Monday, May 31, 2010

किताबों की दुनिया - 30

जावेद अख्तर साहब ने फिल्म सरहद के लिए एक गीत लिखा था "पंछी नदियाँ पवन के झोंके कोई सरहद न इन्हें रोके..." पंछी नदियाँ पवन के झोंकों के अलावा और भी बहुत कुछ है जिन्हें सरहदें नहीं रोक पातीं. कुछ इंसान और उनका हुनर उन्हें सरहद की सीमाओं के पार ले जाता है. जैसे मौसिकी के उस्ताद किसी भी मुल्क के क्यूँ न हों वो हर सुनने वाले के दिल के तारों को झंकृत कर देते हैं वैसे ही शायरी किसी मुल्क विशेष के शायर की ना होकर उसके चाहने वालों की हो जाती है.

आज हम पाकिस्तान की उस मशहूर शायरा की किताब का जिक्र करेंगे जिसे हम भारत वासिओं ने भी सर आँखों पर बिठाया है. आपने सही पहचाना उस शायरा का नाम है " परवीन शाकिर" जो कराची सिंध पाकिस्तान में 24.11.1952 को पैदा हुईं. इंग्लिश लिटरेचर और लैंग्वेज में एम ऐ करने के बाद उन्होंने पी.ऐच.डी. की डिग्री हासिल की. उन्हें उनकी शायरी के लिए आदमजी पुरूस्कार से नवाज़ा गया. डा. सैयद नसीर अली से उनका निकाह हुआ और उनका सैयद मुराद अली नाम का बेटा भी है. उनकी 26.12.1994 को एक सड़क दुर्घटना में असमय हुई मौत ने दोनों देशों में उनके चाहने वालों को स्तब्ध कर दिया था.


देवनागरी में पहली बार उनकी शायरी को सुरेश कुमार जी ने सम्पादित किया है और डायमंड बुक्स वालों ने " खुली आँखों में सपना " शीर्षक से उसे प्रकाशित किया है. प्रस्तुत हैं उसी किताब के पन्नो पर बिखरे शायरी का जादू जगाते परवीन शाकिर साहिबा की कलम के हुस्न की नुमाइंदगी करते चंद अशआर


तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बनके नाचता है

मैं उसकी दस्तरस* में हूँ, मगर वो
मुझे मेरी रिज़ा^ से, मांगता है
दस्तरस* = हाथों की पहुँच
रिज़ा^ = स्वीकृति

किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी, टालता है

जिस शायरा के अशआर जन मानस में मुहावरों की तरह प्रयोग में आने लगें उस की किन लफ़्ज़ों में तारीफ़ की जाये. प्रस्तुत हैं उनकी एक बहुत प्रसिद्द ग़ज़ल के चंद अशआर जो उनकी मौत के सोलह साल बाद भी उन्हें जिंदा रखे हुए हैं:-

बारिश हुई तो फूलों के तन चाक* हो गए
मौसम के हाथ भीग के सफ्फ़ाक** हो गए
चाक: टुकड़े टुकड़े
सफ्फ़ाक: अत्याचारी

बादल को क्या खबर है कि बारिश की चाह में
कितने बलंद-औ-बाला शजर ख़ाक हो गए

जुगनू को दिन के वक्त परखने की ज़िद करें
बच्चे हमारे अहद* के चालाक हो गए
अहद*= समय

लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास
सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक* हो गए
बेबाक*= निर्लज्ज

परवीन जी की शायरी में आप भारतीय परिवेश और संस्कृति की खुशबू को महसूस कर सकते हैं, इसीलिए उनका कलाम भारतियों को कभी अजनबी नहीं लगा. उनका शब्द चयन और भाव भी अद्भुत है. उनके इन शेरों को पढ़ कर कौन कहेगा के वो पाकिस्तान की उर्दू ज़बान की शायरा हैं?

मैंने हाथों को ही पतवार बनाया वरना
एक टूटी हुई कश्ती मेरे किस काम की थी

ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा
यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी

बोझ उठाये हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ ! तेरी ये उम्र तो आराम की थी

ये हिन्दुस्तानी ज़बान की ख़ूबसूरती महज़ एक ग़ज़ल तक ही सीमित नहीं है, ऐसे करिश्में आपको पूरी किताब में बिखरे मिलेंगे. किताब के सफ्हे पलटते जाइए और लुत्फ़ उठाते जाइये. एक और ग़ज़ल के चंद अशआर पढ़वाता हूँ ताकि आप मेरी बात से सहमत हो जाएँ :-

रात गए मैं बिंदिया खोजने जब भी निकलूं
कंगन खनके और कानों की बाली गाये

सजे हुए हैं पलकों पर खुश रंग दिये से
आँख सितारों की छाँव दीवाली गाये

सजन का इसरार कि हम तो गीत सुनेंगे
गोरी चुप है लेकिन मुख की लाली गाये

मुंह से न बोले, नैन मगर मुस्काते जाएँ
उजली धूप न बोले, रैना काली गाये

परवीन जी की शायरी खुशबू के सफ़र की शायरी है. प्रेम की उत्कट चाह में भटकती हुई, वो तमाम नाकामियों से गुज़रती है, फिर भी जीवन के प्रति उसकी आस्था समाप्त नहीं होती. अशआर उनकी कलम की नोक के इशारे पर रक्स करते हैं और पढने वाले के दिल में उतर जाते हैं...

आँखों पे धीरे धीरे उतर के पुराने ग़म
पलकों पे नन्हें-नन्हे सितारे पिरो गये

वो बचपने की नींद तो अब ख़्वाब हो गयी
क्या उम्र थी कि रात हुई और सो गये

एक सौ साठ पृष्ठों की ये किताब परवीन जी की लाजवाब ग़ज़लों और नज्मों से भरी पड़ी है. 'डायमंड बुक्स' द्वारा प्रकाशित इस किताब को हासिल करना बहुत मुश्किल काम नहीं होना चाहिए. अगर आपको ये किताब आपके निकट के पुस्तक विक्रेता या स्टेशन की बुक स्टाल पर ना मिले तो आप 011-51611861-865 पर फोन कीजिये या उनकी वेब साईट www.diamondpublication.com को छान मारिये, सबसे आसान रहेगा यदि आप उन्हें sales@diamondpublication.com एड्रेस पर मेल करें और मात्र 75 रु. की ये किताब घर बैठे प्राप्त कर इसका भरपूर आनंद लें.

धनक-धनक* मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
वो लम्स** मेरे बदन को गुलाब कर देगा
*धनक धनक= इन्द्रधनुष-इन्द्रधनुष
**लम्स = स्पर्श

मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउंगी
वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा

अब आखिर में चलते चलते नज़र दौड़ाइए उनकी छोटी छोटी चंद नज्मों पर और देखिये किस ख़ूबसूरती से वो अपनी बात सुनने -पढने वाले तक पहुंचाती हैं.

बारिश

बारिश अब से पहले भी कई बार हुई थी
क्या इस बार मेरे रंगरेज़ ने चुनरी कच्ची रंगी थी
या तन का ही कहना सच कि
रंग तो उसके होंठों में था.

ओथेलो

अपने फोन पर अपना नंबर
बार बार डायल करती हूँ
सोच रही हूँ
कब तक उसका टेलीफोन एंगेज रहेगा
दिल कुढ़ता है
इतनी-इतनी देर
वो किस से बातें करता है

मुक़द्दर

मैं वो लड़की हूँ
जिस को पहली रात
कोई घूंघट उठा कर ये कह दे
मेरा सब कुछ तिरा है, दिल के सिवा !

जीवन साथी से

धूप में बारिश होते देख के
हैरत करने वाले
शायद तूने मेरी हंसी को
छूकर
कभी नहीं देखा

आप डूबिये परवीन जी की शायरी में हम तो चले आपके लिए एक और किताब तलाशने.....



26 comments:

  1. मेरी फेवरेट शायरा.है.जिस तरह ओर जिस अंदाज में.जिस माहोल में रहकर उन्होंने लिखा है .उनकी कई छोटी छोटी नज्मे....जैसे उलझन ,मशवरा....इंतज़ार....ऐसी है के बस पढता हूँ ओर डूब जाता हूँ....ये किताब मेरे पास भी है.....ओर सौभाग्य से नेट पर भी उपलब्ध है

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  2. " परवीन शाकिर" जी को बहुत पढ़ा है , आभार उनकी इस पुस्तक से रूबरू करने के लिए.
    आँखों पे धीरे धीरे उतर के पुराने ग़म
    पलकों पे नन्हें-नन्हे सितारे पिरो गये

    regards

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  3. आपकी ( मैंने तेरा नाम लिखा है ) पोस्ट चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर मंगलवार १.०६.२०१० के लिए ली गयी है ..
    http://charchamanch.blogspot.com/

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  4. jyada nahi padha parveen shakir ji ko....magae bahut pasand hain. ab unki aur nazme padhungi.

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  5. Parween Shakir kaa har sher umda
    hai.Ve lajawaab shaayira thee.
    aapkaa bhee ek aur lajawaab kaam
    ki aapne unke ashaar padhwaaye.

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  6. वाह!! मुझे इनकी शायरी वैसे भी बहुत पसंद है. आप भी क्या किताब छांट कर लाये हैं..आनन्द आ गया. आभार.

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  7. परवीन जी की शायरी के हम भी दीवाने हैं ... आपने तो कमाल के शेर निकाले हैं उनकी किताब से ... आपको पढ़ कर लगता है पूरी किताब का मजमून समझ आ गया ... ग़ज़ब की समीक्षा करते हैं आप नीरज जी ...

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  8. ये हवा कैसे उड़ा ले गयी आँचल मेरा
    यूँ सताने की तो आदत मेरे घनश्याम की थी

    बोझ उठाये हुए फिरती है हमारा अब तक
    ऐ ज़मीं माँ ! तेरी ये उम्र तो आराम की थी

    मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउंगी
    वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा

    उफ़ क्या कहूँ मै सच में लाजवाब हो गया

    ऐसी शायरी और ऐसे शेर ...बस क़यामत

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  9. नीरज जी किताबों की दुनिया तो खजानों से भरी..है इस शेरो शायरी के महान लोगों के बारे में जानना बहुत ही बढ़िया लगता है...प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार

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  10. कमाल की मनभावन और सोचनीय शायरी है परवीन शाकिर जी की...

    जुगनू को दिन के वक्त परखने की ज़िद करें
    बच्चे हमारे अहद* के चालाक हो गए

    बोझ उठाये हुए फिरती है हमारा अब तक
    ऐ ज़मीं माँ ! तेरी ये उम्र तो आराम की थी

    .....लाजवाब!

    पुस्तक की जानकारी के लिए धन्यवाद!

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  11. Comment Received from Om Sapra Ji on mail:-

    shri neeraj ji
    how are you?
    iam writing to you after a long time.
    this time ur mail reg parveen shakir is very impressive and very good.
    i read a long article in "aajkal" magazine a couple of years ago, about life and works of parveen shakir and your mail has reminded me of the same.

    thanks a lot for the same.
    regards,
    -om sapra, delhi-9

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  12. wahwa...behtreen prastuti Bhai g hamesha ki tarah.......Parveen Shakir ko to na jane kab se pad raha hoon.....

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  13. शायरी के अथाह समन्‍दर से नगीने चुन कर कुछ ऐसे अंदाज़ से सामने रखें हैं हैं आपने कि हर पढ़ने वाले तक वो नगीने पहुँच गये। मुझ जैसे शाइरी सीखने वाले के लिये तो ये जरूरी से हो गये हैं।

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  14. मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाउंगी
    वो झूठ बोलेगा और लाजवाब कर देगा

    lajvab likha hai .aur sone pr suhaga badi hi sundrta se aapki samiksha .

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  15. नीरज जी, आप हमरे ब्लॉग पर आए, हमरे लिए बहुत सौभाग्य का बात है... आप जो तरीफ कर गए, हम सच्चा मन से जानते हैं कि हम उसके क़ाबिल नहीं हैं... आप हमरे साथ जुड़ेंगे त हमरा ही फ़ायदा होगा (रिश्ते को हम वैसे भी फायदा नोकसान के नज़र से नहीं देखते हैं)..बहुत अच्छा साहित्य से नाता जुड़ेगा..अब अभी आपने परवीन शाक़िर साहिबा के अशार से मुलाक़ात करवा के एक नया रिश्ता बना दिया..हसरत मोहानी, क़तील शिफाई के बाद हमरा दिल में एक और नाम लिख गया …परवीन शाक़िर.. धन्यवाद नीरज जी!!

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  16. नीरज जी ,

    यहाँ परवीन शाकिर जी के कलाम से अवगत कराने का बहुत बहुत शुक्रिया....आपकी बहुत अच्छी पोस्ट है..

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  17. Parveen ji ki umda shayari dhundhkar prastut karne ke liye dhanyavaad... Bahut hi umda tareeke se aapne sameeksha ki hai..
    Bahut shubhkamnayne

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  18. बहुत बहुत शुक्रिया नीरज भैय्या ,
    आपके ब्लॉग पर तो मैं जब भी जाती हूँ
    बेहतरीन गज़लें और किताबें पा जाती हूँ

    parveen sahiba se kutch meri bhi yaadein judi hain ,baad mein itminan se likhungi.

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  19. नीरज जी ,बहुत बहुत शुक्रिया एक ऐसी शायेरा के बारे में बताने के लिए जो दोनों मुल्कों में पसंद की जाती थीं बल्कि आज भी पसंद की जा रही हैं


    बादल को क्या खबर है कि बारिश की चाह में
    कितने बलंद-औ-बाला शजर ख़ाक हो गए

    जुगनू को दिन के वक्त परखने की ज़िद करें
    बच्चे हमारे अहद* के चालाक हो गए



    मैं उसकी दस्तरस* में हूँ, मगर वो
    मुझे मेरी रिज़ा^ से, मांगता है

    बेहद हसीन शायरी !वाह!

    और सुनवाने का भी शुक्रिया क्योंकि उन को सुनना भी अपने आप में एक अनुभव है.

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  20. बहुत अच्छी .. मुझे तो बहुत पसंद आई.


    ________________________
    कल 7 जून को 'पाखी कि दुनिया' में समीर अंकल जी की प्यारी सी कविता पढना ना भूलियेगा.

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  21. आप तो हमेशा ही शायरी के समंदर से एक एक नायाब मोती निकाल कर लाते हैं । परवीन शाकिर जी भी बहुत कमाल की शायरा हैं।

    आँखों पे धीरे धीरे उतर के पुराने ग़म
    पलकों पे नन्हें-नन्हे सितारे पिरो गये ।

    सजन का इसरार कि हम तो गीत सुनेंगे
    गोरी चुप है लेकिन मुख की लाली गाये ।
    बहुत खूब ।

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  22. आपके पोती पोतों की (?) तसवीरें बेहद खूबसूरत हैं उन्हें हमारा बहुत बहुत प्यार ।

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  23. नीरज जी आप आये थे तभी समझ गयी थी कोई सौगात लेकर हाज़िर हुए हैं ....और आज परवीन की ये आवाज़ सुन निहाल हो गयी ....आज तक इनकी शायरी ही पढ़ी थी आज आपने सुनवा भी दिया ....किन लफ़्ज़ों में आपका शुक्रिया अदा करूँ .....

    मुद्दतों बाद उसने आज मुझसे कोई गिला किया ....

    वाह क्या बात है परवीन शाकिर की ....!!

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  24. बहुत खूबसूरत लिखा है !!!

    ज़िन्दाबाद

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे