Monday, May 24, 2010

मैंने तेरा नाम लिखा है

दोस्तों आज मैं आपको अपने आदरणीय गुरुदेव श्री प्राण शर्मा साहब की वो कविता पढवाता हूँ जो मुझे बेहद पसंद है और जिसने बहुत प्रशंशा अर्जित की है.उम्मीद करता हूँ के आप सब भी इसे पढ़ कर मेरी तरह ही आनंदित होंगे. कुछ माह पूर्व ये कविता आदरणीय महावीर जी के ब्लॉग की शोभा भी बढ़ा चुकी है.


जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है

तू क्या जाने तब भी मैंने
दुनिया का हर सुख बिसरा कर
तुझ को मन से ही था चाहा
तू क्या जाने तब भी मैंने
खुद से क्या जग से भी बढ़ कर
तेरा था हर काम सराहा
तू क्या जाने तेरी यादें
मन की छोटी मंजूषा में
अब तक सम्भाले बैठा हूँ
तेरी गर्वीली अंगड़ाई
तेरी प्यार भरी पहुनाई
जीवन में पाले बैठा हूँ
तेरी सुविधा की खातिर ही
नाम अपना घनश्याम लिखा है.

जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है

याद मुझे है अब तक सब कुछ
ताजमहल के पिछवाड़े में
तेरा मेरा मिलना जुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
धीरे धीरे मेरे मन का
तेरे सुन्दर मन से खुलना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
पीपल की शीतल छाया में
तेरा मेरा बैठे रहना
याद मुझे है अब तक सब कुछ
आँखों ही आँखों से मन की
प्यारी प्यारी बातें कहना
प्यार सदा जीवित रहता है
मैंने यह पैग़ाम लिखा है

जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है

जी करता है अब भी वैसे
लाल, गुलाबी फूलों जैसे
दिन अपनी ख़ुशबू बिखराएं
जी करता है अब भी वैसे
सावन के बादल नर्तन कर
प्यार भरी बूँदें बरसायें
जी करता है अब भी वैसी
सोंधी सोंधी मस्त हवाएं
तन मन दोनों को लहरायें
वैसे ही हम नाचें झूमें
वैसे ही हम जी भर घूमें
वैसी ही मस्ती बिखराएँ
तुझ से मिलने की खातिर ही
एक जरूरी काम लिखा है.

जीवन में एक बार कभी जो
वक्त मिले तो देखने जाना
ताजमहल के एक पत्थर पर
मैंने तेरा नाम लिखा है

प्राण शर्मा

47 comments:

  1. जीवन में एक बार कभी जो
    वक्त मिले तो देखने जाना
    ताजमहल के एक पत्थर पर
    मैंने तेरा नाम लिखा है
    बहुत खूब

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  2. waah bahut khoob par waise smarakon ki deewaron pe likhna sakht mana hai...:D majak kar raha hun... bahut sundar rachna...

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  3. जीवन में एक बार कभी जो
    वक्त मिले तो देखने जाना
    ताजमहल के एक पत्थर पर
    मैंने तेरा नाम लिखा है
    " सच में ही बेहद खुबसूरत अल्फाज हैं...."
    regards

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  4. बहुत अच्छी कविता है नीरज जी.

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  5. अहा । अनुनादित कर गयी हृदय यह रचना । रचना का सुख कवि के भावों से अधिक मिला ।

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  6. कोमल भाव की एक अच्छी कविता

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  7. बहुत अच्छी कविता है...

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  8. वाह...बहुत खूबसूरत कविता

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  9. आदरणीय प्राण साहेब की कविता जादू सा कर रही है, बार बार पढता जा रहा हूँ...........वाह

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  10. श्रद्धेय श्री प्राण साहब की रचनाओं के बारे में मैं कुछ प्रतिक्रिया करूँ..इतनी मादा नहीं है मुझेमे...फिर थी ये टिपण्णी सिर्फ उनके उनके आशीर्वाद की आकांक्षा में..............अनुराग की बेहद ही सशक्त अभिव्यक्ति और प्रतिमान भी प्यार की जीती जागती मोहब्बत की निशानी का... प्रेम और समर्पण को परिभाषित करती बेहद ही उम्दा कविता...आदरजोग श्री नीरज जी को प्रणाम और बेहद आभार श्री प्राण साहब की इस रचना के लिए....साधुवाद !!

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  11. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

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  12. तू क्या जाने तब भी मैंने
    खुद से क्या जग से भी बढ़ कर
    तेरा था हर काम सराहा
    तू क्या जाने तेरी यादें
    मन की छोटी मंजूषा में
    अब तक सम्भाले बैठा हूँ

    खूबसूरत भाव!!
    प्राण साहब की इस रचना के लिए बेहद आभार ....

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  13. अति खुबसुरत रचना.
    धन्यवाद

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  14. बहुत बढ़िया.
    प्राण जी की रचना को प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद.!!

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  15. वाह! इसे तो सुनने का मन कर रहा है...
    मैं तो पढ़ते-पढ़ते गाने लगा.
    प्यार बढ़ गया..
    अपना भी.
    ...आभार.

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  16. waah bahut hi khubsurat kavita..ek sangeet sa bajne lagta hai padhte hue.

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  17. प्रेम की इस कविता की जीतनी प्रशंसा की जाये कम है ! पहले भी इस मधुर कविता के रस में डूब चुका हूँ ! और आज फिर से आपने यह एहसान कर दिया ... श्रधेय प्राण शर्मा जी की कवितावों या उनकी रचनावो से बहुत कुछ सिखा जा सकता है ! बहुत बहुत बधाई नीरज जी आपको ...


    अर्श

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  18. प्राण जी की यह रचना..क्या कहने. पहले भी पढ़ी और आज भी. बहुत जबरदस्त.

    आपका आभार पढ़वाने के लिए.

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  19. जीवन में एक बार कभी जो
    वक्त मिले तो देखने जाना
    ताजमहल के एक पत्थर पर
    मैंने तेरा नाम लिखा है

    लाजवाब

    रामराम

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  20. आपकी रचना बहुत अच्छी है
    लेकिन एक निवेदन है-
    जीवन में कभी वक्त मिले तो साहिर की एक रचना जरूर पढि़एगा-
    बनाकर ताज किसी ने हम गरीबों की मोहब्बत का मजाक उड़ाया है।

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  21. जीवन में एक बार कभी जो
    वक्त मिले तो देखने जाना
    ताजमहल के एक पत्थर पर
    मैंने तेरा नाम लिखा है

    खुबसुरत रचना.

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  22. नीरज जी मैने प्राण जी की ग़ज़लें बहुत पड़ी है..बेहतरीन होती है..आज आप के मध्यम से एक उम्दा गीत पढ़ा ..आपको बहुत बहुत धन्यवाद ..प्रस्तुत कविता बहुत बढ़िया लगी..प्राण जी को भी धन्यवाद देना चाहूँगा..और आपको भी...सुंदर प्रस्तुति

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  23. बहुत ही सुन्दर!

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  24. भाई मंसूर हाश्मी साहब की अभूतपूर्व टिपण्णी जो मुझे मेल द्वारा प्राप्त हुई आप सब के लिए प्रेषित कर रहा हूँ...गुरुदेव प्राण साहब से अनुरोध है के वो इसे पढ़ कर अपना आशीर्वाद प्रदान करें:
    ताजमहल के जिस पत्थर पर,
    नाम मैरा तुम लिख आए थे
    उसको ढूँड लिया था मैंने,
    झट से चूम लिया था मैंने,
    तेरे हाथो की खुश्बू भी,
    तब तक उसमे बसी हुई थी,
    रूह की गहराई तक उसको,
    मैंने भी महसूस किया किया था.
    नाम अपना घनश्याम लिखा था,
    कितना सच्चा प्यार तुम्हारा!
    मुझको वर घनश्याम मिला है!!

    अब भी यादों में बस्ती हूँ!
    जान के ये दिल खुश होता है,
    मैं, तो अब भी वही, भुलक्कड,
    कल की बात भुला बैठी हूँ,

    ताजमहल के जिस पत्थर पर,
    तुमने मैरा नाम लिखा था,
    साथ में फिर घनश्याम लिखा था,
    उसकी एक तस्वीर, मैं अपने,
    मोबाइल में ले आयी हूँ.
    अपने घर के दरवाजे की,
    तख्ती पर खुदवाने खातिर,
    हाथ लिखी तहरीर तुम्हारी,
    संगतराश को दे आयी हूँ.

    -mansoorali हाश्मी

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  25. स्नेही प्रवीण जी की टिपण्णी जो मेल द्वारा प्राप्त हुई...

    पंक्तियाँ दिल को छो गई...

    ताजमहल के एक पत्थर पर
    मैंने तेरा नाम लिखा है.

    धन्यवाद.
    --
    'Snehi' Parveen Kumar

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  26. Comment received from Navneet G. from Ahmedabaad on mail:-

    Really good one !

    Regards
    NP

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  27. कविता लाजवाब और हाश्मी साहब के शब्द भी:
    अपने घर के दरवाजे की,
    तख्ती पर खुदवाने खातिर,
    हाथ लिखी तहरीर तुम्हारी,
    संगतराश को दे आयी हूँ.
    गजब

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  28. ताजमहल के पिछवाड़े मिलना जुलना ---वाह वाह क्या बात है नीरज जी ।
    इसे ज्यादा रोमांटिक और क्या हो सकता है ।
    अति मनभावन रचना ।

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  29. प्राण शर्मा जी की इस कविता को जितनी बार पढ़ता हूँ , हर बार पहले से अधिक आनंद मिलता है. पहली पंक्तियाँ पढ़ते ही पूरी कविता पढ़ने पर मनुष्य बाध्य हो जाता है. मुझे इस कविता को प्राण जी के मधुर स्वर में भी सुनने का लाभ प्राप्त हुआ है. उनका कविता-पाठ या ग़ज़ल कहने का अंदाज़ श्रोता को मन्त्र-मुग्ध कर देता है. नीरज जी, एक बार फिर उनकी इस सुन्दर कविता को पढ़वाने के लिए बधाई.

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  30. बेहद खूबसूरत भाव लिए है यह कविता.
    आभार.

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  31. कंप्यूटर खराब होने के कारण प्राण शर्मा जी मंसूर हाश्मी साहब के लिए सन्देश नहीं दे पाए. उन्होंने फ़ोन पर उनके लिए यह सन्देश दिया है जो मैं नीचे दे रहा हूँ:
    "मंसूर हाश्मी साहब बहुत ख़ूब! आप तो छुपे रुस्तम निकले हैं. आपकी पंक्तियाँ जादू की तरह सर पर चढ़कर बोली ही नहीं, दिल में उतरती भी गई हैं."
    प्राण शर्मा

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  32. जी करता है अब भी वैसे
    लाल, गुलाबी फूलों जैसे
    दिन अपनी ख़ुशबू बिखराएं
    जी करता है अब भी वैसे
    सावन के बादल नर्तन कर
    प्यार भरी बूँदें बरसायें
    जी करता है अब भी वैसी
    सोंधी सोंधी मस्त हवाएं
    तन मन दोनों को लहरायें
    वैसे ही हम नाचें झूमें
    वैसे ही हम जी भर घूमें
    वैसी ही मस्ती बिखराएँ
    तुझ से मिलने की खातिर ही
    एक जरूरी काम लिखा है.


    bahut bahut dhanyvaad Neeraj ji
    ise padhna phir se bahut achcha laga

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  33. नीरज जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, प्राण साहब की यादगार रचना पढ़वाने के लिए . उनके प्यार के जज़्बात के इज़हार में जो शिद्दत है, जो तड़प है,नामुमकिन है कि उनकी फरमाइश अनुत्तरित रही होगी. हर पढ़ने वाले ने चाहा होगा कि उनकी मुराद बर आये. मैंने भी अपने तसव्वुरात को लफ्ज़ी जमा पहना दिया. धन्य हो गया कि प्राण शर्माजी ने पसंद फरमाया. महावीर जी को भी धन्यवाद. दोनों साहबान को मैरा पैग़ाम पहुन्चादे.

    -मंसूर अली हाशमी.

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  34. आदरणीय प्राणजी को प्रणाम !
    …और प्रियवर नीरजजी का हृदय से आभार , ऐसी सुंदर रचना पढ़वाने के लिए !
    ऐसी सार्थक रचनाएं ही हिंदी ब्लॉगों का भ्रमण सार्थक बनाती है । पुनः सुयोग्य गुरु-शिष्य द्वय को नमन !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  35. प्राण जी की कविता, क्या कहने हैं उनके......कविता पढवाने के लिए आपका भी शुक्रिया.....!

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  36. श्रद्धेय प्राण शर्मा जी की हर रचना हमारे लिये प्रेरणा का स्रोत है.

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  37. 'प्यार सदा जीवित रहता है
    मैंने यह पैग़ाम लिखा है'
    - एक सच्चा पैगाम.

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  38. नीरज भाई, नीरज भाई
    सिर्फ दूसरों की प्रशंसा
    खुद को पर्दे में रखते हो
    औरों को रोशन करते हो
    मैं ने बेहद एहतराम से
    सुंदर, कजलाई सी शाम से,
    थोडा रंग उधार लिया है
    फिर मन के इस ताजमहल पर
    आज तुम्हारा नाम लिखा है.

    आप किस दौर के इंसान हैं? बुरा न मानिएगा, तारीफ़ के अल्फाज़ को इस्तेमाल करने का तरीका नहीं मालूम मुझे.

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  39. pran ji ki gazal padhwane ke liye aabhar.........shayad pahle bhi padhi hai aur har baar nahi hi lagti hai.

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  40. प्राण जी की इतनी लाजवाब कविता जाने कैसे मिस कर गया .. नीरज जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया इस रचना के लिए ...

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  41. प्यार का ये सहज पैगाम दिल को गुदगुदाता है..प्राण जी की ये कविता बाँटने का आभार..

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे