Monday, June 25, 2012

आप मुड़ कर न देखते



ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता
नाम रब का अहम् नहीं होता

तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
अब के रिश्तों में हम नहीं होता

क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की
सर सज़ा में कलम नहीं होता

दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
यार कोई नियम नहीं होता

रोटियों के सिवा ग़रीबों का
और कुछ भी इरम नहीं होता
इरम : स्वर्ग

आप मुड़ कर न देखते तो हमें
प्यार है, ये भरम नहीं होता

चीखता है वही सदा " नीरज"
जिसकी बातों में दम नहीं होता

47 comments:

  1. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    क्या बात है !!
    हमेशा की तरह ख़ूबसूरत अश’आर से सजी हुई मुकम्मल ग़ज़ल पेश की है आप ने

    आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
    यार कोई नियम नहीं होता

    बहुत ख़ूब !!

    ReplyDelete
  2. आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता


    वाह,

    ओर दूसरे

    चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता

    एक से बड कर एक ...
    साधुवाद.

    ReplyDelete
  3. दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
    यार कोई नियम नहीं होता

    रोटियों के सिवा ग़रीबों का
    और कुछ भी इरम नहीं होता


    आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता


    Lazbab , kya baat hein sir

    ReplyDelete
  4. आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होत,,,

    वाह बहुत खूब नीरज जी,बधाई,,,,

    RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

    ReplyDelete
  5. रोटियों के सिवा ग़रीबों का
    और कुछ भी इरम नहीं होता
    इरम : स्वर्ग

    आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    वाह बहुत खूब ... सुंदर गज़ल

    ReplyDelete
  6. धीरे से अपनी कहे, नीरज रविकर-मित्र |
    चींखे-चिल्लायें नहीं, खींचे रुचिकर चित्र |

    खींचे रुचिकर चित्र, पलट कर ताके कोई |
    हालत होय विचित्र, राम-जी सिय की सोई |

    पर मैं का मद आज, कलेजा हम का चीरे |
    कभी रहा था नाज, भूलता धीरे धीरे ||

    ReplyDelete
  7. बहुत सुन्दर गज़ल...

    आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    बहुत प्यारे शेर....

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  8. बहुत ही बढ़िया


    सादर

    ReplyDelete
  9. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    ज़िन्दगी की सच्चाइयों को करीने से उकेरने मे महारत हासिल है आपको…………शानदार गज़ल हर शेर मन को छू गया।

    ReplyDelete
  10. ज़िन्दगी में जो ग़म नहीं होता
    नाम रब का अहम् नहीं होता

    तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता
    शब्‍दश: सच कहा ... बहुत खूब उत्‍कृष्‍ट लेखन के लिए आभार

    ReplyDelete
  11. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता...

    वाह! वाह! सभी शेर जबरदस्त... उम्दा गजल...
    सादर बधाई स्वीकारें.

    ReplyDelete
  12. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता
    बहुत ही उम्दा...सोलह आने सच्ची बात.

    ReplyDelete
  13. ROTIYON KE SIVAA GAREEBON MEIN
    AUR KUCHH BHEE IRAM NAHIN HOTA

    CHEEKHTA HAI VAHEE SADAA ` NEERAJ `
    JISKEE BAATON MEIN DAM NAHIN HOTA

    BAHUT KHOOB ! BADHAAEE HO NEERAJ JI .

    ReplyDelete
  14. चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता

    सुन्दर और शानदार प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  15. आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    बहुत खूब ... हमेशा की तरह छा गए नीरज जी ... इतने प्यारे अशआर की बस क्या कहूं ... कमाल कमाल कमाल ...

    ReplyDelete
  16. अब के रिश्तों में हम नहीं होता :)

    ReplyDelete
  17. Msg Received on mail:-

    नीरज साहब,
    वाह वाह...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है...तबीयत
    खुश हो गयी...अच्छे अशआर..मुकम्मल ग़ज़ल...
    क्या कहने...
    "तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता"
    बहुत खूब...
    "आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता"
    वाह वाह...
    "चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता"
    खूबसूरत अशआर पढ़वाने के लिए आपका आभार.
    दिली मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं.
    सादर,
    सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
    जुहू , मुंबई - 49.

    ReplyDelete
  18. दूसरा और आखिरी शे'र ग़ज़ब !
    बढ़िया ग़ज़ल .

    ReplyDelete
  19. लाजवाब, खूबसूरत ग़ज़ल। गज़ब है भाई इतनी व्‍यस्‍तता में ऐसे शेर कह लेना।

    आप ऐसी ग़ज़ल न कहते गर
    आपका दिल नरम नहीं होता।

    ReplyDelete
  20. नीरज जी
    कितनी खूबसूरत गजल है एक से बढ़कर एक शेर
    जिंदगी मैं जो गम नहीं होता
    नाम रब का अहम् नहीं होता

    दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
    यार कोई नियम नहीं होता.....वाह सही ही तो है
    और... आप मुड कर न देखते तो हमे
    प्यार है , ये भरम नहीं होता
    बेहतरीन ...

    पारुल

    ReplyDelete
  21. Msg received on mail:-

    neeraj ji

    namaskar
    umda gazal hai
    thanks
    sajeevan mayank
    09425043627

    ReplyDelete
  22. वाह, क्या बात कही है आपने..

    ReplyDelete
  23. दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
    यार कोई नियम नहीं होता
    तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता
    और मक्ता क्या खूब गज़ल है
    बधाई।

    ReplyDelete
  24. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    इसके बाद अब क्या कह जाए , इतना शानदार शेर सिर्फ आप ही कह सकते हो हुज़ूर.
    बधाई हो .पूरी गज़ल के लिये .

    ReplyDelete
  25. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता
    bahut khoob sir
    ummda

    ReplyDelete
  26. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    शायद शायरी इसी का नाम है जहाँ मै- तुम कुछ नहीं सब कुछ हम हैं. इस शेर के मार्फ़त अच्छा तंज कसा है आपने नीरज जी. बधाई

    ReplyDelete
  27. आप मुड़ कर न देखते तो हमें
    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    वाह ...
    भरम है या हकीकत पता नहीं

    ReplyDelete
  28. चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता

    बेहद खूबसूरत गज़ल हर एक शेर उम्दा ।

    ReplyDelete
  29. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता
    waah...bahut khub....

    ReplyDelete
  30. Msg received on mail:-


    दोस्ती हो के दुश्मनी इसमें
    यार ! कोई नियम नहीं होता
    अच्छा और सच्चा शेर नीरज जी ! बहुत ख़ूब !

    आलम खुरशीद

    ReplyDelete
  31. बहुत ही प्यारी गज़ल है भाई जी, एकदम गमकती हुई|

    ReplyDelete
  32. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    रोटियों के सिवा ग़रीबों का
    और कुछ भी इरम नहीं होता

    हमेशा की तरह बहुत सुन्दर ग़ज़ल. तमाम सच्चाई लिए हुए.

    ReplyDelete
  33. आप मुड़कर न देखते तो हमें

    प्यार है, ये भरम नहीं होता

    वाह नीरज जी ! वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही जानदार बन पड़ी है लेकिन यह शेर तो कमाल का है . अकेला ही काफी है पूरी ग़ज़ल को मुक़म्मल करने के लिए . मेरी बधाई स्वीकारें .

    त्रिमोहन 'तरल', आगरा

    ReplyDelete
  34. Comment received on fb: from ANKIT JOSHI:

    "तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं".............वाह वा

    ReplyDelete
  35. चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता

    रोटियों के सिवा ग़रीबों का
    और कुछ भी इरम नहीं होता

    शानदार ग़ज़ल !!
    सभी शे'र एक से बढ़कर एक !!!

    ReplyDelete
  36. बहुत ख़ूब नीरज भाई, शानदार गज़ल.

    " मुड के न देखती जो 'नीरज' को,
    तो ये किस्सा रकम नहीं होता ! "

    http://aatm-manthan.com

    ReplyDelete
  37. क़त्ल अब खेल बन गया क्यूँ की
    सर सज़ा में कलम नहीं होता

    तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    रोटियों के सिवा ग़रीबों का
    और कुछ भी इरम नहीं होता

    कमाल के शेर

    ReplyDelete
  38. तुझ में बस तू बचा है मुझमें मैं
    अब के रिश्तों में हम नहीं होता

    बहुत खुबसूरत ग़ज़ल .........

    ReplyDelete
  39. सुन्दर ग़ज़ल

    ReplyDelete
  40. Msg received on mail from Sh."Mukesh Tyagi":-

    Very nice!!

    ReplyDelete
  41. नमस्कार सर,
    "...अब के रिश्तों में हम नहीं होता", वाह क्या खूब शेर कहा है.
    "आप मुड़ कर न देखते तो हमें..............", उफ्फ्फ्फ़ ............कातिलाना शेर है.

    ReplyDelete

  42. चीखता है वही सदा " नीरज"
    जिसकी बातों में दम नहीं होता
    बहुत खूब लिखा है !

    वो इतना बेदम कर चुके हैं
    चीखने का दम बचा ही नहीं !

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे