"किताबों की दुनिया" श्रृंखला फिलहाल कुछ समय के लिए रुकी हुई है जब तक कोई नयी किताब हाथ में आये तब तक आप ख़ाकसार की बहुत ही सीधी, सरल मामूली सी, अर्से बाद हुई इस ग़ज़ल से काम चलाएं, क्या पता पसंद आ जाए , आ जाए तो नवाज़ दें न आये तो दुआ करें कि अगली बार निराश न करूँ :
बाद मुद्दत के वो मिला है मुझे
डर जुदाई का फिर लगा है मुझे
आ गया हूँ मैं दस्तरस में तेरी
अपने अंजाम का पता है मुझे
दस्तरस = हाथों की पहुँच में
क्या करूँ ये कभी नहीं कहता
जो करूँ उसपे टोकता है मुझे
तुझसे मिलके मैं जब से आया हूँ
हर कोई मुड़ के देखता है मुझे
अब तलक कुछ वरक़ ही पलटे हैं
तुझको जी भर के बांचना हैं मुझे
ठोकरें जब कभी मैं खाता हूँ
कौन है वो जो थामता है मुझे
सोचता हूँ ये सोच कर मैं उसे
वो भी ऐसे ही सोचता है मुझे
मैं तुझे किस तरह बयान करूँ
ये करिश्मा तो सीखना है मुझे
नींद में चल रहा था मैं ‘नीरज’
तूने आकर जगा दिया है मुझे
(कुछ लोग ग़ज़ल के साथ लगायी फोटो पर आपत्ति कर सकते हैं लेकिन ज़िन्दगी सिर्फ़ संजीदगी से नहीं चलती उसमें हंसना मुस्कुराना भी जरूरी होता है , ये ग़ज़ल उसी ज़िन्दगी का अक्स है )
अब तलक कुछ वरक़ ही पलटे हैं
ReplyDeleteतुझको जी भर के बांचना हैं मुझे
ग़ज़ल बिलाशक़ उम्दा है। पर ई जी भैंसवा का तस्वीर टांके हैं आप इके साथ उ तो बस जान ही डाल दी है ई मां।
ReplyDeleteजिंदाबाद 😂
जिंदाबाद ... हर शेर कमाल का है ... बेहतरीन ग़ज़ल है ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया ।
ReplyDeleteKhoosoorat Ghazal hai wah wah kya kahne umda
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद और दाद कुवूल फरमाइए।
ReplyDeleteआ गया हूँ मैं दस्तरस में तेरी
ReplyDeleteअपने अंजाम का पता है मुझे
बहुत ख़ूब!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-06-2016) को "भूत, वर्तमान और भविष्य" (चर्चा अंक-2386) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अब क्या मिसाल दूँ ...... हमेशा जैसी बेहतरीन, हल्की- फुल्की पर वज़नदार, असरदार ग़ज़ल । ढेरों शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteवाह्ह्ह् । लाजवाब
ReplyDeleteठोकरें जब कभी मैं खाता हूँ
कौन है वो जो थामता है मुझे।
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई नीरज भाई।
तुझसे मिलके मैं जब से आया हूँ
ReplyDeleteहर कोई मुड़ के देखता है मुझे ..... क्या बात है सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल बधाई... भैंस ने वाकई चौंकाया पर डिस्कलेमर से संभल गई..पर तब भी भैंस ..कमाल है सर.. :)
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ReplyDeleteआ गया हूँ मैं दस्तरस में तेरी
अपने अंजाम का पता है मुझे
वाह ! अच्छी ग़ज़ल भाई ! बहुत दाद !
Alam Khursheed
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ReplyDeleteमैं तुझे किस तरह बयान करूँ ये करिश्मा तो सीखना है मुझे
गिरह भी ख़ूब लगाई है सर दाद क़बूल करें
Balwan Singh
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ReplyDeleteKya baat sir..Waah
Yugal Bhatneri
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ReplyDeleteतुझसे मिलके मैं जब से आया हूँ
हर कोई मुड़ के देखता है मुझे .... बहुत ही सुन्दर गजल
Ritambhara Kumar
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ReplyDeleteबहुत उम्दा ,,,,,,,,,,,कमाल ...........सादा सरल और असरदार
Pramod Kumar
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ReplyDeleteLajawab Ghazal
Moni Gopal Tapish
बहुत खूब नीरज भाई, उम्दा ग़ज़ल. सारे ही रंग है, एक की कमी थी जो भैंस ने पूरी कर दी!
ReplyDelete(फेसबुक पर तो हूर लगती थी
भैंस निकली जो सामने आई!)
बहुत सुंदर ...
ReplyDeleteबहुत उम्दा...सभी अश'आर पुरअसर हुए हैं
ReplyDeleteमुबारकबाद
कौनसे शब्द बाँधूँ, टिप्पणी में
ReplyDeleteइसका हर शेर बाँधता है मुझे
बेहतरीन ग़ज़ल...
Waaaaaaaah ! kya kahney ..... bahut khoob ...... har she'r qaabile daad .... bahut mubaarak .... Raqeeb
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...
हर कोई मुड के देखता है मुझे, और ये तस्वीर भई वाह!
ReplyDeleteआपको जन्मदिन दिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!
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