अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
क़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.
जिस शायर ने जब ये शेर कहा उसके सत्रह साल बाद अचानक इस शेर को अल्लाह के खिलाफ लिखा माना गया और उस शायर के खिलाफ फ़तवा जारी करते हुए उसे काफ़िर घोषित कर दिया. मैं जिस शायर का जिक्र कर रहा हूँ वो हैं अपनी आधुनिक सोच के ज़रिये उर्दू शायरी और साहित्य को बुलंदियों पर पहुँचाने वाले हर दिल अज़ीज़ शायर जनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब और आज हम जिस किताब का जिक्र करने जा रहे हैं उसे बहुत मेहनत से सम्पादित किया है जनाब शीन काफ निजाम और नन्द किशोर आचार्य साहब ने जिसमें अल्वी साहब की बेहतरीन ग़ज़लें और नज्में शामिल की गयी हैं और जिसका शीर्षक है " उजाड़ दरख्तों पे आशियाने"
हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
मिरी आँख से फिर समंदर गिरा
गिराना ही है तो मिरी बात सुन
मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा
उदास है दिन हंसा के देखें
ज़रा उसे गुदगुदा के देखें
नया ही मंज़र दिखाई देगा
अगर ये मंज़र हटा के देखें
हमें भी आता है मुस्कुराना
मगर किसे मुस्कुरा के देखें
कुछ तो इस दिल को सजा दी जाये
उसकी तस्वीर हटा दी जाये
ढूँढने में भी मज़ा आता है
कोई शै रख के भुला दी जाये
भाई मिरे घर साथ न ले
जंगल में डर साथ न ले
यादें पत्थर होती हैं
मूरख पत्थर साथ न ले
एक अकेला भाग निकल
सारा लश्कर साथ न ले
हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख
देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तो खुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
अरे ये दिल और इतना खाली
कोई मुसीबत ही पाल रखिये
जहाँ कि बस तिलिस्म सा है
न टूट जाए ख्याल रखिये
तुड़ा मुड़ा है मगर खुदा है
इसे तो साहिब सँभाल रखिये
मिलते हैं जल्द ही इस किताब की दूसरी कड़ी लेकर अगर आप ज्यादा उतावले हैं तो लिखिए मेल वाग्देवी प्रकाशन को इस पते पर: vagdevibooks@gmail.com या फिर एक फोन घुमाइए इस नंबर पर:0151-2242023 बस और फिर ये खज़ाना होगा आपका .
चलते चलते एक ग़ज़ल चंद शेर आपको और सुनाने को जी कर रहा है ताकि आपकी प्यास इस किताब को खरीदने के लिए जगे :
रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
खास मौकों पे मज़ा देते हैं
हाय वो लोग जो देखे भी नहीं
याद आयें तो रुला देते हैं
आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं
nice
ReplyDeleteसचमुच कमाल के अशआर...................
ReplyDeleteमैं पूरी किताब पढ़ना चाहूँगा .........
बहुत शुक्रिया इस आलेख के लिए
bada accha laga ye parichay........aur aapke chune sher
ReplyDeleteaabhar
हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
ReplyDeleteमिरी आँख से फिर समंदर गिरा
गिराना ही है तो मिरी बात सुन
मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा
अल्वी साहब के बारे में बहुत बढ़िया लिखा नीरज जी आपने..........अल्वी साहब ने निश्चित ही उर्दू शायरी को नया दयार बख्शा है.....
मुहम्मद अल्वी साहब की शायरी से परिचित कराने के लिए आभार।
ReplyDeleteग़ज़ब के शेर और आपकी पारखी नज़र ... ५०० शेरों में से कुछ हीरे पन्ने छांट कर सुनाए हैं आपने ... पूरी किताब तो जान ही ले लेगी ... मुहम्मद अल्वी साहब की शायरी को सलाम ...
ReplyDeleteशुक्रिया बहुत बहुत ,बड़ी आम सी बातें हैं मगर .....ये फन तो शायरों को ही हासिल है ......गुदगुदाते हैं ..गागर में सागर भर लातें हैं ...
ReplyDeleteकिसकी तरीफ़ करूँ और कौन सा छोड दूँ …………………हर शेर लजवाब्।
ReplyDeleteबहुत ही उच्चस्तरीय भावसंप्रेषण । पढ़कर आनन्द आ गया अल्वी साहब को ।
ReplyDeleteरोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
ReplyDeleteखास मौकों पे मज़ा देते हैं
pyaas jagi is pustak ke liye, bahut achha laga padhker
इस बहुत अच्छी प्रस्तुति के लिए शुक्रिया ,
ReplyDeleteसभी कलाम अपने मुक़ाम की ख़ुद पहचान करवा रहे हैं लेकिन ख़ास तौर पर ये........
हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख
देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
बहुत ख़ूब! वाह!
शायर मुबारक बाद का मुस्तहक़ है
जब किसी को एक से एक बेहतरीन शेर पढने की इच्छा बस आपके ब्लोगपते पर आ जाए। इतना पक्का है मायूस होकर नही जाऐगा।
ReplyDeleteहम भी इस पोस्ट में कई शेर बहुत पसंद आए।
बहुत बड़े शायर हैं अल्वी साहब. उनके बारे में जानना अच्छा लगा. सभी अशआर एक से बढ़कर एक. ये वाला बहुत पसंद आया;
ReplyDeleteहर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख
bahut hi accha laga alwi ji ke bare me jan kar
ReplyDeleteshukriya Neeraj ji
...बेहद प्रसंशनीय प्रस्तुति,आभार!!!
ReplyDeleteआज फिर बेहतरीन प्रस्तुति,आभार.
ReplyDeleteहमें भी आता है मुस्कुराना
ReplyDeleteमगर किसे मुस्कुरा के देखें
ढूँढने में भी मज़ा आता है
कोई शै रख के भुला दी जाये
तारीफ़ सुन के दोस्त से 'अल्वी' तो खुश न हो
उस को तिरी बुराइयाँ करते हुए भी देख
बहुत खूब । शानदार।
आज की पोस्ट के लिये आपका विशेष आभार। बहुत सरल सा कारण है; आज की पोस्ट से कई नये शायरों का यह भ्रम टूटेगा कि ग़ज़ल का मज़ा भरी-भरकम उर्दू शब्दों के उपयोग में ही है।
ReplyDeleteजनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब के शेर गवाही हैं इस बात के कि शायरी सामान्य प्रचलित भाषा के शब्द लेकर भी की जा सकती है और उसमें भी उतनी ही बड़ी बात कही जा सकती है जिसके लिये कुछ शायर भारी-भरकम उर्दू शब्दों का उपयोग जरूरी समझते हैं।
हर शेर हमारे आस-पास की भाषा में पूरी तरह अभिव्यक्त।
नीरज जी नमस्कार,
ReplyDeleteफिर से नगीना निकाल लाये आप , और हमने इसमें से न. चुरा लिए ...
अल्वी साहब उस्ताद शाईर हैं .... सलाम इनको ....
और आपकी इस तरफ की दीवानगी के लिए नतमस्तक ..
आपका
अर्श
देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
ReplyDeleteचलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख
वाह ! बेहतरीन शायरी है साहब !! एक बार फिर कमाल का चयन .... कमाल की पोस्ट !! शुक्रिया !!
हुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
ReplyDeleteमिरी आँख से फिर समंदर गिरा
गिराना ही है तो मिरी बात सुन
मैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा
पढ़ कर दिल से छनाक की आवाज आई, लग रहा है कुछ टूट गया
भूमिका के बाद इस पोस्ट का पहला और अंतिम शेर
ReplyDeleteहुई रात मैं अपने अन्दर गिरा
मिरी आँख से फिर समंदर गिरा
......................
आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं
--क्या खूबसूरती से सजायी है पोस्ट आपने..!
और भी शेर बेहतरीन हैं मगर ये तो लाज़वाब हैं।
--आभार।
अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
ReplyDeleteक़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.
वाह वाह जनाब क्या बात है आप के विचारो से आप के लेख से सहमत है.
आपका हार्दिक आभार ,इतने ज़हीन शायर से मिलवाने के लिए ,शेरों ने मुझे समूचा गटक लिया है.
ReplyDeleteएक से एक उम्दा शायरों से मिलवाते हैं और गज़ब की किताब लाते हैं आप, बहुत आभार जनाब "मुहम्मद अल्वी" साहब से मिलवाने का.
ReplyDeleteनीरज सर,
ReplyDeleteअल्वी साहब का परिचय और उनकी बेहतरीन शे'रों को पढवाने के लिए शुक्रिया...
आप जितने अच्छे लेखक हैं उतने ही अच्छे पाठक भी... साहित्य के सच्चे पुजारी हैं...
अगर तुझको फुर्सत नहीं तो ना आ मगर एक अच्छा नबी भेज दे
ReplyDeleteक़यामत के दिन खो ना जाएँ कहीं ये अच्छी घडी है, अभी भेज दे.
समझ नहीं आया इशे'र को कहने में क्या गुस्ताखी हो गयी शायर से जो फतवा जारी हो गया .....!!
रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू
खास मौकों पे मज़ा देते हैं
बहुत खूब ....!!
आग अपने ही लगा सकते हैं
ग़ैर तो सिर्फ हवा देते हैं
ओये होए ....बिलकुल सही बात ....!!
( मेरे ब्लॉग पे जो देखी वो उसमें मेरा कुछ नहीं सब तिलक जी का है मैं तो डाल ही नहीं रही थी पर उनके कहने पर और उनकी मेहनत को ध्यान में रखते हुए डाल दिया .....वीनस के ब्लॉग पे इक बार प्रयास करती हूँ सीखने की आप सब का साथ चाहिए ...!!)
aapki bhi tippniyaan gayab hain ....mere blog se bhi ....!!
उदास है दिन हंसा के देखें
ReplyDeleteज़रा उसे गुदगुदा के देखें
...कित्ती प्यारी पंक्तियाँ...है ना.
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'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!
तुड़ा मुड़ा है मगर खुदा है
ReplyDeleteइसे तो साहिब सँभाल रखिये
वाह...पूरी किताब की कीमत वसूल दी इस शेर ने ......
नज्मे भेजिए.......मेरी कमजोरी नज्मे है.....ओर ये शेर .कई दिनों तक साथ रहेगा ...........कसम से
अब क्या कहें...
ReplyDeleteआप तो सीप के मोती
चुन -चुनकर यूं बिखेर जाते हैं कि
........अब क्या कहें !
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आपका
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
हर बार शुक्रिया कहते दोहराव सा लगता है पर कहे बिना रहा भी नहीं जाता...शुक्रिया जनाब
ReplyDeleteअल्वी साहब को पढने का मौक़ा मुझे हासिल हुआ है और इस लिहाज़ से मैं खुद को खुशकिस्मत कहता हूँ. ऐसे बहुत सारे अनमोल नगीने हैं जिनकी बदौलत आज यह अकिंचन शायरी की दुनिया में है और ब्लाग जगत में ढेरों सितारों के बीच उनकी चमक से खुद भी रोशन है.
ReplyDeleteमैं आज फिर कह रहा हूँ कि आप इस दुनिया के बाशिंदे नहीं. यहाँ लोग खुद मनवाने के लिए जोड़-तोड़ करते हैं. इतना ही नहीं, ऐसे भी हैं जो खुद को वो मनवाना चाहते हैं, जो वो बिलकुल भी नहीं हैं.
लेकिन आप, दूसरों की ही तारीफ करेंगे.
मैं बहुत बहुत बहुत दिनों बाद आया क्या आ सका हूँ. आपकी मुहब्बत हमेशा याद रहती है और शर्मिंदा भी करती है. लेकिन मजबूरियां....!
क्षमा बडन को....:)
Neeraj Ji Aapkablog kaafi achcha hai.
ReplyDeletekai achchi post padhi hain yahan.
Ashish
http://ashishcogitations.blogspot.com/
कमाल के हीरे चुन कर लाते हैं आप । हर शेर पुर-नूर ।
ReplyDeleteरोज अच्छे नही लगते आंसू
खास मौकों पे मज़ा देते है । और
उदास है दिन इसे हंसा के देखें
जरा इसे गुदगुदा के देखें ।
और
देखा न होगा तूने मगर इंतज़ार में
चलते हुए समय को ठहरते हुए भी देख ।
नीरज जी, आदाब
ReplyDeleteकिताबों की दुनिया में आप ऐसे नायाब नगीने पेश करते हैं, कि वाह के अलावा कहने को कुछ रह नहीं जाता. सबसे बड़ी दाद यही है, कि ये इंतख़ाब आपका है.
ये शेर-
हर वक्त खिलते फूल की जानिब तका न कर
मुरझा के पत्तियों को बिखरते हुए भी देख..
नायाब लगा......शुक्रिया
"गिराना ही है तो मिरी बात सुन
ReplyDeleteमैं मस्जिद गिराऊँ तू मंदिर गिरा"
...अल्वी साब एक इस शेर पे भी खूब चर्चा हो रखी है। विलंब से आने के लिये क्षमा चाहूंगा नीरज जी....
पिछले साल ही ये किताब अपनी आलमारी में शामिल हुई थी....