Monday, April 5, 2010

किताबों की दुनिया: 27

अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
क़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.

जिस शायर ने जब ये शेर कहा उसके सत्रह साल बाद अचानक इस शेर को अल्लाह के खिलाफ लिखा माना गया और उस शायर के खिलाफ फ़तवा जारी करते हुए उसे काफ़िर घोषित कर दिया. मैं जिस शायर का जिक्र कर रहा हूँ वो हैं अपनी आधुनिक सोच के ज़रिये उर्दू शायरी और साहित्य को बुलंदियों पर पहुँचाने वाले हर दिल अज़ीज़ शायर जनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब और आज हम जिस किताब का जिक्र करने जा रहे हैं उसे बहुत मेहनत से सम्पादित किया है जनाब शीन काफ निजाम और नन्द किशोर आचार्य साहब ने जिसमें अल्वी साहब की बेहतरीन ग़ज़लें और नज्में शामिल की गयी हैं और जिसका शीर्षक है " उजाड़ दरख्तों पे आशियाने"


हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
मिरी आँख से फिर समंदर गिरा

गिराना ही है तो मिरी बात सुन
मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा

अल्वी साहब का जन्म १० अप्रैल १९२७ को अहमदाबाद में हुआ था. उन्होंने ने भले ही बहुत ऊंची तालीम हासिल नहीं की लेकिन शेर और नज़्म कहने का हुनर खूब सीखा. उस वक्त जब उर्दू ग़ज़ल हुस्नो इश्क शराब शबाब के तंग दायरे में छटपटा रही थी अल्वी साहब ने उसे नयी रौशनी दिखाई और खुली हवा में सांस लेने दी ...

उदास है दिन हंसा के देखें
ज़रा उसे गुदगुदा के देखें

नया ही मंज़र दिखाई देगा
अगर ये मंज़र हटा के देखें

हमें भी आता है मुस्कुराना
मगर किसे मुस्कुरा के देखें

अल्वी साहब की शायरी की खासियत है उसकी सादा बयानी लेकिन ऊपर से जो बात बहुत सीधी और सरल नज़र आती है गहरे में उतरें तो वो उतनी सादा और सरल होती नहीं. जीवन की गूढतम बातों को वो बहुत आसानी से कह जाते हैं. उन्होंने अपनी अधिकाँश ग़ज़लें छोटी बहर में कहीं हैं और ये हुनर बहुत मुश्किल से आता है:

कुछ तो इस दिल को सजा दी जाये
उसकी तस्वीर हटा दी जाये

ढूँढने में भी मज़ा आता है
कोई शै रख के भुला दी जाये

गुजरात उर्दू अकादमी, साहित्य अकादमी और ग़ालिब पुरूस्कार से सम्मानित अल्वी साहब अपनी शायरी में नए प्रतीकों, भाषा और लहजे के इस्तेमाल के कारण अपने सम कालीन शायरों में सबसे जुदा नज़र आते हैं. वो उर्दू शायरी की शास्त्रीय परंपरा में बंध कर नहीं कहते, उन्हें लीक पर चलना गवारा नहीं और वो अपनी राह खुद बना कर चलते हैं जों ऊबड़ खाबड़ होते हुए भी दिलचस्प है.

भाई मिरे घर साथ न ले
जंगल में डर साथ न ले

यादें पत्थर होती हैं
मूरख पत्थर साथ न ले

एक अकेला भाग निकल
सारा लश्कर साथ न ले

भला हो वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर का जिन्होंने मात्र तीस रुपये कीमत की ये बेजोड़ किताब हम जैसे पाठकों के लिए बाज़ार में उतारी है.लगभग एक सौ बीस पन्नो में फैली अल्वी साहब की नब्बे ग़ज़लें और चालीस नज्में बार बार पढने लायक हैं

हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख

देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख

तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तो खुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख

श्री 'नन्द किशोर आचार्य' कहते हैं की मुहम्मद अल्वी की कहाँ ने उर्दू शायरी -ग़ज़ल और नज़्म दोनों को एक नया लहजा दिया है. यह नयी उर्दू कविता की एक प्रमाणिक आवाज़ है जिस की अनसुनी करना अपने को काव्यानुभव के एक विशिष्ट आस्वाद से वंचित रखना होगा.

अरे ये दिल और इतना खाली
कोई मुसीबत ही पाल रखिये

जहाँ कि बस तिलिस्म सा है
न टूट जाए ख्याल रखिये

तुड़ा मुड़ा है मगर खुदा है
इसे तो साहिब सँभाल रखिये

अब कोई एक आध अशआर हो तो गिनाऊँ, इस किताब में कोई पांचसौ के करीब शेर हैं...और हर शेर वाह वाह करने योग्य है...लेकिन सवाल ये है की इस खजाने में से कौनसा मोती छोड़े और किसे चुनें...इस लिए पन्ने पलटते वक्त जो ग़ज़ल सामने आई उसी में से एक आध शेर आपके लिए चुन लिए. आप ऐसा क्यूँ नहीं करते के वाग्देवी प्रकाशन वालों को मेल डाल कर इस किताब को मंगवा लेते और फिर आराम से इसे पढ़ते आनंद लेते?ये पोस्ट यहाँ ख़तम नहीं हुई है क्यूँ की इस किताब की चालीस नज्मों का जिक्र तो मैंने अभी तक किया ही नहीं है...वो नज्में छोटी छोटी हैं और ऐसी जैसी आपने शायद ही कहीं पढ़ीं हों...आप इंतज़ार कीजिये क्यूँ की इंतज़ार का फल भले ही मीठा न हो लेकिन लाजवाब यादगार नज्मों वाला होगा ये पक्का है...

मिलते हैं जल्द ही इस किताब की दूसरी कड़ी लेकर अगर आप ज्यादा उतावले हैं तो लिखिए मेल वाग्देवी प्रकाशन को इस पते पर: vagdevibooks@gmail.com या फिर एक फोन घुमाइए इस नंबर पर:0151-2242023 बस और फिर ये खज़ाना होगा आपका .

चलते चलते एक ग़ज़ल चंद शेर आपको और सुनाने को जी कर रहा है ताकि आपकी प्यास इस किताब को खरीदने के लिए जगे :

रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
खास मौकों पे मज़ा देते हैं

हाय वो लोग जो देखे भी नहीं
याद आयें तो रुला देते हैं

आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं

36 comments:

  1. सचमुच कमाल के अशआर...................

    मैं पूरी किताब पढ़ना चाहूँगा .........

    बहुत शुक्रिया इस आलेख के लिए

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  2. bada accha laga ye parichay........aur aapke chune sher
    aabhar

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  3. हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
    मिरी आँख से फिर समंदर गिरा
    गिराना ही है तो मिरी बात सुन
    मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा
    अल्वी साहब के बारे में बहुत बढ़िया लिखा नीरज जी आपने..........अल्वी साहब ने निश्चित ही उर्दू शायरी को नया दयार बख्शा है.....

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  4. मुहम्‍मद अल्‍वी साहब की शायरी से परिचित कराने के लिए आभार।

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  5. ग़ज़ब के शेर और आपकी पारखी नज़र ... ५०० शेरों में से कुछ हीरे पन्ने छांट कर सुनाए हैं आपने ... पूरी किताब तो जान ही ले लेगी ... मुहम्मद अल्वी साहब की शायरी को सलाम ...

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  6. शुक्रिया बहुत बहुत ,बड़ी आम सी बातें हैं मगर .....ये फन तो शायरों को ही हासिल है ......गुदगुदाते हैं ..गागर में सागर भर लातें हैं ...

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  7. किसकी तरीफ़ करूँ और कौन सा छोड दूँ …………………हर शेर लजवाब्।

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  8. बहुत ही उच्चस्तरीय भावसंप्रेषण । पढ़कर आनन्द आ गया अल्वी साहब को ।

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  9. रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
    खास मौकों पे मज़ा देते हैं
    pyaas jagi is pustak ke liye, bahut achha laga padhker

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  10. इस बहुत अच्छी प्रस्तुति के लिए शुक्रिया ,
    सभी कलाम अपने मुक़ाम की ख़ुद पहचान करवा रहे हैं लेकिन ख़ास तौर पर ये........


    हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
    मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख

    देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
    चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख

    बहुत ख़ूब! वाह!
    शायर मुबारक बाद का मुस्तहक़ है

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  11. जब किसी को एक से एक बेहतरीन शेर पढने की इच्छा बस आपके ब्लोगपते पर आ जाए। इतना पक्का है मायूस होकर नही जाऐगा।

    हम भी इस पोस्ट में कई शेर बहुत पसंद आए।

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  12. बहुत बड़े शायर हैं अल्वी साहब. उनके बारे में जानना अच्छा लगा. सभी अशआर एक से बढ़कर एक. ये वाला बहुत पसंद आया;

    हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
    मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख

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  13. bahut hi accha laga alwi ji ke bare me jan kar
    shukriya Neeraj ji

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  14. ...बेहद प्रसंशनीय प्रस्तुति,आभार!!!

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  15. आज फिर बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.

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  16. हमें भी आता है मुस्कुराना
    मगर किसे मुस्कुरा के देखें

    ढूँढने में भी मज़ा आता है
    कोई शै रख के भुला दी जाये

    तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तो खुश न हो
    उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख

    बहुत खूब । शानदार।

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  17. आज की पोस्‍ट के लिये आपका विशेष आभार। बहुत सरल सा कारण है; आज की पोस्‍ट से कई नये शायरों का यह भ्रम टूटेगा कि ग़ज़ल का मज़ा भरी-भरकम उर्दू शब्‍दों के उपयोग में ही है।
    जनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब के शेर गवाही हैं इस बात के कि शायरी सामान्‍य प्रचलित भाषा के शब्‍द लेकर भी की जा सकती है और उसमें भी उतनी ही बड़ी बात कही जा सकती है जिसके लिये कुछ शायर भारी-भरकम उर्दू शब्‍दों का उपयोग जरूरी समझते हैं।
    हर शेर हमारे आस-पास की भाषा में पूरी तरह अभिव्‍यक्‍त।

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  18. नीरज जी नमस्कार,
    फिर से नगीना निकाल लाये आप , और हमने इसमें से न. चुरा लिए ...
    अल्वी साहब उस्ताद शाईर हैं .... सलाम इनको ....
    और आपकी इस तरफ की दीवानगी के लिए नतमस्तक ..


    आपका
    अर्श

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  19. देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
    चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख

    वाह ! बेहतरीन शायरी है साहब !! एक बार फिर कमाल का चयन .... कमाल की पोस्ट !! शुक्रिया !!

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  20. हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
    मिरी आँख से फिर समंदर गिरा

    गिराना ही है तो मिरी बात सुन
    मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा

    पढ़ कर दिल से छनाक की आवाज आई, लग रहा है कुछ टूट गया

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  21. भूमिका के बाद इस पोस्ट का पहला और अंतिम शेर

    हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
    मिरी आँख से फिर समंदर गिरा

    ......................

    आग अपने ही लगा सकते हैं
    ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं
    --क्या खूबसूरती से सजायी है पोस्ट आपने..!
    और भी शेर बेहतरीन हैं मगर ये तो लाज़वाब हैं।
    --आभार।

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  22. अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
    क़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.
    वाह वाह जनाब क्या बात है आप के विचारो से आप के लेख से सहमत है.

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  23. आपका हार्दिक आभार ,इतने ज़हीन शायर से मिलवाने के लिए ,शेरों ने मुझे समूचा गटक लिया है.

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  24. एक से एक उम्दा शायरों से मिलवाते हैं और गज़ब की किताब लाते हैं आप, बहुत आभार जनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब से मिलवाने का.

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  25. नीरज सर,
    अल्वी साहब का परिचय और उनकी बेहतरीन शे'रों को पढवाने के लिए शुक्रिया...
    आप जितने अच्छे लेखक हैं उतने ही अच्छे पाठक भी... साहित्य के सच्चे पुजारी हैं...

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  26. अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
    क़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.

    समझ नहीं आया इशे'र को कहने में क्या गुस्ताखी हो गयी शायर से जो फतवा जारी हो गया .....!!

    रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
    खास मौकों पे मज़ा देते हैं
    बहुत खूब ....!!



    आग अपने ही लगा सकते हैं
    ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं

    ओये होए ....बिलकुल सही बात ....!!

    ( मेरे ब्लॉग पे जो देखी वो उसमें मेरा कुछ नहीं सब तिलक जी का है मैं तो डाल ही नहीं रही थी पर उनके कहने पर और उनकी मेहनत को ध्यान में रखते हुए डाल दिया .....वीनस के ब्लॉग पे इक बार प्रयास करती हूँ सीखने की आप सब का साथ चाहिए ...!!)

    aapki bhi tippniyaan gayab hain ....mere blog se bhi ....!!

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  27. उदास है दिन हंसा के देखें
    ज़रा उसे गुदगुदा के देखें
    ...कित्ती प्यारी पंक्तियाँ...है ना.


    -----------------------------------
    'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!

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  28. तुड़ा मुड़ा है मगर खुदा है
    इसे तो साहिब सँभाल रखिये
    वाह...पूरी किताब की कीमत वसूल दी इस शेर ने ......
    नज्मे भेजिए.......मेरी कमजोरी नज्मे है.....ओर ये शेर .कई दिनों तक साथ रहेगा ...........कसम से

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  29. अब क्या कहें...
    आप तो सीप के मोती
    चुन -चुनकर यूं बिखेर जाते हैं कि
    ........अब क्या कहें !
    ================
    आपका
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  30. हर बार शुक्रिया कहते दोहराव सा लगता है पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता...शुक्रिया जनाब

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  31. अल्वी साहब को पढने का मौक़ा मुझे हासिल हुआ है और इस लिहाज़ से मैं खुद को खुशकिस्मत कहता हूँ. ऐसे बहुत सारे अनमोल नगीने हैं जिनकी बदौलत आज यह अकिंचन शायरी की दुनिया में है और ब्लाग जगत में ढेरों सितारों के बीच उनकी चमक से खुद भी रोशन है.
    मैं आज फिर कह रहा हूँ कि आप इस दुनिया के बाशिंदे नहीं. यहाँ लोग खुद मनवाने के लिए जोड़-तोड़ करते हैं. इतना ही नहीं, ऐसे भी हैं जो खुद को वो मनवाना चाहते हैं, जो वो बिलकुल भी नहीं हैं.
    लेकिन आप, दूसरों की ही तारीफ करेंगे.
    मैं बहुत बहुत बहुत दिनों बाद आया क्या आ सका हूँ. आपकी मुहब्बत हमेशा याद रहती है और शर्मिंदा भी करती है. लेकिन मजबूरियां....!
    क्षमा बडन को....:)

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  32. Neeraj Ji Aapkablog kaafi achcha hai.
    kai achchi post padhi hain yahan.

    Ashish
    http://ashishcogitations.blogspot.com/

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  33. कमाल के हीरे चुन कर लाते हैं आप । हर शेर पुर-नूर ।
    रोज अच्छे नही लगते आंसू
    खास मौकों पे मज़ा देते है । और
    उदास है दिन इसे हंसा के देखें
    जरा इसे गुदगुदा के देखें ।
    और
    देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
    चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख ।

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  34. नीरज जी, आदाब
    किताबों की दुनिया में आप ऐसे नायाब नगीने पेश करते हैं, कि वाह के अलावा कहने को कुछ रह नहीं जाता. सबसे बड़ी दाद यही है, कि ये इंतख़ाब आपका है.
    ये शेर-
    हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
    मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख..
    नायाब लगा......शुक्रिया

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  35. "गिराना ही है तो मिरी बात सुन
    मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा"

    ...अल्वी साब एक इस शेर पे भी खूब चर्चा हो रखी है। विलंब से आने के लिये क्षमा चाहूंगा नीरज जी....

    पिछले साल ही ये किताब अपनी आलमारी में शामिल हुई थी....

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे