Monday, October 10, 2011

पत्तों सा झड़ जाना क्या



( ये ग़ज़ल आपा "मरयम गज़ाला" जी को समर्पित है जो अब हमारे बीच नहीं हैं )


समझेगा दीवाना क्या
बस्ती क्या वीराना क्या

ज़ब्त करो तो बात बने
हर पल ही छलकाना क्या

हार गए तो हार गए
इस में यूँ झल्लाना क्या

दुश्मन को पहचानोगे ?
अपनों को पहचाना क्या

दुःख से सुख में लज्ज़त है
बिन दुःख के सुख पाना क्या ?

इसका खाली हव्वा है
दुनिया से घबराना क्या

फूलों की तरहा झरिये
पत्तों सा झड़ जाना क्या

किसने कितने घाव दिये
छोडो भी, गिनवाना क्या

'नीरज' सुलझाना सीखो
मुद्दों को उलझाना क्या





(तुकबंदी को ग़ज़ल में परिवर्तित करने का श्रेय गुरुदेव पंकज सुबीर जी को जाता है)

66 comments:

  1. सुंदर और सच्चा सन्देश ....देती आप की प्यारी
    गज़ल!!
    दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या
    शुभकामनाएँ!

    ReplyDelete
  2. वाह वाह किन लफ़्ज़ो मे तारीफ़ करूँ …………गज़ब के ख्यालात पेश किये है……………बेहतरीन देखन मे छोटे लगे घाव करे गंभीर्।

    ReplyDelete
  3. Neeraj jee chhote bahar ki lajawaab ghazal.Anand aa gaya padha kar.

    ReplyDelete
  4. फूलों की तरह झरिये, पत्‍तों सा झड़ जाना क्‍या। खूबसूरत ख्‍यालातों में ढले हुए अशआर। बेहतरीन गजल।

    ReplyDelete
  5. नीरज जी,
    गजब की गज़ल कही है... लाजवाब!
    एक भी शेर ऐसा नहीं जो किसी दूसरे शेर से रत्ती भर भी कम हो और हर शेर के बाद मुंह हसे वाह निकलती है.

    ReplyDelete
  6. फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या

    किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या
    वाह ...बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।

    ReplyDelete
  7. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या

    दुःख से सुख में लज्ज़त है
    बिन दुःख के सुख पाना क्या ?

    इसका खाली हव्वा है
    दुनिया से घबराना क्या
    ....
    tareefekabil

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर , सादर

    ReplyDelete
  9. 'नीरज' सुलझाना सीखो
    मुद्दों को उलझाना क्या

    काश यही सब सीख जायें।

    ReplyDelete
  10. बहुत सुंदर गजल !
    फूलों की तरह झरिये
    पत्तों सा झड जाना क्या !
    वाह क्या बात है .....

    ReplyDelete
  11. बहुत उम्दा सर,
    मतला तो वाह वाह... आनंद आ गया...
    समझेगा दीवाना क्या
    बस्ती क्या वीराना क्या

    दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या
    यह शेर विशेष रूप से पसंद आया...
    इस उम्दा ग़ज़ल के लिए सादर बधाई सर...

    ReplyDelete
  12. अपनों को पहचाना क्या ??

    बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई स्वीकार करें ||

    ReplyDelete
  13. तुक बंदी और गजल दोनों चकाचक हैं जी!

    ReplyDelete
  14. छोटी बहर की बेहतरीन ग़ज़ल... किस शेर का जिक्र करें और किसे छोड़ें.... लाजवाब....

    ReplyDelete
  15. फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या

    कम शब्दों में भावपूर्ण ग़ज़ल ।

    ReplyDelete
  16. नवीन जी नमस्कार, बहुत सुन्दर रचना -फूलों से झरिये -------

    ReplyDelete
  17. नीरज जी क्षमा कीजिएगा,ऊपर आपका नाम गलत छ्प गया है।

    ReplyDelete
  18. सुन्दर गज़ल, # "दुख से सुख मे लज्ज़त है,
    बिन दुख के सुख पाना क्या?"

    दुरुस्त फर्माया, एक भूला हुआ शेर याद दिल दिया:-

    "मायूसे इन्बिसात रहेगा तमाम् उम्र,
    वो दिल जो इस ज़माने मे मानुसे ग़म नही."
    ------------------------

    # "किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या"

    'नीरज' क्या-क्या लिख बैठे !
    फिर टूता पैमाना क्या ?
    http://aatm-manthan.com

    ReplyDelete
  19. बेहतरीन गज़ल कहने के लिए आपको बहुत -बहुत बधाई भाई नीरज जी

    ReplyDelete
  20. नीरज जी ,
    छोटे बहर की उम्दा गज़ल..हर शे'र पे दिल से वाह निकलती है..बहुत बधाई

    ReplyDelete
  21. यह ग़ज़ल दिल के साथ दिमाग में भी जगह बनाती है।

    ReplyDelete
  22. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या

    दुःख से सुख में लज्ज़त है
    बिन दुःख के सुख पाना क्या ?

    छोटी बहर को बहुत ख़ूबसूरती से निभाया है आप ने
    बधाई

    ReplyDelete
  23. किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या

    जवाब नहीं, शानदार ग़ज़ल , दिल से लिखी है आपने।
    बधाई नीरज साहब।

    ReplyDelete
  24. चर्चा मंच के माध्यम से यहाँ तक पहुंची आपकी ये रचना पढ़कर बहुत अच्छा लगा

    ReplyDelete
  25. इतनी छोटी बह्र में शब्‍दों को सही-सही जगह बिठाना, उस्‍तादाना काम है।
    बहुत से नये विचार और नये काफि़ये लिये खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बधाई।

    ReplyDelete
  26. E-mail received from Janab Alam Khursheed sahab:-

    Bahot Khoob Neeraj Ji!
    Chhoti behr men
    achhe she'r bahot rawani se hue hain.
    Mubarakbad!
    Alam Khursheed

    ReplyDelete
  27. gajal ke sabhi sher kabile tarif hai
    mariyam ji ke liye sun kar dukh hua aap hi se unke bare malum hua tha

    ReplyDelete
  28. charcha manch ke madhyam se aap tak pahunchna hua,,,jeewan me sfurti bharti ..ek jaandaar shandar ghazal..har ashaar me nootan pan..khaylon me tajgi..sadar badhayee aaur amantran ke sath

    ReplyDelete
  29. इसका खाली हव्वा है
    दुनिया से घबराना क्या

    बेहद सुन्दर!

    ReplyDelete
  30. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या
    bahut hi khubsurti se ise kaha hei ..niraj ji aapka bahut -bahut dhanywad ..

    ReplyDelete
  31. छोटी बहर पर ग़ज़ल कहना दुष्कर होता है, उस पर भी सार्थक ग़ज़ल कहना। बहुत बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  32. फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या

    बहुत खूब

    ReplyDelete
  33. फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या
    वह ..बेहतरीन सन्देश देती रचना..

    ReplyDelete
  34. हार गए तो हार गए
    इस में यूँ झल्लाना क्या.........
    .har fikr ko dhuyen me udata chala gaya .....bahut bahut bahut ....achchi rachna NITAJ JEE....

    ReplyDelete
  35. सुभानाल्लाह ........वाह....वाह......हर शेर बेहतरीन.....मुकम्मल ग़ज़ल के लिए दाद आपको|

    ReplyDelete
  36. bahut hi badiya,Gazal, bahar..jo bhi hai ye khudaa ki kasam lajawaab hai

    ReplyDelete
  37. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या
    दुःख से सुख में लज्ज़त है
    बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
    बहुत सुन्दर और सटीक पंक्तियाँ! लाजवाब ग़ज़ल!

    ReplyDelete
  38. नीरज भाई !
    यह बेहतरीन रचना संग्रहणीय रहेगी ! एक एक लाइन दिल को छू लेती है ! इस खूबसूरत और प्रभावी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें !
    सादर !

    ReplyDelete
  39. बहुत खूबसूरत और बेहतरीन रचना ....बधाई

    ReplyDelete
  40. ज़ब्त करो तो बात बने
    हर पल ही छलकाना क्या

    हार गए तो हार गए
    इस में यूँ झल्लाना क्या

    दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या

    दुःख से सुख में लज्ज़त है
    बिन दुःख के सुख पाना क्या ?


    बेहद सुंदर ।

    किस को चुनें किसको छोडें
    मोती में चुनवाना क्या ।

    ReplyDelete
  41. किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या

    'नीरज' सुलझाना सीखो
    मुद्दों को उलझाना क्या
    क्या बात है नीरज जी बहुत ही अच्छे शब्दों में लिखी बहुत ही गहराई लिए हुए शानदार रचना बहुत बहुत बधाई आपको /
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
    www.prernaargal.blogspot.com

    ReplyDelete
  42. किसने कितने घाव दिए
    छोडो भी गिनवाना क्या,
    बहुत ही सुंदर गजल जो मेरे दिल को भा गई,
    लगता इसे आपने बड़े दिल से लिखा है तभी तो इसमें आपके मन के भावनाओ की झलक दिखाई
    पडती है,बधाई...
    अगर समय निकाल सके तो मेरे ब्लॉग आइये आपका स्वागत है....

    ReplyDelete
  43. मरयम गज़ाला जी के बारे में सुन कर दुख हुआ...शायद मुम्बई में आपके साथ ही मुलाकात हुई थी...


    गज़ल बहुत उम्दा है.

    ReplyDelete
  44. Very nice gazal.....

    -Harshad Jangla
    Atlanta, USA

    ReplyDelete
  45. Aap ki ye Gajal badi kamal ki hai or ye aakyee sochane par majboor karti h....

    Thank You So Much

    ReplyDelete
  46. फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या
    .....बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  47. Comment received from Sh. Vishal Mishra:-

    मरयम आपा को आदरांजलि! (शायद इसीलिए आपके ब्लॉग पर आज 17 अक्टूबर सोमवार दिखाई नहीं दिया)।

    अंकल, जिस विधा को आप श्रेष्ठ और दुष्कर मानते हैं, आपने फिर उसे मात दे दी। साधुवाद, बधाई!!

    ~ Vishal

    ReplyDelete
  48. मरयम गजाला जी नहीं रहीं, यह जानकार दुःख हुआ. आपने अपने ब्लॉग पर उनके बारे में एक से ज्यादा पोस्ट लिखी हैं. आपके ब्लॉग पर उनकी गजलें के जरिये ही उन्हें जाना.

    यह ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है. छोटी बहर में आपकी शानदार गजलें पढ़कर अब आश्चर्य नहीं होता. ग़ज़ल की विधा को आप अपनी हथेलियों जितना जानते हैं. और जैसा कि मैं हर बार लिखता हूँ, हर ग़ज़ल जीवन जीने का तरीका सिखाती है.

    ReplyDelete
  49. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या

    Kya khoob aapne likha hai, wastwkita ka bodh karati rachna

    ReplyDelete
  50. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या
    ......behtareen sher
    ........umda gazal

    ReplyDelete
  51. कल 19/10/2011 को आपकी कोई एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है . धन्यवाद!

    ReplyDelete
  52. दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या

    दुःख से सुख में लज्ज़त है
    बिन दुःख के सुख पाना क्या ?
    वाह नीरज जी ... दुःख के बुना तो सुख वैसे भी नहीं आता ...

    इसका खाली हव्वा है
    दुनिया से घबराना क्या
    सच है जितना दुनिया से डरो वो उतना ही डराती है ...

    फूलों की तरहा झरिये
    पत्तों सा झड़ जाना क्या
    ये तो कमाल का शेर है ... काश इंसान भी फूलों की तरह ही झरता ...

    किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या
    ये तो धमाका है ... घाव गिनवाने की बजाये छुपाना जरूरी है ...

    नीरज जी ... हर शेर अलग अंदाज़ का है ... और आपके फन का तो वैसे भी जवाब नहीं ...

    ReplyDelete
  53. वाह वाह! क्या खूब ग़ज़ल है..

    "दुश्मन को पहचानोगे ?
    अपनों को पहचाना क्या"
    बेजोड़!

    आभार

    ReplyDelete
  54. sundar gazal....bhavpurn rachna...

    ReplyDelete
  55. हर्फ़-दर-हर्फ़ ..बेहतरीन

    ReplyDelete
  56. किसने कितने घाव दिये
    छोडो भी, गिनवाना क्या
    वाह हर एक शेर दिल को छूता हुआ\ बधाई सुन्दर गज़ल के लिये।

    ReplyDelete
  57. बहुत सुन्दर गज़ल

    ReplyDelete
  58. Behad khubsoorat ghazal..
    ज़ब्त करो तो बात बने
    हर पल ही छलकाना क्या
    yehi seekhne ki koshish me hain..

    ReplyDelete
  59. मरियम आपा से पहली दफा मुझे आपने ही मिलवाया था और वो मुलाकात यादगार है. सहज, शांत, स्वभाव की वो शख्सियत बीमारी और उम्र को धता बताते हुए हर काव्य-संध्या में ग़ज़ल का शहद घोल देती थी. ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे.

    ReplyDelete
  60. सर जी, मतला बहुत अच्छा कहा है.
    जब्त करो तो..................वाह वा
    हार गए तो................सीधा-साधा और सधा हुआ
    दुश्मन को.............वाह वा
    दुःख से सुख में............लाजवाब शेर, लाजवाब कहन
    फूलों की तरह.......हासिल-ए-ग़ज़ल शेर. तालियाँ ही तालियाँ

    मज़ा आ गया सर. बहुत बहुत बधाइयाँ.

    ReplyDelete
  61. पहली बार आपके ब्लॉग पर आई। आपकी ग़ज़लें पढ़कर मज़ा आ गया।

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे