बर्फ के घर में ठिठुरते आदमी के ज़ेहन में
एक टुकड़ा धूप का अहसास रखती है ग़ज़ल
हाथ रखते ही समय के नब्ज़ पर हमको लगा
एक मुर्दा जिस्म में कुछ सांस रखती है ग़ज़ल
द्रौपदी के चीर हरने पर सभासद मौन हैं
न्याय पर कुछ प्रश्न चिन्ह सायास रखती है ग़ज़ल
ग़ज़ल को नए ढंग से परिभाषित करने वाले हमारी " किताबों की दुनिया " श्रृंखला के आज शायर हैं जनाब "प्रेमकिरण" साहब. शायद आपने ये नाम पहले न सुना हो, कमसे कम मैंने तो नहीं ही सुना था. भला हो मेरे शायर मित्र जनाब घायल साहब का, जिनकी किताब "लपटों के दरमियाँ " का जिक्र हम इसी श्रृंखला में कर चुके हैं, जिन्होंने सबसे पहले मुझे इन के बारे में बताया. नए शायरों को पढना एक नए अनुभव से गुजरने जैसा होता है. एक अपरिचित क्षेत्र की यात्रा करने जैसा. आप को पता नहीं होता के रास्ते में कैसे मंज़र आयेंगे. पूरी यात्रा में आपकी उत्सुकता लगातार बनी रहती है. "प्रेमकिरण" साहब की किताब " आग चख कर लीजिये" पढ़ते हुए मुझे जो सुखद अनुभव हुए, उन्हें ही मैं आज आप सब के साथ बाँट रहा हूँ.
गोद में लेना चाहें तो वो गोद से फिसली जाय
मेरी नन्हीं बिटिया जैसी चंचल चंचल धूप
दामन-दामन ठंडक जागी, नुक्कड़ नुक्कड़ आग
सर्द हवाएं, जाड़े के दिन ,शीतल शीतल धूप
खेत बेच कर आखिर उसने दिया गाँव को 'भात'
चावल चावल क़र्ज़ में ठिठुरा पत्तल पत्तल धूप
“चंचल चंचल” , “शीतल शीतल” और “पत्तल पत्तल” जैसे काफिये के साथ "धूप " जैसा रदीफ़ आप को कहाँ रोज़ रोज़ पढने को मिलता है ? ये रचनात्मक मौलिकता ही हर शायर को बाकियों से अलग करती है. "प्रेमकिरन" जी की मौलिकता उनके ग़ज़ल संग्रह के शीर्षक से लेकर उनके हर शेर में देखी जा सकती है.
दिल है पिन कुशन- सा सीने में
हर खलिश आलपिन होती है
हम पे आंसू गिराने वालों के
हाथ में ग्लिसरीन होती है
कीमते अश्क जो समझती है
नम वही आस्तीन होती है
आपा धापी भरे आजकल के जटिल जीवल में जहाँ भौतिक सुखों के पीछे भागता व्यक्ति अपने लिए ही समय नहीं निकाल पाता ऐसे में उस से शायरी की किताब पढने की उम्मीद रखना नीम के पेड़ से आम तोड़ने की कल्पना करने जैसा है , किन्तु फिर भी साहब रेगिस्तान में नखलिस्तान जैसे कुछ लोग हैं जो ये कारनामा करते हैं और जिंदगी में ताजगी बनाये रखते हैं. ऐसे लोगों के कारण ही शायरी आज तक जिंदा है. जिंदा है क्यूँ की जीवन में जटिलताएं जितनी बढती जा रही हैं शायरी के तेवर उतने ही तीखे होते जा रहे हैं. शायरी इंसान को जटिलताओं से डर कर भागना नहीं सिखाती बल्कि उस से सीधी मुठभेड़ के बाद जीतने के हुनर सिखाती है.
मंजिलों की आस रखिये और चलिए
भूल का एहसास रखिये और चलिए
गर मुसीबत काई की सूरत बिछी हो
पाँव को हस्सास रखिये और चलिए
आँधियों का साथ पतझड़ दे रहा है
ढूंढ कर मधुमास रखिये और चलिए
15 जनवरी 1953 को पैदा हुए प्रेम जी की ग़ज़लें अनेक ग़ज़ल एवम कविता संग्रहों के अलावा देश की हिंदी उर्दू की बहुत सी पत्र- पत्रिकाओं में छप चुकी हैं. प्रेम जी ने अनेकों अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में शिरकत और आकाशवाणी दूरदर्शन के माध्यम से अपने चाहने वालों का दायरा बढाया है. प्रेम जी को डा.मुरलीधर श्रीवास्तव 'शेखर' और दुष्यंत कुमार शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया है. इन दिनों आप वाणी प्रकाशन, पटना शाखा में कर रत हैं .
अपने युग के आदमी का बंधु वर्णन क्या करें
आवरण उठता नहीं है रूप दर्शन क्या करें
कोई सपना ही जिन्होंने उम्र भर देखा न हो
वो समय के नाग-फन पर काल-नर्तन क्या करें
दूसरों पर उँगलियाँ ही हम उठाते रह गए
इससे फुर्सत ही नहीं हम आत्म-मंथन क्या करें
हिंदी के शब्दों को ग़ज़लों में ढालने का हुनर बहुत कम देखने को मिला है जबकि प्रेम जी की इस किताब में वो उर्दू के शब्दों के संग बहुत ख़ूबसूरती से ताल मेल बिठाते नज़र आये हैं . प्रेम जी की ग़ज़लें गंगा जमुनी तहजीब का जीता जागता नमूना हैं. उर्दू के दीवानों को उनकी ग़ज़लों में उर्दू ग़ज़लों वाली रवायती खुशबू मिलेगी और हिंदी पाठकों को उनकी ग़ज़लों में दुष्यंत जी वाली हिंदी की महक. शब्द हिंदी के हों या उर्दू के उन्हें बहुत सहजता से प्रेम जी ने अपनी ग़ज़लों में पिरोया है.ग़ज़ल प्रेमियों के लिए ये किताब संग्रहणीय है.
कितने शीशों की नज़ाकत का भरम खुल जाएगा
इस चमन के फूल को पत्थर न होने दीजिये
ज़िन्दगी के रास्ते में आग का दरिया भी है
ज़िन्दगी को मोम का पैकर न होने दीजिये
ज़हर जो शंकर बनाये आपको तो खाइए
वरना इक इंसान को विषधर न होने दीजिये
सस्ती लोकप्रियता से दूर ग़ज़ल के इस सच्चे साधक को अगर आप इन बेहद खूबसूरत अशआरों से भरी इस किताब के लिए मुबारकबाद देना चाहें तो अपना फोन या मोबाइल उठायें और उनसे 09334317153 नंबर मिला कर बात करें. किताब यूँ तो राजदीप प्रकाशन सी- 187 ज्वालापुरी, न.-4, नागलोई नई दिल्ली से खरीदी जा सकती है लेकिन प्रेम जी से बात कर के अगर कोई इसकी प्राप्ति का आसान रास्ता हो तो पता कर लें.
आखिर में प्रेम जी की एक ग़ज़ल के इन शेरों के साथ आपसे अगले शायर की किताब ढूँढने तक विदा लेते हैं:
चींटियाँ माना कि दिन में वो चुगाते हैं मगर
आँख में कुछ शर्म भी है कि नहीं ये तो पढो
आस्था को ठेस पहुंची तो लगे तुम चीखने
मंदिरों में धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो
तुम तो तीरंदाज़ बन कर खुश बहुत होंगे 'किरन'
तीर का कुछ धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो
जनाब "प्रेमकिरण" साहब. की पुस्तक " आग चख कर लीजिये" की जानकारी के लिये आभार,,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST,,,,काव्यान्जलि ...: ब्याह रचाने के लिये,,,,,
आग चख कर देखिये... वाकई इन गजलों में आग और आपकी समीक्षा में उसका तेज़... बढिया परिचय..
ReplyDeleteहाथ रखते ही समय के नब्ज़ पर हमको लगा
ReplyDeleteएक मुर्दा जिस्म में कुछ सांस रखती है ग़ज़ल... ग़ज़ल की इससे अधिक कोई व्याख्या क्या होगी .... इस चर्चा ने भी प्रभाव दिखा दिया
बहुत सीधी-सरल ग़ज़लें कहते हैं आपके आज के शायर... बिना मुश्किल उर्दू लफ्जों का सहारा लिए अगर बात दिल तक पहुंचे तो उससे बड़ी बात क्या हो सकती है, जैसे
ReplyDeleteज़हर जो शंकर बनाये आपको तो खाइए
वरना इक इंसान को विषधर न होने दीजिये...
एक अच्छे रचनाकार से परिचय कराने का शुक्रिया..
हाथ रखते ही समय के नब्ज़ पर हमको लगा
ReplyDeleteएक मुर्दा जिस्म में कुछ सांस रखती है ग़ज़ल
वाह ... बहुत खूब .. भावमय करते शब्दों के साथ आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आभार ।
बढ़िया समीक्षा.........
ReplyDeleteलाजवाब शेरों से सजी..........
बेहतरीन रचनाकार से परिचय कराने का शुक्रिया..
अनु
एक बार फिर अनमोल मोती खोजा है बहुत सुन्दर अन्दाज़ है अदायगी का………आभार
ReplyDeleteअपने युग के आदमी का बंधु वर्णन क्या करें
ReplyDeleteआवरण उठता नहीं है रूप दर्शन क्या करें
कितनी गहन बात लिखी है ...आज सच मे इंसान को पह्चानना कित्ना मुश्किल है ...!!
जनाब प्रेमकिरण जी को बधाई और आपका आभार नीरज जी ...!!
प्रेम किरण जी का हर शेर उनके अलग अंदाज़ का परिचय दे रहा है ... सामाजिक सरोकार लिए ... जीवन दर्शन की तरह ...
ReplyDeleteआपने बाखूबी शब्दों से चमत्कार किया है नीरज जी ... इतनी कमाल की समीक्षा की है की क्या बात है ...
जिस पुस्तक का शीर्षक इतना खूबसूरत है उसकी रचनाएँ तो खूबसूरत होंगी ही.
ReplyDeleteआभार आपका नीरज जी ! इतना सुन्दर परिचय कराने का.
प्रेमकिरण जी से मिलवाने का शुक्रिया
ReplyDeleteज़िन्दगी के रास्ते में आग का दरिया भी है
ReplyDeleteज़िन्दगी को मोम का पैकर न होने दीजिये.... वाह!
बेहद उम्दा शायर से परिचय...
सादर आभार.
ACHCHHEE PUSTAK SE PARICHAY KARWAANE
ReplyDeleteKE LIYE AAPKAA SHUKRIYA .
अपनी परिभाषाओं का मूर्त रूप हैं आपकी गजल..
ReplyDeleteआप को पढ़ा ही नहीं वीडियो भी देखा। तरन्नुम में आपको सुनना बहुत अच्छा लगा!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in
आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !
आपको पढ़ा तो कई बार है आज आपको वीडियो पर तरन्नुम में शेर कहते सुना तो बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग का link - www.sushilashivran.blogspot.in
आपका इंतज़ार है मेरे ब्लॉग पर !
तुम तो तीरंदाज़ बन कर खुश बहुत होंगे 'किरन'
ReplyDeleteतीर का कुछ धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो...
"प्रेमकिरण" साहब की किताब " आग चख कर लीजिये" जितना उम्दा नाम हैं उतने ही उम्दा शेरो से भरी पढ़ी हैं हर शेर में कुछ अजीब सी पकड हैं ..हिंदी शब्दों को ग़ज़ल में ढालने का काम बहुत गिने चुने शायर करते हैं ..वाकई में इन्हें हिंदी के दुसरे दुष्यंत कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ..उस पर नीरजजी आपकी समीक्षा हमेशा से बेहतरीन ....आपकी समीक्षा का तो हमेशा इन्तजार रहता हैं .....
दिल है पिन कुशन- सा सीने में
हर खलिश आलपिन होती है
हम पे आंसू गिराने वालों के
हाथ में ग्लिसरीन होती है
कीमते अश्क जो समझती है
नम वही आस्तीन होती है....
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ReplyDeleteहाथ रखते ही समय के नब्ज़ पर हमको लगा
एक मुर्दा जिस्म में कुछ सांस रखती है ग़ज़ल
द्रौपदी के चीर हरने पर सभासद मौन हैं
न्याय पर कुछ प्रश्न चिन्ह सायास रखती है ग़ज़ल
shri neeraj ji
namastey,
very gud write up by u, thanx and badhai,
especially above lines are very impressive,
again congrats,
today shri salil ji has gone to dalhousie and dharamshala (HP)
for a family trip and return by 17- 18 june, 12
regds,
-om sapra, delhi-9
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ReplyDeleteअच्छी पेशकश नीरज जी !
ग़ज़ल की तमाम नज़ाकतों और उसके कला पक्ष की ज़रूरतों का निर्वाह करते हुए ग़ज़ल कहना प्रेम किरण की पहचान है .प्रेम अपने आस पास के जीवन के सुखों दुखों को अपनी ग़ज़ल में ख़ूबसूरती से और आसान ज़बान में ढाल देते हैं .
प्रेम किरण का यह संकलन बहुत पहले प्रकाशित हुआ था . हाल ही में उनका नया संकलन " पिन कुशन " के नाम से वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है . यह संकलन ग़ज़ल प्रेमियों को अवश्य पढ़ना चाहिए ख़ास कर उन लोगों को ज़रूर पढ़ना चाहिए जो ग़ज़ल तो कहते हैं मगर उसकी बारीकियों का निर्वाह नहीं कर पाते मगर सीखने की जगह अपनी कमियों को "हिंदी ग़ज़ल" का नाम देकर भ्रम फैलाते हैं .
आलम खुरशीद
प्रस्तुत ग़ज़लें कह रही हैं कि प्रेमकिरण जी प्रयोगवादी हैं और साहस करते हैं नये प्रयोग प्रस्तुत करने का। इनके सृजन की मौलिकता स्वत:स्पष्ट है।
ReplyDeleteप्रेम किरण जी से परिचय का आभार...बहुत शानदार....
ReplyDeleteपहले शेर:
बर्फ के घर में ठिठुरते आदमी के ज़ेहन में
एक टुकड़ा धूप का अहसास है ग़ज़ल
-अहसास के बाद शायद टंकण में "रखती" शब्द छूट गया है क्या? बस. नजर पड़ी तो सोचा पूछ लूँ...
प्रभु आपकी पारखी नज़रों को सलाम...आप सही हैं...रखती शब्द छूट गया था...टंकण त्रुटी की और इशारा करने वाले हे जागरूक पाठक, मैं आपका तहे दिल से आभारी हूँ...
ReplyDeleteनीरज
पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाती बेहतरीन समीक्षा...
ReplyDeleteaapko bahut bahut dhnyvaad sir ki aapki badoulat ek nayaab shayar se
ReplyDeletemulakaat hui aue bahut hi bemisaal sher bhi padhne ko mile.
aap dwara kitaab ki samikxha bhi bahut bahut badhiya lagi
poonam
Msg received on face book:-
ReplyDeleteसरोज सिंह दिल है पिन कुशन- सा सीने में
हर खलिश आलपिन होती है,,,वाह जवाब नहीं !
निश्चित ही यह ग़ज़ल संग्रह जानदार होगी ..अवगत कराने का आभार नीरज जी एवं .प्रेम किरण जी को आग चख कर लीजिये "के लिए ढेरों बधाई
गर मुसीबत काई की सूरत बिछी हो
ReplyDeleteपाँव को हस्सास रखिये और चलिए
दूसरों पर उँगलियाँ ही हम उठाते रह गए
इससे फुर्सत ही नहीं हम आत्म-मंथन क्या करें ।
वाह वाह ।
प्रेम किरण जी से परिचय करवाने का आभार ।
बर्फ के घर में ठिठुरते आदमी के ज़ेहन में
ReplyDeleteएक टुकड़ा धूप का अहसास रखती है ग़ज़ल
वाकई इस बार तो आपने ऐसे गज़लकार से मिलाया है जिसे पढ़कर हैरानी होती हर शेर अपने में एक दास्ताँ...... ग़ज़ल को नए रंग ढंग बख्शने वाले इस शायर को हमारा नमन. जनाब "प्रेमकिरण" साहब की किताब " आग चख कर लीजिये" पढने की चाह तीव्र हो गयी है. आपकी लेखनी को भी सदर प्रणाम
Comment received on mail:--
ReplyDeleteप्रेमकिरण साहब की किताब " आग चख कर लीजिये" की समीक्षा
आपके अनूठे अंदाज़ में बहुत अच्छी लगी, यूं तो प्रेमकिरण साहब को फ़ोन
पर मुबारकबाद भी दे चुका हूँ एक बार फिर से हार्दिक बधाई...
"गोद में लेना चाहें तो वो गोद से फिसली जाय
मेरी नन्हीं बिटिया जैसी चंचल चंचल धूप"
वाह वाह...
"कितने शीशों की नज़ाकत का भरम खुल जाएगा
इस चमन के फूल को पत्थर न होने दीजिये"
क्या कहने...
"ज़िन्दगी के रास्ते में आग का दरिया भी है
ज़िन्दगी को मोम का पैकर न होने दीजिये"
जवाब नहीं.....
खूबसूरत अशआर पढ़वाने के लिए आपका सादर आभार.
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू, मुंबई-49.
पुस्तक की इतनी अच्छी व्याख्या की है आपने कि पूरी किताब पढ़ने की इच्छा हो रही है. जीवन के बहुत गहरे अर्थ को सरल शब्दों में कहा है...
ReplyDeleteखेत बेच कर आखिर उसने दिया गाँव को 'भात'
चावल चावल क़र्ज़ में ठिठुरा पत्तल पत्तल धूप
दूसरों पर उँगलियाँ ही हम उठाते रह गए
इससे फुर्सत ही नहीं हम आत्म-मंथन क्या करें
इस पुस्तक की सुन्दर समीक्षा के लिए बधाई.
वाकई प्रेमकिरण जी के शे'र एक अलग अंदाज़ के हैं॰इनकी शब्दावली भी टटका है...बहुत-बहुत बधाई॰
ReplyDeleteक्या खूब कहा है -
ReplyDeleteएक मुर्दा जिस्म में कुछ साँस रखती है गजल |
शायर प्रेम किरण जी को बहुत -बहुत बधाई |
इस नायाब पुस्तक की जानकारी के बहुत आभार, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
आस्था को ठेस पहुंची तो लगे तुम चीखने
ReplyDeleteमंदिरों में धर्म भी है कि नहीं ये तो पढो
कहाँ-कहाँ से बिंब निकाल लेते हैं प्रेमकिरण जी. कितनी भी दाद दी जाय, कम ही होगी.
बहुत-बहुत सुन्दर!
लीजिये...प्रेम किरण साब से तो हम बाकायदा मिल चुके हैं| हमारे ससुराल के हैं और छुट्टियों में जब भी घर जाता हूँ और वाणी के दुकान पर टपकता हूँ किताब खरीदने तो साहब से मुलाक़ात हो जाती है|
ReplyDeleteएक दो बार मुलाक़ात हो चुकी है, इस बार आपके पोस्ट के मार्फत खुल के मिलूंगा उनसे...शुक्रिया नीरज जी इस पोस्ट तक लाने के लिए...नेट की स्पीड और जगह की व्यस्तता रोके रखती है ब्लौगों पे जाने में |