ग़र तुझसे मुझे इतनी मोहब्बत नहीं होती
यूँ रंज उठाने में भी लज्ज़त नहीं होती
ये दिल है कि जो टूट गया, टूट गया बस
शीशे की किसी तौर मरम्मत नहीं होती
फिर कौन तुझे मानता यकता-ऐ-ज़माना
अशआर में तेरे जो ये जिद्दत नहीं होती
यकता-ऐ-ज़माना=संसार में अद्वितीय, जिद्दत =अनोखापन
"अशआर में तेरे जो ये जिद्दत नहीं होती"… वाह...देखिये कितनी सही और गहरी बात की है. दुनिया में जो सब कर रहे हैं उसी को किये जाने में भला क्या लुत्फ़ है ? अपनी पहचान बनाने के लिए आपको कुछ अलग करना ही पड़ता है, अगर नहीं करेंगे तो आप भीड़ में गुम हो जायेंगे. हमारे आज के शायर जनाब " डा. महताब हैदर नक़वी" जिनकी किताब "हर तस्वीर अधूरी " का हम जिक्र करने जा रहे हैं, भीड़ में होते हुए भी भीड़ से अलग हैं.
अब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
अब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़
पहले तो थीं हर एक से शिकवे-शिकायतें
अब क्यूँ रहेगा कोई गिला जब किया है इश्क़
वाइज़ को एतराज़ अगर है तो होने दो
पहले नहीं किया था मगर अब किया है इश्क़
समन्दरों के किनारों की रेत पर अब लोग
बनायें और कोई चीज़ भी घरों के सिवा
परिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा
हमारी नस्ल ने ऐसे में आँख खोली है
जहाँ पे कुछ नहीं बेरंग मंज़रों के सिवा
मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है
तू नहीं है तो फिर ये बता कौन है
सब हिकायत-ऐ-माज़ी भुला दी गयी
तेरे ग़म को मगर भूलता कौन है
'हिकायत-ऐ-माज़ी= अतीत की कथाएं
वो भी खामोश है, मैं भी खामोश हूँ
दरमियाँ आज फिर आ गया कौन है
समकालीन उर्दू शायरी के आठवें दशक में उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज करवाने में जावेद अख्तर ,निदा फ़ाज़ली, जुबैर रिज़वी, अमीन अशरफ, शीन काफ़ निजाम, तरन्नुम रियाज़, आलम खुर्शीद आदि के साथ जनाब महताब हैदर नक़वी साहब का नाम भी लिया जाता है. उनकी शायरी में हमारे आज की समस्याएं परेशानियाँ सुख दुःख झलकते हैं, इसलिए उनकी शायरी हमें अपनी सी लगती है. वो आज के बिगड़ते हालत को देख चिंतित भी हैं तो कहीं उसी में उन्हें उम्मीद की किरण भी नज़र आती है.
अपनी वहशत का कुछ अंदाज़ा लगाया जाए
फिर किसी शहर को वीराना बनाया जाए
पहले उस शोख़ को गुमराह किया करते हैं
फिर ये कहते हैं उसे राह पे लाया जाए
अक्ल कहती है कि शानों पे ये सर भारी है
दिल की ये ज़िद है कि यही बोझ उठाया जाए
दूर तक राह में अब कोई नहीं, कोई नहीं
कब तलक बिछड़े हुए लोगों का रस्ता देखूं
आँख बाहर किसी मंज़र पे ठहरती ही नहीं
घर में जाऊं तो वही हाल पुराना देखूं
रात तो उसके तसव्वुर में गुज़र जाती है
कोई सूरत हो कि मैं दिन भी गुज़रता देखूं
आईने भी अब देख के हैराँ नहीं होते
ये लोग किसी तौर परेशां नहीं होते
पलकों के लिए धूप के टुकड़ों की दुआ हो
साए कभी ख़्वाबों के निगेहबां नहीं होते
निगेहबां =देखरेख करने वाले
होते हैं कई काम मोहब्बत में भी ऐसे
मुश्किल जो नहीं हैं, मगर आसाँ नहीं होते
उम्मीद करता हूँ के आपको नक़वी साहब की शायरी पसंद आई होगी. शायर की हौसला अफजाही के लिए गुज़ारिश है के आप उन्हें इस बेहतरीन शायरी के लिए उनके मोबाइल 09456667284 पर फोन कर मुबारकबाद जरूर दें .ये मोबाईल नंबर मुझे नैट से बहुत मुश्किल से मिला है, मेरी इस मेहनत का सिला सिर्फ उन्हें फोन पर दाद दे कर ही दिया जा सकता है. अगली किताब की तलाश में चलने से पहले लीजिये पेश करता हूँ नक़वी साहब की एक ग़ज़ल के तीन और शेर :
हमें तुझ से मोहब्बत है, हमें दुनिया से यारी है
ये दुनिया भी हमारी है, वो दुनिया भी हमारी है
जहाँ के खेल में सब एक जैसे हम को लगते हैं
ये बाज़ी किसने जीती है, ये बाज़ी किसने हारी है
खुली आँखों से देखो तो, ये दुनिया खूबसूरत है
हंसी तू है , जवान हम हैं , कहाँ की सोगवारी है
KHUUBSUURAT
ReplyDeletePRASTUTI
भाई नीरज बहुत सुंदर सजी संवरी पोस्ट लाजवाब ग़ज़लें बधाई बंधु दशहरे की शुभकामनाओं के साथ
ReplyDeleteहमें तुझ से मोहब्बत है, हमें दुनिया से यारी है
ReplyDeleteये दुनिया भी हमारी है, वो दुनिया भी हमारी है
जहाँ के खेल में सब एक जैसे हम को लगते हैं
ये बाज़ी किसने जीती है, ये बाज़ी किसने हारी है
बहुत ही बढि़या प्रस्तुति ।
सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteComment received from Akash Lalwani Jain on fb:-
ReplyDeleteअब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
अब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़
bahut khub
बेहतरीन प्रस्तुति ..
ReplyDeleteबेहतरीन शायर से परिचय कराया है . एक एक शेर लाज़वाब हैं .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए बधाई .
नकवी साहब को पढकर आनन्द आ गया …………हर शेर दिल को छूता है ………पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।
ReplyDeleteपहले उस शोख़ को गुमराह किया करते हैं
ReplyDeleteफिर ये कहते हैं उसे राह पे लाया जाए...
अच्छा लगा विस्तार से पढना !
मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है
ReplyDeleteतू नहीं है तो फिर ये बता कौन है
सब हिकायत-ऐ-माज़ी भुला दी गयी
तेरे ग़म को मगर भूलता कौन है
'हिकायत-ऐ-माज़ी= अतीत की कथाएं
वो भी खामोश है, मैं भी खामोश हूँ
दरमियाँ आज फिर आ गया कौन है
नकवी साहेब की शायरी पढकर हम तो धन्य हुए नीरज साहेब .....
अब तक तो हम-से-लोग किसी काम के न थे
ReplyDeleteअब काम मिल गया है मेरे रब किया है इश्क़
waah... chunker late hain aap, shukriyaa
बेहतरीन शेर पढ़वाने का आभार।
ReplyDeleteशानदार ग़ज़लगो नकवी साहब से मुलाक़ात अच्छी लगी... शानदार अशआर पढ़कर आनंद आगया...
ReplyDeleteउन्हें सादर बधाई...
सादर आभार...
'अक्सर मुशायरों में आप को शायरी सुनने को नहीं मिलती जो शायरी कहते हैं उन्हें मुशायरों में बुलाया नहीं जाता'
ReplyDeleteउनकी शिकायतें कि बुलाया नहीं गया
अपना मिज़ाज़ है कि वहॉं जा सके न हम।
हुजूर आपका ब्लॉग कौनसा कम है किसी मुशायरे से, शायर के साथ-साथ उसकी शायरी से रू-ब-रू होने का ऐसा अवसर कहॉं।
मुशायरे ही नहीं आज की दुनिया में सब कुछ रिश्तों पर चलता है।
वो मुतमईन तो है कि मैं उम्दा कहूँगा कुछ
रिश्तों में तल्खि़यत है, बुलाता नहीं मुझे।
परिचय के लिये बहुत आभार, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
In sheron ka jawab nahin
ReplyDeleteसुंदर परिचय, सुंदर समीक्षा. नकवी साहब की शायरी लाजवाब है. बधाई नकवी साहब.
ReplyDeletei go with tilak bhai saab, niraj bhaaii aap kaaa bahoooooooot puranaa yaaraanaa jo hai un ke sath. thx 4 another exceptional sharing. :)
ReplyDelete" डा. महताब हैदर नक़वी" की किताब "हर तस्वीर अधूरी " की शानदार समीक्षा.....पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार...
ReplyDeleteइस किताब का परिचय अच्छा लगा।
ReplyDeleteOn twitter from gtechinnovator:--
ReplyDeleteKya baat !
'मेहरबाँ आज मुझ पर हुआ कौन है, तू नहीं है तो फिर ये बता कौन है'
मैं तो यही कहूंगा.... बहुत खूब
ReplyDeleteवाईज को अगर ऐतराज है तो होने दो...
आपको दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति...विजय दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपोस्ट के शुरू में ही लिखे शेर ....
ReplyDeleteये दिल है कि जो टूट गया, टूट गया बस
शीशे की किसी तौर मरम्मत नहीं होती
नीरज जी, धन्य है आपकी निगायें जो हीरे छांट लाती है हमारे लिए... पता नहीं क्यों पर आज दिल कुछ अजीब सा महसूस कर रहा है और उपर से आपकी ये पोस्ट पढ़ ली..
आप ऐसी ही पोस्टें लिखते रहिये कि हमारे जैसों के दिल को सकूं मिलता रहे...
नकवी साहब को पढकर आनन्द आया , हर शेर दिल को छूता है, पढवाने के लिये हार्दिक आभार्।
ReplyDeleteनकवी शाहब के लाजवाब शेरों का गुलदस्ता बता रहा ही की पूरा बाग कितना कमाल का होगा ... और आपका तो जवाब नहीं है नीरज जी ... हीरों को परखने की आपकी महारत है ..
ReplyDeleteविजया दशमी की हार्दिक शुभकामनाएं। बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक यह पर्व, सभी के जीवन में संपूर्णता लाये, यही प्रार्थना है परमपिता परमेश्वर से।
ReplyDeleteनवीन सी. चतुर्वेदी
बहुत उम्दा शायरी से रूबरू कराया आपने नीरज जी...बधाई
ReplyDeleteसंवाद मीडिया के लिए रचनाएं आमंत्रित हैं...
विवरण जज़्बात पर है
http://shahidmirza.blogspot.com/
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
bahut badhiya aur sabse sundar ...
ReplyDeleteपरिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा
नकवी साहब के दिलकश शेरों का गुलदस्ता पेश करने का शुक्रिया......... आपकी ये मुहिम कमाल की है.
ReplyDeleteshri neeraj ji
ReplyDeletenamastey
gud introduction of a new book 'har tasveer adhoori' especially the following lines:-
समन्दरों के किनारों की रेत पर अब लोग
बनायें और कोई चीज़ भी घरों के सिवा
परिंदे पूछ रहे हैं हवाओं से अब के
उड़ान के लिए क्या चाहिए परों के सिवा
thanks for the same, regds,
-om sapra
बहुत आभार इस परिचय का...
ReplyDeleteआप बेहतरीन जौहरी हैं .
ReplyDeleteaap ka blog bahut hi umda hai.....bdhai........
ReplyDeleteNice , I am happy by reading this.
ReplyDeleteLearn English