Monday, December 6, 2010

किताबों की दुनिया - 42

शायद आप जानते ही होंगे और अगर नहीं जानते तो बता दूँ के मेरा घर जयपुर में है लेकिन मैं मुंबई-पुणे के मध्य स्थित खोपोली नामक सुरम्य स्थान पर नौकरी की वजह से पिछले सात सालों से रह रहा हूँ. यहाँ कंपनी की तरफ से सभी सुविधाओं से युक्त घर मिला हुआ है लेकिन मेरा हफ्ते भर के लिए जयपुर जाना लगभग हर दूसरे माह तय होता ही है. ये सुविधा भी कंपनी ने ही दे रखी है. ये सब लिखने का कारण अपने बारे में आपको बताना नहीं बल्कि कुछ और है. जयपुर एयरपोर्ट की दूसरी मंजिल पर एक किताबों की दुकान खुली है जिसमें अंग्रेजी की तो खैर सैंकडों किताबें हैं ही लेकिन हिंदी की किताबें भी मिली जाती हैं और उन किताबों में शायरी की किताबों भी होती हैं जिनका वहां मिलना किसी अजूबे से कम नहीं.अजूबा इसलिए क्यूंकि अभी भी भारत में हवाई यात्रा पढ़े लिखे, सभ्रांत और धनी लोगों की बपौती मानी जाती है जो शायरी जैसी विधा को हिकारत की नज़र से देखते हैं और क्यूँ न देखें शायरी का रिश्ता दिल से होता है, दिमाग से नहीं, और दिल...पढ़े लिखे, सभ्रांत और धनी लोगों में अपवाद स्वरुप ही मिलता है. हकीकत बदल चुकी है इसका प्रमाण है एयरपोर्ट पर किताबों की दूकान में शायरी की किताब का मिलना याने अब चिथड़ा प्रसाद, थान सिंह जी के साथ कंधे से कन्धा मिला कर हवाई यात्रा करता है और शायरी की किताबें पढता है...लगता है समाजवाद आ गया.

मेरे हिंदी में पूछने पर काउंटर पर खड़े सज्जन ने अग्रेज़ी में बताया के महीने में शायरी की तीन चार किताबें तो बिक ही जाती हैं. ये आंकड़ा मेरे हिसाब से बहुत उत्साहवर्धक है. उर्दू शायरी की किताबें एयरपोर्ट पर बिकना हर्ष का विषय है, इस से अनुमान लगाया जा सकता है की हमारे समाज में उच्च वर्ग, उच्च मध्य वर्ग और मध्य वर्ग की आपसी दूरी कम हो रही है.

लौटती यात्रा में उस दुकान पर जाना मेरा प्रिय काम है. वहीँ मुझे जो किताब मिली उसी का जिक्र मैं आज यहाँ कर रहा हूँ. किताब है ,पटना, बिहार के हर दिल अज़ीज़ शायर जनाब आलम खुर्शीद साहब की ग़ज़लों की जिनका संकलन “एक दरिया ख्वाब में” शीर्षक से जनाब सुरेश कुमार जी ने किया है. किताब के पन्ने पलटते ही जब मुझे ये शेर दिखे तो फिर इसे खरीदने में एक क्षण भी नहीं लगा :-


बहुत चाहा कि आँखें बंद करके मैं भी जी लूँ
मगर मुझसे बसर यूँ जिंदगी होती नहीं है

लहू का एक-इक क़तरा पिलाता जा रहा हूँ
अगरचे ख़ाक में पैदा नमी होती नहीं है

मैं रिश्वत के मुसल्ले पर नमाज़ें पढ़ न पाया
बदी के साथ मुझसे बंदगी होती नहीं है
मुसल्ले : नमाज़ पढ़ने कि चटाई

ऐसे सीधे सच्चे शेर कहने के बेमिसाल हुनर के कारण ही समकालीन उर्दू शायरी के फ़लक पर पिछले बीस सालों में जिन शायरों ने अपने कलाम से गज़ल प्रेमियों और समीक्षकों को आकर्षित किया है उनमें आलम खुर्शीद जी का नाम बहुत ऊपर है. डायमंड बुक्स वालों द्वारा प्रकाशित ये किताब हिंदी में उनकी गज़लों का पहला संकलन है. एक बेहतरीन शायर को हर खास-ओ-आम तक पहुँचाने के लिए सुरेश कुमार जी और डायमंड बुक्स वाले बधाई के हकदार है।

ग़लत ये बात है रोशन कहीं दिमाग़ नहीं
जहाँ अँधेरा बहुत है वहीँ चिराग़ नहीं

मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं

आम बोलचाल के ये शेर पढ़ने सुनने वालों के साथ सीधा सम्बन्ध कायम कर लेते हैं और उनके दिलों में गहरे उतर जाते हैं. हमारे समाज की आज की जटिलताओं और विद्रूपताओं को जिस सहजता और सरलता के साथ वे अपने शेरों में ढालते हैं वो पढते सुनते ही बनता है, और उनकी शायरी पर गहरी पकड़ को प्रमाणित भी करता है.

घर के जितने भी झगडे हैं प्यार से हल हो सकते हैं
क्यूँ हम तकिया कर बैठे हैं तीरों पर तलवारों पर
तकिया: विशवास

बाजू की ताक़त भी इक दिन साहिल तक पहुंचा देगी
लोग भरोसा करते क्यूँ हैं कश्ती पर, पतवारों पर

पानी लाख उछालें मारे, पानी में मिल जाता है
एक नज़र तो डालो ‘आलम’ बागों के फव्वारों पर

आलम खुर्शीद साहब की शायरी पढते हुए लगता है जैसे वो हमारे मन की परतें खोल रहे हैं. वो जीवन को लेकर शंकित भी हैं लेकिन आशा का दामन कभी नहीं छोड़ते. एक बेहतर दुनिया का ख्वाब उनकी शायरी में हमेशा जिंदा रहता है और येही चीज़ उनकी शायरी को जीवंत बनाती है.

पीछे छूटे साथी मुझको याद आ जाते हैं
वर्ना दौड में सबसे आगे हो सकता हूँ मैं

इक मासूम-सा बच्चा मुझमें अब तक जिंदा है
छोटी छोटी बातों पे अब भी रो सकता हूँ मैं

सोच-समझ कर चट्टानों से उलझा हूँ वर्ना
बहती गंगा में हाथों को धो सकता हूँ मैं

वक्त आ गया है जब मैं आपको इस संकलन में से कुछ छोटी बहर की गज़लों के अशआर पढ़वाऊँ, जैसा के मैं हमेशा अपनी श्रृंखला में कहता आया हूँ छोटी बहर की ग़ज़लें पढ़ने वाले के साथ जल्द ही अपना नाता जोड़ लेती हैं और उनके दिल में घर कर लेती है, अगर जबान सादा हो तो फिर क्या कहने अशआरों के लिए पढ़ने वालों के दिल तक पहुँचने का रास्ता छोटा और सुगम हो जाता है.

दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
कैसा-कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है

तन्हाई का ज़हर तो वो भी पीते हैं
हर पल जिनके साथ ज़माना होता है

बढ़ती जाती है बैचैनी नाखुन की
जैसे-जैसे ज़ख्म पुराना होता है

आसानी से राह नहीं बनती कोई
दीवारों से सर टकराना होता है

आलम साहब के उर्दू में तीन काव्य संग्रह “नए मौसम की तलाश”, “ज़हर-ए-गुल” तथा “ख्याल-आबाद” आ चुके हैं उन्हीं संग्रहों से चुन कर इस किताब में सुरेश कुमार जी ने लगभग सौ अद्भुत ग़ज़लें संकलित की हैं इस के आलावा भी उनकी कुछ ऐसी ग़ज़लें भी हैं जो इस से पहले कहीं प्रकाशित नहीं हुईं. इस किताब की ग़ज़लें ताज़ा हवा के सुखद झोंके की तरह पढ़ने वालों के दिलो दिमाग को खुशनुमा कर देंगीं.

फूल, खुशबू, हवा, तितलियाँ हर तरफ़
तू नहीं तेरी परछाइयाँ हर तरफ़

मेरे जलते दिए मुस्कुराते रहे
हाथ मलती रहीं आंधियां हर तरफ़

झूट के वास्ते तख़्त-ओ-ऐवान हैं
और सच के लिए सूलियाँ हर तरफ़

यूँ तो "डायमंड बुक्स" सभी बुक्स स्टाल्स पर उपलब्ध हैं (जैसा के प्रकाशक का दावा है) लेकिन आपको अपने शहर के किसी बुक्स स्टाल पर इस पुस्तक के न मिलने पर जयपुर एयरपोर्ट तक जाने कि जरूरत नहीं है इसके लिए आसान उपाय ये है के आप डायमंड बुक्स वालों को अपने मोबाईल या लैन लाइन से 011-51611861-865 नंबर पर फोन करें या फिर अपने लैपटाप/ पी..सी. को इन्टरनेट से जोड़ कर उन्हें sales@diamondpublication.com पर मेल करें या उनकी वेब साईट www.diamondpublication.com पर लाग-इन करें. अब आप ये पोस्ट पढ़ रहें हैं तो उम्मीद करता हूँ के आप इन्टरनेट से जरूर जुड़े हुए होंगे और मेल करने कि स्तिथि में भी होंगे. ये सब अगर आपके पास नहीं है तो दिल्ली में किसी मित्र बंधू रिश्तेदार को कहिये के “डायमंड पाकेट बुक्स x-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया ,फेज-2, नयी-दिल्ली” वाले पते पर जाय और आपके लिए किताब खरीद कर कोरियर या फिर साधारण डाक से भिजवा दे. अब आप पुस्तक मंगवाने के ऊपर दिए गए या अन्य स्वयं द्वारा इज़ाद किये गए विकल्पों पर गंभीरता पूर्वक विचार करें. हम आपको आलम साहब के ये अशआर पढवा कर विदा लेते हैं और निकलते हैं एक और पुस्तक कि तलाश में...

देख रहा है दरिया भी हैरानी से
मैंने कैसे पार किया आसानी से

नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
क्या रिश्ता है मेरा बहते पानी से

हर कमरे से धूप हवा की यारी थी
घर का नक्शा बिगड़ा है नादानी से







44 comments:

  1. दिल रोता है चेहरा हँसता रहता है
    कैसा-कैसा फ़र्ज़ निभाना होता है

    तन्हाई का ज़हर तो वो भी पीते हैं
    हर पल जिनके साथ ज़माना होता है

    बहुत ही सुन्‍दर भावमय प्रस्‍तुति ।

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  2. नीरज जी इसे कहते हैं जिज्ञासु
    कहां कहां से ढूंढ्ते रहते हैं आप लेकिन आप इस काम में जितनी भी मेहनत करें फ़ायदा हम लोगों का होता है ख़ुर्शीद साहब का कलाम fb पर भी पढ़ा ,बहुत ख़ूबसूरत है
    इसे पढ़वाने का शुक्रिया

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  3. देखिये साहेब, रंग बिरंगे भारत देश की विडंबना देखिये - यहाँ समाजवाद भी आया तो पूंजीवाद की बदौलत.

    मेरे जलते दिए मुस्कुराते रहे
    हाथ मलती रहीं आंधियां हर तरफ़


    अदब की दुनिया के एक और रत्न को रूबरू करवाने के लिए साधुवाद.

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  4. मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
    वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं
    इक मासूम-सा बच्चा मुझमें अब तक जिंदा है
    छोटी छोटी बातों पे अब भी रो सकता हूँ मैं

    सोच-समझ कर चट्टानों से उलझा हूँ वर्ना
    बहती गंगा में हाथों को धो सकता हूँ मैं
    मेरे जलते दिए मुस्कुराते रहे
    हाथ मलती रहीं आंधियां हर तरफ़


    गज़ब के शेर्…………सभी एक से बढकर एक हैं………………दिल को छू गये…………………आभार्।

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  5. रंग बिरंगे भारत देश की विडंबना देखिये - यहाँ समाजवाद भी आया तो पूंजीवाद की बदौलत... क्या बात कही है दीपक जी ने भी ...

    बाकी, नीरज जी आप तो खैर हम लोगों के लिए अँधेरी गुफा के टोर्च जैसे हैं जो किताबो की रौशनी महफूज़ लिए आगे आगे चलते हैं |

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  6. मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
    वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं

    तन्हाई का ज़हर तो वो भी पीते हैं
    हर पल जिनके साथ ज़माना होता है
    बहुत ही बढ़िया ग़जलों की पुस्तक, व्यक्तित्व और इसे प्राप्त करने के तरीके से रूबरू कराने के लिए लख-लख धन्यवाद। इतनी बड़ी ‍शख्सियत होकर भी इतनी सादगी से लिख लेते हैं, बड़ा आश्चर्य भी होता है।

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  7. नीरज जी ऐसा बेहतरीन लेखन से रूबरू करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया ...

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  8. तन्हाई का ज़हर तो वो भी पीते हैं
    हर पल जिनके साथ ज़माना होता है

    एक बेहतरीन शायर से मुलाकात करने का शुक्रिया..

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  9. नीरज जी सब से पहले तो मैने मेल की है। बेहतरीन समीक्षा और शेर पडः कर मन उतावला हो गया पुस्तक पडःाने के लिये। क्या आप और गज़ल की पुस्तकों का पता दे सकते हैं जो हन्द पाकेट बूक्स से मिल जायें ताकि एक ही बार वो सब पुस्तकें भेज दें। धन्यवाद। खुर्शीद जी को बधाई ।

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  10. नीरज जी,

    फिर इस्तकबाल है आपका.....आलम खुर्शीद साहब की शयरी वाकई दिल को छू गयी.....बहुत उम्दा शेर हैं....

    आपका लिखने का अंदाज़ बहुत भाया....बहुत खूब -

    "पढ़े लिखे, सभ्रांत और धनी लोगों की बपौती मानी जाती है जो शायरी जैसी विधा को हिकारत की नज़र से देखते हैं और क्यूँ न देखें शायरी का रिश्ता दिल से होता है, दिमाग से नहीं, और दिल...पढ़े लिखे, सभ्रांत और धनी लोगों में अपवाद स्वरुप ही मिलता है. हकीकत बदल चुकी है इसका प्रमाण है एयरपोर्ट पर किताबों की दूकान में शायरी की किताब का मिलना याने अब चिथड़ा प्रसाद, थान सिंह जी के साथ कंधे से कन्धा मिला कर हवाई यात्रा करता है और शायरी की किताबें पढता है...लगता है समाजवाद आ गया."

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  11. आदरणीय नीरज जी आलम खुर्शीद साहब से महीनो तक ईमेल के जरिये कविताओं पर मेरी बात होती रही है लेकिन दुर्भाग्य मेरा कि उन्होंने कभी अपने इस पक्ष से मेरा परिचय नहीं कराया..आज उनके ग़ज़ल से पहली बार परिचय हो रहा है.... अब अपने उन मेल और चाट बाक्स से उनसे हुई बातचीत को पुनः पढूंगा.. मार्गदर्शन मिलेगा.. आलम साहेब के ग़ज़ल में नई बात देख रहा हूँ... जैसे :
    "इक मासूम-सा बच्चा मुझमें अब तक जिंदा है
    छोटी छोटी बातों पे अब भी रो सकता हूँ मैं" .. एक और अच्छी किताब से परिचय कराने का बहुत बहुत आभार...

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  12. Ek aur shayar aur unkee gazalon
    se parichay karaane ke liye aapka
    shukriya .

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  13. नमस्कार नीरज जी,
    जहाँ तक सवाल है हमारे समाज में उच्च वर्ग, उच्च मध्य वर्ग और मध्य वर्ग की दूरियों का तो वो तो शायद मेरे हिसाब से ज्यादा कम नहीं हुई हैं, हाँ ये ज़रूर है मध्य वर्ग ने कुछ आगे कदम बढाकर अपने को उच्च वर्ग, उच्च मध्य वर्ग में शामिल कर लिया है और इसी का परिणाम ये हो सकता है.

    आलम खुर्शीद साहब, के शेरों के क्या कहने,
    बाजू की ताक़त भी इक दिन साहिल तक पहुंचा देगी
    लोग भरोसा करते क्यूँ हैं कश्ती पर, पतवारों पर

    इक मासूम-सा बच्चा मुझमें अब तक जिंदा है
    छोटी छोटी बातों पे अब भी रो सकता हूँ मैं

    नदी किनारे पहरों बैठा रहता हूँ
    क्या रिश्ता है मेरा बहते पानी से

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  14. क्या गज़ब परिचय कराया है..आलम खुर्शीद साहब की शायरी-सीधे दिल में उतर गई.

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  15. लहू का एक-इक क़तरा पिलाता जा रहा हूँ
    अगरचे ख़ाक में पैदा नमी होती नहीं है

    मैं रिश्वत के मुसल्ले पर नमाज़ें पढ़ न पाया
    बदी के साथ मुझसे बंदगी होती नहीं है
    मुसल्ले : नमाज़ पढ़ने कि चटाई



    हाय !! कहने की ये अदा ...ही तो जुदा करती है .....

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  16. लगता है आपकी ये समीक्षाएं पढ पढकर हमको भी लिखना पढना सीखना पडेगा. बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  17. बेहतरीन गज़लें पढ़वाने का आभार।

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  18. हर कमरे से धूप हवा की यारी थी
    घर का नक्शा बिगड़ा है नादानी से
    सही कहा भाई ...इंसान की नादानी उसे क्या से क्या बना देती है ...समीक्षा पढ़कर ऐसा लगा ...मुझे आपके पास गुरुदक्षिणा लेनी चाहिए ...क्या कमाल है ...शुक्रिया

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  19. पहले ये बताइये कि आपकी कंपनी में हम जैसे लोगों के लिए भी कोई काम है क्या ? :)

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  20. मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
    वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं

    बेहतरीन शायरी से तआरुफ़ कराने का शुक्रिया नीरज जी....

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  21. बहुत खूब!
    खुर्शीद जी की शायरी अद्भुत है. जितने शेर आपने दिए हैं, सारे एक से बढ़कर एक. आपका यह संकलन बेहतरीन है ही.

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  22. आपने जो आश'आर प्रस्‍तुत किेये सभी एक से बढ़कर एक खूबसूरत हैं। जाहिर है पूरा संकलन पढ़ने लायक होगा ही।
    आदमी जैसा खाता है वैसे ही उसके विचार बनते हैं, इस धारणा को बल मिलता है आपकी ग़ज़लों की प्रस्‍तुति और इन पुस्‍तकों की प्रस्‍तुति से। जितनी खूबसूरत ग़ज़लें आप पढ़ते हैं उतनी ही खूबसूरत आपकी ग़ज़लें भी होती हैं।

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  23. बला का दिलकश अंदाज़ है आपना नीरज जी ... एक से बढ़ कर एक शेर छांटे हैं आप चर्चा में ... खुशीद आलम साहब की कलम को नमन है ....

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  24. नीरज जी धन्‍यवाद। खुर्शीद आलम जी की शायरी लाजवाब है।
    19 को जयपुर जा रहा हूं। और 22 को बंगलौर लौटूंगा। तो जयपुर एयरपोर्ट जाना भी होगा। किताबों की दुकान का चक्‍कर जरूर लगाऊंगा।

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  25. आदरणीय नीरज जी, खुशी की बात ये है कि हिन्दी में उपलब्ध साहित्य ’समाजवाद’ का आधार बन रहा है...)))
    खुर्शीद आलम साहब की उम्दा शायरी से रूबरू कराने के लिए शुक्रिया.

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  26. एक बेहतरीन शायर और उसकी ग़ज़लों से रूबरू करवाया आपने..आप का यह प्रयास निश्चित रूप से प्रशंसनीय है...अब तक न जाने कितने नामचीन रचनाकारों की रचनाओं आपके माध्यम से जान पाया मैं.. आपका बहुत बहुत आभार नीरज जी..

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  27. आसानी से राह नहीं बनती कोई
    दीवारों से सर टकराना होता है

    बहुत अच्छे शे‘र हैं।
    ख़ुर्शीद आलम साहब की शायरी से परिचय कराने के लिए शुक्रिया नीरज जी।

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  28. ज़िक्र उस परीवश का और फिर बयान अपना... एक तो पटना के शायर आलम खुर्शीद साहब और फिर आपका बयान. ख़ूबसूरत शायरी जब आपके शीरीं बयान से गुज़रती है तो बस मिठास और मदहोश करने वाली ख़ुशबू रह जाती है फ़िज़ाँ में!! बड़े भाई, आपकी पसंद पर हम क़ुर्बान!!

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  29. नीरज जी, हमे तो कोई फ़र्क नजर नही आया, मध्यम वर्ग अपने से नीचे के वर्ग को वेसा ही समझता हे जेसे उच्च वर्ग मध्यम वर्ग को.... बाकी सब की अपनी सोच हे , बहुत सुंदर जानकारी आप का धन्यवाद

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  30. aapki pasand kee is kitaab ne ek baar phir hamen laajawaab kar diyaa....

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  31. अज़ीज़ शायर जनाब आलम खुर्शीद साहब की ग़ज़लों की बेहतरीन शायरी से तआरुफ़ कराने का शुक्रिया नीरज जी....।
    मेरे एक मित्र हैं। उनका मूल निवास एक पिछ्ड़े इलाके में है। अपने इलाके गरीब लोगों के लिए उन्होंने एक अभियान चला रखा है। यह कि अपने परिचितों से उपयोग में न आ रहे वस्त्रों को माँग कर इकठ्ठा करते हैं। फिर उन्हें बोरों में भरवा कर अपने क्षेत्र में ले जाते हैं और जरूरतमंद लोगों को बाटवा देते हैं। उनकी यह पहल अच्छी है। अभी भी भारत के करोड़ों इंसानों के सामने रोटी और कपड़ा ख्वाब है।
    -डॉ० डंडा लखनवी

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  32. bahut achchi rachnayen padhwayee,dhanyabad.

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  33. लहू का एक-इक क़तरा पिलाता जा रहा हूँ
    अगरचे ख़ाक में पैदा नमी होती नहीं है
    बहुत खूब!

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  34. किताबों की दुनिया तो मुझे बहुत अच्छी लगती है...

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  35. मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
    वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं
    ..ek se badhkar ek shayari aur umda tareeke ke prastuti ..bahut achhi lagi..sukriya...

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  36. लहू का एक-इक क़तरा पिलाता जा रहा हूँ
    अगरचे ख़ाक में पैदा नमी होती नहीं है

    क्या बात है ...
    मैं उनको शक की निगाहों से देखता क्यूँ हूँ
    वो लोग जिनके लिबासों पे कोई दाग़ नहीं

    जनाब आलम खुर्शीद साहब बस गज़ब ही है हर शे'र ....

    बाजू की ताक़त भी इक दिन साहिल तक पहुंचा देगी
    लोग भरोसा करते क्यूँ हैं कश्ती पर, पतवारों पर

    वाह ....नीरज जी कहाँ से ढूंढ लेट हैं ये खजाना .....
    काश हमारे पास भी ऐसा खजाना होता ....

    बढ़ती जाती है बैचैनी नाखुन की
    जैसे-जैसे ज़ख्म पुराना होता है

    सुभानाल्लाह .....

    देख रहा है दरिया भी हैरानी से
    मैंने कैसे पार किया आसानी से

    अब तो निशब्द हूँ ....

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  37. आलम खुर्शीद साहब से मिलवाने के लिए शुक्रिया !
    एक से बढ़ कर एक शेर हैं ! पूरी किताब पढने की प्रबल इच्छा है !
    बहुत आभार !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  38. अच्छी जानकारी दी आलम खुर्शीद जी के विषय में....................

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  39. पीछे छूटे साथी मुझको याद आ जाते हैं
    वर्ना दौड में सबसे आगे हो सकता हूँ मैं

    wah kya bhav hai.......

    sabhee sher ek se badkar ek hai......

    aabhar

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  40. आलम खुर्शीद जी की शायरी का मैं भी फैन हूँ.. पिछले दिनों मेरे आग्रह करने पर उनहोंने मुझे अपनी उर्दू ग़ज़लों की किताब का पी डी एफ भेजा था..बहुत ही उम्दा लिखते हैं. नई किताब के लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई. नीरज जी को इतनी अच्छी समीक्षा के लिए धन्यवाद.

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  41. नीरज जी,
    www.diamondpublication.com
    को फायरफोक्स अटैक साईट बता रहा है...

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  42. प्यारे और आदरणीय भाई नीरज गोस्वामी जी!
    कैसे और किन अल्फाज़ में आप का शुक्रया अदा करूँ मेरी समझ में इस वक्त बिलकुल ही नहीं आ रहा है. कभी कभी ऐसे लम्हे आते हैं ना! कि शब्द अपना अर्थ खो देते हैं और बहुत छोटे मालूम पड़ते हैं ....
    शायद मैं अभी उन्हीं लम्हों से गुज़र रहा हूँ.
    आप ने मेरी किताब हासिल की ...इतनी गंभीरता से पढ़ी ....इतनी सुंदर भूमिका लिखी ...फिर इन्हें कम्पोज़ कर के अपने ब्लॉग तक पहुँचाया ...इतनी मुहब्बतें करने वाले दोस्तों से मेरा परिचय कराया उनके प्यार,स्नेह,हौसला अफज़ाई और दुआओं का पात्र मुझे बनाया ...मुझे ढूँढा...इतने प्यार से अपने घर बुलाया .....
    यह सब कुछ ऐसे शख्स के लिए जिसे आप जानते तक नहीं ...कोई पूर्व परिचय तक नहीं ......
    इतनी मुहब्बत हक़ अदा करने का सामर्थ शब्द कहाँ से लाएं...कम से कम मुझ जैसे कमतर आदमी के पास तो ऐसे शब्द नहीं ही हैं ..........
    सो आप की मुहब्बतों को अपने दिल में धरोहर की तरह संजो कर रख लेता हूँ...ये मेरी रगों में ऊर्जा का संचार करेंगी ...मुहब्बतें बढ़ाएंगी ...
    हाँ! इस समय आपके लिए दिल से बे-इख़्तियार दुआएं ज़रूर निकल रही हैं ...ईश्वर आप को परिवार समेत सदा खुश रखे ....सुखी रखे ...
    सारी सफ़लताओं से नवाज़े .........
    मैं उन तमाम मित्रों का भी बेहद शुक्रगुज़ार हूँ जिन्हों ने आप की प्रस्तुति पसंद की ..अपनी कीमती राय से नवाज़ा मुहब्बतों और दुआओं से नवाज़ा और मेरा हौसला बढ़ाया .....
    मैं खुद को इतनी मुहब्बतों का पात्र नहीं समझता मगर कोशिश करूँगा कि आइन्दा कुछ ऐसा लिखूं और वाकई इसका पात्र बन सकूं.
    आप की भाषा बहुत आकर्षक और सरस है ..मेरी शदीद ख्वाहिश है कि मैं फ़ुर्सत के लम्हात चुरा कर आप की रचनाओं से आशनाई हासिल करूँ और उनसे लाभान्वित हो सकूं ....आप से संपर्क बना रहे तो मुझे बहुत खुशी होगी . मुझे नेटवर्किंग नहीं आती . यह कमेंट्स दूसरी बार पोस्ट कर रहा हूँ एक बार नाकाम हो गया .....
    तमाम शुभ कामनाओं सहित....
    आलम खुरशीद

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  43. आलम भाई मेरे पसंदीदा शायर हैं। उनकी पुस्तकें सच में संग्रहणीय हैं। आपने पुस्तकों का नाम पता बता कर मेरा काम आसान कर दिया। आज तक तो सिर्फ fb पर या उनकी साइट पर जा कर ही उनको पढती रही। शुक्रिया

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे