आज 'किताबों की दुनिया' श्रृंखला का आगाज़ हिंदुस्तानी ज़बान के लाजवाब शायर स्वर्गीय जनाब 'निदा फ़ाज़ली' साहब की ग़ज़ल के बाबत कही इस बात से करते हैं कि " ग़ज़ल में दर अस्ल 'जो है' का चित्रण नहीं होता , यह हमेशा 'जो है ' में 'जो नहीं है' उसकी तस्वीरगरी करती है। ग़ज़ल शब्दों के माध्यम से उस विस्मय की रचना करने का नाम है , जो उम्र के साथ हम खोते रहते हैं और जिसके बगैर जीवन 'रात -दिन' का हिसाब किताब बन कर रह जाता है। "
हमारे आज के शायर और उनकी शायरी के बारे में निदा साहब इस किताब की, जिसका जिक्र हम करने जा रहे हैं ,भूमिका में आगे लिखते हैं कि वो ग़ज़ल के मिज़ाज़ और इस मिज़ाज़ के तक़ाज़ों से वाक़िफ़ हैं , वो कहीं भी ऊंची आवाज़ में बात नहीं करते ...वो जब भी जैसी बात करते हैं , उसे सरगोशियों में अदा करते हैं....इस सरगोशी के अंदाज़ ने इन ग़ज़लों में वो फ़नकारी उभारी है, जिससे ग़ज़ल बड़ी हद तक दूर होती जा रही है :
रहस्य को जरूरत से ज्यादा न खींचते हुए आपको बता दूँ कि हमारे आज के शायर हैं 10 अक्टूबर 1969 को अकबरपुर फैज़ाबाद में जन्में जनाब 'अतुल अजनबी' साहब जिनकी किताब ' शजर मिज़ाज़ ' का जिक्र हम कर रहे हैं।
आप बस अतुल की किताब के कुछ ही वर्क पलटिये आपको महसूस होगा कि वो ग़ज़ल की फितरत उसके मिज़ाज़ और अदाओं से वाकिफ़ हैं और क्यों न हों ? जो शख़्स हिन्दुस्तान के बेहतरीन शायर जनाब वसीम बरेलवी साहब से इस्लाह लेता हो उसकी शायरी में ये सारी की सारी खूबियां नज़र आना लाज़मी है।
जीवाजी यूनिवर्सिटी से एम. ऐ ( हिंदी ) करने के बाद अतुल जी ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से एल एल बी की डिग्री हासिल की। वो अब भारतीय जीवन बीमा निगम की ग्वालियर शाखा में कम्प्यूटर प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत हैं। शायरी के लिहाज़ से ग्वालियर की गौरव शाली परम्परा रही है जो 'शाह मुबारक आबरू' (1700 -1750) जिनका ये शेर तब चल रही शायरी का बेहतरीन नमूना है :
से होती हुई 'मुज़्तर खैराबादी' ( जान निसार अख्तर साहब के वालिद ) , 'नारायण प्रसाद 'मेहर' और इसी तरह के लाजवाब शायरों का लम्बा सफर तय करते हुए 'अतुल' जैसे होनहार फनकारों तक पहुंची है।
अतुल जी की शायरी की बात किताब के फ्लैप पर लिखे वसीम साहब के इस व्यक्तव्य को बिना आप तक पहुंचाए पूरी नहीं होगी " अतुल ज़हीन है, तल्वा हैं और ग़ज़ल को समर्पित हैं लिहाज़ा हर वक्त कोशों रहते हैं कि मज़ामीन के नए नए गोशों में शेरी रंग भरे और कागज़ पर उतार दें। अतुल की गैर मामूली लगन, बे पायां शौक और जूनून की हद तक कुछ कह गुजरने की ख़लिश उन्हें काबिले तवज्जा और लाइके जिक्र बनाए बगैर नहीं रहती जिसे उनके मुस्कुराते भविष्य का इशारिया समझा जाना चाहिए।"
यूँ तो हम सब जानते हैं कि अधिकतर पुरस्कारों और सम्मानों का सम्बन्ध शायर और उसकी शायरी की गुणवत्ता से कम और प्रकाशक अथवा शायर के रसूख़ से ज्यादा होता है लेकिन जब पुरूस्कार या सम्मान से किसी अतुल जैसे अच्छे शायर या उसके कलाम को नवाज़ा जाता है तो उसकी एहमियत समझ में आती है। अतुल कादम्बिनी महोत्सव , इ टीवी उर्दू और ग्वालियर जेसीज द्वारा पुरुस्कृत किये गए हैं।
"शजर मिज़ाज़" अतुल जी का पहला ग़ज़ल संग्रह है जिसे सन 2009 में दिल्ली के शिल्पायन प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इस संग्रह में अतुल जी की बेहतरीन 86 ग़ज़लों के अलावा लगभग 50 फुटकर शेर भी दर्ज़ हैं। किताब का दिलकश आवरण तैयार किया है उमेश शर्मा जी ने।
यूँ तो आप इस किताब की प्राप्ति के लिए शिल्पायन प्रकाशन से 011 -22821174 पर सम्पर्क कर सकते हैं लेकिन सबसे बेहतर तो ये रहेगा कि आप अतुल जी को उनके मोबाइल न. 09425339940 पर संपर्क कर उन्हें इस बेहतरीन शायरी के लिए बधाई देंऔर किताब प्राप्ति का आसान रास्ता पूछ लें।
अतुल जी के बहुत से ऐसे शेर हैं जिन्हें बकायदा आम गुफ्तगू में कोट किया जा सकता है क्यों की वो हमारी रोजमर्रा की समस्याओं, खुशियों या तकलीफों का खूबसूरती से इज़हार करते हैं , मुझे उनका एक शेर बेहद पसंद है जो इस किताब का हिस्सा नहीं है उसी को पढ़वा कर आपसे रुख्सत होता हूँ और तलाशता हूँ आपके लिए एक नयी किताब :-
दिन, थका-मांदा इक और सोता रहा
रात , बिस्तर पे करवट बदलती रही
ज़हन की पटरियों पर तेरी याद की
रेल, हर शाम रुक-रुक के चलती रही
आग में तप के सोना निखरता रहा
ज़िन्दगी ठोकरों में सम्भलती रही
हमारे आज के शायर और उनकी शायरी के बारे में निदा साहब इस किताब की, जिसका जिक्र हम करने जा रहे हैं ,भूमिका में आगे लिखते हैं कि वो ग़ज़ल के मिज़ाज़ और इस मिज़ाज़ के तक़ाज़ों से वाक़िफ़ हैं , वो कहीं भी ऊंची आवाज़ में बात नहीं करते ...वो जब भी जैसी बात करते हैं , उसे सरगोशियों में अदा करते हैं....इस सरगोशी के अंदाज़ ने इन ग़ज़लों में वो फ़नकारी उभारी है, जिससे ग़ज़ल बड़ी हद तक दूर होती जा रही है :
ज़रा करीब से चंचल हवा गुज़र जाये
अजब ख़ुशी में शजर खिलखिलाने लगते हैं
मिज़ाज़ अपना कुछ ऐसा बना लिया हमने
किसी ने कुछ भी कहा, मुस्कुराने लगते हैं
किसी भी चीज की तारीफ इतनी करता हूँ
कि लोग मुझको ही झूठा बताने लगते हैं
रहस्य को जरूरत से ज्यादा न खींचते हुए आपको बता दूँ कि हमारे आज के शायर हैं 10 अक्टूबर 1969 को अकबरपुर फैज़ाबाद में जन्में जनाब 'अतुल अजनबी' साहब जिनकी किताब ' शजर मिज़ाज़ ' का जिक्र हम कर रहे हैं।
बलाएँ राह की रोकेंगी क्या भला उसको
जो अपनी आँख में मंज़िल बसाए रहता है
किसी दरख़्त से सीखो सलीक़ा जीने का
जो धूप-छाँव से रिश्ते बनाये रहता है
ग़ज़ल मिज़ाज़ से भटके न, इसलिए ही 'अतुल'
किताबे-मीर को दिल से लगाये रहता है
आप बस अतुल की किताब के कुछ ही वर्क पलटिये आपको महसूस होगा कि वो ग़ज़ल की फितरत उसके मिज़ाज़ और अदाओं से वाकिफ़ हैं और क्यों न हों ? जो शख़्स हिन्दुस्तान के बेहतरीन शायर जनाब वसीम बरेलवी साहब से इस्लाह लेता हो उसकी शायरी में ये सारी की सारी खूबियां नज़र आना लाज़मी है।
जुगनू ही क़ैद होते हैं हर बार दोस्तों
सूरज पे आज तक कभी पहरा नहीं लगा
उस शख़्स ने दिया है मेरा साथ वक्त पर
जो शख़्स आज तक मुझे अपना नहीं लगा
बच्चों की फीस, माँ की दवा, कितनी उलझने
कोई भी शख़्स शहर में तनहा नहीं लगा
जीवाजी यूनिवर्सिटी से एम. ऐ ( हिंदी ) करने के बाद अतुल जी ने लखनऊ यूनिवर्सिटी से एल एल बी की डिग्री हासिल की। वो अब भारतीय जीवन बीमा निगम की ग्वालियर शाखा में कम्प्यूटर प्रोग्रामर के पद पर कार्यरत हैं। शायरी के लिहाज़ से ग्वालियर की गौरव शाली परम्परा रही है जो 'शाह मुबारक आबरू' (1700 -1750) जिनका ये शेर तब चल रही शायरी का बेहतरीन नमूना है :
तुम्हारे लोग कहते हैं क़मर है
कहाँ है, किस तरह की है, किधर है
महक उठेगा बदन उसका फूल-सा इक दिन
जो तेज़ धूप में अपना बदन जलाएगा
विषैले साँपों से डरता है खुद सपेरा भी
बगैर ज़हर के जो हैं उन्हें नचाएगा
मैं इस उमीद पे उससे ख़फ़ा नहीं होता
कभी तो हक़ में मेरे फैसला सुनाएगा
अतुल जी की शायरी की बात किताब के फ्लैप पर लिखे वसीम साहब के इस व्यक्तव्य को बिना आप तक पहुंचाए पूरी नहीं होगी " अतुल ज़हीन है, तल्वा हैं और ग़ज़ल को समर्पित हैं लिहाज़ा हर वक्त कोशों रहते हैं कि मज़ामीन के नए नए गोशों में शेरी रंग भरे और कागज़ पर उतार दें। अतुल की गैर मामूली लगन, बे पायां शौक और जूनून की हद तक कुछ कह गुजरने की ख़लिश उन्हें काबिले तवज्जा और लाइके जिक्र बनाए बगैर नहीं रहती जिसे उनके मुस्कुराते भविष्य का इशारिया समझा जाना चाहिए।"
तेरी ख़ुशी की हवा मात खा न जाय कहीं
लिबास ग़म का मुझे तार-तार करना पड़ा
वो अहतियात बरतने का इतना आदी था
ज़रा सा काम उसे बार-बार करना पड़ा
लचकती शाख पे जब बर्फ की चट्टान दिखी
तेरे वजूद का तब ऐतबार करना पड़ा
कमाल उसमें था चश्मा निकालने का अगर
मुझे भी अपना बदन रेगजार करना पड़ा
चश्मा : पानी का सोता , रेगजार : मरुस्थल
कभी-कभार मेरा फोन जब नहीं बजता
मैं सोचता हूँ तेरी उलझनों के बारे में
हवा से, धूप से मुश्किल है जानना सब कुछ
नदी बताएगी सच, पर्बतों के बारे में
किसान फस्ल के नखरे उठा तो लेता है
बहुत है फ़िक्र मगर मौसमों के बारे में
सफर हो शाह का या काफ़िला फ़कीरों का
शजर मिज़ाज़ समझते हैं राहगीरों का
शजर : पेड़ , मिज़ाज़ :स्वभाव
पियादे शाह से बे रोक-टोक मिलते हैं
ज़माना जाने ही वाला है अब वज़ीरों का
बिछुड़ के तुझसे मैं ज़िंदा रहूं, ये नामुमकिन
बिना कमान के क्या ऐतबार तीरों का
जब ग़ज़ल मीर की पढता है पड़ौसी मेरा
इक नमी सी मेरी दीवार में आ जाती है
Comment received on e-mail :-
ReplyDeleteBHAI NEERAJ GOSWAMI JI-
NAMASTEY-
AAJ AAP KI NAI KITABI-POST DEKHI-- MAN KHUSH HO GAYA--
AAP ITNI JAGMAT UTHATEY HAIN- HAME GHAR BETHE HI
NAYI-NAYI KITABON KI JAANKARI DETE HAIN--
BAHUT BAHUT SHUKRIYA--
ज़रा करीब से चंचल हवा गुज़र जाये
अजब ख़ुशी में शजर खिलखिलाने लगते हैं
मिज़ाज़ अपना कुछ ऐसा बना लिया हमने
किसी ने कुछ भी कहा, मुस्कुराने लगते हैं
किसी भी चीज की तारीफ इतनी करता हूँ
कि लोग मुझको ही झूठा बताने लगते हैं
aur yeh panktiyan bhi ullekhniya hain---
फर हो शाह का या काफ़िला फ़कीरों का
शजर मिज़ाज़ समझते हैं राहगीरों का
शजर : पेड़ , मिज़ाज़ :स्वभाव
पियादे शाह से बे रोक-टोक मिलते हैं
ज़माना जाने ही वाला है अब वज़ीरों का
बिछुड़ के तुझसे मैं ज़िंदा रहूं, ये नामुमकिन
बिना कमान के क्या ऐतबार तीरों का
ITNI UMDA SHAAYRI SE ROBROO KARNE KE LIYE
JANAB KA SHUKRIYA--
--OM SAPRA
DELHI
9818180932
Neeraj saheb aap kahte hain apke padhne walon ko jagana padta hai
ReplyDeleteHuzur apka lekhan ghazab hai hum khusqismat hain jinke liye ye sateek suruchipurn Jankari aap uplabdh karate hain bahut shukriya ek alag shair uske kalam uske majmue se taaruf karaya BAHUT SHUKRIYA dheron daad
Received on fb :-
ReplyDeleteआख़िरी शेर के शायर की तलाश कब से थी । अब जाके मुकम्मल हुई । बहुत शुक्रिया
Govind Gautam
Received on fb:-
ReplyDeleteवाह्ह्ह... जवाब नहीं आपका .
Digamber Naswa
Received on fb:-
ReplyDeletewaaah ...
Satish Saxena
Received on fb:-
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा रही !!! निदा साहब को नमन् !!! बेहतरीन अशर'आर पढ़ने को मिले। शुक्रिया !!!
अमन चाँदपुरी
बहुत बढ़िया चर्चा रही, बेहतरीन अशर'आर पढ़ने को मिले, शुक्रिया
ReplyDeleteReceived on fb :-
ReplyDeleteBahut Khoob Neeraj Sahib . Aap Nageene Dhoondh Kar Laate hain
Pran Sharma
London
Received on fb :-
ReplyDeleteAabhar aapka bhai sundar kitab ki jankari mili
Ismail Patel
गज़ब...अह वाह
ReplyDeleteतुम्हारे लोग कहते हैं क़मर है
ReplyDeleteकहाँ है, किस तरह की है, किधर है :)
तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
ReplyDeleteदे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे
Received on fb :
ReplyDeleteहवा से, धूप से मुश्किल है जानना सब कुछ
नदी बताएगी सच, पर्बतों के बारे में
- क्या बात है
Amar Nadeem
Received on fb:-
ReplyDeleteWah
Ravi Dutt Sharma
ReplyDeleteReceived on fb:-
सर आपकी इस पोस्ट का हमेशा इंतज़ार रहता है
शिज्जु शकूर
Received on Fb:-
ReplyDeleteAabhar aapka bhai sundar kitab ki jankari mili
Ismail Patel
आप तमाम दोस्तों का दिल की गहराईयों से शुक्रिया। आप ने मुझ मामूली से शायर के टूटे फूटे अशआर पसंद किये। भाई नीरज गोस्वामी जी के लिए क्या कहूं। शुक्रगुजार हूँ आपका।
ReplyDeleteवाह शायर अतुल जी की शायरी पढकर मज़ा आया और ये जानकर बहुत खुशी हुई कि वे भी ग्वालियर के हैं और मेरे ही युनिवर्सिटि के हैं। हाँलाकि मै उनकी अम्मा दादी के बराबर की होउंगी।
ReplyDeleteसफर हो शाह का या काफला गरीबों का,
शदर समझते हैं मिजाज़ राहगीरों का,
और हवा के छूने से शजरों का खिलखिलाना वाह।
कृपया शदर को शजर पढें।
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत बढ़िया
ReplyDeleteकभी-कभार मेरा फोन जब नहीं बजता
ReplyDeleteमैं सोचता हूँ तेरी उलझनों के बारे में
लाजवाब लाजवाब अतुल जी की शायरी और आपके द्वारा दी गई रोचक जानकारी दोनो।
ज़रा करीब से चंचल हवा गुज़र जाये
ReplyDeleteअजब ख़ुशी में शजर खिलखिलाने लगते हैं
मिज़ाज़ अपना कुछ ऐसा बना लिया हमने
किसी ने कुछ भी कहा, मुस्कुराने लगते हैं
किसी भी चीज की तारीफ इतनी करता हूँ
कि लोग मुझको ही झूठा बताने लगते हैं
kya kahne ...
पियादे शाह से बे रोक-टोक मिलते हैं
ReplyDeleteज़माना जाने ही वाला है अब वज़ीरों का
पियादे शाह से बे रोक-टोक मिलते हैं
ReplyDeleteज़माना जाने ही वाला है अब वज़ीरों का
पियादे शाह से बे रोक-टोक मिलते हैं
ReplyDeleteज़माना जाने ही वाला है अब वज़ीरों का