Wednesday, July 9, 2008

प्यार बच्चा है


इस जहाँ का येही झमेला है
झूठ ने सच सदा धकेला है

लाख तारे हैं कातिलों जैसे
चाँद इन्साफ का अकेला है

प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
भीड़ वाला जहाँ का मेला है

कोई इज्ज़त नहीं करे प्यारे
पास तेरे अगर न धेला है

प्यार किससे करें यहाँ अब तो
हाथ में हर किसी के ढेला है

कूक कोयल की दब न जाए कहीं
शोर का हर तरफ़ से रेला है

जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
यूँ लगे नीम पर करेला है

(प्रणाम करता हूँ आदरणीय "प्राण साहेब" को जिनके आशीर्वाद से ये ग़ज़ल, ग़ज़ल जैसी नजर आ रही है)

14 comments:

  1. बहुत बढ़िया...

    ReplyDelete
  2. वाह मैंने इस से मिलता जुलता लेख पोस्ट किया है और आपने यह गजल :) .बहुत खूब कहा आपने

    प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
    भीड़ वाला जहाँ का मेला है........

    ReplyDelete
  3. प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
    भीड़ वाला जहाँ का मेला है........
    अच्छा लिखा !
    ----
    घनानन्द की पंक्तियाँ याद आ गयीं -
    अति सूधो स्नेह को मारग है ..
    यहाँ नेकु सयानप बांक नही ...यहाँ सेधो चले अपुनापौ तजै ...

    ReplyDelete
  4. लाख तारे हैं कातिलों जैसे
    चाँद इन्साफ का अकेला है

    वाह वाह नीरज जी...आपने फलसफो को बड़ी मासूमियत से भले अंदाज में पिरो दिया ...इस गजल को पढ़कर एक गजल ओर याद आ गई...जिसे हम कॉलेज टाइम में खूब सुना करते थे ओर जिसे अक्सर अपनी पार्टियों में गाते भी थे....
    "मै किसे कहूँ मेरे साथ चल
    यहाँ सब के सर पे सलीब है.....
    न कोई दोस्त है न रकीब है
    तेरा शहर कितना अजीब है'

    ReplyDelete
  5. बेहद पाक-दिल ग़ज़ल है
    और साफ़-सुथरा ख़याल
    गर प्यार हो मासूम तो
    मिट जाए सब मलाल.
    =================
    बधाई...नीरज जी.
    डा.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  6. sundar gajal hai,par mujhe usse jayada wah chitra sundar lag raha hai jo aapne lagaya hai gajal ke sath.

    ReplyDelete
  7. नीरज जी

    क्या कहूँ कितनी सुन्दर शब्दों की माला बनाई हैं। देख कर मन खुश हो गया।
    लाख तारे हैं कातिलों जैसे
    चाँद इन्साफ का अकेला है

    प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
    भीड़ वाला जहाँ का मेला है

    वाह जी वाह।

    ReplyDelete
  8. भाई नीरज जी,

    जिंदगी के तीसरे प्रहर में वे ही अनुभूतियाँ, जिन्हें हम बचपन की हलचल में या जवानी के रवानी में नजरंदाज़ कर दिया करते थे, आज क्या खूब समझ आती हैं,

    इस बात की जिन्दा मिसालें आज आप के हर एक शेर में परलक्षित हो रही है.

    यही तो मज़ा है जिंदगी की समझ का जो वक्त, माहौल,अनुभवों,विचारशीलता,कुछ नया कर गुज़रने की इक्षा के चलते नित ही परिवर्तित होती रहती है. इसी कारण जीवन के प्रत्येक प्रहर के प्रतिनिधियों में विचार विभिन्नता लगातार बनी रहती है वरना सास-बहू के झगडे न होते, बुड्ढा सठिया गया है जैसे जुमले प्रयुक्त न होते. इसी पर कभी मैंने एक कविता लिखी थी जो आज आपके नज़ारे इनायत है :

    ज्ञान नहीं इतना अपना
    कि संतुष्ट तुम्हें कर पाऊं
    पाया अनुभव से जो है,
    कैसे उसे और समझाऊँ

    विज्ञान नही यह कोई जो
    कर प्रत्यक्ष तुम्हें दिखलाऊँ
    सीखा जो अनुभव से हमने
    वह ही तो मैं अब बतलाऊँ

    उचित तुम्हारे हर तर्क अभी
    काट नहीं और दे सकता हूँ
    देखा जो कुछ अब तक हमनें
    वह समय नही दिखा सकता हूँ

    समझोगे अपने यही तर्क, कुतर्क से
    आयु यही जब मुझसी पाओगे
    इसी तरह जब तुम भी शायद
    नई पीढी को समझाना चाहोगे

    वैसे आपके निम्न शेर
    जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
    यूँ लगे नीम पर करेला है

    पर मैं यह कहना चाहूँगा कि यह अहसास ही है जो हमें पोजिटिव और निगेटिव सोंच की और ले जाता है
    इसी लिए तो मैं अपनी "श्रद्धा" की एक कविता आपके नज़ारे इनायत कर रहा हूँ ता कि जिंदगी में न खोने न पाने का अहसास बने
    श्रद्धा
    (२४)
    अगर बंधोंगे माया - मोहों में
    बन्धन से तो विस्तार रुकेगा
    अगर डरोगे तुम गिरने से तो
    डर से रह-रह हर बार गिरेगा
    "जीना" दुनियाँ में व्यापार बना है
    "सब देना" कुछ पाने का द्वार बना है
    पर बंधने पर श्रद्धा के बन्धन में
    न खोने-पाने का संस्कार बनेगा

    मुख्य चीज़ जो दूर होनी चाहिए, वह अज्ञान है. कितना भी पढ़ लिख लें , पर समय के साथ ही अज्ञान तिरोहित हो सकता है,
    इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत है
    श्रद्धा
    (३८)
    है जुड़ा हर कर्म आज फायदे से
    फायदा भी क्या, बस पैसा मिलना चाहिए
    है अपेक्षा दूसरों से संस्कार, तहजीब की
    ख़ुद का कैसे भी काम निकलना चाहिए
    स्वार्थ से आदमी चालाक हो गया है
    संस्कारित लगता है नालायक हो गया है
    थे बुद्ध पढ़े-लिखे, पर ज्ञान कब मिला
    श्रद्धा मिलते ही अज्ञान निकलना चाहिए

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

    ReplyDelete
  9. "प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
    भीड़ वाला जहाँ का मेला है"
    बहुत मासूम शेर है, बधाई स्वीकारें।

    ReplyDelete
  10. लाख तारे हैं कातिलों जैसे
    चाँद इन्साफ का अकेला है

    kya baat kahi hai wah


    प्यार बच्चा है,थाम कर चलना
    भीड़ वाला जहाँ का मेला है


    bhaut bahut khoob

    कोई इज्ज़त नहीं करे प्यारे
    पास तेरे अगर न धेला है

    hmm kadwi hai magar sachhyi yahi hai

    जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
    यूँ लगे नीम पर करेला है

    hahaha sahi hai sahi hai

    bahut sunder gazal alag aalg si

    ReplyDelete
  11. वाह, आपने तो गज़ल लिखी टिप्पणियों में पूरा मुशायरा हो गया!

    ReplyDelete
  12. Wonderful Neerajbhai.

    Very nice.
    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  13. कूक कोयल की थम न जे कहीं , शोर का हर तरफ़ से रेला है !इस रेले में भी जीवित बची संवेदना को बधाई !
    कृतज्ञता ज्ञापन ,आपकी ईमानदारी एवं सरल ह्रदय की अभिव्यक्ति है !दूसरी ग़ज़ल भी बहुत सुंदर बन पड़ी है 1

    ReplyDelete
  14. जिंदगी भाग दौड़ की "नीरज"
    यूँ लगे नीम पर करेला है ... hahaha!
    wah ji wah...

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे