसे हैं…बिना तेल घी मैं तले पूरी तरह से स्वस्थ्य वर्धक, मैंने खाए और खाता ही गया…बेशक स्वाद में लाजवाब बने थे समोसे. 4-5 खाने के बाद उसने मुझे रुकने का ईशारा किया.

खाने के बाद सोचा की अपने पाठकों को जिन्होंने ऐसे समोसे शायद ना खाए हों इनको बनाने की विधि बता दूँ ताकि उनका स्वस्थ्य मेरी शायरी झेलने के लिए तैयार रहे.

रूबी ने जो विधि बताई वो इस तरह थी…अधिक जानकारी के लिए आप अपना मोबाइल या लेन लैइन नम्बर दे दें ताकि हम आप से संपर्क कर आप के प्रश्नों का उत्तर दे दें.

मान लीजिये आप को 4 समोसे खाने हैं तो 2 रोटी का आता गूंध लीजिये, जी हाँ गेहूं का आता…और अगर चाहें तो इसमें दूसरे आटे भी थोड़े थोड़े मिला सकती हैं. इनकी गोल रोटी बेल लीजिये और उसे 4 हिस्सों में काट लीजिये. याने एक रोटी के 2 हिस्से कर लीजिये ,अर्ध चंद्रकार रूप में. इसमें भरने के लिए प्याज , पत्ता गोभी, हरी मिर्च और काटेज पनीर के छोटे छोटे टुकड़े काट लीजिये. पत्ता गोभी में नमक मिला कर 10 मीनट तक रखिये ताकि उसका पानी निकल जाए, पानी छोड़ने पर उसे निचोड़ लीजिये और बाद में प्याज ,हरी मिर्च आदि मिला दीजिये. थोडी लाल मिर्च अगर चाहें तो मिला लीजिये. इसे अर्ध चंद्रकार रोटी के कोण बना कर भर दीजिये और हलके हाथ से दबा दीजिये .आटे की रोटी का कोण मैदे की तरह चिपकता नहीं है इसलिये इसे बंद करने के लिए 2 लोंग का प्रयोग करें ( देखें चित्र ). अब इन समोसों को ओवन में रख कर सेक लेन या भून लें और धनिये ईमली की चटनी के साथ गरमा गरम खाएं.

विशेष सूचना: खाने से पहले दोनों लोंग जरूर निकाल लें क्यूँ की उनको खाने के बाद आप की जो हालत होगी उसके लिए हम जिम्मेवार नहीं होंगे.

जो लोग ये बनाने का झंझट मोल नहीं लेना चाहते वो जयपुर चले आयें ,हमारे घर…गरम समोसे के साथ चाय भी मिलेगी.

Tuesday, July 1, 2008

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो




बेसबब जो सफ़ाई देता है
दोष उसमें दिखाई देता है

वो जकड़ता नहीं है बंधन में
प्यार सच्चा रिहाई देता है

आँखों—आँखों में बात हो जब भी
अनकहा भी सुनाई देता है

यार बहरे बसे जहाँ सारे
क्यूँ वहाँ तू दुहाई देता है

बिन भरोसे अगर किया जाये
प्यार दिल को खटाई देता है

तुम जो ये क़हक़हे लगाते हो
राज़ गहरा दिखाई देता है

गालियाँ खा के मुस्कुरा "नीरज"
कौन किसको बधाई देता है

(ग़ज़ल की नोक पलक भाई द्विज जी ने अपने हुनर से संवार दी है उमर में छोटे हैं लेकिन गुण में बड़े इसलिए उन्हें सलाम करता हूँ)