खौफ का जो कर रहा व्यापार है
आदमी वो मानिये बीमार है
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
तल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
जिस्म से चल कर रुके, जो जिस्म पर
उस सफ़र का नाम ही, अब प्यार है
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
दोस्तों के हाथ में तलवार है
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
क्या करे आदत से वो लाचार है।
{भाई तिलक राज जी के सहयोग का तहे दिल से शुक्रिया जिनकी मदद से मैं ये ग़ज़ल कह पाया}
जिस्म से चल कर रुके, जो जिस्म पर
ReplyDeleteउस सफ़र का नाम ही, अब प्यार है
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
दोस्तों के हाथ में तलवार है
lajabaab neeraj ji !
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
ReplyDeleteतल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...शानदार
regards
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ReplyDeleteग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
waah
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
har sher apne aap mein ek kahani kahta hua ........ek hakeekat ke bayan karta huaa..........gazab ki prastuti.
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
ReplyDeleteक्या करे आदत से वो लाचार है..
......... sundar gajal ,
aaj ke samay men bhee pyaar ko jism tak hee naheen kah sakte .... aabhaar ,,,
छोटी-छोटी बातें जीवन में कितना बड़ा महत्व रखती हैं, इसका एहसास शायद उन्हें नहीं होता होगा जो बड़ी बातों में उलझे रहते हैं। इस ग़ज़ल का हर शेर चिंतन के लिये प्रेरित करता है और मेरा मानना है कि सकारात्मक सृजन वही है जो सोचने पर मजबूर करे और ऐसा सोचने पर मजबूर करे कि सकारात्मक विकास हो। मत्ले के शेर को ही लें, ख़ौफ़ पैदा करने वाला कोई भी इंसान जब गहराई से इस विषय में सोचेगा तो पायेगा कि वास्तव में उसका व्यवहार तोड़-फ़ोड़ में विश्वास रखने वाले मानसिक रोगी जैसा है। दूसरे शेर को देखें सीधी सच्ची बात सीधे सच्चे तरीके से सोचने को मजबूर करता है कि भाई जो जीवन आनंद के साथ व्यतीत हो सकता है उसमें तल्खियाँ, दुश्मनी, तकरार का क्या स्थान।
ReplyDeleteबधाई के पात्र हैं नीरज भाई।
हिंदी, इंग्लिश और उर्दू तीनो के शब्द मिलकर ग़ज़ल को और असरदार बनाते है.. बहुत बढ़िया है जी
ReplyDeleteकमाल है सर जी ... ये बस आप के बस का रोग है ... इतने अच्छे शेर ... तंज़ भी और इतना खूबसूरत !
ReplyDeleteबेहतरीन सर जी , बेहतरीन !!
बेहद सुन्दर प्रस्तुति...शानदार
ReplyDeleteखौफ का जो कर रहा व्यापार है
ReplyDeleteआदमी वो मानिये बीमार है
जिस्म से चल कर रुके, जो जिस्म पर
उस सफ़र का नाम ही, अब प्यार है
नीरज जी बहुत लाजवाब ग़ज़ल है. बहुत गहरी बातें कह दी आपने. मैं आपकी बातों से सहमत हूँ.
आभार .
खौफ का जो कर रहा व्यापार है
ReplyDeleteआदमी वो मानिये बीमार है
ज़माना बदल रहा है साहब....आजकल इसे व्योपार कहते है .देखिये न अमेरिका को ....पाकिस्तान को ज़हाज़ बेच दिए ...फिर हमारे यहाँ आकर कहता है .देखिये पाकिस्तान क्या कर रहा है.....
bahut khub
ReplyDeletekya baat-kya baat
sach bolne ki saja sabhi ko jhelni padti hai
नीरज जी नमस्कार ,
ReplyDeleteमतला ही ध्यान खींच लेता है बहुत सुंदर
एक अच्छी ग़ज़ल पढ़वाई आप ने
धन्यवाद
मै छुपाना जानती तो जग मुझे साधु समझता ,
ReplyDeleteशत्रु मेरा बन गया है छल रहित व्यवहार मेरा .
बेहतरीन ग़ज़ल. हमेशा की तरह बढ़िया.
ReplyDeleteसचमुच बेहतरीन , मुस्कराते हुए हर किसी ने कुछ शिक्षा के घूँट पिए होंगे , दाद देने लायक |
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर,
ReplyDeleteक्या कहें, यह टिप्पणी उद्गार है ।
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
Oh! Kin,kin panktiyonka wasta diya jay?
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ReplyDeleteग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
क्या करे आदत से वो लाचार है।
Bahut Badhiyaa Sir.
हर शेर में अपनी जान है..बहुत उम्दा गज़ल बनी है.
ReplyDeleteचार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
तल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
क्या बात कही है, वाह!!
तुस्सी ग्रेट हो जी!!
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
ReplyDeleteक्या करे आदत से वो लाचार है।
हर बार की तरह
इस बार भी
एक नायाब ख़ज़ाना
एक रत्न-जड़ित रचना
एक भावपूर्ण साहित्य
....
मौलिकता की कसौटी पर खरी उतरती हुई
कामयाब औ शानदार ग़ज़ल
तिलक राज जी की
एक एक बात से सहमत हूँ
बधाई स्वीकारें
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
ReplyDeleteतल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है..
सभी बेहतरीन, बधाई.
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
ReplyDeleteलीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
शानदार गज़ल
बेहतरीन
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
व्यक्ति को तरीक़े से पहचानने की कोशिश नज़र आती है।
नमस्कार नीरज जी ,
ReplyDeleteहर शे'र कामयाब , बड़े दिन बाद आये मगर दुरुस्तगी के साथ , मैं तो सबसे ज्यादह इस बात से गम हूँ , के जिस तरह से लफ्ज़ तल्खी को आपने खूबसूरती से इस्तेमाल किया है ..
जिस्म से चल कर रुके, जो जिस्म पर
उस सफ़र का नाम ही, अब प्यार है
और यह तीसरा शे'र वर्त्तमान को परिभाषित करता हुआ...
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दुरी तय करने में वक्त तो लगता है ....
पूरी तरह से विपरीत ... शायद जमाने का यह असर है ... वो भी एक क्या ज़माना होगा
और अब यह है के जब शाईर यह शे'र लिखने पर मजबूर हो जाए ..
सलाम इस शे'र पर...
फिर से आता हूँ ... और तिलक साहब को भी आदाब ...
अर्श
हमेशा की तरह नीरज की लेखनी से उपजी एक बेमिसाल ग़ज़ल। एक वो हैं गीतों वाले नीरज और एक आप हैं ये ग़ज़लों वाले नीरज...
ReplyDeleteमक्ते के अंदाज़े-बयां पे ढ़ेरों दाद, खूब तालियाँ।
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
बहुत खुब जी,
धन्यवाद
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
ReplyDeleteलीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
.....बहुत खूब,जबरदस्त!!!!
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
ReplyDeleteतल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
दोस्तों के हाथ में तलवार है
बेहद सुंदर प्रस्तुति…पर उसमें नया क्या है? आप तो हमेशा ही बहुत अच्छा लिखते हैं।
दिन में कार्यालयीन व्यस्तता के कारण दो अशआर पर ही टिप्पणी हो सकी, बाकी अशआर भी उसी गहराई से कहे गये हैं और गज़ब ढा रहे हैं चाहे जिस्म से चल कर रुके का कटाक्ष हो या आज की तथाकथित दोस्ती का हाल या अपनी अलग राह बनाने की बात। और जिस आदमी ने ग़म और खुशी में फ़र्क करना बंद कर दिया उसके जीवन में तो आनंद ही आनंद है। हॉं सच बोलने पर नाराज़गी मिलती है तो मिला करे, ये आदत तो कतई बदलने लायक नहीं।
ReplyDeleteएक बार फिर बधाई।
नीरज जी क्या कहूँ, कहाँ से अपनी बात शुरू करूँ समझ नहीं आ रहा :)
ReplyDeleteजिस तरह इन्द्रधनुष देख कर बच्चे खुशी से किलकारी भरने लगते है उसी तरह आज की सात रंगों में रंगी गजल पढ़ कर मेरा हाल हुआ
हर शेर नायाब मोती, इस गजल को भूल अब मेरे लिए मुमकिन नही है
तिलक जी को भी बहुत बहुत धन्यवाद
अब तो आपको मेरी बात माननी पड़ेगी :)
जब लिंक पर आपकी पोस्ट की हेडिंग पढ़ी तो ही पता चल गया आज की ब्लोगिंग सफल हुई :)
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
उफ्फ्फ्फ्फ्फ़ इस फलसफे को लाख सलाम ...
वीनस
वह नीरज भैया ,हर बार कि तरह इस बार भी बेहद उम्दा ग़ज़ल ,बस यूं कहिये के मज़ा आ गया /
ReplyDeleteदुश्मनों से बच गए तो क्या हुआ /दोस्तों के हाथ मे तलवार है /
बहुत दिनों से चुप हैं ,क्यों?सादर,
डॉ.भूपेन्द्र रीवा
बढ़िया गजल ! सत्य वचन !
ReplyDeleteज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ReplyDeleteग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
---वाह क्या बात है
कितना प्यारा जीवन दर्शन
पुलकित होता अपना भी मन
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
नीरज जी, दोस्तों के हाथ भी तलवार है कैसा रहता? वे दोस्त ही क्या जो तलवार ना रखे। बहुत ही सार्थक गजल, बधाई।
नीरज जी आपकी ग़ज़ल का हमेशा ही इंतज़ार रहता है .... और ग़ज़ल पढ़ कर लगता है ... गलत प्रतीक्षा नहीं करता ...
ReplyDeleteबहुत ही ताजगी सी नज़र आती है आपकी ग़ज़ल में ... कमाल के शेर हैं सब ... सुभान अल्ला ...
antim pankti to bilkul sahi kahi hai aapne..
ReplyDeletebadhiya prastuti..
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteनपे तुले लफ़्ज़ों में उम्दा बात कही है, मतले के मिसरा-ए-सनी में काफिये के रूप में आया बीमार लफ्ज़ बहुत अच्छे तरीके से अपनी बयानगी दे रहा है.
खौफ का जो कर रहा व्यापार है
आदमी वो मानिये बीमार है
ये शेर आप की खुशमिजाजी का एक और उदाहरण है,
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
तल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
इस शेर में आपने, आसान सी लगने वाली मुश्किल बात कह दी है,
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
बहुत उम्दा ग़ज़ल.
E-Mail received from Ratan Kumar: Newzealand.
ReplyDeleteWah ji.. wah.. bahut khub.
Ratan
E-mail received from Om Sapra Ji:
ReplyDeleteshri neraj ji
namastey
thanks for sending this good gazal,
regards
-om sarpa, delhi-9
9818180932
दुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
ReplyDeleteदोस्तों के हाथ में तलवार है
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
बहुत खूब लिखा है नीरज जी । सुन्दर प्रस्तुति।
नीरज साहिब
ReplyDeleteग़ज़ल देखी मज़ा आ गया एक से बढ़ कर एक शेर अल्लाह करे
जोरे कलम और ज्यादा
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
ज़िन्दगी भरपूर जीने के लिए
ReplyDeleteग़म, खुशी में फ़र्क ही बेकार है
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
क्या करे आदत से वो लाचार है।
हमारी पसंद के इन दो शेर पर आपका क्या विचार है। वैसे हमें तो अपने से लगे।
शुक्रिया ,
ReplyDeleteमतले से मक़ते तक बस एक ही लफ्ज़ ज़बान से निकला ........वाह !
खौफ का जो कर रहा व्यापार है
ReplyDeleteआदमी वो मानिये बीमार है
--------
शुक्रिया। कई बीमारों के चेहरे यादों में घूम गये। बेचारे, क्या समझते हैं अपने को! :(
खौफ का जो कर रहा व्यापार है
ReplyDeleteआदमी वो मानिये बीमार है
क्या खूब कहा बंधुवर !
बहुत खूब लिखा सर जी
ReplyDeleteदुश्मनों से बच गए, तो क्या हुआ
दोस्तों के हाथ में तलवार है !!!!!!
bahut bahut badhai!!
बहुत शानदार गजल है।
ReplyDeleteबोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
ReplyDeleteक्या करे आदत से वो लाचार है।
कह रहा हूँ सच, कुबूले दाद यो
एक जुमला यह हजारों बार है
neeraj ji deri se aane ke liye maafi .....
ReplyDeleteलुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
is sher ne mera din bana diya sir , hats off to you ....
vijay
लुत्फ़ है जब राह अपनी हो अलग
ReplyDeleteलीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
waah kya kamaal ka sher hua hai Neeraj ji
बोल कर सच फि़र बना 'नीरज' बुरा
क्या करे आदत से वो लाचार है।
is sher ke liye kya kaha jaaye .......
bahut hi khoobsurat gazal hui hai Neeraj ji
aap ko padh kar hamesha achcha lagta hai
sakun milta hai
जो गज़ल में ज़िन्दगी को घोल दे
ReplyDeleteनाम नीरज उसका मेरे यार है
क्या कहें इस दौर में बतलाइये
संयमित हर चाह का विस्तार है
एक से बढ़ कर एक शेर. बधाई.
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteआदाब, बल्कि कोर्निश!
इस ग़ज़ल ने नतमस्तक कर दिया।
ख़्वाहिशे-तारीफ़, पर अल्फ़ाज़ कम
किस क़दर मेरी ज़ुबाँ लाचार है
आपका हर शेर घुँघरू है, ग़ज़ल
हर कदम पर इक नयी झंकार है
क्या सुख़न है! क्या है अन्दाज़े-बयाँ!
जिस तरफ़ देखो नया अन्वार है
ख़ूबसूरत सोच, फिर लहज़ा गिरह
गज़ल है या नौलखा सा हार है
क्या तनासुब है कि हर इक चीज़ की
हर जगह बिल्कुल सही मिकदार है
सादर,
नीरज जी, ब्लाग की दुनिया में आकर जिन कुछ मोतियों से मिला, उनमें आप को न गिनूं तो ठीक नहीं होगा. जिसका जीवन लयबद्ध होता है, केवल वही अच्छी रचनायें दे पाते हैं. मैं समझ सकता हूं आप के जीवन के बारे में, उसकी लय के बारे में. मैं भी इसी रास्ते पर कहीं चलता आया हूं. आप की गज़लों में मुझे अपनी आवाज सुनायी पड़्ती है. बधाई.
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