( ये ग़ज़ल आपा "मरयम गज़ाला" जी को समर्पित है जो अब हमारे बीच नहीं हैं )
समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या
ज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकाना क्या
हार गए तो हार गए
इस में यूँ झल्लाना क्या
दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या
फूलों की तरहा झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या
किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या
'नीरज' सुलझाना सीखो
मुद्दों को उलझाना क्या
(तुकबंदी को ग़ज़ल में परिवर्तित करने का श्रेय गुरुदेव पंकज सुबीर जी को जाता है)
सुंदर और सच्चा सन्देश ....देती आप की प्यारी
ReplyDeleteगज़ल!!
दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या
शुभकामनाएँ!
वाह वाह किन लफ़्ज़ो मे तारीफ़ करूँ …………गज़ब के ख्यालात पेश किये है……………बेहतरीन देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर्।
ReplyDeleteNeeraj jee chhote bahar ki lajawaab ghazal.Anand aa gaya padha kar.
ReplyDeleteफूलों की तरह झरिये, पत्तों सा झड़ जाना क्या। खूबसूरत ख्यालातों में ढले हुए अशआर। बेहतरीन गजल।
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteगजब की गज़ल कही है... लाजवाब!
एक भी शेर ऐसा नहीं जो किसी दूसरे शेर से रत्ती भर भी कम हो और हर शेर के बाद मुंह हसे वाह निकलती है.
bahut badhiya ....
ReplyDeleteफूलों की तरहा झरिये
ReplyDeleteपत्तों सा झड़ जाना क्या
किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या
वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।
दुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या
....
tareefekabil
bahut achchhee ghazal..badhaai.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर , सादर
ReplyDelete'नीरज' सुलझाना सीखो
ReplyDeleteमुद्दों को उलझाना क्या
काश यही सब सीख जायें।
बहुत सुंदर गजल !
ReplyDeleteफूलों की तरह झरिये
पत्तों सा झड जाना क्या !
वाह क्या बात है .....
बहुत उम्दा सर,
ReplyDeleteमतला तो वाह वाह... आनंद आ गया...
समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या
दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या
यह शेर विशेष रूप से पसंद आया...
इस उम्दा ग़ज़ल के लिए सादर बधाई सर...
अपनों को पहचाना क्या ??
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
तुक बंदी और गजल दोनों चकाचक हैं जी!
ReplyDeleteछोटी बहर की बेहतरीन ग़ज़ल... किस शेर का जिक्र करें और किसे छोड़ें.... लाजवाब....
ReplyDeleteफूलों की तरहा झरिये
ReplyDeleteपत्तों सा झड़ जाना क्या
कम शब्दों में भावपूर्ण ग़ज़ल ।
नवीन जी नमस्कार, बहुत सुन्दर रचना -फूलों से झरिये -------
ReplyDeleteनीरज जी क्षमा कीजिएगा,ऊपर आपका नाम गलत छ्प गया है।
ReplyDeleteसुन्दर गज़ल, # "दुख से सुख मे लज्ज़त है,
ReplyDeleteबिन दुख के सुख पाना क्या?"
दुरुस्त फर्माया, एक भूला हुआ शेर याद दिल दिया:-
"मायूसे इन्बिसात रहेगा तमाम् उम्र,
वो दिल जो इस ज़माने मे मानुसे ग़म नही."
------------------------
# "किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या"
'नीरज' क्या-क्या लिख बैठे !
फिर टूता पैमाना क्या ?
http://aatm-manthan.com
बेहतरीन गज़ल कहने के लिए आपको बहुत -बहुत बधाई भाई नीरज जी
ReplyDeleteनीरज जी ,
ReplyDeleteछोटे बहर की उम्दा गज़ल..हर शे'र पे दिल से वाह निकलती है..बहुत बधाई
यह ग़ज़ल दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है।
ReplyDeleteदुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
छोटी बहर को बहुत ख़ूबसूरती से निभाया है आप ने
बधाई
किसने कितने घाव दिये
ReplyDeleteछोडो भी, गिनवाना क्या
जवाब नहीं, शानदार ग़ज़ल , दिल से लिखी है आपने।
बधाई नीरज साहब।
चर्चा मंच के माध्यम से यहाँ तक पहुंची आपकी ये रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteइतनी छोटी बह्र में शब्दों को सही-सही जगह बिठाना, उस्तादाना काम है।
ReplyDeleteबहुत से नये विचार और नये काफि़ये लिये खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।
E-mail received from Janab Alam Khursheed sahab:-
ReplyDeleteBahot Khoob Neeraj Ji!
Chhoti behr men
achhe she'r bahot rawani se hue hain.
Mubarakbad!
Alam Khursheed
gajal ke sabhi sher kabile tarif hai
ReplyDeletemariyam ji ke liye sun kar dukh hua aap hi se unke bare malum hua tha
charcha manch ke madhyam se aap tak pahunchna hua,,,jeewan me sfurti bharti ..ek jaandaar shandar ghazal..har ashaar me nootan pan..khaylon me tajgi..sadar badhayee aaur amantran ke sath
ReplyDeleteइसका खाली हव्वा है
ReplyDeleteदुनिया से घबराना क्या
बेहद सुन्दर!
दुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
bahut hi khubsurti se ise kaha hei ..niraj ji aapka bahut -bahut dhanywad ..
छोटी बहर पर ग़ज़ल कहना दुष्कर होता है, उस पर भी सार्थक ग़ज़ल कहना। बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteफूलों की तरहा झरिये
ReplyDeleteपत्तों सा झड़ जाना क्या
बहुत खूब
फूलों की तरहा झरिये
ReplyDeleteपत्तों सा झड़ जाना क्या
वह ..बेहतरीन सन्देश देती रचना..
हार गए तो हार गए
ReplyDeleteइस में यूँ झल्लाना क्या.........
.har fikr ko dhuyen me udata chala gaya .....bahut bahut bahut ....achchi rachna NITAJ JEE....
सुभानाल्लाह ........वाह....वाह......हर शेर बेहतरीन.....मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दाद आपको|
ReplyDeletebahut hi badiya,Gazal, bahar..jo bhi hai ye khudaa ki kasam lajawaab hai
ReplyDeleteदुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! लाजवाब ग़ज़ल!
नीरज भाई !
ReplyDeleteयह बेहतरीन रचना संग्रहणीय रहेगी ! एक एक लाइन दिल को छू लेती है ! इस खूबसूरत और प्रभावी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !
सादर !
बहुत खूबसूरत और बेहतरीन रचना ....बधाई
ReplyDeletebahut hi behtarin gazal jo saral evm bhodhgamya hai.
ReplyDeleteज़ब्त करो तो बात बने
ReplyDeleteहर पल ही छलकाना क्या
हार गए तो हार गए
इस में यूँ झल्लाना क्या
दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
बेहद सुंदर ।
किस को चुनें किसको छोडें
मोती में चुनवाना क्या ।
किसने कितने घाव दिये
ReplyDeleteछोडो भी, गिनवाना क्या
'नीरज' सुलझाना सीखो
मुद्दों को उलझाना क्या
क्या बात है नीरज जी बहुत ही अच्छे शब्दों में लिखी बहुत ही गहराई लिए हुए शानदार रचना बहुत बहुत बधाई आपको /
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
www.prernaargal.blogspot.com
किसने कितने घाव दिए
ReplyDeleteछोडो भी गिनवाना क्या,
बहुत ही सुंदर गजल जो मेरे दिल को भा गई,
लगता इसे आपने बड़े दिल से लिखा है तभी तो इसमें आपके मन के भावनाओ की झलक दिखाई
पडती है,बधाई...
अगर समय निकाल सके तो मेरे ब्लॉग आइये आपका स्वागत है....
मरयम गज़ाला जी के बारे में सुन कर दुख हुआ...शायद मुम्बई में आपके साथ ही मुलाकात हुई थी...
ReplyDeleteगज़ल बहुत उम्दा है.
Very nice gazal.....
ReplyDelete-Harshad Jangla
Atlanta, USA
Aap ki ye Gajal badi kamal ki hai or ye aakyee sochane par majboor karti h....
ReplyDeleteThank You So Much
फूलों की तरहा झरिये
ReplyDeleteपत्तों सा झड़ जाना क्या
.....बहुत उम्दा
Comment received from Sh. Vishal Mishra:-
ReplyDeleteमरयम आपा को आदरांजलि! (शायद इसीलिए आपके ब्लॉग पर आज 17 अक्टूबर सोमवार दिखाई नहीं दिया)।
अंकल, जिस विधा को आप श्रेष्ठ और दुष्कर मानते हैं, आपने फिर उसे मात दे दी। साधुवाद, बधाई!!
~ Vishal
मरयम गजाला जी नहीं रहीं, यह जानकार दुःख हुआ. आपने अपने ब्लॉग पर उनके बारे में एक से ज्यादा पोस्ट लिखी हैं. आपके ब्लॉग पर उनकी गजलें के जरिये ही उन्हें जाना.
ReplyDeleteयह ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है. छोटी बहर में आपकी शानदार गजलें पढ़कर अब आश्चर्य नहीं होता. ग़ज़ल की विधा को आप अपनी हथेलियों जितना जानते हैं. और जैसा कि मैं हर बार लिखता हूँ, हर ग़ज़ल जीवन जीने का तरीका सिखाती है.
दुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
Kya khoob aapne likha hai, wastwkita ka bodh karati rachna
दुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
......behtareen sher
........umda gazal
कल 19/10/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!
ReplyDeleteदुश्मन को पहचानोगे ?
ReplyDeleteअपनों को पहचाना क्या
दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
वाह नीरज जी ... दुःख के बुना तो सुख वैसे भी नहीं आता ...
इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या
सच है जितना दुनिया से डरो वो उतना ही डराती है ...
फूलों की तरहा झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या
ये तो कमाल का शेर है ... काश इंसान भी फूलों की तरह ही झरता ...
किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या
ये तो धमाका है ... घाव गिनवाने की बजाये छुपाना जरूरी है ...
नीरज जी ... हर शेर अलग अंदाज़ का है ... और आपके फन का तो वैसे भी जवाब नहीं ...
वाह वाह! क्या खूब ग़ज़ल है..
ReplyDelete"दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या"
बेजोड़!
आभार
sundar gazal....bhavpurn rachna...
ReplyDeletebahut komal, bahut sundar
ReplyDeletebahut khoob sir..........
ReplyDeleteहर्फ़-दर-हर्फ़ ..बेहतरीन
ReplyDeleteकिसने कितने घाव दिये
ReplyDeleteछोडो भी, गिनवाना क्या
वाह हर एक शेर दिल को छूता हुआ\ बधाई सुन्दर गज़ल के लिये।
बहुत सुन्दर गज़ल
ReplyDeleteBehad khubsoorat ghazal..
ReplyDeleteज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकाना क्या
yehi seekhne ki koshish me hain..
मरियम आपा से पहली दफा मुझे आपने ही मिलवाया था और वो मुलाकात यादगार है. सहज, शांत, स्वभाव की वो शख्सियत बीमारी और उम्र को धता बताते हुए हर काव्य-संध्या में ग़ज़ल का शहद घोल देती थी. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे.
ReplyDeleteसर जी, मतला बहुत अच्छा कहा है.
ReplyDeleteजब्त करो तो..................वाह वा
हार गए तो................सीधा-साधा और सधा हुआ
दुश्मन को.............वाह वा
दुःख से सुख में............लाजवाब शेर, लाजवाब कहन
फूलों की तरह.......हासिल-ए-ग़ज़ल शेर. तालियाँ ही तालियाँ
मज़ा आ गया सर. बहुत बहुत बधाइयाँ.
पहली बार आपके ब्लॉग पर आई। आपकी ग़ज़लें पढ़कर मज़ा आ गया।
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