सैंकड़ों घर फूंक कर जिसने सजाई महफिलें
उस शमां का क्या करूँ ,उस रौशनी का क्या करूँ
बेचकर मुस्कान अपनी दर्द के बाजार में
खुद दुखी हो कर मिली जो उस ख़ुशी का क्या करूँ
है ज़माने की हवा शैतान , पानी दोगला
देवता लाऊँ कहाँ से ,आदमी का क्या करूँ
प्यार के इज़हार में बजती तो मैं भी नाचता
जो कमानों पर चढ़ी, उस बांसुरी का क्या करूँ
हमारे आज किताबों की दुनिया श्रृंखला के शायर सिर्फ शायर ही नहीं थे शायरी से पहले उन्होंने अपने हिंदी गीतों , बाल कविताओं ,यात्रा वृतांतों और व्यंग लेखों से बहुत प्रसिद्धि हासिल कर ली थी। ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के इंसान ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग', साहब की कही ग़ज़लों की अंतिम पुस्तक "कमान पर चढ़ी बांसुरी "का जिक्र हम करने जा रहे हैं।
मुसाफिर हूँ तो मैं सेहरा का, लेकिन
चमन का रास्ता भी जानता हूँ
ये दुनिया सिर्फ खारों से ख़फ़ा है
मैं फूलों की खता भी जानता हूँ
कफ़स में झूठ के भी खुश नहीं हूँ
सचाई की सज़ा भी जानता हूँ
ग़ज़ल कहता हूँ रचता गीत भी मैं
कहन का क़ायदा भी जानता हूँ
"कहन का कायदा भी जानता हूँ " इस किताब के पन्ने पलटते हुए उनकी इस बात की पुष्टि हो जाती है कि वो कहन का कायदा सिर्फ जानते ही नहीं थे बखूबी जानते थे तभी तो "कमान पर चढ़ी बांसुरी " से पूर्व उनके चार ग़ज़ल संग्रह "नदी में आग लगी है ", "फूल के अधर पर पत्थर", "अमावस चांदनी मैं " और "आदमी हूँ मैं मुक़म्मल " प्रकाशित हो कर धूम मचा चुके थे। मजे की बात ये है कि पराग साहब आयु की अधिकता और अपने गिरते स्वास्थ्य के कारण अपने इस पांचवे ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन के पक्ष में नहीं थे, ये तो भला हो उनके मित्र कवि एवं साहित्यकार श्री देवेन्द्र शर्मा 'इंद्र' जी का जिनके अथक प्रयास से ये पुस्तक और इसमें संग्रह की हुई उनकी 62 अनूठी ग़ज़लें पाठकों तक पहुंची।
मैं न मंदिरों का मुरीद हूँ, न ही मस्जिदों का हूँ आशना
मैं तो अंतहीन उड़ान हूँ , मुझे बंदिशों में न क़ैद कर
कभी काफ़िलों में रहा नहीं, किसी कारवां में चला नहीं
मुझे रास आई न रौनकें, मुझे महफ़िलों में न क़ैद कर
मैं वो आग हूँ जो जली नहीं , मैं वो बर्फ हूँ जो गली नहीं
मैं तो रेत पर हूँ लिखा गया , मुझे कागज़ों में न क़ैद कर
किसी शर्त पर न जिया कभी, मैं न ज़िन्दगी का गुलाम हूँ
मेरी मौत होगी नज़ीर -सी , मुझे हादसों में न क़ैद कर
अपनी ग़ज़लों के बारे में पराग साहब ने इस किताब की भूमिका में कहा है कि "मैं ग़ज़ल में अपने ह्रदय की संवेदनाओं और अनुभूतियों को अधिक सहज और प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त कर पाता हूँ " तभी हमें इन शेरों को पढ़ कर उनके फक्कड़, खुद्दार और अलमस्त व्यक्तित्व की स्पष्ट झांकी नज़र आ जाती है। शायर अपनी सोच से पाठक के मन में द्वन्द पैदा करता है उसे सोचने को मज़बूर करता है और उसे एक अच्छा इंसान बनने में सहायता करता है। ऐसा शायर भले ही इस दुनिया से रुखसत हो जाए लेकिन उसकी शायरी हमेशा ज़िंदा रहती है। पाठक उनकी रचनाएँ इंटरनेट की प्रसिद्ध साइट 'रेख़्ता' , 'कविता कोष' और अनुभूति इत्यादि पर पढ़ सकते हैं।
खेत सूखे हैं, चमन खुश्क है, प्यासे सेहरा
और तालाब में बरसात , खुदा खैर करे
जिसने कंधे पे मेरे चढ़ के छुआ है सूरज
आज दिखला रहा औकात, खुदा खैर करे
मुझसे जितना भी बना मैंने संवारी दुनिया
अब तो बेकाबू है हालात, खुदा खैर करे
4 मई 1933 को जगम्मनपुर जनपद जालौन उतर प्रदेश में जन्मे ओमप्रकाश जी ने एम ऐ (हिंदी) और विशारद करने के बाद उत्तेर प्रदेश के मनोरंजन कर विभाग में कार्य किया और फिर वहीँ से उपायुक्त के पद से सेवा निवृत हुए। उसके बाद का जीवन उन्होंने लेखन ,पत्रकारिता और सामाजिक सेवा को समर्पित कर दिया। उनके गीत संग्रह 'धरती का क़र्ज़ ', देहरी दीप', 'अनकहा ही रह गया', 'याद आता है जगम्मनपुर' , बाल कविता संग्रह ' बड़ा दादा , छोटा दादा' ,'मनपाखी', व्यंग संग्रह 'बलिहारी' ,'छोडो भी महाराज' और यात्रा वृतांत ' दर्रों का देश लद्दाख' बहुत चर्चित हुए। 11 जनवरी 2016 को ग़ाज़ियाबाद में फेफड़ों की लम्बी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया।
मैं अपनी ग़ज़लें लेकर महफ़िल में क्यों जाता
मेरे गीतों को तो चौपालों ने गाया है
माँ का आँचल हो कि शजर की शाखों का साया
ठिठुरन और तपन दोनों ने शीश झुकाया है
अब न कभी कहना वह तो डूबे सूरज सा है
काली रातों में भी उसने चाँद उगाया है
पत्रकारिता और संपादन के क्षेत्र में भी 'पराग' जी का बहुमूल्य योगदान रहा है। ' गीताभ' के 10 संस्करणों के अलावा उन्होंने विदुरा, नीराजन ,निर्धन-विभा , भोर जगी कलियाँ , नूपुर आदि का संपादन किया और बरेली से प्रकाशित 'हास्य -कलश ' वार्षिकी का चार वर्षों तक संयुक्त प्रकाशन किया। जीवन भर उन्होंने कलम का साथ नहीं छोड़ा और विपरीत परिस्थितिओं में भी लिखते रहे। प्रसिद्ध कवि 'बाल स्वरुप राही ' जी ने उनकी शायरी के बारे में लिखा है कि "उनकी शायरी में हुस्न परस्ती भी है , इश्क की मस्ती भी है , नाकामियों की पस्ती भी है , चौंका देने वाली खुद परस्ती भी है , घर-बार से बाजार में बदलती हुई बस्ती भी है "
उनको दिल्ली का प्रतिष्ठित सम्मान परम्परा साहित्य अवार्ड से भी अलंकृत किया गया था .
न चाँदनी ,न कभी धूप का मजा पाया
रहे हैं आप तो बहुमंजिले मकानों में
बता रहे हैं जिसे आप टाट का टप्पर
शुमार है वो बुरे वक़्त के ठिकानों में
सुकून ढूंढ रहे हैं जो मैकदे में आप
मिलेगा आपको पलकों के शामियानों में
'
कमान पर चढ़ी बांसुरी' को अयन प्रकाशन , महरौली ने सन 2014 में प्रकाशित किया है। किताब की प्राप्ति के लिए आप अयन प्रकाशन के श्री भूपी सूद साहब से उनके मोबाइल नंबर 9818988613 पर संपर्क कर सकते हैं। किताब का आवरण छोटी बहर की ग़ज़लों के उस्ताद शायर और कमाल के चित्रकार जनाब विज्ञानं व्रत साहब ने तैयार किया है जो देखते ही बनता है। अफ़सोस की बात है कि अपनी ग़ज़लों के लिए दाद के हक़दार 'पराग' साहब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी ग़ज़लों को पढ़ कर दिल से निकली वाह उनतक जरूर पहुंचेगी।
'पराग' साहब की एक ग़ज़ल के इन शेरों को आप तक पहुंचा कर हम निकलते हैं एक और किताब की तलाश में
घिर रहे हर सिम्त जालों से उजाले
चाँद से मावस बड़ी है, देखिये तो
होंठ हँसते हैं, थिरकते पाँव, लेकिन
आँख में बदली अड़ी है, देखिये तो
बैठने वाले ही नाकाबिल हैं ,या फिर
कुर्सियों में गड़बड़ी है , देखिये तो
तुम जुबाँ खोलो कि जब कोई न बोले
शर्त ये कितनी कड़ी है, देखिये तो
किसी शर्त पर न जिया कभी, मैं न ज़िन्दगी का गुलाम हूँ
ReplyDeleteमेरी मौत होगी नज़ीर -सी , मुझे हादसों में न क़ैद कर
तुम जुबाँ खोलो कि जब कोई न बोले
शर्त ये कितनी कड़ी है, देखिये तो
वाह वाह हर शेर लाजवाब, कितनी पुरसुकून व रवानगी भरी ग़ज़ले हैं ओमप्रकाश जी की अफ़सोस कि वे अब इस दुनिया मे नहीं हैं.... पर आपने बहुत अच्छा कार्य किया उनकी किताब का ज्रिक यहाँ कर के पढ़ने वालों की वाह ओमप्रकाश जी तक पहुँचे कर उन्हे सुकून जरूर देगी।
हर बार की तरह बहुत अच्छी समीक्षा व शेरों का चयन लाजवाब । बधाई आपको।
very nice
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 24 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteDil Mein Har Sher Utarta Hai . Badhaaee Aur Shubh Kamna .
ReplyDeleteParag sb se mere niji sambandh the hamesha housla badhte the mere ek majmue mein mujhe Aasheesh bhi diya
ReplyDeleteGeet kahne ko unhone hi uksaya baar baar kahte geet likhi
Kabhi kabhi main geet likhta tha do teen geet likhe the lekin unke kahne par kuch aisa hua ki Maine 24 geet likhe Wo BAHUT khush hue Aasheesh diya apne BAHUT shaandaar likha hai unkeki kitab K bare mein
Aaj so is duniya mein nahin hain unki aur apki lekhni ko naman
Tapish
बहुत अच्छी समीक्षा ! लाजवाब । बधाई आपको।
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