Monday, March 22, 2010

किताबों की दुनिया -26

मैं कुमार विनोद जी को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता,लेकिन मेरा सौभाग्य देखिये नौ फरवरी को कुरुक्षेत्र से उनका अचानक मेल आया, जिसमें लिखा था कि उन्होंने मेरा ब्लॉग देखा है और उन्हें उस पर पोस्ट की गयी ग़ज़लें और पुस्तक समीक्षाएं बहुत पसंद आयीं हैं .साथ ही उन्होंने ये भी बताया की वो भी ग़ज़लें लिखते हैं और उनका एक ग़ज़ल संग्रह भी प्रकशित हो चुका है. मेल के साथ उन्होंने अपनी कुछ ग़ज़लें भी भेजीं...ग़ज़लें पढ़ कर ही मुझे आभास हो गया की चाहे मैं उन्हें व्यक्तिगत तौर पर ना जानूं लेकिन सोच के स्तर पर उन्हें पहचान गया हूँ. ये भी जान गया की वो बिलकुल अलग बेबाक अंदाज़ में अपनी बात कहने वाले निराले युवा शायर हैं .दिल ने कहा अब उनकी इस किताब को पढने के लिए उसे हासिल करना ही पड़ेगा,क्यूंकि रात के सन्नाटे में किताब हाथ में लेकर अधलेटे ग़ज़लें पढने का जो आनंद है, वो आनंद लैप टाप खोल कर पढने में नहीं आता. कुमार जी को किताब भेजने का आग्रह किया गया जो उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी पूरा किया और अब उसी किताब "बेरंग हैं सब तितलियाँ" के चंद पन्नो में बिखरे उनके कुछ अशआर आप सब तक पहुंचा रहा हूँ.

एक बार सुधि पाठकों को फिर बता दूं की जनाब "कुमार विनोद" के ग़ज़ल संग्रह " बेरंग हैं सब तितलियाँ" की आज हम चर्चा कर रहे हैं. किताब के पहले पन्ने के पहले शेर से ही वो अपने पाठक को अपने साथ ज़ज्बात की ऊबड़ खाबड़ पगडंडियों पर हाथ पकड़ कर एक अनजानी मंजिल की और ले चलते हैं.



आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है

भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाज़ार है

विनोद जी की शायरी की सबसे बड़ी खूबी है उसकी भाषा. वो अपने पाठक को कभी भी भारी भरकम लफ़्ज़ों के बोझ तले नहीं दबाते बल्कि उनकी पंखुरियों से हलके हलके सहलाते हैं. ये कारण है की उनके शेर पढ़ते पढ़ते ही ज़बान पर चढ़ जाते हैं और बाद में पाठक उन्हें अपने आप गुनगुनाने लगता है.

तल्खियाँ सारी फ़ज़ा में घोल कर
क्या मिलेगा बात सच्ची बोल कर

गुम हुए खुशियों के मौसम इन दिनों
इसलिए जब भी हंसो, दिल खोलकर

बात करते हो उसूलों की मियां
भाव रद्धी के बिकें सब तोलकर

इस किताब को आधार प्रकाशन , पंचकुला ,हरियाणा ने प्रकाशित किया है. कुमार विनोद जी का ये पहला ग़ज़ल संग्रह है. उनकी ग़ज़लें हिंदी की प्रसिद्द पत्रिकाओं जैसे 'हंस', 'नया ज्ञानोदय', 'वागर्थ', 'कथादेश', 'कादम्बिनी', 'आजकल', 'अक्षर पर्व', आदि में समय समय पर छप कर अपनी पहचान पहले ही बना चुकी हैं. युवा ग़ज़लकार की इन ग़ज़लों ने मुझे अन्दर से छुआ है और अपना प्रशंशक बना लिया है.

लाख चलिए सर बचा कर, फायदा कुछ भी नहीं
हादसों के इस शहर का, क्या पता, कुछ भी नहीं

काम पर जाते हुए मासूम बचपन की व्यथा
आँख में रोटी का सपना, और क्या, कुछ भी नहीं

एक अन्जाना सा डर, उम्मीद की हल्की किरण
कुल मिला कर ज़िन्दगी से क्या मिला, कुछ भी नहीं

इस किताब में एक खूबी और है जो बहुत कम किताबों में नज़र आती है वो ये के किताब की ग़ज़लें किताब खोलते ही पाठकों के रूबरू हो जातीं हैं.इस किताब में किसी भी तरह की कोई भूमिका ना तो किसी नामचीन शायर ने लिखी है और ना ही शायर ने खुद. बस "तेरा तुझ को अर्पण क्या लागे मोरा " वाले भाव से ये पुस्तक ज्यूँ की त्यूँ पाठकों को सौंप दी गयी है. पाठकों और ग़ज़लों के बीच कोई नहीं है. इसका एक बहुत बड़ा लाभ भी है और वो ये की पाठक बिना इस पुस्तक को पूरा पढ़े इस के बारे में कोई राय नहीं बना सकता और पढ़ कर वो जो भी राय बनाएगा अच्छी या बुरी वो किसी और की विचार धारा से प्रभावित नहीं होगी बल्कि सिर्फ उस पाठक की ही होगी. आज के दौर में ऐसा जोखिम उठाने वाले बिरले ही मिलेंगे.

गाँव से आकर शहर में यूँ लगा
सच हुई दुश्मन की जैसे बद्दुआ

जबसे चिड़िया ने बनाया घोंसला
पेड़ देखो फूल कर कुप्पा हुआ

डाक्टर ने हाले दिल उसका सुना
बस यही थी बूढ़े रोगी की दवा

विनोद जी ने रोजमर्रा के प्रतीकों से अपने अशआरों को नयी ऊँचाई दी है. उनके नए नए शब्द प्रयोग उन्हें अपने समकालीनो से अलग करते हैं. आप भी देखिये किस तरह:

बड़ी हैरत में डूबी आजकल बच्चों की नानी है
कहानी की किताबों में न राजा है, न रानी है

बहुत सुन्दर से इस एक्वेरियम को गौर से देखो
जो इसमें कैद है मछली, क्या वो भी जल की रानी है

घनेरे बाल, मूंछें और चेहरे पे चमक थोड़ी
यकीं कीजे, ये मैं ही हूँ, ज़रा फोटो पुरानी है

एम्.एस.सी., एम्.फिल, पी.एच डी. शिक्षा प्राप्त विनोद जी कुरुक्षेत्र विश्व विद्ध्यालय के गणित विभाग में एसोसियेट प्रोफ़ेसर हैं, तभी उनके कहने का सलीका और मिजाज़ बहुत नपा तुला है. उनकी ग़ज़लों में जहाँ आज की त्रासद विसंगतियों का जिक्र है वहीँ अपने आप पर भरोसा बनाये रखने पर जोर भी है. इस किताब की ग़ज़लें विनोद जी द्वारा की गयी एक ईमानदार कोशिश है और हमें ऐसी कोशिशों की हौसला अफजाही करनी ही चाहिए. आप मात्र सौ रुपये मूल्य की ये पुस्तक आधार प्रकाशन से मेल द्वारा aadhar_prakashan@yahoo.com पर लिख कर या फिर प्रकाशक से 09417267004 नंबर पर संपर्क करके मंगवा सकते हैं,पुस्तक प्राप्ति की राह में आने वाली किसी भी असुविधा के निदान के लिए आप सीधे विनोद जी से उनके मोबाईल न. 09416137196 या इ-मेल vinod_bhj@rediffmail.com पर संपर्क कर सकते हैं. कुछ भी करें अगर आप ग़ज़लें बल्कि यूँ कहीं की अच्छी ग़ज़लें पढने के शौकीन हैं तो ये किताब हर हाल में आपके पास होनी चाहिए.

राजधानी को तुम्हारी फ़िक्र है, ये मान लो
राहतें तुम तक अगर पहुंची नहीं, तो क्या हुआ

देखिये उस पेड़ को, तनकर खड़ा है आज भी
आँधियों का काम चलना है, चलीं, तो क्या हुआ

कम से कम तुम तो करो खुद पर यकीं, ऐ दोस्तों
गर ज़माने को नहीं तुम पर यकीं, तो क्या हुआ.

आप इस किताब को मंगवाने की जुगत में लगिये तब तक हम तलाशते हैं आपके लिए ऐसी ही कोई और नायाब किताब.



कुमार विनोद

39 comments:

  1. भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

    Bahut sundar !

    ReplyDelete
  2. भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

    खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
    बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाज़ार है

    chap chod jane walee abhivykti .
    vinod jee se parichay ke liye dhanyvad.
    in dino lagata hai aap bahut vyast hai .
    ek arase se nazare inayat jo nahee hui blog par........

    ReplyDelete
  3. नमस्कार,

    आलेख बहुत अच्छा है!

    ReplyDelete
  4. एक चित्रकार एक मॉडल को सामने रख चित्र बनाता है हू-ब-हू।

    कुमार विनोद जी मानो हमारे मन को सामने रख विचार गज़लायमान कर रहे हों - हू-ब-हू!

    ReplyDelete
  5. खूबसूरत जिस्म हो या सौ टका ईमान हो
    बेचने की ठान लो तो हर तरफ बाज़ार है
    waah , vinod ji ka jawab nahi

    ReplyDelete
  6. बहुत ही सुंदरतम. शुअभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. बहुत अच्छी जानकारी। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुंदर लेख ओर आप का धन्यवाद आप ने हमे कुमार विनोद जी से मिलवाया.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  9. hamesha ki tarah nayab moti...........sabhi sher lajawaab hain.

    ReplyDelete
  10. नीरज जी अपनी इस प्रस्तुती पर मेरी बधाई कुबूल करें.विनोद कुमार जी की गज़लें एक से बढ़ कर एक हैं और भाषा भी आसान.अच्छा लगा पढ़ कर

    ReplyDelete
  11. रचना और रचनाकार का अच्छा परिचय कराया आपनें ,धन्यवाद .

    ReplyDelete
  12. कुमार विनोद जी की यह पुस्तक मैने पढ़ी और बस, डूब कर रह गया.

    आपने आज उसमें से कुछ अंश और अपने विचार दिये, पुनः आनन्द लिया.

    आपका आभार.

    ReplyDelete
  13. कुमार विनोद जी को हाल ही पढ़ा है, और ये पुस्तक तो ख़ास तौर पे मंगवा कर पढ़ा था.

    आपकी समीक्षा शानदार है. कुमार साहब ऊँचे कद के शायर हैं.

    ReplyDelete
  14. आपने सही कहा नीरज जी । बहुत ही सरल भाषा में ग़ज़ल में बड़ी बातें ब्यान की हैं।
    भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

    डाक्टर ने हाले दिल उसका सुना
    बस यही थी बूढ़े रोगी की दवा

    वह क्या बात कही है ! बहुत सुन्दर।

    ReplyDelete
  15. भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
    ...यह शेर तो सीधे दिल में उतर गया. आभार इस पोस्ट के लिए.

    ReplyDelete
  16. कुमार जी को यत्र-तत्र पढ़ता रहा हूं... बहुत अच्छे शायर हैं... बधाई और शुभकामनाएं.. आप दोनों को..

    ReplyDelete
  17. नीरज जी, आदाब...
    श्री कुमार विनोद जी से भाई गौतम राजरिशी जी ने
    कुछ समय पहले ही अपने ब्लॉग पर परिचय कराया है.
    आपने उनकी बेहतरीन शायरी के बारे में
    इतनी खूबसूरती से तज़करा करते हुए जिज्ञासा और बढ़ा दी है
    तल्खियाँ सारी फ़ज़ा में घोल कर
    क्या मिलेगा बात सच्ची बोल कर....
    विनोद जी, हमें भी भिजवाईये न ऐसी उम्दा शायरी का दीवान.

    ReplyDelete
  18. कुमार साहिब के फैन मेज़र साहिब के ब्लॉग पर पहली बार इन्हें देख कर ही हो गए थे...
    बहुत ही उम्दा कहते हैं..

    कम से कम तुम तो करो खुद पर यकीं, ऐ दोस्तों
    गर ज़माने को नहीं तुम पर यकीं, तो क्या हुआ.
    और....

    डाक्टर ने हाले दिल उसका सुना
    बस यही थी बूढ़े रोगी की दवा
    क्या कमाल का कहा है...??

    ReplyDelete
  19. गजल का शौक तो नही है, लेकिन पढता हूं तो ‘क्या बात है!’ अपने आप ही निकल पडता है।

    ReplyDelete
  20. कुमार विनोद जी की हर ग़ज़ल बेमिसाल है, हर शेर मन को छु जाता है, जैसे
    आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
    क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है

    भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

    गाँव से आकर शहर में यूँ लगा
    सच हुई दुश्मन की जैसे बद्दुआ

    हुत सुन्दर से इस एक्वेरियम को गौर से देखो
    जो इसमें कैद है मछली, क्या वो भी जल की रानी है

    राजधानी को तुम्हारी फ़िक्र है, ये मान लो
    राहतें तुम तक अगर पहुंची नहीं, तो क्या हुआ

    अब आखिर कितने शेर कोट करूं, टिपण्णी की जगह ये पोस्ट हो जाएगी..................

    ReplyDelete
  21. कुमार विनोद के बारे में राजरिशी ने लिखा था......तब से ही उनके लेखन के विषय में जाना था....अब आपने उनकी पहचान को और भी धार दे दी है आपने .....किताब तो पढनी ही पड़ेगी

    आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
    क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है

    भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
    **************

    हुत सुन्दर से इस एक्वेरियम को गौर से देखो
    जो इसमें कैद है मछली, क्या वो भी जल की रानी है

    राजधानी को तुम्हारी फ़िक्र है, ये मान लो
    राहतें तुम तक अगर पहुंची नहीं, तो क्या हुआ

    क्या बेहतरीन लिखते है कुमार विनोद जी उनकी ल्रेखनी के साथ उनका तार्रुफ़ करने का आपका शुक्रिया....

    ReplyDelete
  22. इनको अक्सर पढता रहता हूँ ....इन्ही किताबो में ....पर सच कहूँ आपकी लाइब्रेरी ......कसम से निगाहों में है .......खपोली इस बार तय....तारीख का तो नहीं कह सकता .पर जब भी आना है ......एक शाम आपके वास्ते .....मिष्टी को प्यार कहियेगा

    ReplyDelete
  23. विनोद जी की किताब का स्वाद अभी तक चखा तो नहीं हूँ मगर गौतम भाईके यहाँ इनको और भी बारीकी से पढ़ चुका हूँ... इनसे दो एक बारी बात भी हुई है बेहद संजीदा और संवेदनशील इंसान हैं ... जीतनी अछि ग़ज़ल कहते हैं उतने अछे इंसान भी है....
    शुक्रिया नीरज जी फिर से मुलाक़ात करवा आपने ..


    अर्श

    ReplyDelete
  24. आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेजार है
    क्या करे दुआ कोई देवता बीमार है ...
    और
    डाक्टर ने उसका हाल सुना
    बस यही थी बूढ़े रोगी की दावा ..
    इतनी खुबसूरत बात कही है विनोद जी ने ...संग्रह पढने में आनंद आएगा

    ReplyDelete
  25. बहुत बढ़िया और ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है!

    ReplyDelete
  26. भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है
    ...कितनी अच्छी बात लिखी है.


    ----------------------
    "पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर

    ReplyDelete
  27. हाल ही में गौतम ने इनकी ग़ज़ल बाँटी थी तभी इनके बारे में पता चला। आपने जिन अशआरों को हमारे साथ बाँटा है उससे इनकी लेखन प्रतिभा का मैं अब और भी क़ायल हो गया हूँ।

    ReplyDelete
  28. लाख चलिए सर बचा कर, फायदा कुछ भी नहीं
    हादसों के इस शहर का, क्या पता, कुछ भी नहीं


    कम से कम तुम तो करो खुद पर यकीं, ऐ दोस्तों
    गर ज़माने को नहीं तुम पर यकीं, तो क्या हुआ.

    कुमार विनोद साहब वाकई प्रभावित कर देने वाला लिखते है....आपने उनके चुनिन्दा और बेहद जबरदस्त प्रभाव छोड़ने वाले अशआरों से परिचय कराया...आभार!अब तो कुमार साहब की पुस्तक पढने की इच्छा हो रही है!

    ReplyDelete
  29. आस्था का जिस्म घायल रूह तक बेज़ार है
    क्या करे कोई दुआ जब देवता बीमार है
    Bahut sundar! Kin kin panktiyonko dohraya jaye?
    Ramnavmiki anek shubhkamnayen!

    ReplyDelete
  30. कुमार साहब को पहले भी पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है

    बहुत बढ़िया दिल को छूने वाली गजल कहते है


    नीरज जी पुस्तक परिचय के लिए आपको बहुत बहुत शुक्रिया

    ReplyDelete
  31. लाख चलिए सर बचा कर, फायदा कुछ भी नहीं
    हादसों के इस शहर का, क्या पता, कुछ भी नहीं
    जब पहली बार पढ़ी थी, गौतम के ब्‍लॉग पर तभी से कुमार विनोद की छाप पड़ गयी। गौतम को मैनें मेल किया कि भाई इस ग़ज़ल का रदीफ़, काफि़या मैनें रख लिया, रोक ही नहीं सका। कुमार विनोद जी का फोटो तो देखिये, इस इंसान का चेहरा बहुत कुछ बोलता है।
    अब आपने ग़ज़ल संग्रह ही पेश कर दिया है। हर शेर अपनी बात पूरी तरह से पूरी विनम्रता से और पूरी ताकत से कहता है। बस यही बात है इनके लेखन की जो छू गयी। सोने पर सुहागा नई ग़ज़लों को नये रदीफ़ काफिये देना जो दूसरे शायर को मजबूर कर दें कुछ कहने को।
    इनमें पूरी तरह से एक कामयाब शायर दिखता है।

    ReplyDelete
  32. भूख से बेहाल बच्चों को सुना कर चुटकुले
    जो हंसा दे, आज का सबसे बड़ा फनकार है

    सच्ची बात।

    ReplyDelete
  33. आप के यहाँ जो खजाना मिलता है वो कहीं नहीं मिलता .... हर बार कुछ धनी हो कर जाता हूँ ...

    इतने उम्दा शायरों की बेहतरीन शायरी से रू-ब-रू करवाते हैं .... यह नेक काम हमेशा चलता रहे यही दुआ है ...

    ReplyDelete
  34. कुमार विनोद को तो पत्रिकाओं मे भी पढ़ते रहते हैं ,आपने बहुत सुंदर पोस्ट दी ...बधाई .

    ReplyDelete
  35. बहुत जानदार और संभावनाओं से
    परिपूर्ण है कुमार जी की लेखनी.
    कई जगहों पर बरबस दुष्यंत की जैसी
    बानगी नज़र आती है.
    नीरज जी,
    आपका
    बहुत-बहुत शुक्रिया की
    ऐसे कलमकारों...किरदारों...कलाकारों से हमारा
    परिचय करवा देते हैं...
    बिलकुल मौलिक
    और सहज अंदाज़ में....
    ====================================
    आपका
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

    ReplyDelete
  36. कुमार साहब के उत्तम शेर पढवाने और किताब की जानकारी के लिए धन्यबाद \सही है ऐसी किताबें रात को लेट कर पढने का आनंद ही कुछ और है

    ReplyDelete
  37. श्री नीरज जी, 1-1 आपकी समीक्षाएँ नियमित रूप से पढ़ रहा हूँ। शाम को 6-7 बजे के दरमियां, बड़ा ही दिली सुकून मिलता है। निकट भविष्य में इन सभी के प्रिंट लेकर किताब की शक्ल देने की इच्छा रखता हूँ। उम्र के किसी भी पड़ाव पर ऐसा ही सुकून देंगी। ऐसा मेरा विश्वास है। आपके अद्‍भुत प्रयास के लिए साधुवाद। - विशाल मिश्रा

    ReplyDelete
  38. आदरणीय नीरज जी
    आपके ब्लॉग को शुरू से पढ़ते हुए मैं जब इस पोस्ट पर पहुंचा, तो मुझे ये एहसास हुआ की यह पुस्तक मुझे अभी पढ़नी है|
    प्रकाशन के लगभग पांच वर्ष बाद ये पुस्तक प्रकाशकों से माँगते हुए झिझक रहा था| लेकिन क्यों? |
    मेरी ईमेल के जवाब की जैसे प्रकाशकों ने पहले ही तैयारी की हुई थी |
    अगर कोई मुझ सा पाठक इस पुस्तक के इंतज़ार में हो, तो में बता दूँ के हाल ही में इस पुस्तक का नया संस्करण प्रकाशित हुआ है, और ये पुस्तक आज मेरे हाथ में है.

    शुक्रिया इतनी सटीक समीक्षा का | मुझे वो नगीन मिला जिस की मई तलाश में था

    ReplyDelete
  39. हर गजल अभिव्यक्ति का नया वातायन खोलती है। अत्यंत प्रभावशाली प्रस्तुतिकरण। बहुत बहुत बधाई। अत्यंत सहज सरल समीक्षा आदरणीय नीरज जी ।

    ReplyDelete

तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे