एक पुरानी फिल्म चलती का नाम गाडी का गाना है “जाना था जापान पहुँच गए चीन समझ गए ना...”वहीँ से बात शुरू करते हैं, "पहुँच गए चीन...समझ गए ना"...अरे इसमें समझने जैसी क्या बात है जब चीन ही जाना तो चीन ही पहुँचते जापान तो पहुँचने से रहे. चीन जाने का कार्यक्रम महीनों से बन रहा था और मैं अपनी सीमित ताकत के प्रयोग से इसे टालने के प्रयास में जुटा हुआ था. सही बात तो ये है के विगत ग्यारह सालों में इतनी विदेश यात्रायें की हैं के अब विदेश यात्रा के नाम से कंपकंपी सी छूटने लगती है. विदेश यात्रा के दौरान हुई थकान और बिगड़ी दिनचर्या को ठीक करने में बहुत समय चला जाता है. इसलिए अब मैं विदेश यात्रा के लिए अपने अपेक्षाकृत युवा साथियों को भेजने में सहायता करता हूँ. खैर मेरी ताकत, जैसा मैंने ऊपर कहा, सिमित थी इसलिए जल्द ही चुक गयी और मुझे जाना ही पड़ा.
आज की पोस्ट इसी चीन यात्रा को समर्पित है जो हमारे वर्तमान ग्राहकों को मिलने और नए ग्राहकों की तलाश के उद्देश्य से की गयी थी, इस पोस्ट में आपको चीन की कोई आर्थिक, सामाजिक , भौगोलिक या सामाजिक जानकारी नहीं मिलेगी अगर आप इन सबकी जानकारी के लिए ये पोस्ट पढ़ रहे हैं तो आप इसे पढ़ना यहीं छोड़ सकते हैं. ये खालिस टाइम पास पोस्ट है. बाद में आप हाथ मलते हुए ये मत कहना “ खालीपीली बेकार में टाइम वेस्ट हो गया यार ".
21 नवंबर की रात एक बज कर बीस मिनट पर जैसे ही मुंबई अंतर राष्ट्रिय हवाई अड्डे से “कैथे पैसफिक” का विमान रवाना हुआ वैसे ही मेरे साथ यात्रा कर रहे मेरे दो और अधिकारियों के चेहरे पर रौनक आ गयी. कारण खोजने में वक्त नहीं लगा उन्होंने खुद ही चहकते हुए कहा “ अब फ़ोकट की दारु मिलेगी सर...”. दारू मिलेगी ये तो उन्हें पता था लेकिन कब इसकी फ़िक्र में दोनों अपनी जगह पर ढंग से बैठ नहीं पा रहे थे. फ़िक्र ये के अगर कहीं नींद का झोंका आ गया और विमान परिचारिका उन्हें बिना जगाए आगे बढ़ गयी तो ? याने चीन यात्रा का पहला मकसद ही पानी में चला जाएगा.
एक बात पक्की है, फ़ोकट में जब मिले जो मिले उदरस्त करने की प्रवृति हर इंसान में होती है इसमें देश-भाषा-रंग-धर्म कुछ भी आढे नहीं आता.इस मामले में पृथ्वी के सब इंसान एक हैं. तीन बजे रात इस कार्यक्रम का समापन चाय काफी वितरण से हुआ. थोड़ी नींद आई ही थी के भारतीय समय के अनुसार लगभग पांच बजे याने स्थानीय समय के अनुसार सात बजे फिर से सबको उठा कर नाश्ता दिया गया जिसे मैंने फिर लेने से मना कर दिया. विमान परिचारिका समझी मुझे पेट सम्बन्धी कोई गंभीर समस्या है इसलिए आ कर बोली “विल यू टेक सम फ्रेश लाइम जूस सर ? इट इज गुड फार स्टोमक....” मैंने उसे कहा “नो थैंक्स” और मन में कहा हे देवी मुझे सोने दो मेरी सारी समस्याओं का निवारण हो जायेगा. नाश्ते के कार्यक्रम के समापन के आधे घंटे बाद विमान के हाँगकाँग एयरपोर्ट पर उतरने की सूचना प्रसारित कर दी गयी.
जब विमान हाँगकाँग हवाई अड्डे पर उतरा तब स्थानीय समय के अनुसार सुबह नौ बजे थे याने भारत में सुबह के साढ़े छै बजे थे. रात ढेढ से सुबह साढ़े छै याने पांच घंटों के इस सफर में कुल मिला कर शायद एक घंटे की नींद ही मिली होगी.
सुबह होते ही विमान में बैठे यात्री सारी रात बैठ कर खाए ठोस डिनर और नाश्ते को गैस में परिवर्तित हो चुकने की सूचना सार्वजानिक रूप से देने लगे.
हाँगकाँग एयरपोर्ट, मेरी तुच्छ बुद्धि के हिसाब से अकेला ऐसा एयरपोर्ट है जो एक तरफ समुद्र और दूसरी तरफ पहाड़ों से घिरा हुआ है. मुझे हर बार यहाँ उतर कर बहुत अच्छा लगता है इसकी सफाई और सुंदरता मन मोह लेती है. आप भी इस एयरपोर्ट के एक आध चित्र देखें जो मैंने अपने साधारण मोबाइल से खींचे.
हाँगकाँग से हमें दो घंटों बाद चाइना एयर लाइन के विमान से शंघाई जाना था. ये दो घंटे हमने एयरपोर्ट पर जितना घूमा जा सकता था घूम कर ,कुर्सी पर बैठे ऊंघ कर या विमान में चढने को तैयार लंबी लाइन में खड़े हो कर बिताये. दोपहर लगभग दो बजे हम शंघाई पहुंचे. चीन पहुँचने का मेरा ये पहला अनुभव था, इस से पहले इस देश के आसपास के सभी देश देख डाले थे लेकिन चीन ही नहीं जा पाया था.
शंघाई एयरपोर्ट यकीनन बेहद खूबसूरत था, वहाँ के कर्मचारी एक दम चुस्त दुरुस्त चौकन्ने मुस्कुराते हुए नज़र आये. इमिग्रेशन वाले ने “नमस्ते,वेलकम टू चाइना” बोल कर खुश कर दिया. एयरपोर्ट के बाहर आये तो ठंडी हवा के झोंके ने तरो ताज़ा कर दिया. टैक्सी से जब होटल की और चले तो साफ़ चौड़ी सड़कें, जो शहर और एयरपोर्ट को जोड़ती हैं और जमीन से ऊपर बनाई गयी हैं ताकि वाहन सौ या ढेढ सौ की.मी. की रफ़्तार से बिना रोक टोक के चल सकें, देख कर यकीन हो गया के जो लोग मुंबई को शंघाई बनाने की बात कर रहे हैं उन्होंने शंघाई देखा ही नहीं है, वर्ना वो ऐसी मूर्खता पूर्ण असंभव बात कभी नहीं करते .
बिना खड्डों और स्पीड ब्रेकर्स के बनी इस सड़क पर चलते कब एक घंटे हम होटल पहुँच गए पता ही नहीं चला. इस चीन की कल्पना कम से कम मैंने तो नहीं की थी. यहाँ उद्देश्य दूसरे देश की प्रशंशा और अपने देश की बुराई करने का नहीं है यहाँ उद्देश्य सिर्फ अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा बताने का ही है.
भारतीय समय के अनुसार दोपहर के दो बज चुके थे जब हम अपने होटल के कमरे में पहुंचे. नहाये धोए तो मेरी भूख जग गयी. मेरे साथ के अधिकारी चूँकि लगातार चरते आये थे इसलिए उन्हें भूख ने अधिक परेशान नहीं किया हुआ था. घंटे भर बाद तैयार हो कर हमने होटल के बाहर घूमने की योजना बनाई, कुछ ही कदम चले होंगे के सामने फल विक्रेता की दूकान दिखाई दी. करीने से सजे ताज़े और हट्टे कट्टे फल निहायत ख़ूबसूरती से प्रदर्शित किये गए थे. आप भी चित्र में देखें. हम अपने आपको ताज़े सेब खरीदने से नहीं रोक पाए. लाल और रस से भरे सेब जिनमें दांत गड़ाते ही आनंद आ गया. सेब खाते हुए हम शंघाई की सड़कों पर निरुद्देश घूमने लगे. सड़कों पर चमचमाती विदेशी कारें स्कूटर और एक आध साईकिल सवार भी दिखाई दिए. किसी जमाने में सड़कों पर एकाधिकार रखने वाले साईकिल सवार सुना है चीन के महानगरों से अब गायब ही हो गए हैं. कम से कम शंघाई में तो मुझे नज़र आये नहीं. चीन के शहरों में संपन्न लोग रहते हैं इसका अनुमान शंघाई की सड़कों पर एक घंटा घूमने से ही हो गया. लकदक करते बाज़ार और हँसते खिलखिलाते युवा हलकी ठण्ड वाले माहौल को और भी खुशनुमा बना रहे थे.
एक घंटा घूमने के बाद सेब पच गए और भूख ने सर उठाना शुरू कर दिया. शंघाई में वो सज्जन जो हमें शाम का खाना खिलाने ले जाने वाले थे किसी जरूरी कारण वश बैंकाक चले गए. उन्होंने हमें समझाया की भारतीय रेस्टोरेंट, हमारे होटल के पास ही है, आप होटल रिशेप्शन पर पता करलें. याने अब हमें अपना भारतीय खाना खुद ही ढूढना था. वापस होटल आये और भारतीय रेस्टोरेंट का पता पूछा, होटल वाले ने क्या कहा और हमने क्या समझा यहाँ बतलाना मुश्किल है. जिस टैक्सी वाले को होटल वाले ने समझा कर भारतीय रेस्टोरेंट भेजा था वो हमें जिस जगह ले गया वहाँ भारतीय भोजन के अलावा सब कुछ मिल रहा था. वापस लौटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.जिस टैक्सी पर हम आये थे वो जा चुकी थी . ठण्ड और भूख दोनों बढ़ रहीं थीं. सड़कों पर दौड़ती टैक्सियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. "मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक्त अपना बर्बाद करे..."जिस किसी से भी बातचीत की कोशिश करते वो अजीब से इशारे कर चीनी भाषा में क्या कहता कुछ पता ही नहीं चलता था. आप यकीन नहीं करेंगे भरपूर कोशिश करने के बावजूद भी हमें एक भी इंसान इंग्लिश समझने या बोलने वाला नहीं मिला.सड़क के किनारे खड़े खड़े एक घंटा बीत गया तब कहीं एक टैक्सी वाला आ कर रुका. उसमें बैठ फिर होटल गए. इन्टरनेट की मदद से भारतीय रेस्टोरेंट खोजे गए उनका नाम और पता चीनी भाषा में लिखवाया गया, फिर से टैक्सी लिए और चल पड़े.
एक घंटा घूमने के बाद सेब पच गए और भूख ने सर उठाना शुरू कर दिया. शंघाई में वो सज्जन जो हमें शाम का खाना खिलाने ले जाने वाले थे किसी जरूरी कारण वश बैंकाक चले गए. उन्होंने हमें समझाया की भारतीय रेस्टोरेंट, हमारे होटल के पास ही है, आप होटल रिशेप्शन पर पता करलें. याने अब हमें अपना भारतीय खाना खुद ही ढूढना था. वापस होटल आये और भारतीय रेस्टोरेंट का पता पूछा, होटल वाले ने क्या कहा और हमने क्या समझा यहाँ बतलाना मुश्किल है. जिस टैक्सी वाले को होटल वाले ने समझा कर भारतीय रेस्टोरेंट भेजा था वो हमें जिस जगह ले गया वहाँ भारतीय भोजन के अलावा सब कुछ मिल रहा था. वापस लौटने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था.जिस टैक्सी पर हम आये थे वो जा चुकी थी . ठण्ड और भूख दोनों बढ़ रहीं थीं. सड़कों पर दौड़ती टैक्सियां रुकने का नाम नहीं ले रही थीं. "मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक्त अपना बर्बाद करे..."जिस किसी से भी बातचीत की कोशिश करते वो अजीब से इशारे कर चीनी भाषा में क्या कहता कुछ पता ही नहीं चलता था. आप यकीन नहीं करेंगे भरपूर कोशिश करने के बावजूद भी हमें एक भी इंसान इंग्लिश समझने या बोलने वाला नहीं मिला.सड़क के किनारे खड़े खड़े एक घंटा बीत गया तब कहीं एक टैक्सी वाला आ कर रुका. उसमें बैठ फिर होटल गए. इन्टरनेट की मदद से भारतीय रेस्टोरेंट खोजे गए उनका नाम और पता चीनी भाषा में लिखवाया गया, फिर से टैक्सी लिए और चल पड़े.
पहला रेस्टोरेंट “इन्डियन किचन” बंद मिला. दूसरे ‘दिल्ली दरबार’ का जब पता टैक्सी वाले को बताया तो उसने इशारे में समझाया की वो बहुत दूर है. दिल्ली दरबार का नंबर जब अपने मोबाईल से मिलाया गया उधर से आवाज आई “हेल्लो जी”. लगा जैसे इश्वर ने हमारी सुन ली. हमने आदतानुसार अंग्रेजी में बात की तो जवाब आया “ बद्शाओ क्यूँ अंग्रेजी बोल के डरा रहे हो सीधे आ जाओ, मेरी टैक्सी वाले से बात करवाओ” दोनों ने चीनी भाषा में बात की और हम खुशी खुशी चल दिए अपने गंतव्य की और.
दिल्ली दरबार वास्तव में दूर था लेकिन उस तक जाने का रास्ता निहायत खूबसूरत. चालीस मिनट की इस यात्रा में हमने शंघाई की रात का नज़ारा किया. जगमगाती ऊंची बिल्डिगें और सड़कें आँखें चकाचौंध कर गयीं . मैंने विकसित देशों की बहुत यात्रायें की हैं लेकिन इमारतों पर इतनी ख़ूबसूरती से की गयी रौशनी कहीं नहीं देखी. ऐसी रौशनी जो आपको जादुई संसार में होने का आभास दिलाती है.
(ये फोटो गूगल देवता से साभार)
“दिल्ली दरबार” के बाहर से ही हिंदी गाने “मुन्नी बदनाम हुई...” सुन कर बांछें खिल उठी. अंदर एक विशाल टी.वी. स्क्रीन पर चल रहे दबंग के गीत ने सारी थकान दूर कर दी. चारों तरफ बैठे भारतीय चेहरों और गरमा गरम सौंधी खुशबू वाले भोजन को देख कर लगा जैसे घर आ गए हैं. भोजन कर जब रेस्टोरेंट से रवाना हुए रात का एक बज रहा था...
बाकि फिर....
दिल्ली दरबार वास्तव में दूर था लेकिन उस तक जाने का रास्ता निहायत खूबसूरत. चालीस मिनट की इस यात्रा में हमने शंघाई की रात का नज़ारा किया. जगमगाती ऊंची बिल्डिगें और सड़कें आँखें चकाचौंध कर गयीं . मैंने विकसित देशों की बहुत यात्रायें की हैं लेकिन इमारतों पर इतनी ख़ूबसूरती से की गयी रौशनी कहीं नहीं देखी. ऐसी रौशनी जो आपको जादुई संसार में होने का आभास दिलाती है.
(ये फोटो गूगल देवता से साभार)
“दिल्ली दरबार” के बाहर से ही हिंदी गाने “मुन्नी बदनाम हुई...” सुन कर बांछें खिल उठी. अंदर एक विशाल टी.वी. स्क्रीन पर चल रहे दबंग के गीत ने सारी थकान दूर कर दी. चारों तरफ बैठे भारतीय चेहरों और गरमा गरम सौंधी खुशबू वाले भोजन को देख कर लगा जैसे घर आ गए हैं. भोजन कर जब रेस्टोरेंट से रवाना हुए रात का एक बज रहा था...
बाकि फिर....
bahut sundar yatra vritant !
ReplyDeleteधन्यवाद जी! विदेश यात्राओं में आने वाली परेशानियों की जानकारी देने के लिए। आगे हो सके तो यह भी बताएँ किस काम से गए थे। पत्रकार मन बड़ा जिज्ञासु होता है। पुन: धन्यवाद।
ReplyDeleteग़ज़ल की उम्मीद में यात्रा वृत्तांत देखकर सुखद अश्चर्य हुआ... मगर मज़ा आ रहा है पढकर...
ReplyDeleteमुन्नी भी मिल गई आपको! चलिए मुबारक हो चीनी कम न होने पाए!!!
लो जी चीन पहुंचकर भी मुन्नी का गाना ही थकान उतारने के काम आया।
ReplyDelete*
चीना यात्रा वृतांत पढ़ना सुखद लग रहा है। काम और तारीख का उल्लेख भी करें तो और बेहतर रहेगा।
lijiye chin me bhi apna bharat mil hi gaya ... gane ne kitna sahaj kiya hoga , hahahaha
ReplyDeleteये तो बहुत बढिया यात्रा वृतांत रहा और साथ मे मुन्नी भी मिल गयी…………अच्छा तरीका रहा थकान उतारने का…………हा हा हा।
ReplyDeleteअच्छी रपट. मुन्नी का क्या है सारी दुनिया में बदनाम हो चली है. कैथी पैसिफिक वाले खातिरदारी अच्छी करते हैं ये तो सच है पर लोग भी अपनी आदत से बाज नहीं आते हरकत तो करते हैं. अच्छा लगा ये सब पढ़ना.
ReplyDeleteबहुत खूब यात्रा संस्मरण. एक से बढ़कर एक बढ़िया बातें.
ReplyDeleteमुझे लगता है कि मुंबई को हम संघी नहीं बना सके तो क्या? कोलकाता को बना लेते हैं. रेस्टोरेंट वाले को अंग्रेजी बोलकर डराना नहीं चाहिए था.
हैं जी?
सूचना: संघी को शंघाई पढ़ा जाय. इसका कोई राजनैतिक मतलब नहीं है:-)
ReplyDelete१० साल पहले जब में शंघाई गया था तो उसकी इमारतें और सड़कें देख काट चकित रह गया था ... आपके चित्र इस बात की पुष्टि कर रहे अहीं की आज भी चीन की कमिटमेंट का कोई सानी नही है ... मज़ा आ गया इस पोस्ट को पढ़ कर ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर यात्रा वर्णन ....मय चित्र बढ़िया पोस्ट ...अब जब बदनाम हो ही गयी तो चर्चा हर जगह पहुँच गयी मुन्नी की ..पर जो भी हो सुकून तो बहुत मिला होगा ....अरे गाने पर नहीं खाने पर ...
ReplyDeleteसमझ गए जी :)
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी आपकी चीन यात्रा. जहाँ तक सड़कों की बात है भारत में तो बगैर गड्ढों वाली सड़क एक सपना ही है हम तो सीधे पुष्पक विमान बनायेंगे इसलिए सड़क बनाने में ज्यादा ध्यान नहीं देते. :/
बढ़िया यात्रा संस्मरण... अगले अंक की प्रतीक्षा है...
ReplyDeleteAapka gadya lekhan bhee gazal kee
ReplyDeleteshaaeestgee jaesaa hota hai . khoob
likha hai aapne ! yaatra vritaant
padh kar vaakaee mazaa aa gayaa
hai . yun hee gadya - padya likhte
rahiye aur sabke dilon ko lubhaate,
rijhaate rahiye . shubh kamnaaon ke
saath .
कमाल है नीरज जी कमाल
ReplyDeleteआपने तो इस विधा में भी अपने हुनर का ऐसा जलवा दिखा दिया, कि बस.
बहुत अच्छी रही पोस्ट...
और ये ’बाक़ी फिर’
जल्दी ही :)
आपके साथ शंघाई की सैर कर आनंद आ गया ।
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत वर्णन किया है अपने यात्रा का ।
दिल्ली दरबार के बारे में पढ़कर तो हमें भी मुंबई का दिल्ली दरबार याद गया ।
Rochak....balki AtiRochak.....agli kadi ka intzaar rahega....
ReplyDeleteथकान तो तब दूर हुई जब हिंदी गाने सुने
ReplyDeleteमजा तब आएगा जब एक गज़ल लिखेंगे।
"मसरूफ ज़माना मेरे लिए क्यूँ वक्त अपना बर्बाद करे...
ReplyDeleteहमने वक्त बिल्कुल भी बर्बाद नही किया, शुरू से आखिर तक अक्षरश: आपका यह रोचक यात्रा वृतांत पढा, पर लगता है आप पर भी एकता कपूर की आत्मा सवार होगई, ऐसी जगह लाकर रोका है कि अब मुंह में पानी आरहा है कि आपने वहां दिल्ली दरबार में क्या क्या माल खींचा होगा और हम यहां बिना घी की खिचडी से पंगे ले रहे हैं.:)
यकिनन लाजवाब रिपोर्ट, आगे की लिखिये, इंतजार हैं.
रामराम.
बहुत सुन्दर और मनोरंजक यात्रा वृतांत..आभार
ReplyDeleteमज़ा आ गया :)
ReplyDeleteचीन के बारे में यह सब जानकर अच्छा लगा। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चलाने का खर्च ही इतना अधिक है कि फँकामस्ती बनी रहती है। विकास कार्यों में जो घोटाला जड़ जमाये हुआ है उसके कारण हम वाकई शंघाई नहीं बना सकते।
ReplyDeleteखाली पीली वार्निंग देके डरा दिया आपने. एकदम मस्त विवरण. होंग कोंग का तो अपना भी अनुभव यही है. शंघाई के बारे में भी ऐसा ही अनुभव अक्सर सुनने को मिलता है लोगों से. बढ़िया.
ReplyDeleteपहले तो अपना राष्ट्रीय चरित्र बनाना पड़ेगा, शंघाई तो बहुत दूर है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर विवरण लगा आप की चीन यात्रा का, वेसे चीनी लोग हमारे दोस्त नही बनते पता नही क्यो, ओर यह मुन्नी चीन जा कर भी बदनाम हो गई राम राम:)
ReplyDeleteचलिए शंघाई में आपको भारतीय भोजन आखिर मिल ही गया। बढ़िया रहा ये यात्रा वृत्तांत।
ReplyDeleteachchhe ko achchha aur bure ko bura kahne ka andaaz kamaal ka tha sir.. bas yahi to nahin aata mujhe. agla hissa jaldi aayega na?
ReplyDeleteआनन्द आ गया जिन्दा यात्रा वृतांत पढ़कर...लगा कि साथ साथ घूमे और खाना खा कर अब निकल रहे हैं रात एक बजे. :)
ReplyDeleteआपका चीन-यात्रा संस्मरण इतना रोचक लगा कि अगली कड़ी की बेसब्री से प्रतीक्षा है !
ReplyDelete-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
और चले जाओ चीन।
ReplyDeleteएक तो भारत छोडकर चीन जा रहे हो, ऊपर से वहां भारत को ढूंढ भी रहे हो। अजी हमारे यहां आ जाते, हम आपको शुद्ध भारतीय भोजन कराते- फ्री में।
खैर, मजा आ गया। यात्रा वृत्तान्त में खासकर विदेश यात्रा वृत्तान्त में अपने देश की बुराई पढना मुझे हजम नहीं होता। आपने शुरू करके जल्दी ही इस मुद्दे को दबा लिया। आपसे उम्मीद है कि चीन के बाकी वृत्तान्त में मेरी ख्वाहिश को ध्यान में रखते हुए भारत का नकारात्मक जिक्र नहीं आना चाहिये।
धन्यवाद।
जाने अनजाने आपने इस वृतान्त में एक बेहतरीन नायाब फ़ार्मूला सुझा दिया है लंबी दूरी की उड़ानों के लिये। जल्दी ही अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें आपके इस फार्मूले के कारण सस्ती होने वाली हैं। यात्रा के आरंभ में ही सभी यात्रियों को ठुँसा ठुँसा कर खिलाया जाये; उचित होगा कि यात्रा से पहले एयरपोर्ट पर ही ठुँसा दिया जाये; परिणामस्वरूप जो गैस निर्मित होगी वो आधी यात्रा की इ्रधन आवश्यकता की पूर्ति के लिये पर्याप्त रहेगी।
ReplyDeleteतस्वीरें देख कर लगता है अभी हमे चीन के बराबर पहुँचने मे सौ साल लगेंगे। विस्तार से सुन्दर संस्मरण। शुभकामनायें।
ReplyDeleteMsg received through e-mail:--
ReplyDeleteबंधु,आपका यात्रा विवरण पढते पढते लगा हम भी शंघाई पहुँच गए /होटल की सोंधी गंध आपने हम तक पहुंचा दी है और घर बैठे हमने भी पत्नी को दाल रोटी की फरमाइश कर दी है/अगली पोस्ट मे बताइयेगा आपने खाया क्या और क्यों कर जाना हुआ वहां/
हार्दिक स्नेह ,सम्मान सहित आपका ही ,
Dr.Bhoopendra Singh
T.R.S.College,REWA 486001
Madhya Pradesh INDIA
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआपके बहाने हमने भी घूम लिया चीन, शुक्रिया।
ReplyDelete---------
दिल्ली के दिलवाले ब्लॉगर।
तो जनाब ....
ReplyDeleteचीन घूम-घाम कर वापिस लौट आये
और हाँ
खाना खिलाने वाली सुशील कन्या
आपको बदसूरत नज़र आई
और
मुन्नी को बदनाम होते देख
कैसे मुस्कराहट दौड़ पडी .....
कभी अपनी प्रिय पत्नी जी को साथ ले जाओ
तो पता चले . . . . !!
शादी की सालगिरह मुबारक हो !
ReplyDeleteसुखमय वैवाहिक वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह वाह !
ReplyDeleteहमने आपकी नज़र से चीन भी घूम लिया ...आभार भाई जी
आप कुछ भी हो खूसट बुढऊ तो नही हो सकते
ReplyDeleteवाह जी, क्या बात है......
ReplyDelete@बद्शाओ क्यूँ अंग्रेजी बोल के डरा रहे हो सीधे आ जाओ
वो दिन दूर नहीं - जब हम लो ग्लोबल हो जायेंगे.......
अच्छा विवरण लगा.
अभी चौदह तारीख बीतने में 6 मिनट बाकी हैं। अभी अभी पता चला है कि आज का दिन आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सो हम भी पीछे क्यों रहें। मुबारक हो, बधाई हो। विवाह की वर्षगांठ की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteतभी चीनी प्रधान मंत्री इधरिच आने को है....हिसाब बरोबर के वास्ते .......एक दम धक् चिक पोस्ट.....परिचारिका की फोटो बड़ी ढूंढी मिली नहीं...!!!!
ReplyDeleteवाह सुंदर विवरण. चीन घुमाने के लिए आभार.
ReplyDeleteआँखों देखी को बयान करने का हुनर आप में खूब है, ज़बान की फ़साहत और बच निकलने तरकीब-ए-लफज़ी कमाल की है. तरक्की की कथाएँ सुनना और हकीकत से आँख मिलाना, दोनों जुदा बातें हैं. यात्रा विवरण पूरा करें, इंतजार है.
ReplyDeleteएक आप हैं- कहते हैं इतनी विदेश यात्राएं कीं ...... एक हम हैं जो अपने देश-प्रदेश में ही घूम रहे हैं लेकिन पूना तक नहीं पहुंच सके. चीन यात्रा का ऐसा वृत्तांत लिख मारा है कि अब दूसरे भाग की प्रतीक्षा करनी ही पड़ेगी. चीनी भाषा के कौन कौन से शब्द सीखे?
ReplyDeleteaap pass se aakar lout gaye Singapore nahi aaye :-( ab plan bana hi le yaha ka..
ReplyDeleteE-mail received from Om Prakash Sapra Ji:--
ReplyDeletedear bhai neraj ji
namastey,
i read with interest china's detour report given by you, which is really a tough task.
your expression given us false impression that we are also roaming in china alongwith you,
is it a mith or reality ?
answer to this question will lead to the quality of good writing u have done.
i must give u congrats for this piece of report, leaving behind great impression on us.
with regds.
-om sapra, delhi-9
इ-मेल चाँद शुक्ल जी की-डेनमार्क से:--
ReplyDeleteNeeraj bhai mujhe nahin maloom tha ke aap chiin men itna maza karenge...aap se chiin yatra ke dauraan baat bhi ki thi aur aaplo Denmark say phone bhi to kiya tha
Denmark aane kay liye
Chaand
E-mail from Rahul, Newzealand:--
ReplyDeleteChha gaye uncle...gazab ki report hai..
Rahul
Neerajbhai
ReplyDeleteWonderful description. Shall wait v eagerly for the next one.
Thanx for sharing.
-Harshad Jangla
Atlanta, USA
mai har us comment se sahmat hun jo kahte hai ki lag raha hai hum bhi sath hi china ghum aaye hai..behad nape tule sabdo mai rochak,hasyapuran
ReplyDeletegadh lekhan..
सीधे जुड़ गया विवरणों से।
ReplyDelete