Monday, May 20, 2013

किताबों की दुनिया - 82

कहती है ज़िन्दगी कि मुझे अम्न चाहिए 
ओ' वक्त कह रहा है मुझे इन्कलाब दो 

इस युग में दोस्ती की, मुहब्बत की आरज़ू 
जैसे कोई बबूल से मांगे गुलाब दो 

जो मानते हैं आज की ग़ज़लों को बेअसर 
पढने के वास्ते उन्हें मेरी किताब दो 

आज हमारी किताबों की दुनिया श्रृंखला में हम उसी किताब "ख़याल के फूल " की बात करेंगे जिसका जिक्र उसके शायर जनाब "मेयार सनेही " साहब ने अपनी ऊपर दी गयी ग़ज़ल के शेर में किया है. मेयार सनेही साहब 7 मार्च 1936 को बाराबंकी (उ प्र ) में पैदा हुए. साहित्यरत्न तक शिक्षा प्राप्त करने बाद उन्होंने ग़ज़ल लेखन का एक अटूट सिलसिला कायम किया।


कारवाँ से आँधियों की छेड़ भी क्या खूब थी 
होश वाले उड़ गए ओ' बावले चलते रहे 

गुलशनो-सहरा हमारी राह में आये मगर 
हम किसी की याद में खोये हुए चलते रहे 

ऐ 'सनेही' जौहरी को मान कर अपना खुदा 
खोटे सिक्के भी बड़े आराम से चलते रहे 

सनेही साहब की ग़ज़लें रवायती ढाँचे में ढली होने के बावजूद अपने अनोखे अंदाज़ के कारण भीड़ से अलग दिखाई देती हैं। अपने समय और समाज को बेहद सादगी और साफगोई के साथ चित्रित करना सनेही साहब की खासियत है।हिंदी उर्दू के लफ़्ज़ों में वो बहुत ख़ूबसूरती से अपनी ग़ज़लों में ढालते हैं

ऋतुराज के ख्याल में गुम होके वनपरी 
कब से बिछाए बैठी है मखमल पलाश का 

सूरज को भी चराग दिखाने लगा है अब 
बढ़ता ही जा रहा है मनोबल पलाश का 

है ज़िन्दगी का रंग या मौसम का ये लहू 
या फिर किसी ने दिल किया घायल पलाश का 

'मेयार' इन्कलाब का परचम लिए हुए 
उतरा है आसमान से ये दल पलाश का 

पलाश पर इस से खूबसूरत कलाम मैंने तो आजतक नहीं पढ़ा कमाल के बिम्ब प्रस्तुत किये हैं मेयार साहब ने।इस किताब के फ्लैप पर छपे श्री विनय मिश्र जी के कथनानुसार "ग़ज़ल का रिवायती तगज्जुल बरकरार रखते हुए निजी और घर संसार के संवेदनों को अनुभव की सुई में पिरो कर शायरी का सुन्दर हार बना देना कमाल का फन तो है ही, मेयार सनेही की शायराना तबियत का पुख्ता प्रमाण भी है."

माहौल में अनबन का चलन देख रहे हैं 
बिखरे हुए सदभाव-सुमन देख रहे हैं 

जिस डाल पे' बैठे हैं उसे काटने वाले 
आराम से अपना ही पतन देख रहे हैं 

वो लोग जो नफरत के सिवा कुछ नहीं देते 
उनको भी मुहब्बत से अपन देख रहे हैं 

यहाँ काफिये में 'अपन' का प्रयोग अनूठा है, जानलेवा है. सनेही साहब अपनी ग़ज़लों में इस तरह के चमत्कार अक्सर करते दिखाई देते हैं ये ही कारण है की इनकी ग़ज़लें बार बार पढने को जी करता है। विगत पचास वर्षों से ग़ज़लों की अविरल धारा बहाने वाले इस विलक्षण शायर की जितनी तारीफ़ की जाय कम है, मूल रूप से उर्दू के शायर सनेही साहब की ग़ज़लों में हिंदी के लफ़्ज़ों का प्रयोग अद्भुत है।

हलाहल बांटने वालो, इसे तो पी चुका हूँ मैं 
मुझे वो चीज़ दी जाय जिसे पीना असंभव हो 

बताओ क्या इसी को हार्दिक अनुबंध कहते हैं 
इधर आंसू पियें जाएँ उधर मस्ती का अनुभव हो 

'सनेही' ज़िन्दगी के ज़हर को रख दो ठिकाने से 
कि मुमकिन है इसी से एक दिन अमृत का उदभव हो

'ख्याल के फूल" किताब, जिसे 'अयन प्रकाशन' महरौली-दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है, की प्राप्ति के लिए श्री भोपाल सूद जी से आपको उनके मोबाइल 09818988613 पर संपर्क करना होगा। आप चाहें तो मेयार साहब से उनके मोबाइल 09935528683 पर बात कर उन्हें इन खूबसूरत ग़ज़लों की किताब के लिए मुबारकबाद देते हुए इस किताब को मंगवाने का तरीका भी पूछ सकते हैं .

तुमने मज़हब को सियासी पैंतरों में रख दिया 
सर पे' रखने वाली शै को ठोकरों में रख दिया 

पत्थरों से खेलने वालों को होश आया कि जब 
वक्त ने उनको भी शीशे के घरों में रख दिया 

लूट कुछ ऐसी मची है आजकल इस देश में 
रोटियों को ज्यूँ किसी ने बंदरों में रख दिया 

आम आदमी को समर्पित इस किताब में सनेही साहब की अस्सी बेहतरीन ग़ज़लें संगृहीत हैं जो अपने कहन के निराले अंदाज़, रदीफ़ और काफियों के अद्भुत चुनाव से आपका दिल मोह लेगीं। इस उम्र दराज़ शायर का ये पहला ग़ज़ल संग्रह है जान कर इस बात की पुष्टि होती है की शायर की पहचान उसकी छपी किताबों की संख्या से नहीं बल्कि उसके द्वारा कहे गए असरदार शेरों की वजह से होती है।

हाथ पीले क्या हुए हाथों में सरसों पक गयी 
चार ही दिन की मुलाकातों में सरसों पक गयी 

भेद तो दो दिन में खुल जाता सुनहरी धूप का 
वो तो ये कहिये यहाँ रातों में सरसों पक गयी 

साव जी पानी के बदले तेल जब पीने लगें 
बस समझ लेना बही खातों में सरसों पक गयी 

खूब हो तुम भी 'सनेही' गुलमुहर के शहर में 
लिख रहे हो गीत देहातों में सरसों पक गयी 

चलते चलते आईये पढ़ते हैं सनेही साहब की एक ग़ज़ल के ये शेर और निकलते हैं एक नयी किताब की तलाश में :-

कोई जुगनू जो चमकता है चमकने दें उसे 
क्यूँ समझते हैं उसे चाँद सितारों के ख़िलाफ़ 

खूब हैं लोग जो शोलों को हवा देते हैं 
और आवाज़ उठाते हैं शरारों के ख़िलाफ़ 
शरारों : चिंगारियों 

मेरी कुटिया को हिकारत की नज़र से देखा 
वर्ना मैं कब था फ़लक बोस मीनारों के ख़िलाफ़ 
फ़लकबोस: गगन चुम्बी

भाई प्रसन्न वदन चतुर्वेदी साहब की बदौलत सुनिए सनेही साहब का कलाम उनकी जुबान से जिसे एक नशिस्त में रिकार्ड किया गया :-

24 comments:

  1. इस युग में दोस्ती की, मुहब्बत की आरज़ू
    जैसे कोई बबूल से मांगे गुलाब दो

    जो मानते हैं आज की ग़ज़लों को बेअसर
    पढने के वास्ते उन्हें मेरी किताब दो
    वाह ... एक बेहतरीन पुस्‍तक से परिचय
    आभार इस प्रस्‍तुति के लिए
    सादर

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  2. आपने लिखा....
    हमने पढ़ा....
    और लोग भी पढ़ें;
    इसलिए बुधवार 22/05/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    पर लिंक की जाएगी.
    आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
    लिंक में आपका स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  3. ये कौन सी भाषा की गज़लें है ? हिंदी , उर्दू या हिन्दुस्तानी ?
    हिंदुस्तानी का उपयोग करते वक़्त कहीं कहीं हिंदी और उर्दू के शब्दों का मेल ठीक नहीं लगा ( माहौल में अनबन का चलन देख रहे हैं
    बिखरे हुए सदभाव-सुमन देख रहे हैं )

    कुछ शेर खासे अच्छे है ....
    जारी रखिये ...

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  4. कोई जुगनू जो चमकता है चमकने दें उसे
    क्यूँ समझते हैं उसे चाँद सितारों के ख़िलाफ़

    तुमने मज़हब को सियासी पैंतरों में रख दिया
    सर पे' रखने वाली शै को ठोकरों में रख दिया

    वाह सारे शेर असरदार है 'ख्यालो के फूल ' किताब से
    किताब की जानकारी का शुक्रिया।

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  5. हलाहल बांटने वालो, इसे तो पी चुका हूँ मैं
    मुझे वो चीज़ दी जाय जिसे पीना असंभव हो

    बताओ क्या इसी को हार्दिक अनुबंध कहते हैं
    इधर आंसू पियें जाएँ उधर मस्ती का अनुभव हो

    'सनेही' ज़िन्दगी के ज़हर को रख दो ठिकाने से
    कि मुमकिन है इसी से एक दिन अमृत का उदभव हो

    गज़ब के शायर से रु-ब-रु कराया है ………हर शेर दिल को छू रहा है ………हार्दिक आभार

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  6. खूब हो तुम भी 'सनेही' गुलमुहर के शहर में
    लिख रहे हो गीत देहातों में सरसों पक गयी

    वाह.....
    आभार इस परिचय के लिए..

    सादर
    अनु

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  7. बहुत ही सुन्दर रचनायें..

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  8. प्रभावित किया शेरों ने ...

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  9. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २ १ / ५ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।

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  10. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन भारत के इस निर्माण मे हक़ है किसका - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  11. खूब हैं लोग जो शोलों को हवा देते हैं
    और आवाज़ उठाते हैं शरारों के ख़िलाफ़ waah....

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  12. Received on e-mail:-


    Sadar namaste neeraj Uncle

    'सनेही' ज़िन्दगी के ज़हर को रख दो ठिकाने से
    कि मुमकिन है इसी से एक दिन अमृत का उदभव हो

    पत्थरों से खेलने वालों को होश आया कि जब
    वक्त ने उनको भी शीशे के घरों में रख दिया

    कोई जुगनू जो चमकता है चमकने दें उसे
    क्यूँ समझते हैं उसे चाँद सितारों के ख़िलाफ़

    मेरी कुटिया को हिकारत की नज़र से देखा
    वर्ना मैं कब था फ़लक बोस मीनारों के ख़िलाफ़
    फ़लकबोस: गगन चुम्बी

    In asharaon ka matlab shaayad kuchh jyada samjh aaya mujhe.. aur kareeb se lage..
    Shukriya.. aabhar.. sadhuwaad..

    Aapaka Vishal

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  13. प्रणाम बड़े भाई, दौनों हाथों से पुण्य लूट रहे हैं। ईश्वर आप को दीर्घायु प्रदान करें।

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  14. मेयार सनेही साहब से उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से शानदार परिचय के लिए बहुत आभार ...सादर

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  15. सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति शुभकामनायें.

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  16. हर बार आपकी पोस्‍ट पढ़कर लगता है अभी ग़ज़ल कहना सीखने में बहुत कुछ बाकी है;इस बार भी।

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  17. कहती है ज़िन्दगी कि मुझे अम्न चाहिए
    ओ' वक्त कह रहा है मुझे इन्कलाब दो

    मेरी कुटिया को हिकारत की नज़र से देखा
    वर्ना मैं कब था फ़लक बोस मीनारों के ख़िलाफ़

    बहुत ख़ूबसूरत अश’आर पढ़वाए हैं नीरज भैया आप ने शायर के साथ साथ आप को मुबारकबाद देना चाह्ती हूं आप की कर्मठता के लिये

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  18. नीरज जी, एक नई पुस्तक और वह भी मेयार साहब की पुस्तक की चर्चा के लिए आप को साधुवाद। मयार साहब की रचनाएं आप सभी पाठक मेरे ब्लाग http://geetghazalkavita.blogspot.in/2009/05/blog-post.html पर भी देख सकते हैं और youtube पर https://www.youtube.com/watch?v=GRRKD4-fzMA देख सकते हैं....

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  19. तुमने मज़हब को सियासी पैंतरों में रख दिया
    सर पे' रखने वाली शै को ठोकरों में रख दिया

    पत्थरों से खेलने वालों को होश आया कि जब
    वक्त ने उनको भी शीशे के घरों में रख दिया

    लूट कुछ ऐसी मची है आजकल इस देश में
    रोटियों को ज्यूँ किसी ने बंदरों में रख दिया

    वास्तव में स्नेहीजी ने देश के हालात को बयां कर दिया है,इस लिए वे जन कवि कहे जाने चाहिए.

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  20. मेयार साहब का वीडियो यहाँ लगान के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद...

    @मेरी बेटी शाम्भवी का कविता-पाठ

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  21. वाह वाह बहुत उम्‍दा शायरी करते हैं मेयार साहब

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  22. जो मानते हैं आज की ग़ज़लों को बेअसर
    पढने के वास्ते उन्हें मेरी किताब दो ।

    बिलकुल सही फरमाया सनेही साहब ने । बहुत उम्दा पुस्तक परिचय ।

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  23. वाह। जवाब नहीं।

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे