सुरेन्द्र जी ने लोकेश जी से ढेरों बातें की और अपनी ग़ज़लें भी सुनाईं। जयपुर में इस तरह की अनोपचारिक बातचीत का ये अपने आप में अनोखा कार्यक्रम था. कार्यक्रम के बाद सुरेन्द्र जी से बातचीत हुई और उन्होंने मेरी रूचि और पुस्तकों के प्रति अनुराग देख कर उसी वक्त अपनी कुछ किताबें मुझे भेंट में दे दीं . उन्हीं किताबों के ज़खीरे में से एक ताज़ा छपी किताब " ये समंदर सूफियाना है " का जिक्र आज हम करेंगे।
खुदाया इस से पहले कि रवानी ख़त्म हो जाए
रहम ये कर मेरे दरिया का पानी ख़त्म हो जाए
हिफाज़त से रखे रिश्ते भी टूटे इस तरह जैसे
किसी गफलत में पुरखों की निशानी ख़त्म हो जाए
लिखावट की जरूरत आ पड़े इस से तो बेहतर है
हमारे बीच का रिश्ता जुबानी ख़त्म हो जाए
हज़ारों ख्वाइशों ने ख़ुदकुशी कुछ इस तरह से की
बिना किरदार के जैसे कहानी ख़त्म हो जाए
बकौल सुरेन्द्र उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत कविताओं से की और फिर वो कवि सम्मेलनों में बुलाये जाने लगे. मंचीय कवियों की तरह उन्होंने ऐसी रचनाएँ रचीं जो श्रोताओं को गुदगुदाएँ और तालियाँ बजाने पर मजबूर करें. ज़ाहिर है ऐसी कवि सम्मेलनीय रचनाओं ने उन्हें नाम और दाम तो भरपूर दिया लेकिन आत्म संतुष्टि नहीं . साहित्य के विविध क्षेत्रों में हाथ आजमाने के बाद अंत में ग़ज़ल विधा में वो सुकून मिला जिसकी उन्हें तलाश थी.
फैसलों में अपनी खुद्दारी को क्यूँ जिंदा किया
उम्र भर कुछ हसरतों ने इसलिए झगडा किया
मुझसे हो कर तो उजाले भी गुज़रते थे मगर
इस ज़माने ने अंधेरों का फ़क़त चर्चा किया
मैंने जब खामोश रहने की हिदायत मान ली
तोहमतें मुझ पर लगा कर आपने अच्छा किया
कुछ नहीं हमने किया रिश्ता निभाने के लिए
अब जरा बतलाइये कि आपने क्या क्या किया
मूलतः अजमेर निवासी सुरेन्द्र जब फिल्मों में किस्मत आजमाने के लिए मुंबई लिए रवाना हुए तो परिवार और इष्ट मित्रों ने उन्हें वहां के तौर तरीकों से अवगत करवाते हुए सावधान रहने को कहा. मुंबई नगरी के सिने संसार में अच्छे साहित्यकारों की जो दुर्गति होती है वो किसी से छुपी नहीं. सुरेन्द्र ने मुंबई जाने से पहले किसी भी कीमत पर साहित्य की सौदेबाजी न करने का दृढ निश्चय किया.
मुंबई प्रवास के आरंभिक काल में उन्हें अपने इस निश्चय पर टिके रहने में ढेरों समस्याएं आयीं लेकिन वो अपने निश्चय पर अटल रहे.
खिज़ाओं के कई रिश्ते जुड़े हैं जिस्म से मेरे
मगर मैं रूह के भीतर की वीरानी से डरता हूँ
कभी कुनबे के आगे हाथ फैलाता नहीं हूँ मैं
मैं बचपन से ही माँ की हर पशेमानी से डरता हूँ
मुझे रंगों को छू कर देखने की है बुरी आदत
मगर मैं तितलियों की हर परेशानी से डरता हूँ
मुंबई की फिल्म नगरी में दक्ष साहित्यकारों की रचनाओं को खरीद कर या उनसे लिखवा कर अपने नाम से प्रसारित करने वाले मूर्धन्य साहित्यकारों की भीड़ में सुरेन्द्र को एक ऐसा शख्स मिला जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी. उस अजीम शख्स को हम सब गुलज़ार के नाम से जानते हैं.
अपनी एक किताब में सुरेन्द्र कहते हैं " ज़िन्दगी में पहली बार महसूस हुआ कि फ़िल्मी कैनवास पर कोई रंग ऐसा भी है जो दिखता ही नहीं महसूस भी होता है. गुलज़ार साहब के व्यक्तित्व और कृतित्व ने मुझे बेइन्तेहा प्रभावित किया "
तेरी आँखों में मैंने अश्क अपने क्या रखे
तूने
समंदर को जरा सी देर में कतरा बना डाला
कभी बादल, कभी बारिश, कभी उम्मीद के झरने
तेरे अहसास ने छू कर मुझे क्या क्या बना डाला
तेरी मौजूदगी ने जख्म पर जब उँगलियाँ रक्खीं
तो मैंने दर्द अपना और भी गहरा बना डाला
सुरेन्द्र और उनकी की शायरी के बारे में गुलज़ार साहब फरमाते हैं "सुरेन्द्र की ग़ज़लों में बदन से रूह तक पहुँचने का ऐसा हुनर मौजूद है जिसे वो खुद सूफियाना रंग कहते हैं मगर मेरा मानना है कि वे कभी कभी सूफीज्म से भी आगे बढ़ कर रूहानी इबादत के हकदार हो जाते हैं. कभी वे कबायली ग़ज़लें कहते नज़र आते हैं तो कभी मौजूदा हालातों पर तबसरा करते ! मुझे हमेशा येही लगा कि मेरी ही शक्ल का कोई शख्स सुरेन्द्र में भी साँसे लेता है "
मुझे मेरी तरह के दूसरे दरिया से तू मिलवा
कि हर कतरे में जिसके इक समंदर सांस लेता हो
जुदा होकर मैं तुझसे यूँ तो जिंदा हूँ मगर ऐसे
कि जैसे जिस्म से काटा हुआ सर साँस लेता हो
बनाओ अब कहीं ऐसी इबादतगाह कि जिसमें
दरो दीवार का हर एक पत्थर सांस लेता हो
सुरेन्द्र की ग़ज़लों का पूरा कैनवास देखने के लिए ये बहुत जरूरी है के हम उनकी बाकी सभी किताबों याने "दर्द-बे-अंदाज़", "वक्त के खिलाफ","अंदाज़े बयां और ", "आसमाँ मेरा भी था" , "अंजाम खुदा जाने ", "कोई एहसास बच्चे की तरह" और " कोई कच्चा मकान हो जैसे" को भी पढ़ें. सिर्फ एक किताब को पढ़ कर हम उनकी शायरी की गहराई का अंदाजा नहीं लगा पाएंगे.
"ये समंदर सूफियाना है " और उनकी बाकी अधिकाँश किताबें जयपुर के बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं.
बड़े अंदाज़ से वो बोलता है
मगर खुद को कहाँ वो खोलता है
चखे तो शहद सा लगता है मीठा
ज़हर भी इस तरह से घोलता है
उफनता वो नहीं है दूध जैसे
मगर भीतर बहुत वो खौलता है
हुनर आया है जबसे बोलने का
बहुत खामोश हो कर बोलता है
अगर इस पोस्ट ने आपके मन में सुरेन्द्र की और भी ग़ज़लें पढने की प्यास जगाई है तो इन पुस्तकों की प्राप्ति के लिए बोधि प्रकाशन जयपुर को 098290-18087 पर संपर्क करें या फिर सीधे सुरेन्द्र को उनके मोबाईल न. 09829271388 पर बधाई देते हुए उनसे इन किताबों की प्राप्ति के लिए गुज़ारिश करें. आप उन्हें ghazal1681@yahoo.co.in पर मेल भी लिख सकते हैं. मुझे पूरी उम्मीद है वो अपने सच्चे पाठकों को निराश नहीं करेंगे.
अगली किताब की खोज पर जाने से पहले लीजिये सुरेन्द्र की एक और खूबसूरत ग़ज़ल के ये शेर पढ़ें और फिर एक विडियो देखें जिसे खाकसार ने उनके जयपुर कार्यक्रम के दौरान अपने मोबाइल की मदद से बनाया था :
यादों के घर लौट के जाना मुश्किल है
दरवाज़े फिर से खुलवाना मुश्किल है
उनसे भी मैं जुदा नहीं हो पाता हूँ
जिनसे मेरा साथ निभाना मुश्किल है
रूह में चाहे वो ही साँसे लेता हो
लेकिन उसको तो छू पाना मुश्किल है
जो रहते हर वक्त दिलों में लोगों के
ऐसे लोगों का मर जाना मुश्किल है
खिज़ाओं के कई रिश्ते जुड़े हैं जिस्म से मेरे
ReplyDeleteमगर मैं रूह के भीतर की वीरानी से डरता हूँ
मुझे मेरी तरह के दूसरे दरिया से तू मिलवा
कि हर कतरे में जिसके इक समंदर सांस लेता हो
बनाओ अब कहीं ऐसी इबादतगाह कि जिसमें
दरो दीवार का हर एक पत्थर सांस लेता हो
इतना पढने से ही अहसास हो रहा है कि सुरेंद्र जी एक बाकमाल शायर है
उनके बारे सही कहा है गुलजार जी कि वे सुफिज़म से बढ़ कर रूहानी हो जाते है.
उनकी किताबे मंगवाने की कोशिश करते है,
पर इस पोस्ट की खास बात आपकी तथाकथित अर्थहीन भूमिका है।
ये आपकी अभी तक की पढ़ी हुई कुछ बहुत
अच्छी समीक्षाओ मे से एक लगी।
शायर से रूबरू मुलाकात का वर्णन,इंटरव्यू विडियो ,और गंठी भाषा मे शायर परिचय
अपने आप मे एक मुकम्मल समीक्षा
आपको ढेरो बधाई इस कम्पलीट पोस्ट के लिए।
शायर साहब का अंदाज़-ए -बयाँ तो खूब है :)
ReplyDeleteये पंक्ति शायद गलत लिखी गयी है :
हज़ारों ख्वाइशों ने ख़ुदकुशी कुछ (इस) तरह से की
समीक्षा के लिए आपका आभार .. जारी रखिये ...
Neeraj ji bahut achhi jankari di aapne aapka bahut aabhar .ye silsila u hi banaye rakhiyega.
ReplyDeleteहिफाज़त से रखे रिश्ते भी टूटे इस तरह जैसे
ReplyDeleteकिसी गफलत में पुरखों की निशानी ख़त्म हो जाए
बेहतरीन ग़ज़लों और उम्दा शायर से मुलाक़ात करवाने का शुक्रिया नीरज जी....
आपकी पोस्ट्स का इंतज़ार यूँ ही नहीं रहता है..
सादर
अनु
बहुत ही लाजवाब शायरी, आभार.
ReplyDeleteरामराम.
Galti ki aur ishara karne ke liye aapka tahe dil se shukriya Majaal Bhai...Sneh banaye rakhen
ReplyDeleteNeeraj
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ReplyDeletePadhkkar achchha laga. Age bhi padhte rahenge. Kabhi vaqt mile to mera blog bhi padh sakte hain,www.meraavyakta.blogspot.com
Ram Kishore Upadhyaay
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ReplyDeleteपढ़ लिया। अच्छी चर्चा है। सुरेंद्रजी बेहतरीन शायर हैं।
:Devmani Pandey
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ReplyDeletesurendra ji ki sabhi pustken padrna chahta hun........bemisal shayari.
Pramod Kumar
लाज़वाब शायर...
ReplyDeleteरूह में चाहे वो ही साँसे लेता हो
ReplyDeleteलेकिन उसको तो छू पाना मुश्किल है
वाह!
सुन्दर पुस्तक परिचय!
बढ़िया परिचय।..वाह!
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteहमेशा ही की तरह एक और सुच्चा मोती खोज लाये हैं आप गजलों के समन्दर से! मुबारकबाद !
सर्व
मुझे मेरी तरह के दूसरे दरिया से तू मिलवा
कि हर कतरे में जिसके इक समंदर सांस लेता हो
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तेरी मौजूदगी ने जख्म पर जब उँगलियाँ रक्खीं
तो मैंने दर्द अपना और भी गहरा बना डाला
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कुछ नहीं हमने किया रिश्ता निभाने के लिए
अब जरा बतलाइये कि आपने क्या क्या किया
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार१६ /७ /१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteशायर की शायरी जब आपकी नज़र से गुजरकर इस तरह प्रस्तुत होती है तो एक अलग ही निखार आ जाता है।
ReplyDeleteमंचीय माल भले ही गोलगप्पे सा स्वाद देता हो पर पेट रोटी से ही भरता है
ReplyDeleteइतने उम्दा लेखक , गजलकार से परिचय कराने के लिए बहुत धन्यवाद, लेकिन उनकी गजलो को पड़कर दिल को सुकून सा मिला है, कोशिश करेंगे की उनकी गजलो को पूरा पढ़ सके , आपका बहुत बहुत आभार,
ReplyDeletebhai surender ji,
ReplyDeletenamsty
aaj bhai neeraj goswami ji ke email se aap ki kitab "ye samandar sufuyana hai"
ka jikar parha, bahut achha laga,
bhai neeraj ji poetry aur khas taur par urdu shaairi ke mahir parkhi hain,
aap ki rachnayen achhi aur khoob surat hain,
khas taru par ye lines :-
- चखे तो शहद सा लगता है मीठा
ज़हर भी इस तरह से घोलता है
उफनता वो नहीं है दूध जैसे
मगर भीतर बहुत वो खौलता है
हुनर आया है जबसे बोलने का
बहुत खामोश हो कर बोलता है
badhai ho-
saaadar- om sapra, delhi-9
M- 9818180932
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ReplyDeleteShayar Ashok Mizaj Badr :: Neeraj ji aap ki sameeksha bahut sateek hoti hai ...ye saubhagya mujhe bhi prapt ho chuka hai shukriya aapne phir ek kitab ko roshni di
Received on fb:-
ReplyDeleteSurendra Chaturvedi :::: Bhai Neeraj goswami ......Aapne jo meri pustak par sargharbhit charcha ki uske liye aabhar.....baht se doston ke phone aa rahe hai.....achha lagta hai jab apne kiye kam par koi sakaratmak parinaam samne aate hain
वाह, पढ़कर और सुनकर, दोनों ही तरीकों से आनन्द बरसा।
ReplyDelete
ReplyDeleteतेरी आँखों में मैंने अश्क अपने क्या रखे
तूने समंदर को जरा सी देर में कतरा बना डाला
वाह नीरज जी, आपने फिर से एक बार आनंद विभोर कर दिया । सुरेन्द्र जी से मिलवाने का पढवाने का आभार ।
bahut badhiya ...vedio bhi ...
ReplyDeleteनिसंदेह साधुवाद योग्य लाजवाब समीक्षा...बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteवाह! नीरज जी बहुत ही सुन्दर समीक्षा।
ReplyDeleteकृप्या यहाँ भी पधारें http://rajeevranjangiri.blogspot.in/
धन्यवाद्
बहोत अच्छि किताब का जिक्र किया...बहोत खुब..्चलो मै मंगवा ही लेता हू..आपका शुख्रीया निरज जी..
ReplyDeleteआपका ये ब्लॉग हमें निरंतर कई सुंदर रचनाकारों एवं उनकी रचनाओं से परिचित कराता है...मैं शायद यह पहले भी कह चुका हूँ कि आपकी इस रीडिंग हैबिट और साहित्य के इस अकूट ज्ञान को देख मुझे जलन होती है कि काश ये प्रवृत्ति मैं भी स्वयं में विकसित कर पाऊं...बहुत बहुत धन्यवाद चतुर्वेदी जी से परिचित करवाने के लिये।।।
ReplyDeleteबहुत खूब परिचय मिला सुरेन्द्र जी का. उनकी ग़ज़लों के संग्रह हर ग़ज़ल प्रेमी के पास होना चाहिए।
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी और उनकी कृतियों से परिचय कराने के लिए आपका धन्यवाद।
हिफाज़त से रखे रिश्ते भी टूटे इस तरह जैसे
ReplyDeleteकिसी गफलत में पुरखों की निशानी ख़त्म हो जाए
बेहतरीन ग़ज़लों और उम्दा शायर से मुलाक़ात करवाने का शुक्रिया नीरज जी...