
होली का हास्य से भी सम्बन्ध है इसी लिए प्रस्तुत हैं मूरखता के दोहे...अगर आप को लगे की ये दोहे आप की ही बात कर रहे हैं तो समझिए लिखना सार्थक हुआ.
होली के त्योहार पे सब का मन हरषाय
कीचड गोबर से बचे वो मूरख कहलाय
मूरख ढ़ूंढ़न मैं चला, हुआ बहुत हैरान
हर कोने मूरख मिला अपनी छाती तान
जो तोकू मूरख कहे कह उसको विद्वान्
तू मूरख बच जाएगा उसकी जाए जान
मूरख वाणी बोलिए, समझ न कोई पाय
श्रोता सुन पागल बने वक्ता सर खुजलाय
मूरख की इस देश में बड़ी निराली शान
पढ़ना लिखना छोड़ के नेता बना महान
काल बने सो आज बन आज बने सो अब
जिल्लत से बच जायेंगे मूरख बन कर सब
मूरख के गुण पर गधा खूब रहा इतराय
पिटने से डरता नहीं मन की करता जाय
मूरख की भाषा कभी नीरज गयी न व्यर्थ
सुन कर सभी लगा रहे अपने अपने अर्थ
होली के त्योहार पे सब का मन हरषाय
कीचड गोबर से बचे वो मूरख कहलाय
मूरख ढ़ूंढ़न मैं चला, हुआ बहुत हैरान
हर कोने मूरख मिला अपनी छाती तान
जो तोकू मूरख कहे कह उसको विद्वान्
तू मूरख बच जाएगा उसकी जाए जान
मूरख वाणी बोलिए, समझ न कोई पाय
श्रोता सुन पागल बने वक्ता सर खुजलाय
मूरख की इस देश में बड़ी निराली शान
पढ़ना लिखना छोड़ के नेता बना महान
काल बने सो आज बन आज बने सो अब
जिल्लत से बच जायेंगे मूरख बन कर सब
मूरख के गुण पर गधा खूब रहा इतराय
पिटने से डरता नहीं मन की करता जाय
मूरख की भाषा कभी नीरज गयी न व्यर्थ
सुन कर सभी लगा रहे अपने अपने अर्थ