Monday, June 14, 2010

किताबों की दुनिया - 31

दोपहर का समय था जब डोर बेल बजी. भयंकर गर्मी में कौन चला आया सोचते जब दरवाज़ा खोला तो सामने कोरियर वाले को खड़ा पाया. जब वो बोला के साब आपके लिए कोरियर सीहोर से आया है यहाँ साइन करिए तब उसके हाथ में मैंने एक मोटा सा बण्डल देखा. ख़ुशी के मारे चीख सी निकल गयी...अरे ये क्या ले आये भाई? कोरियर वाले को अन्दर बुलाया, ठंडा पानी पिलाया और जब तक वो पानी पीकर गिलास मेज़ पर रखता तब तक बण्डल को मैं उत्सुकता वश खोल चुका था. बण्डल में से किताबों का ज़खीरा निकल आया. मेरे लिए किताबों से मूल्यवान और कुछ नहीं है. एक से बढ़ कर एक आकर्षक आवरण में लिपटी पांच अलग अलग किताबें थीं, जिन्हें शिवना प्रकाशन से प्रकाशित किया गया था. सबसे पहले इस बहुमूल्य भेंट के लिए श्री पंकज सुबीर जी को फोन पर धन्यवाद दिया और फिर एक एक कर उन्हें खोलना और पढना शुरू किया.

आज उसी जखीरे में प्राप्त हुई ग़ज़लों की किताब " चाँद पर चांदनी नहीं होती " का जिक्र करूँगा, जिसे लिखा है आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी अत्यंत प्रतिभाशाली युवा मेजर संजय चतुर्वेदी ने. हमें गर्व है अपनी सेना पर जिसमें मेजर संजय जैसे संवेदन शील योद्धा हैं.


संजय अत्यंत युवा हैं इसलिए उनकी शायरी में कच्चे दूध की सी खुशबू आती है. उन्होंने अपनी शायरी में बेजोड़ प्रयोग किये हैं, इसलिए उनके अशआर बहुत अलग और ताज़ा लगते हैं. आईये अब अधिक देर ना करते हुए इस किताब के सफ्हे पलटते हैं और रूबरू होते हैं संजय जी की विलक्षण शायरी से और आगाज़ करते हैं उनकी इस किताब के पहले सफ्हे पर शाया हुई पहली ग़ज़ल के अद्भुत रदीफ़ काफियों से:-

घर के चौकीदार हुए दादा दादी
सबके पहरे दार हुए दादा दादी

कौन खरीदे नहीं रहे पढने वाले
उर्दू के अखबार हुए दादा दादी

घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
कपड़ों वाला तार हुए दादा दादी

आखरी शेर में 'कपड़ों वाला तार' ने तो कहर ही ढा दिया है. आँखें स्तिथि सोच कर नम हो जाती हैं.अपने चारों और बिखरी छोटी छोटी चीजों पर ध्यान देने पर ही आप ऐसा शेर कह सकते हैं. मैंने शायरी की बेशुमार किताबें पढ़ी हैं लेकिन किसी व्यक्ति के लिए जिसकी कोई पूछ न हो के लिए 'कपड़ों वाला तार' वाली उपमा नहीं पढ़ी. ऐसे नयी सोच और काफिये आपको इस किताब के आखरी पृष्ठ पर छपी ग़ज़ल में भी पढने को मिलते हैं , मुलाहिजा फरमाइए:-

कोयलें, बच्चे, हवाएं और कोल्हू गाँव के
मिलके गायें तो नयी इक सिम्फनी हो जायेगी

चूमने को आ गये बादल पहाड़ी का बदन
देख लेगी धूप तो कुछ अनमनी हो जायेगी

तुम अकेले हम अकेले क्या करेंगे घूम कर
साथ बैठेंगे तो अच्छी कंपनी हो जायेगी

संजय जी की कोई कोई ग़ज़ल हो सकता है उस्तादों की नज़र में ग़ज़ल लेखन की कड़ी कसौटी पर सही न उतरती हों लेकिन मुझे उन्हें पढ़ते और गुनगुनाते हुए बहुत आनंद आया. मैं ग़ज़ल के तकनिकी पक्ष पर कुछ कहने में असमर्थ हूँ क्यूँ के अभी मैं इस क्षेत्र का विद्यार्थी हूँ और उम्मीद है के ता उम्र विद्यार्थी ही रहूँगा मेरी नज़र में आम पाठक के लिए अनिवार्य होता है के शायर के कहे अशआर उसे अपने लगें और सीधे सीधे दिल में उतर जाएँ, संजय जी इस दृष्टि से कामयाब हुए हैं. वो सहजता से अपनी ग़ज़लों में ऐसे सवाल पूछ लेते हैं के पाठक को जवाब देते नहीं बनता और उसे बगलें झांकनी पड़ती हैं .उधाहरण के लिए नीचे दिए प्रश्नवाचक चिन्ह वाले शेर को पढ़िए...

दिल जला फसलें जलीं छप्पर जला
सिर्फ चूल्हा छोड़ सारा घर जला

आग तो हर घर में होती है मियां
क्या कभी उस आग में शौहर जला ?

खून की गर्मी बचाने के लिए
आग स्याही में लगा अक्षर जला

पांच जुलाई सन उन्नीस सौ उन्यासी में जन्मे संजय ने स्नातक परीक्षा पास की और फिर राष्ट्रिय केडेट कोर में पांच वर्षों का प्रशिक्षण के बाद अधिकारी प्रशिक्षण अकादमी चेन्नई से सैन्य प्रशिक्षण लिया जिसके बाद उनकी नियुक्ति सत्रवीं बटालियन ब्रिगेड आफ दि गार्ड्स में लेफ्टिनेंट के पद पर हुई. सैनिक गतिविधियों में लिप्त रहने के बावजूद उनका संवेदन शील मन उनसे लगातार खूबसूरत अशआर लिखवाता रहा. उनकी रचनाएँ विभिन्न सैनिक, असैनिक और इलेक्ट्रोनिक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं.

सिर्फ बिजली के लिए पानी न रोकिये
सूखते हैं प्यास में झरने पहाड़ पर

आँधियों के शोर में ढूंढें हैं लोरियां
वक्त से लड़ते हुए बच्चे पहाड़ पर

फिर नहाने चल पड़ीं चश्में पे लड़कियां
बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर

अंतिम शेर के मिसरा-ऐ- सानी में 'बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर' कह कर बहुत दिलचस्प मंज़र खींच दिया है. ये उनकी पैनी दृष्टि का परिचायक है. पहाड़ पर उमड़े बादलों का इस से खूबसूरत चित्रण भला क्या होगा.ज़िन्दगी का हर रंग उन्होंने अपनी ग़ज़लों में समेटा है और बखूबी समेटा है. इस छोटी सी उम्र में वो बहुत गहरे अनुभव वाली बड़ी बात सहजता से कह जाते हैं .

ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
आँख में गर नमी नहीं होती

कोई तकता है किसी का रस्ता
वर्ना खिड़की खुली नहीं होती

दूर होने का है मज़ा अपना
चाँद पर चांदनी नहीं होती

शिवना प्रकाशन, सीहोर, मध्य प्रदेश, की भर पूर प्रशंशा करनी होगी जिन्होंने इस युवा और अपेक्षा कृत नए शायर की किताब छापने का साहस दिखाया है. देश के अन्य प्रतिष्ठित प्रकाशन संस्थान सिर्फ स्थापित लेखकों और साहित्यकारों की किताबें ही प्रकाशित करते हैं इस दृष्टि से शिवना का ये प्रयास अभूतपूर्व कहलाया जायेगा क्यूँ की उन्होंने एक नहीं ऐसे पांच एक दम अनजान लेकिन उत्कृष्ट लेखकों की किताबें आम जन तक पहुँचाने को प्रकाशित की हैं. इस किताब का कलेवर और छपाई देश के अन्य किसी भी प्रकाशन संस्थान से उन्नीस नहीं है. किताब प्राप्ति के लिए आप शिवना प्रकाशन के श्री पंकज सुबीर जी से 09977855399 या 07562-405545 पर संपर्क कर सकते हैं या उन्हें shivna.prakashan@gmail.com पर मेल डाल सकते हैं.

लोग पढ़ते हैं कसीदे शान में
जाने ऐसा क्या है उस मुस्कान में

कौन है जिसने हवा को मात दी
फूल अब खिलते हैं रेगिस्तान में

मैं खुद को आदमी उस दिन कहा
राम जब मुझको दिखे कुरआन में

एक राज़ की बात और बताता चलता हूँ आपको और वो ये के संजय खुद बहुत दिलकश अंदाज़ में अपनी ग़ज़लें गाते हैं. ये एक ऐसा अनुभव है जिसे प्राप्त कर आप शायद ही उसे कभी भूल पायें. संजय जी के गले में माँ सरस्वती का वास है अगर आपको मेरी इस बात पे यकीन नहीं हो तो आप उनसे उनके मोबाइल न. 08094791434 पर बात कीजिये और ग़ज़ल सुनने की तमन्ना का इज़हार कीजिये मुझे यकीन है के अगर वो व्यस्त ना हुए तो आपकी अभिलाषा को जरूर पूरा करेंगे.

कौन रोया है बोल ऐ कुदरत
आज दरिया में खूब पानी है

हर तरफ सांप घूमते देखे
किसके आँगन में रातरानी है

आप ईमान का करें सौदा
हम करें तो ये बेईमानी है

हर ग़ज़ल प्रेमी के घर इस जाँ बाज़ मेजर की किताब का अलमारी में होना जरूरी है तो फिर देर काहे की? उठाइए फोन और घुमाइए बस...कुछ समय बाद किताब आपके हाथ में होगी. आप मेजर से बात करें , हम ढूंढते हैं आपके लिए एक और किताब...तब तक...अपनी राम राम राम सबको राम राम राम...





43 comments:

  1. हर तरफ सांप घूमते देखे
    किसके आँगन में रातरानी है

    आप ईमान का करें सौदा
    हम करें तो ये बेईमानी है


    बहुत खूब.. मेजर साहेब तो बहुत शानदार लिखते है...

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  2. कौन रोया है बोल ऐ कुदरत
    आज दरिया में खूब पानी है

    khuub padhva rahe hain aap...aabhaar

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  3. बहुत खूबसूरती से मेजर संजय चतुर्वेदी जी की " चाँद पर चांदनी नहीं होती का जिक्र किया है अपने.....सच कहा आपने की "हर ग़ज़ल प्रेमी के घर इस जाँ बाज़ मेजर की किताब का अलमारी में होना जरूरी है"

    regards

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  4. दिल जला फसलें जलीं छप्पर जला
    सिर्फ चूल्हा छोड़ सारा घर जला

    आग तो हर घर में होती है मियां
    क्या कभी उस आग में शौहर जला

    हर तरफ सांप घूमते देखे
    किसके आँगन में रातरानी है

    आप ईमान का करें सौदा
    हम करें तो ये बेईमानी है



    आँधियों के शोर में ढूंढें हैं लोरियां
    वक्त से लड़ते हुए बच्चे पहाड़ पर


    ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
    आँख में गर नमी नहीं होती

    ये ऐसे अश’आर हैं जिन को हम गुज़रते वक़्त के साथ भी शायद भूल नहीं पाएंगे ,शायर मुबारकबाद का हक़दार है
    नीरज जी आप का भी बहुत बहुत शुक्रिया कि आप ऐसे नायाब ख़ज़ाने हम तक पहुंचा रहे हैं

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  5. कुछ शेर तो सीधे दिल में उतर गए ...
    शेरों के पीछे की सोच समझ कर संवेदना समझ आ जाती है ।

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  6. कौन खरीदे नहीं रहे पढने वाले
    उर्दू के अखबार हुए दादा दादी

    बहुत सुन्दर साथ में नीरज भाई का सजीव शब्द-चित्रण - खूबसूरत प्रस्तुति।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  7. हम तो सबसे पहले आपको धन्यवाद देंगे इस परिचय के लिए फिर प्रकाशक को|

    आपने इस प्रस्तुति के माध्यम से आज का दिन सफल कर दिया|

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  8. Behtreen Prastuti......Aap teeno ko badhai...

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  9. दिल को छूने वाली ग़ज़लें हैं ..ओर आपकी समीक्षा भी कम नहीं ..बहुत सुन्दर. आभार .

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  10. कभी किताब लिखी तो आपके पास जरूर भेजूंगा समीक्षा के लिए.....
    एक से बढ़कर एक गज़ल ...वाह! आनंद आ गया पढ़कर.
    सभी उम्दा शेर हैं किसकी तारीफ़ करूँ...
    ...बादलों के कर दिए परदे पहाड़ पर...
    इस मिसरे पर माता पच्ची करता रहा कि
    ...बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर ...होना चाहिए तभी देखा आपने नीचे वही लिखा है...! ऊपर भी सुधार दीजिए.
    ...शेष पुस्तक पढ़ने के बाद.

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  11. aapka bahut bahut dhanyvaad.......
    aap bada hee nekee ka kaam kar rahe hai.....
    samvedansheelata ek ek sher se tapaktee hai......
    tareefekabil lekhan........
    aabhar....

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  12. ये विडियो तो मास्साब के यहाँ देखा था...किताब के विषय में जानकारी प्राप्त कर आनन्द आया. आपका आभार.

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  13. "चाँद पर चांदनी नहीं" एक अनमोल मोती है...

    जब तक पोस्ट पढ़ा न जाने कितने वाह वाह निकले, दुबारा पढ़ी. किताब जल्द ही मंगवाता हूँ.
    ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
    आँख में गर नमी नहीं होती
    दूर होने का है मज़ा अपना
    चाँद पर चांदनी नहीं होती

    मेजर साब, ये शेर तो दिल में उतर गए, परमानेंट !

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  14. नीरज जी बहुत शुक्रिया आपका और शिवना प्रकाशन का.

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  15. नत मस्तक हूँ इस शायरी के आगे। नीरज जी आप गज़ल समीक्षा के माहिर बन गयी। मेजर साहिब की गज़ल सुन कर आनन्द आ गया। इस अनमोल मोती को मंगवाते हैं। आपका धन्यवाद् और संजय जी को आशीर्वाद

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  16. हर बार की तरह ... एक बार फिर ..... लाजवाब करती पोस्ट ....

    शुक्रिया .. शुक्रिया .. इतने उम्दा शेरों के लिए और एक कमाल के फ़नकार से मिलवाने के लिए !!

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  17. बेहतरीन पुस्तक
    कोट किये गये शेर भी बेहतरीन

    और आपकी क़यामत प्रस्तुति

    क्या कहू लाजवाब हूँ

    समीक्षा को पढ़ कर किताब को फिर से एक एक कतरा पीने का मन किया.

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  18. समीक्षा इतनी बढ़िया है कि पुस्तक खरीदने की इच्छा जाग्रत हो गई है!

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  19. नीरज भाई साधुवाद .... बेहतरीन शायर को इस से बेहतर तरीक़े से प्रस्तुत ही नहीं किया जा सकता था....शुभकामनाएँ.....

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  20. नीरज जी आपकी समीक्षा से नये लिखने वालों का हौसला बढ़ेगा । बहुत ही सुंदर तरीके से आपने ये समीक्षा लिखी है । अब तो आप भी श्री भारत भरद्वाज जी ही तरह समीक्षा गुरू होते जा रहे हैं । आपके पारस का परस पाकर हर पुस्‍तक कंचन होती जा रही है । बहुत सुंदर समीक्षा ।

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  21. जानकारी के लिए शुक्रिया

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  22. बेहद खूबसूरत रचनाएँ. उतनी ही उम्दा समीक्षा.

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  23. At first...salam to you very beautiful neeraj ji...

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  24. बहुत बढ़िया. एक और मेजर शायर से मुलाकात हुई. क्या लिखते हैं संजय जी! वाह!

    एक पाठक के लिए गजल के तकनीकी पक्ष से ज्यादा ज़रूरी शायद यह बात है कि ग़ज़ल उसके साथ सीधा संवाद करती है या नहीं. और संजय जी इस कला में माहिर हैं.एक बढ़िया शायर और बढ़िया किताब से परिचय हुआ.

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  25. नीरज जी
    एक बार फिर अनमोल नगीना ले आये हैं………रु-ब-रु करवाने के लिये आभारी हूँ।

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  26. "कच्चे दूध की सी खुशबू" ...

    ग़ज़ब के शेर तो हैं ही ... आपकी समीक्षा का भी जवाब नही है नीरज जी ... मेजर साहब से मुलाकात करवाने का शुक्रिया ...

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  27. ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती
    आँख में गर नमी नहीं होती
    .... baat hai is baat me

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  28. ये शेर तो उदाहरण हो गये ग़ज़लियत के:
    कौन खरीदे नहीं रहे पढने वाले
    उर्दू के अखबार हुए दादा दादी

    चूमने को आ गये बादल पहाड़ी का बदन
    देख लेगी धूप तो कुछ अनमनी हो जायेगी

    आग तो हर घर में होती है मियां
    क्या कभी उस आग में शौहर जला ?

    फिर नहाने चल पड़ीं चश्में पे लड़कियां
    बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर

    कोई तकता है किसी का रस्ता
    वर्ना खिड़की खुली नहीं होती

    दूर होने का है मज़ा अपना
    चाँद पर चांदनी नहीं होती

    लोग पढ़ते हैं कसीदे शान में
    जाने ऐसा क्या है उस मुस्कान में

    कौन है जिसने हवा को मात दी
    फूल अब खिलते हैं रेगिस्तान में

    कौन रोया है बोल ऐ कुदरत
    आज दरिया में खूब पानी है

    हर तरफ सांप घूमते देखे
    किसके आँगन में रातरानी है

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  29. इस तरह की समीक्षा सिर्फ आप ही कतर सकते थे सर.. संजय जी को बधाई और आपका आभार.. basssssssssss इतना ही कहना है.. :)

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  30. आपके ब्लाग में आकर और यह आलेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा।
    जनाब मंजर संजय साहब की ग़ज़लों से रूबरू होकर मुतासिर हुआ।
    आपने जो शेर उनके चुने हैं, बेहतर है।
    ये शेर बहुत नवीनता लिए हुए हैं..

    कौन है जिसने हवा को मात दी
    फूल अब खिलते हैं रेगिस्तान में

    दूर होने का है मज़ा अपना
    चाँद पर चांदनी नहीं होती

    फिर नहाने चल पड़ीं चश्में पे लड़कियां
    बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर

    ....और इस शेर में अंग्रेजी के इस्तेमाल से मुझे गुरेज नहीं हैं । कुछ अल्फाजत्र अपना हमसाया नहीं रखते तो उन्हें जस का तस रख देने का मैं भी हामी या पक्षधर हूं..

    तुम अकेले हम अकेले क्या करेंगे घूम कर
    साथ बैठेंगे तो अच्छी कंपनी हो जायेगी

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  31. 31 मई के पोस्ट में वीनस केसरी जी एही किताब का समीक्षा लिखे थे... बहुत अच्छा लगा था पढकर... आज आप भी रिकमेण्ड कर दिए..पढहीं पड़ेगा... बहुत कोमल सायर हैं मेजर साहब!!

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  32. आपका बहुत बहुत शुक्रिया...इतनी सुन्दर किताब से रु ब रु करवाने का...एक से बढ़कर एक गज़लें हैं...आपने बहुत सुन्दरता से समीक्षा लिखी है..मेजर संजय चतुर्वेदी एक अज़ीम फनकार हैं..

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  33. नीरज जी, अब तो आपकी तारीफ के लिये सब्द भी कम पड गये हैं जोहरी, पारखी, जो भी कहें कम है । बहुत सुंदर सायरी की किताब पेश की है आपने ।
    आग तो हर घर में होती है मियां
    क्या कभी उस आग में शौहर जला ?

    और भी कितने सारे हैं दादा दादी को उर्दू का अखबार कहना भई वाह ।
    आपका अनेक आभार ।

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  34. मुझे तो विडियो बहुत ज्यादा अच्छा लगा और ये पोस्ट भी...
    मैंने पहले नहीं पढ़ा या देखा था ये विडियो और ये गज़ल...

    बहुत अच्छा लगा

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  35. नीरज जी, बहुत अच्छी समीक्षा की है.

    मेजर साब के शेर कहर ढा रहे है, हर कोट किया हुआ शेर लाजवाब है.

    घर में उनका नहीं रहा हिस्सा कोई
    कपड़ों वाला तार हुए दादा दादी

    फिर नहाने चल पड़ीं चश्में पे लड़कियां
    बादलों ने कर दिए परदे पहाड़ पर

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  36. चूमने को आ गये बादल पहाड़ी का बदन
    देख लेगी धूप तो कुछ अनमनी हो जायेगी

    wah kya baat hai. ek behtareen shayar se parichay karane ke liye aabhaar.

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  37. हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या
    चन्द लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए

    एक स्नेहिल और प्रबुद्ध मना से आपके ब्लॉग का पता मिला.उनका ढेरों आभार.वरन हम इतने तासीर भरे लेखन से महरूम हो जाते.अज तो हर कहीं अदब के साथ बेअदबी की जा रही है ऐसे समय आप जैसे लोगों की उपस्थिति आश्वस्त करती है.
    कभी समय हो तो मार्गदर्शन करें हमारे तीन ठिकाने हैं :
    http://hamzabaan.blogspot.com
    http://saajha-sarokaar.blogspot.com
    http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com

    आपका भाई
    शहरोज़

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  38. अपने ब्लॉग हमज़बान में 'जाएँ ज़रूर यहाँ भी' के तिहत आप्केब्लोग का लिंक 'नीरज
    जी का ग़ज़ल से रिश्ता ' नाम से दे दिया है.

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  39. E-mail received from Om Sapra Ji:-

    dear neeraj ji
    good article and introduction of sanjay 's book, following lines are very impressive:

    कौन रोया है बोल ऐ कुदरत
    आज दरिया में खूब पानी है

    हर तरफ सांप घूमते देखे
    किसके आँगन में रातरानी है

    आप ईमान का करें सौदा
    हम करें तो ये बेईमानी है

    congratulations,
    drop some time to delhi
    regds.
    -om sapra, delhi-9

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  40. संजय के बारे में और इस किताब के बारे में क्या लिखूं या कहूं...हमदोनों ने मिलकर जाने कितनी शामें ग़ज़लमय की हैं।

    आपकी समीक्षा हरबार की तरह लाजवाब है।

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  41. कौन खरीदे नहीं रहे पढने वाले
    उर्दू के अखबार हुए दादा दादी

    बहुत सुन्दर

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे