कह दिया वो साफ जो भाया नहीं
तीर हम ने पीठ पर खाया नहीं
अर्थ जीवन में कहाँ बचता बता
साथ गर अपने चले साया नहीं
तोड़ दी हर शाख पहले पेड़ की
काट डाला बोल कर छाया नहीं
सिर्फ़ सूली क्यों बनी सच के लिए
कोई पाया जान ये माया नहीं
खोट था जिसमें वोही दौड़ा किया
पर खरा ही यार चल पाया नहीं
हाथ फैलाने पे ही तुमने दिया
उसपे दावा ये की तरसाया नहीं
दिल लगाये किस तरह रब से बशर
प्यार का गर गीत ही गाया नहीं
आँख से आंसू अगर नीरज गिरें
रोक पाएं ये हुनर आया नहीं
बहुत खूबसूरत गजल भैया. बहुत बढ़िया....
ReplyDeleteसब से पहले पढ़ के कर दी टिपण्णी
फिर न कहियेगा कि शिव आया नहीं
:-)
khoob kahee...lekin ye sher bhee
ReplyDeleteqakile gaur hai NEERAJ JI...
ASHKA JO PALKON PE THAHAR JAYEN TO
MOTEE SAMJHO
AUR JO AANKHA SE BAH JAYEN TO KEEMAR NA RAHE...
बहुत बहुत सुंदर,मर्मस्पर्शी.
ReplyDeleteranjana
खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन गजल है।बधाई स्वीकारे।
ReplyDeleteनीरज जी सबसे अच्छी बात आपकी ग़ज़लों में ये होती हैं कि वे पूरी बहर में होती हैं और उस कारण से पढ़ने में भी आनंद देती हैं फाएलातुन-फाएलातुन-फाएलुन बहरे रमल मुसद्दस महजूफ की ग़ज़ल है जिस पर कई शायरों ने उम्दा ग़ज़लें कहीं हैं इसमें आखिर के रुक्न में 212 और 2121 दोनों करने की स्वतंत्रता रहती है । मतलब आख्रिर का फाएलुन या फाएलान दोनों हो सकता है ये इसीमें स्वतंत्रता है जैसे ग़ालिब ने कहा हो चुकी ग़ालिब बलाएं सब तमाम, एक मर्गे नागहानी और है अब इसमें लगेगा तो ये कि पहला मिसरा खारिज हो रहा है तमाम शब्द के कारण क्योंकि केवल तमा की ग़जाइश है पर ये जायज है बहर में कहा गया है है कि इस बहर में आख्रिर में एक लघु मात्रा बढ़ने की गुंजाइश है । आपको बधाई अच्छी जमीन पर अच्छी ग़ज़ल के लिये ( एक बात बताइयेगा कहीं ये तो नहीं कि आप बहरों के अच्छे जानाकार है और मेरी परीक्षा ले रहे हों क्योंकि आपकी गज़लें तो ये ही कह रहीं हैं )
ReplyDeleteपंकज जी
ReplyDeleteसबसे पहले तो हौसला अफ्जाही का तहे दिल से शुक्रिया. आप कहते हैं की मैं आप की परीक्षा ले रहा हूँ ये सरासर ग़लत है. मेरी बहर के बारे में जितनी समझ है वो आप से छुपी नहीं है. गुरु हर हाल में गुरु ही रहेगा. अगर ये ग़ज़ल बहर में है तो इसके पीछे आप का ही आशीर्वाद है ये कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं है. आप की बताई समझाई हुई बातों को ध्यान से पढ़ा गुणा तब कहीं थोड़ा बहुत समझ पाया हूँ. आप ऐसे ही मार्गदर्शन देते रहें.
नीरज
आँख से आंसू अगर नीरज गिरें
ReplyDeleteरोक पाएं ये हुनर आया नहीं
--आप जैसे साफ और नरम दिल आदमी यह हुनर न ही सीखें तो बेहतर. :)
बहुत उम्दा गजल.बधाई.
आज लेट नहीं हैं गुरुवर - तीर खाएं आपके दुश्मन - ख़ास पसंद - " सिर्फ़ सूली क्यों बनी सच के लिए / कोई पाया जान ये माया नहीं" - और [शिव जी के साथ परम्परा कायम रखते हुए - बगैर अंगूठे (और तर्जनी) के साथ] - "कदरदां कोशिश में हैं ऐ सुखनवर/ समझ लें वो भी जो फ़रमाया नहीं" - मनीष [ p.s. are you accessing your e-mails ?]
ReplyDeleteNEERA JI,
ReplyDeleteMERE BLOG PAR AAPKEE UDAAR SHUBHKAMNAON KE LIYE SHUKRIYA KAHNA PARYAAPTA NAHEEN HAI.
MUJHE TO AAPKEE CREATIVITY SE BAHUT KUCH SEEKHNA HAI.
SHABD-SANSAAR KE NAYAAB MOTI CHUNKAR,AAGE BHEE...AAP
CHAMKTE-CHAMKATE RAHIYE,
ZAZBAATON KEE ZAMEEN PAR
SAMAJH KE PHOOL MAHKATE RAHIYE.
ANTARMAN SE SHUBHKAMNAYEN...
आ गया हूँ मैं तेरी महफिल मैं दोस्त
ReplyDeleteदेर तक बेशक मैं टिक पाया नही
नीरज भाई
आपके ब्लोगिस्तान मैं कभी कभी
जब मैं आता हूँ तो अपना ज़हनी तवाज़न
मकतुश हो जाता है
आया था दिल में सैंकडो अरमां लिए हुए
लौटा हूँ तेरे ब्लॉग से रुस्वाइओं के साथ
चाँद शुक्ला डेनमार्क
तोड़ दी हर शाख पहले पेड़ की
ReplyDeleteकाट डाला बोल कर छाया नहीं
vah
NEERAJ JI,
ReplyDeleteAUR KAHO KAB TAK KAREN HAM INTZAAR
POST KYON, KOII NAYAA AAYAA NAHEEN?
सुबीर भाई, मैं आपकी इस बात से सहमत नहीं हूं कि नीरज भाई आपकी परीक्षा ले रहे हों। नीरज के विषय में यही जान पाया हूं कि अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं और इसी लिए अपनी जानकारी के आधार पर लिखी हुई ग़ज़ल में अगर कहीं कोई कमी हो भी, तो आप जैसे गुरु की सलाह और आशीर्वाद लेते हैं जिससे रचना में निखार आजाए।
ReplyDeleteआजकल लोग ख़ुद अपनी महज़ूफ़ शक्ल में बहर ईजाद कर लेते हैं जो कोई पाप नहीं है लेकिन याद रहे कि अरकान का लगभग हर मुमकिन मुरक्कब बना कर देखा जा चुका है। इसी लिए नए तजुर्बात में मौसीक़ियत या लयात्मक की कमी नज़र आती है।
अरे हाँ, हम कहां पहुंच गए। बात तो इस ग़ज़ल की कर रहे थे। सहज भाव, सहज अभिव्यक्ति, स्पष्ट भाषा, लयात्मक और सही बहरो-वज़न सभी कुछ है।
उम्दा ग़ज़ल है। ऐसे ही लिख कर दिल खुश करते रहिए।
apne aap se apne ko juda kaishe kar sakta koi bhala.apne kast to sahniye ho bhi jata hai lekin apno ko diye kast se mukti ..... apne aanshu to rokne main kamyabi bhi mil jaati hai jab hum nirvikar ho jatyen hain, lekin apno ki aanshu nahi rok pane ki vivsta badi hi asahniye hoti hai. kuch nidan ho to batyen sir
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