ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता
नाम रब का अहम् नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की
सर सज़ा में कलम नहीं होता
दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार कोई नियम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
इरम : स्वर्ग
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
क्या बात है !!
हमेशा की तरह ख़ूबसूरत अश’आर से सजी हुई मुकम्मल ग़ज़ल पेश की है आप ने
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार कोई नियम नहीं होता
बहुत ख़ूब !!
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
ReplyDeleteप्यार है, ये भरम नहीं होता
वाह,
ओर दूसरे
चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता
एक से बड कर एक ...
साधुवाद.
दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
ReplyDeleteयार कोई नियम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
Lazbab , kya baat hein sir
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
ReplyDeleteप्यार है, ये भरम नहीं होता
चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होत,,,
वाह बहुत खूब नीरज जी,बधाई,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
ReplyDeleteऔर कुछ भी इरम नहीं होता
इरम : स्वर्ग
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
वाह बहुत खूब ... सुंदर गज़ल
धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
ReplyDeleteचींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |
खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |
पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||
बहुत सुन्दर गज़ल...
ReplyDeleteआप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता
बहुत प्यारे शेर....
सादर
अनु
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
ज़िन्दगी की सच्चाइयों को करीने से उकेरने मे महारत हासिल है आपको…………शानदार गज़ल हर शेर मन को छू गया।
ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता
ReplyDeleteनाम रब का अहम् नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
शब्दश: सच कहा ... बहुत खूब उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता...
वाह! वाह! सभी शेर जबरदस्त... उम्दा गजल...
सादर बधाई स्वीकारें.
बहुत खूब!
ReplyDeleteतुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
बहुत ही उम्दा...सोलह आने सच्ची बात.
ROTIYON KE SIVAA GAREEBON MEIN
ReplyDeleteAUR KUCHH BHEE IRAM NAHIN HOTA
CHEEKHTA HAI VAHEE SADAA ` NEERAJ `
JISKEE BAATON MEIN DAM NAHIN HOTA
BAHUT KHOOB ! BADHAAEE HO NEERAJ JI .
चीखता है वही सदा " नीरज"
ReplyDeleteजिसकी बातों में दम नहीं होता
सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
ReplyDeleteप्यार है, ये भरम नहीं होता
बहुत खूब ... हमेशा की तरह छा गए नीरज जी ... इतने प्यारे अशआर की बस क्या कहूं ... कमाल कमाल कमाल ...
अब के रिश्तों में हम नहीं होता :)
ReplyDeleteMsg Received on mail:-
ReplyDeleteनीरज साहब,
वाह वाह...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...तबीयत
खुश हो गयी...अच्छे अशआर..मुकम्मल ग़ज़ल...
क्या कहने...
"तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता"
बहुत खूब...
"आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता"
वाह वाह...
"चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता"
खूबसूरत अशआर पढ़वाने के लिए आपका आभार.
दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.
सादर,
सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
जुहू , मुंबई - 49.
दूसरा और आखिरी शे'र ग़ज़ब !
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल .
लाजवाब, खूबसूरत ग़ज़ल। गज़ब है भाई इतनी व्यस्तता में ऐसे शेर कह लेना।
ReplyDeleteआप ऐसी ग़ज़ल न कहते गर
आपका दिल नरम नहीं होता।
आपकी पोस्ट को हमने आज की पोस्ट चर्चा का एक हिस्सा बनाया है , कुछ आपकी पढी , कुछ अपनी कही , पाठकों तक इसे पहुंचाने का ये एक प्रयास भर है , आइए आप भी देखिए और पहुंचिए कुछ और खूबसूरत पोस्टों तक , टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें
ReplyDeleteनीरज जी
ReplyDeleteकितनी खूबसूरत गजल है एक से बढ़कर एक शेर
जिंदगी मैं जो गम नहीं होता
नाम रब का अहम् नहीं होता
दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार कोई नियम नहीं होता.....वाह सही ही तो है
और... आप मुड कर न देखते तो हमे
प्यार है , ये भरम नहीं होता
बेहतरीन ...
पारुल
Msg received on mail:-
ReplyDeleteneeraj ji
namaskar
umda gazal hai
thanks
sajeevan mayank
09425043627
वाह, क्या बात कही है आपने..
ReplyDeleteदोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
ReplyDeleteयार कोई नियम नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
और मक्ता क्या खूब गज़ल है
बधाई।
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
इसके बाद अब क्या कह जाए , इतना शानदार शेर सिर्फ आप ही कह सकते हो हुज़ूर.
बधाई हो .पूरी गज़ल के लिये .
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
bahut khoob sir
ummda
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
शायद शायरी इसी का नाम है जहाँ मै- तुम कुछ नहीं सब कुछ हम हैं. इस शेर के मार्फ़त अच्छा तंज कसा है आपने नीरज जी. बधाई
आप मुड़ कर न देखते तो हमें
ReplyDeleteप्यार है, ये भरम नहीं होता
वाह ...
भरम है या हकीकत पता नहीं
चीखता है वही सदा " नीरज"
ReplyDeleteजिसकी बातों में दम नहीं होता
बेहद खूबसूरत गज़ल हर एक शेर उम्दा ।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteतुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
waah...bahut khub....
Msg received on mail:-
ReplyDeleteदोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार ! कोई नियम नहीं होता
अच्छा और सच्चा शेर नीरज जी ! बहुत ख़ूब !
आलम खुरशीद
बहुत ही प्यारी गज़ल है भाई जी, एकदम गमकती हुई|
ReplyDeleteतुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
हमेशा की तरह बहुत सुन्दर ग़ज़ल. तमाम सच्चाई लिए हुए.
शानदार ग़ज़ल....
ReplyDeleteआप मुड़कर न देखते तो हमें
ReplyDeleteप्यार है, ये भरम नहीं होता
वाह नीरज जी ! वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही जानदार बन पड़ी है लेकिन यह शेर तो कमाल का है . अकेला ही काफी है पूरी ग़ज़ल को मुक़म्मल करने के लिए . मेरी बधाई स्वीकारें .
त्रिमोहन 'तरल', आगरा
Comment received on fb: from ANKIT JOSHI:
ReplyDelete"तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं".............वाह वा
चीखता है वही सदा " नीरज"
ReplyDeleteजिसकी बातों में दम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
शानदार ग़ज़ल !!
सभी शे'र एक से बढ़कर एक !!!
बहुत ख़ूब नीरज भाई, शानदार गज़ल.
ReplyDelete" मुड के न देखती जो 'नीरज' को,
तो ये किस्सा रकम नहीं होता ! "
http://aatm-manthan.com
क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की
ReplyDeleteसर सज़ा में कलम नहीं होता
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता
रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
कमाल के शेर
तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
ReplyDeleteअब के रिश्तों में हम नहीं होता
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल .........
सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteMsg received on mail from Sh."Mukesh Tyagi":-
ReplyDeleteVery nice!!
Bahut Khoob...
ReplyDeleteनमस्कार सर,
ReplyDelete"...अब के रिश्तों में हम नहीं होता", वाह क्या खूब शेर कहा है.
"आप मुड़ कर न देखते तो हमें..............", उफ्फ्फ्फ़ ............कातिलाना शेर है.
ReplyDeleteचीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता
बहुत खूब लिखा है !
वो इतना बेदम कर चुके हैं
चीखने का दम बचा ही नहीं !