हो खफा हमसे वो रोते जा रहे हैं
और हम रुमाल होते जा रहे हैं
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
पत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से
आईने पहचान खोते जा रहे हैं
कब तलक दें फूल उनको ये बताओ
जो हमें कांटे चुभोते जा रहे हैं
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
है यकीं इक दिन यहीं गुलशन बनेगा
बीज हम बंज़र में बोते जा रहे हैं
पास मत आना हमारे, कह रहे जो
आँख से "नीरज" वो न्योते जा रहे हैं
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
ReplyDeleteकब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
वाह बड़ी ही सहज और आम बोलचाल की भाषा में कही गई ग़ज़ल
बहुत ख़ूब !!!
एक शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई.
ReplyDelete'नीम के ये पेड़ ....' तो हासिले ग़ज़ल
शेर है.
अच्छी रचना...अंतिम पंक्तियाँ तो बहुत ही अच्छी लगीं.
ReplyDeleteबेहतरीन ...
ReplyDeleteमेरा उत्तर >>>
हम नहीं सुधरे हमे मालूम कब था
नीम मीठे आम होते जा रहे हैं..।
साभार
विजय
bahut sundar abhivyakti .
ReplyDeleteपत्थरों से दोस्ती कर ली है जब से
ReplyDeleteआईने पहचान खोते जा रहे हैं
क्या बात है वाह वाह बहोत अच्छा शेर है वाह
बेहतरीन गजल...
ReplyDeleteअति उत्तम...
:-)
hamesha rumal hona hausle ka kam hai.....Khubsurat gajal.....
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ReplyDeleteTejendra Sharma: नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं... (Rishton kee defination)
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ReplyDeletePrakash Khatri: नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं..waah.
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ReplyDeletePramod Kumar: achchi gajal......
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ReplyDeleteAnand Kumar Mishra:: Lajabaab....
Jabab...wakayee Nahin
Saral Bhasha......Saumay Andaaz
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं ........... बहुत ख़ूब भाई जी और बिलोते वाला भी ज़बरदस्त शेर है।
शानदार, एक से बढके एक.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत खूब नीरज जी... बड़े दिन बाद आपकी कोई ग़ज़ल पढ़ने को मिली।
ReplyDeleteआमंत्रण खुला था सो आया और मुग्ध हो गया.
ReplyDeleteसबने नीम और आम वाले शेर पर कुछ न कुछ कहा है. मुझे भी अच्छा लगा.
पानी बिलोने वाला शेर अपनी अलग तासीर रखता है.
आपकी लेखिनी का अपना अंदाज़ है जो गठा हुआ है.
सादर
बहुत खूब
ReplyDeleteनीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
wah!
नीरज जी!आपकी निष्ठा असंदिग्ध है फल जरूर देगी विश्वास रखिये!
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब
ReplyDeleteआपने प्रश्न उइाया है तो हुजूर खार सारे खत्म न हो जायें तब तक, फूल देते जाईये और परिणाम देखें।
रुमाल और नीम के पेड़ - सबसे अच्छे :)
ReplyDeleteनीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं.... gazab
...
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteनीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
आदरणीय नीरज गोस्वामी जी ,
नमस्कार ,
बहुत सुंदर लिखा है , ह्रदय को छूने वाली बाते है,, और सच भी है, आभार
आपकी यह रचना कल मंगलवार (04 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण के "विशेष रचना कोना" पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteनीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
वाह !!! बहुत सुंदर गजल के लिए बधाई नीरज जी ,,
recent post : ऐसी गजल गाता नही,
Recd on e-mail:-
ReplyDeletebhai neeraj ji
ati sunder rachan hai
badhai ho,
prof kuldip salil ji ki kitab "dhoop ke saye mein"" ki samiksha kab kar rahen hain
kabhi delhi ayen to milen
saadar-
om sapra, delhi-
98181809032
बड़ी सहजता के साथ बेहतरीन ग़ज़लें लिखने में महारत हासिल है आपको। सारे शेर एक से बढ़कर एक।
ReplyDeleteहमारे समय की बेहतरीन रिपोर्टिंग हैं आपकी गज़लें।
पास मत आना हमारे, कह रहे जो
ReplyDeleteआँख से "नीरज" वो न्योते जा रहे हैं
क्या बात है ! खूबसूरत !
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteVia Facebook:-
ReplyDeleteAkash Lalwani Jain:: lajawaab
हो खफा हमसे वो रोते जा रहे हैं
ReplyDeleteऔर हम रुमाल होते जा रहे हैं
नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
सोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं
रहनुमा मक्खन का वादा करके देखो
कब से पानी ही बिलोते जा रहे हैं
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baDhiyaa
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नीम के ये पेड़ इक दिन आम देंगे
ReplyDeleteसोच कर रिश्तों को ढोते जा रहे हैं ।
क्या कमाल का शेर है वैसे तो पूरी गज़ल शानदार है ।
बचपन भी याद आ गया जब निबौरियों को आम बना कर ढक्कनों की तराजू में तोल कर बेचा करते थे और इमली के बीजों के पैसे पाकर खुश होते थे ।
From Facebook:-
ReplyDeletePravin Naik:: nice awesoom.............
Via Facebook::
ReplyDeleteAmitabh Meet :: बहुत ख़ूब सर जी ! लाजवाब ग़ज़ल !
आपने लिखा....हमने पढ़ा
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें;
इसलिए कल 08/06/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
धन्यवाद!
बहुत सुन्दर गहरे भाव
ReplyDeleteVia mail:-
ReplyDeleteआपको रूमाल क्या चादर मिलेगी
क्यूँ बेचारे को भिगोते जा रहे हैं
Sarv Jeet "Sarv"
Via e-mail:-
ReplyDeleteजब कभी इतिहास लिखा जायेगा
नीरज कवि को याद रखा जायेगा
दिल से
चाँद शुक्ला हदियाबादी
हमेशा की तरह ग़जल तो शानदार है ही। इसी काफ़िए में एक मौजूँ शेर सटाता हूँ :
ReplyDeleteआडवाणी जी हुए इतिहास फिर भी
जिद में किश्ती को डुबोते जा रहे हैं
है यकीं इक दिन यहीं गुलशन बनेगा
ReplyDeleteबीज हम बंज़र में बोते जा रहे हैं
उम्मीद जगी रहनी चाहिये.
बेहतरीन भाव लिये सुंदर गज़ल.
vehad sunder surili rachna ... LAZBAB
ReplyDeleteहर शेर शानदार। कितनी सरलता है.
ReplyDeleteक्या बात है
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