बंद रखिए तो इक अँधेरा है
खोलिए आँख तो सवेरा है
सांप यादों के छोड़ देता है
शाम का वक्त वो सँपेरा है
फ़ासला इक बहुत जरूरी है
यार के भेष में बघेरा है
ताजपोशी उसी की होनी है
मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
मरहला है सरायफानी ये
चार दिन का यहाँ बसेरा है
रूह बेरंग क्यों ना हो साहब
हर कोई जिस्म का चितेरा है
शाम दर पे खड़ी है ऐ 'नीरज'
अब समेटो जिसे बिखेरा है
(मयंक भाई आपके मिडास टच को सलाम )
ताजपोशी उसी की होनी है
ReplyDeleteमुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
नीरज जी! यही इस देश में हो रहा है.
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खोलिए आंख तो सवेरा है पर लोग जागेंगे कब वरना ताजपोशी उसी की होनी है मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है।
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल.....
सादर
अनु
बढ़िया -
ReplyDeleteशुभकामनायें-
'सांप यादों के छोड़ देता है
ReplyDeleteशाम का वक्त वो सँपेरा है'
One can so starkly identify with the emotions and facts underlined!!!
बहुत खूब!!!
बहुत खुबसूरत
ReplyDeleteशाम दर पे खड़ी है ऐ 'नीरज'
ReplyDeleteअब समेटो जिसे बिखेरा है
बड़ी गहन ग़ज़ल है ....एक एक शेर जैसे मर्म को स्पर्श कर रहा है ....!!
बहुत सुंदर ग़ज़ल नीरज जी ......!!
शुभकामनायें .....!!
वाह बहुत ही लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
AAP KEE LEKHNI SE EK AUR BADHIYAA
ReplyDeleteGAZAL . BADHAAEE .
क्या खूब गजल..
ReplyDeleteबेहतरीन....
:-)
waah bahut khoob..
ReplyDeleteaaj kal lutre mulk ko lutne ke baad
khud hi tajposi kar lete hain.
बेहतरीन गज़ल !!
ReplyDeleteवाह वाह वाह लाजवाब ग़ज़ल कही है आदरणीय हरेक शेर सीधे सीधे दिल में उतर गए. इस बेहतरीन ग़ज़ल पर दिल से बधाई प्रेषित है स्वीकारे करें.
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (30-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
बहुत ही आध्यात्मिक कविता।
ReplyDeletebadhiya ..ab aap adhyatm se bhi judte jaa rahe hain ...
ReplyDeleteबहुत खूब,मन के भावों लालबाब गजल,,
ReplyDeleteRECENT POST: तेरी याद आ गई ...
Gazal gazal,tasveer bhee utneehee sundar,mohak....jee karta hai,usee parse ek wall piece bana lun....khair sehat saath nahi deti to bana nahi paungi!
ReplyDeleteसांप यादों के छोड़ देता है
ReplyDeleteशाम का वक्त वो सँपेरा है
ताजपोशी उसी की होनी है
मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
क्या बात है !!!
बहुत उम्दा ग़ज़ल !!!
ताजपोशी उसी की होनी है
ReplyDeleteमुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
रूह बेरंग क्यों ना हो साहब
हर कोई जिस्म का चितेरा है
वाह बहुत सुन्दर रचना,सब की बखिया उधेड़ कर रख दी नीरजजी .
बहुत दिनों बाद आना हुआ...ये मुए फेसबुक ने इतना उलझा दिया है कि औरों का फेस देखना भी मुहाल हो गया..आप अपने काम में लगे हें, देखकर अच्छा लगा। शुभकामनाएं..
ReplyDeleteवाह , बहुत उम्दा गजल
ReplyDeletewaah aap behtareen gazal kahte hain..
ReplyDeleteताजपोशी उसी की होनी है
ReplyDeleteमुल्क में जो बड़ा लुटेरा है!
फिर भी कोशिश होती है कि लगे जब आँख खुले तभी सवेरा हो !
बहुत खूब, अन्तिम वाला मन को भेद गया, समेटते हैं अब स्वयं को।
ReplyDeleteReceived on e-mail:
ReplyDeletebhai neeraj ji
namasty,
arey waah bahut achha laga
khastour se yeh lines-
फ़ासला इक बहुत जरूरी है
यार के भेष में बघेरा है
ताजपोशी उसी की होनी है
मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
bahut bahut badhai-
regds, -om sapra, delhi-9
Received on e-mail:-
ReplyDeleteRamesh Gharia
14:56 (2 hours ago)
to me
wah neerajji,
Aap hamesha dil aur dimag ko choo dete hai. Shukria.
Sanskar
बहुत खूब...
ReplyDeleteएकदम सामयिक....!
सुन्दर अभिव्यक्ति...
अच्छी ग़ज़ल।
ReplyDeleteरूह बेरंग क्यों ना हो साहब
ReplyDeleteहर कोई जिस्म का चितेरा है
सटीक.... हमेशा की तरह उम्दा गज़ल नीरज जी...
kya bat hai, matle ne kya sama.n bandha hai.... digar ash'ar bhi rokte hain.... aap ki mehnat dikh rahi hai bade bhai.... praNam
ReplyDeleteताजपोशी उसी की होनी है
ReplyDeleteमुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
गज्जब!
गज़ब नीरज जी ... आपका कमाल पढ़ने के बाद बस सुभान अल्ला ही निकलता है बरम्बार ... हर शेर नगीना ...
ReplyDeleteअर्थपूर्ण ग़ज़ल
ReplyDeleteआपकी इस रत्नजटित ग़ज़ल के लिये हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआप को पढते ही सवेरा है ।
ReplyDeleteReceived on e-mail:
ReplyDeleteशाम दर पे खड़ी है ऐ 'नीरज'
अब समेटो जिसे बिखेरा है
वाह ........................................सबसे अच्छा शेर नीरज भाई .............................. सलामत रहें !
Alam Khursheed
बंद रखिए तो इक अँधेरा है
ReplyDeleteखोलिए आँख तो सवेरा है
सांप यादों के छोड़ देता है
शाम का वक्त वो सँपेरा है
बेहतरीन अंदाजे बंयाँ वाह..
I like it
ReplyDeleteरूह बेरंग क्यों ना हो साहब
ReplyDeleteहर कोई जिस्म का चितेरा है
वाह वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल।
बहुत खूब.
ReplyDeleteशानदार ग़ज़ल !!
सांप यादों के छोड़ देता है
शाम का वक्त वो सँपेरा है
ताजपोशी उसी की होनी है
मुल्क में जो बड़ा लुटेरा है
वाऽहऽऽ…!
आदरणीय नीरज जी भाईसा'ब
इन दो शे'र ने दिल छू लिया , वैसे पूरी ग़ज़ल अच्छी है ।
...हमेशा की तरह
:)
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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ReplyDelete♡♥♡♥Happy belated birthday♥♡♥♡
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जन्मदिवस के मंगलमय अवसर पर
♥ हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! ♥
♥ बढ़े प्रतिष्ठा मान धन , वैभव यश सम्मान ! ♥
♥ जन्मदिवस शुभकामना ! हे गुणवंत सुजान !! ♥
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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