Monday, June 7, 2010

मुश्किलों का गणित ये कैसा है



हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को

मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को

दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को

सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को

बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को

हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को

सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को

62 comments:

  1. बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!

    ReplyDelete
  2. एक उम्दा ग़ज़ल... हर शेर ख़ूबसूरत !!

    ReplyDelete
  3. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    ReplyDelete
  4. नीरज जी ,

    मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    ज़िंदगी का फ़लसफ़ा इतनी ख़ूबसूरती से बयान किया है आप ने वाह!
    मतला भी बहुत उम्दा है

    हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को

    ख़ुदग़र्ज़ी का ये रूप भी बहुत अच्छी तरह शेर में ढाला गया है
    अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई

    ReplyDelete
  5. bahut achhi ghazal neeraj ji ..matla aur uske baad ka sher to lazawaaaaaaaabb ....

    ReplyDelete
  6. लाजवाब ग़ज़ल है ... एक एक शेर जैसे एक एक अनमोल मोती ..

    ReplyDelete
  7. बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
    भूल जा आशियाँ बनाने को


    हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को
    Waah !

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर ग़ज़ल....सच को दर्शाती...

    ReplyDelete
  9. सांस लेना मुहाल कर देगा
    सर चढ़ाया अगर ज़माने को !!

    वाह्! क्या बात है! बेहतरीन गजल नीरज जी....

    ReplyDelete
  10. bahut achhi ghazal hai ..par mushkilon ka ganit mera sabse pasandeeda sher hua.. :)

    ReplyDelete
  11. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को
    बहुत उम्दा नीरज जी .. रोज़मर्रा की बोलचाल के शब्दों से बुनी ... सादा सी ग़ज़ल पर गहरे अर्थ संजोय .... हर शेर खिलते हुवे गैन्दे के फूल के समान ...

    ReplyDelete
  12. ACHCHHEE GAZAL KE LIYE AAPKO
    BADHAAEE.

    ReplyDelete
  13. बेहद खूबसूरत गज़ल्………………हर शेर उम्दा।

    ReplyDelete
  14. सांस लेना मुहाल कर देगा
    सर चढ़ाया अगर ज़माने को

    लाख टके की बात कही है आपने.

    ReplyDelete
  15. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को
    बात सच कही आपने ...vo bhi बड़ी सुन्दरता से

    ReplyDelete
  16. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को

    Laajawaab to har lafz hai,par chup rahne ka hunar kaise seekhen?

    ReplyDelete
  17. नमस्कार नीरज जी,
    इस शेर के क्या कहने, बिना घुमाये फिराए सच बयानी................
    मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    ReplyDelete
  18. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को

    -हाय!! मगर चुप रहा भी तो नहीं जाता...:)


    बहुत बेहतरीन गज़ल जनाब!! वाह!

    ReplyDelete
  19. हाल बेताब हों रुलाने को, तू मचल कहकहे लगाने को; वाह साहब वाह क्‍या मुकाबला है।

    मुश्किलों का गणित ये कैसा है, बढ़ गयीं जब चला घटाने को;
    हुजूर
    जिन्‍दगी को गणित नहीं समझो,
    गो कि पल का हिसाब रहता है।

    दौड़ हम हारते नहीं लेकिन, थम गये थे तुझे उठाने को; अब हुजूर ये तो ज़माने की चाल है लेकिन: कोई गिर जाये रस्‍ते में तो रुक जाना, उठा लेना
    मज़ा कुछ और आता है रकीबों को उठाने में।

    सांस लेना मुहाल कर देगा, सर चढ़ाया अगर ज़माने को;
    सम्‍हल कर सर चढ़ायें, यहॉं तो:
    वो जो अंगुली पकड़ के चलते थे
    आज छाती पे मूँग दलते हैं।

    गंभीरता से न लें।

    ReplyDelete
  20. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को
    बहुत सुन्दर
    जीवन का सत्य है शायद
    कहीं गुणक में होती तो

    ReplyDelete
  21. वाहवा.. वाहवा.. भाईजी, क्या बात है.... मज़ा आ गया.... ला..ज..वा..ब.. ग़ज़ल.....

    ReplyDelete
  22. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    इन दिनों मेंढ़कों की तरह ग्रीष्‍म निष्‍क्रियता में हूं । गर्मी के समापन की प्रतीक्षा में । लेकिन आपके इस मकते ने ग्रीष्‍म निष्‍क्रियता से बाहर निकाल दिया । इसमें रंग-ए-नीरज है । खपोली में तो शायद बरसात आ गई होगी । हमारे यहां तो इतनी सड़ी हुई गर्मी पड रही है कि बस । एक और बेहतरीन ग़ज़ल पर बधाई ।

    ReplyDelete
  23. बहुत खूब ,
    मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को
    चुप रहने की बाबत कितना कुछ कह दिया है ...

    ReplyDelete
  24. भाईजी ,नमस्कार !
    तरस गया था मैं आपकी ताज़ा ग़ज़ल पढ़ने को । …ख़ैर अवसर तो मिला ।

    ज़िंदादिली के पैग़ाम को बहुत ख़ूबसूरती के साथ मत्ले में ढाला है…
    हाल बेताब हों रुलाने को
    तू मचल कहकहे लगाने को


    और यहां बोल रही है एक ख़ूबसूरत इंसान की इंसानियत एक ख़ूबसूरत शे'र के माध्यम से…

    दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को


    …और ऐसी कहन और कहीं नज़र नहीं आई

    मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को


    अगली ग़ज़ल का इंतज़ार आज ही शुरू हो गया है , यह याद रखिएगा भाईसाहब !
    हालांकि तब तक तीन-चार बार तो इसी ग़ज़ल के हुस्न-ओ-फ़न से खिंचा हुआ यहां आऊंगा ही आऊंगा ।
    नमन आपको और आपकी क़लम को !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    ReplyDelete
  25. Bau jee,
    Namaste!
    Maine kaha bahut khoob.....
    Bina kisi laag-lapet ke khari-khari!

    ReplyDelete
  26. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को

    to kya mulakaat ka intzaam kare fir?
    dekhiye shayad us aor aana ho....hamara....

    ReplyDelete
  27. चुप रहकर भी इतना कुछ कह गए ।
    वाह नीरज जी ।
    बहुत बढ़िया ।

    ReplyDelete
  28. दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को

    कमाल है भाई.... बस कमाल है

    टिप्पणी क्या करे कोई इस पर
    आप जब आये आज़माने पर

    ReplyDelete
  29. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को


    बहुत सही नीरज जी... एकदम मजा आ गया इस लाईन पर तो.

    ReplyDelete
  30. बहुत ही सुन्दर लिखा है ।

    ReplyDelete
  31. बेहतरीन गजल जी , धन्यवाद

    ReplyDelete
  32. आज आप हमसे बदला ले लिए नीरज जी! आपका फैन हो गए ई गजल पढकर... हमरा जईसा अनपढ अदमी का भी दिमाग में दूगो शेर आ गया है... बुरा मत मानिएगा...

    पाप जी भर के करते जाओ तुम
    बहती गंगा तो है नहाने को.
    हमने सच बोलने की खाई कसम
    आ गए झूठ कल डराने को.

    ReplyDelete
  33. उम्दा गज़ल का लाजवाब मक्ता...

    सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    ...आज तबियत प्रसन्न हो गयी आपकी गज़ल पढ़कर.
    .. वाह! क्या बात है !!

    ReplyDelete
  34. दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को ।

    बेहतरीन

    ReplyDelete
  35. बहुत सुन्दर रचना * * * * * *

    ReplyDelete
  36. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को

    बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
    भूल जा आशियाँ बनाने को


    हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को


    bahut sunder aur sarthak shej hain--sabhi k sabhi...inme bar bar dil aayaa...

    ReplyDelete
  37. बहुत सुन्दर गजल है.
    हर बार सोचते हैं टिप्पणी में कुछ नया लिखें लेकिन अब शब्द कम पड़ते हैं तो क्या करें?

    ReplyDelete
  38. कट पेस्ट करु तो पूरी गज़ल यहा उतारनी होगी . सुन्दर सुन्दर सुन्दर

    ReplyDelete
  39. हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को
    सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    ख़ूबसूरत गजल ..
    अगली ग़ज़ल का इंतज़ार है ..

    ReplyDelete
  40. बहुत ही अच्छी रचना.

    ReplyDelete
  41. 'सांस लेना मुहाल कर देगा
    सर चढ़ाया अगर ज़माने को'
    har sher umda, magar ye bahut khoob hai..........

    ReplyDelete
  42. सभी शेर एक से बढ़ कर एक। बधाई।

    ReplyDelete
  43. कमाल की ग़ज़ल है नीरज भाई ! हर शेर रुकने को विवश करता हुआ ! शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  44. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को


    दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को

    बेहद खूबसूरत फल्सफा बयान किया आप ने
    मुबारक हो.....

    और आप मेरे ब्लोग पर तशरीफ लाये, और चंद अल्फाज़ कहे, सलाह भी दी, आप का बहुत बहुत शुक़्रिया.

    ReplyDelete
  45. सभी कहरहे , कमाल की गज़ल है,
    क्या रहगया कहने , बताने को ।

    ReplyDelete
  46. क्या करें चुप न जब बने रहते
    और कुछ भी न हो बताने को

    लोग जज़्बात निभाते हैं, यहाँ-
    एक रिश्ता नहीं निभाने को

    आशियाँ है यहीं, रहेगा यहीं
    बर्क़ जा - ढूँढ सर छिपाने को

    कुछ तकल्लुफ़ था कुछ थी मजबूरी
    सर चढ़ाना पड़ा ज़माने को

    ज़िन्दगी रेस है, जीतेंगे ज़रूर
    भले तुझको ही हार जाने को

    घटाना-जोड़ना हिकमत ही सही
    कर वो जो हो नफ़ा पाने को

    दिल में कुछ दर्द न हो पर रस्मन
    रोता रह फ़ोटुएँ खिंचाने को

    आपकी ग़ज़ल बहुत पसन्द आई नीरज साहब, मगर इस दिल का क्या करूँ जो आज बच्चे की तरह ज़िद कर बैठा उल्टा सोचने की - सो सब उलट-पलट दिया - और आख़री शे'र से शुरू होकर पहले तक गया। गुस्ताख़ी माफ़ कीजिएगा।
    ख़ैर, बच्चों का नटखट-पन तो छोड़िए, मगर आपकी आज की ग़ज़ल बहुत पसन्द आई है। बहुत-बहुत।
    बधाई!

    ReplyDelete
  47. और वाह! मेरा कमेण्ट 50वाँ था - अब 51वाँ भी ये हो जाएगा। यानी आधा सैकड़ा। इतनी तो पोस्टें लिखना मुहाल हो जाता है बहुतों को।
    वाह!

    ReplyDelete
  48. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    ...
    सही कह रहे हो जी।

    ReplyDelete
  49. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    वाह!


    हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को


    अच्छी ग़ज़ल के लिए बधाई

    ReplyDelete
  50. एक हलचल सी मच गई है .............. बेहतरीन लिखा है आपने ..........

    ReplyDelete
  51. बहुत ख़ूबसूरत और शानदार ग़ज़ल! हर एक शेर लाजवाब लगा! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
  52. BEHD SUNDAR GJAL .
    SACH AAJ SARA GNIT HI GDBDA GYA HAI .

    ReplyDelete
  53. सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    लाजवाब ग़ज़ल.............
    सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक आभार

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर

    ReplyDelete
  54. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
    थम गये थे तुझे उठाने को
    लाजवाब शेर हैं नीरज जी।
    आपके ब्लाग पर बहुत दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ दूसरी बात आपने कह दी है
    सबसे बहतर है चुप रहें 'नीरज'
    जब नया कुछ न हो सुनाने को
    मेरे पास भे3ए इतने दिन कुछ नया नही था सुनाने को इस लिये नेट से दूर रही
    बहुत अच्छी गज़ल है बधाई

    ReplyDelete
  55. बहुत बढ़िया ! हम भी बस यही कह पाते हैं हर बार :)

    ReplyDelete
  56. मुश्किलों का गणित ये कैसा है
    बढ़ गयीं जब चला घटाने को

    हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
    चल दिए जब कहा निभाने को


    Beautiful shers sir... so simple yet so effective

    ReplyDelete
  57. अरे वाह-वाह नीरज जी...वाह-वाह! जबरदस्त काफ़ियों वाली कहर ढ़ाती ग़ज़ल। तू मचल कहकहे लगाने को वाले मिस्रे पे तो पहले सौ दाद कबूल फरमायें। बहुत खूब!

    इतनी छोटी-सी बहर में जैसे कुछ नहीं छोड़ा आपने। मक्त एकबार फिर लाजवाब करता हुआ....

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे