ज़ेहन में आपके गर खलबली है
बड़ी पुर-लुत्फ़ फिर ये ज़िन्दगी है
पुर लुत्फ़ : आनंद दायक
अजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ये कैसी रौशनी हमको मिली है
मुसलसल :लगातार : तीरगी : अँधेरा
मुकम्मल खुद को जो भी मानता है
यकीं मानें बहुत उसमें कमी है
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
तिश्नगी : प्यास
नहीं आती है 'नीरज' हाथ जो भी
हरिक वो चीज़ लगती कीमती है
मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ReplyDeleteये कैसी रौशनी हमको मिली है
सुंदर शायरी ...
हर एक शेर उम्दा ....मन को छूता हुआ ...!!
शुभकामनायें ।
अहा !!!! मस्त मस्त मस्त जानदार शानदार लाजवाब दिल को छू लिए आपने आदरणीय दिल से ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.
ReplyDeleteलाजवाब , बहुत सुंदर , दिल को सुकून मिला पढ़ कर ,
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरणीय-
ज़ेहन में आपके गर खलबली है
ReplyDeleteबड़ी पुर-लुत्फ़ फिर ये ज़िन्दगी है
नहीं आती है 'नीरज' हाथ जो भी
हरिक वो चीज़ लगती कीमती है
वाह कमाल के शेर अच्छी गजल
बहुत शुभकामनाये आप ऐसी ही दिल छूने
वाली गजले कहते रहे ..
बहुत ही गहन अर्थपूर्ण शेर, समंदर की तिश्नगी शायद प्राकृतिक है पर मनुष्य की तिश्नगी को क्या कहें?
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुंदर ग़ज़ल की अभिव्यक्ति .......!!
ReplyDeleteमुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ReplyDeleteये कैसी रौशनी हमको मिली है
हर एक शेर उम्दा , बहुत सुंदर ग़ज़ल
शुभकामनायें ।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें
ReplyDeleteबहुत खूब नीरज जी
ReplyDeleteReceived on mail:-
ReplyDeletedear neeraj ji
namsty
ur gazal is really very nice,
especially these lines:-
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
तिश्नगी : प्यास
congrats for such a gud writing,
also say congrats to Shri pankaj subeer ji for getting indu sharama award last week
regd,
-om sapra, delhi-9
9818180932
यह चुलबुली खलबली बनी रहे।
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
ReplyDeleteबाकमाल भाई बाकमाल।
ReplyDeleteअब आपको अंर्तराष्ट्रीय मुशायरे से बुलावा न आये तो वही कुछ खो रहे हैं।
main tilak sahab ki bat ka samarthan karta hun........... aaj main ne ek alag neeraj bhai ko padha hai..... badhai....
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteगलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
बहुत सुंदर
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन खास है १ जुलाई - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteवाह नीरज जी आपके यहाँ तो आम के आम और गुठली के दाम मिलते है | सुन्दर रचना के साथु उर्दू फारसी भी अच्छी खासी सिख जायेंगे ...
ReplyDelete
ReplyDeleteमुकम्मल खुद को जो भी मानता है
यकीं मानें बहुत उसमें कमी है
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
लाजवाब गज़ल
;-)
ReplyDeleteगजल के हर शेर ने दिल को छू लिया !
ReplyDeletelatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
अजब अंदाज़ का शाईर है 'नीरज'
ReplyDeleteअजब अंदाज़ की ये शायरी है.
http://mansooralihashmi.blogspot.in
मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ReplyDeleteये कैसी रौशनी हमको मिली है
I love these lines, it seems that they are written for me.
बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
उत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134
मुकम्मल खुद को जो भी मानता है
ReplyDeleteयकीं मानें बहुत उसमें कमी है
बहुत खूब कहा....जो भी कहा!
ReplyDeleteमुसलसल तीरगी में जी रहे हैं
ये कैसी रौशनी हमको मिली है
Mataphor
Chaand
भावो को संजोये रचना......
ReplyDeletewah-wah...kya baat hai...
ReplyDeleteजुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
ReplyDeleteअलग राहों में कितनी दिलकशी है
सटीक शे'र... बहुत दिलकशी है सच में... एक मुकम्मल गज़ल के लिए आपको बधाई नीरज जी
समंदर पी रहा है हर नदी को
ReplyDeleteहवस बोलें इसे या तिश्नगी है
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
अलग राहों में कितनी दिलकशी है
वाह क्या बात कही है ।
नमस्कार सर
ReplyDeleteसच कहूँ तो बहुत दिनों बाद इधर आया हूँ और क्या खूब शेर पढ़ने को मिले हैं।
इस शेर की बानगी देखिये,
अजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
वाकई आज ये हालात आ चुके हैं, जिसमें हम अपनी ख़ुशी और ज़िदों की खातिर हर गलत को सही बनाने और मनवाने पर तुले हैं।
"मुसलसल तीरगी में जी रहे हैं ..........", वाह वाह
मेरे लिए हासिल-ऐ-ग़ज़ल शेर है
समंदर पी रहा है हर नदी को
हवस बोलें इसे या तिश्नगी है
आपने क्या खूबी से मंज़र निकला है इस शेर में। लाजवाब शेर है।
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
ReplyDeleteअलग राहों में कितनी दिलकशी है
क्या करूँ मुझे आप की तरह टिप्पणी करना नहीं आता ,,शब्द ही जैसे ग़ायब हो जाते हैं :)
बस यही कह सकती हूँ कि बहुत बहुत अच्छी लगी ग़ज़ल !
ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO BADHAAEE AUR SHUBH KAMNAAYEN .
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शेर
ReplyDeleteReceived on mail:-
ReplyDeleteअजब ये दौर आया है कि जिसमें
गलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
वाह ! अब तक आप की जितनी भी ग़जलें पढ़ी ! उनमें सब से अच्छी ग़ज़ल है भाई ! तमाम अशआर बहुत सलीके से कहे गये हैं और ढेरों दाद के लायक है !
बधाई .....................!
Aalam Khursheed
जुदा तुम भीड़ से हो कर तो देखो
ReplyDeleteअलग राहों में कितनी दिलकशी है
बहुत बढ़िया ......हर शेर मुकम्मल है अपने आप मे।
अजब ये दौर आया है कि जिसमें
ReplyDeleteगलत कुछ भी नहीं,सब कुछ सही है
शानदार ग़ज़ल. जीवन के सच को देखने के आपके अंदाज़ के साथ.