"फागुन" याने हंसी ख़ुशी और उल्ल्हास का महीना...फाग धमाल का महीना...आज फागुन एक बरस के लिए हमसे विदा ले रहा है और ऐसे महीने की विदाई हमें हँसते हुए करनी चाहिए . ये ही सोच कर मैंने अपनी हज़ल, जो गुरुदेव पंकज सुबीर जी के ब्लॉग पर हुए तरही मुशायरे में शिरकत कर चुकी है, को आज अपनी ब्लॉग पोस्ट के लिए चुना है. उम्मीद है सुधि पाठक जो उसे वहां नहीं पढ़ पाए इसका आनंद यहाँ उठाएंगे और जिन्होंने वहां पढ़ा है वो इसे यहाँ दुबारा पढ़ कर मुस्कुराएंगे.
कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
रकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में
रकीब* = प्रतिद्वंदी
खडूस बापू, मुटल्ली अम्मा, निकम्मे भाई, छिछोरी बहनें
बजाएं मुझको समझ नगाड़ा ये सारे मिल के, तेरी गली में
हमारी मूंछो, को काट देना, जो हमने होली, के दिन ही आके
न भांग छानी, न गटकी दारू, न खाये गुझिये,तेरी गली में
अकड़ रहे थे ये सोच कर हम,जरा भी मजनू से कम नहीं हैं
उतर गया है, बुखार सारा, पड़े वो जूते, तेरी गली में
तमाम रस्ता कि जैसे कीचड़, कहीं पे गढ्ढा कहीं पे गोबर
तेरी मुहब्बत में डूबकर हम मगर हैं आये तेरी गली में
किसी को मामा किसी को नाना किसी को चाचा किसी को ताऊ
बनाये हमने तुम्हारी खातिर ये फ़र्ज़ी रिश्ते तेरी गली में
भुला दी अपनी उमर तो देखो ये हाल इसका हुआ है लोगों
पड़ा हुआ है जमीं पे 'नीरज' लगा के ठुमके तेरी गली में
dhamake daar parastuti...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
ReplyDeleteफ्लो में ही आ रहा था सो यहां चिपका रहा हूं होली की मौज के साथ ही...
ReplyDeleteगम खा के आखिर हमने भी
दिया एक कमेंट तेरी गली में
मजा आ गया खुद कसम
लुटते देख तुझे उसकी गली में
क्या बात है। गली भर के लोगों से मिलवा दिया आपने। बढ़िया है...
ReplyDeleteHa,ha,ha...aaj waqayi hansi kee zaroorat mahsoos ho rahi thi..man kisi karan udas ho raha tha...
ReplyDeleteआईला.....इत्ती गाली....गन्दी बात
ReplyDeletebahut sundar prastuti.......pankaj ji ke blog par bhi padhi thi.
ReplyDeleteहे परमात्मा, इस गली मे तो ताऊ जाया करता था. आप क्या करने आगये थे इस गली में?:)
ReplyDeleteबहुत सुपरहिट गजल. बस आपकी आवाज मे पोडकास्ट कर देते तो आनंद आजाता.
रामराम.
बहुत आनन्द आया!
ReplyDeleteचोला प्रसन्न हो गया!
बहुत बढ़िया :)
ReplyDeleteक्या बात है नीरज जी !! मस्त रंग हैं ये भी ..... भई वाह !
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ..आनंद आ गया
ReplyDeletebahut mazedar.....
ReplyDeleteकमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
ReplyDeleteरकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में..
वाह जी वाह..
वाह वाह...आनंद आ गया पढ़ के! होली की शानदार पेशकश है!
ReplyDeleteक्या कहूं? यहां तो लाइन लगा दी आपने....
ReplyDeleteहा हा हा...बहुत मजेदार. लगा जैसे होली वापस आ गई.
ReplyDeleteतब नही पढ़ी...अब पढ़ी ...बहुत बहुत मुश्किल है इस तरह लिखना :)
ReplyDeleteकमाल की गली है जी। जिदंगी की इस गली में भी घूम आए। बहुत प्यारा अलग सा लिखा है। लगा होली दुबारा खेल ली हमने।
ReplyDeleteदुबारा पढ़्कर मुस्कराये. :)
ReplyDeleteइस उम्र में ऐसी दुष्टता भरे ख़याल, हे राम, ये ज़माना कहॉं जा रहा है। मोहल्ले वालों ने पढ़ ली तो? मुंबई में शरीफ़ लोग बसते होंगे वरना यहॉं भोपाल में तो ऐसी बातें करने वाले को आसपास सात मोहल्लों तक न रहने दें लोग।
ReplyDeleteअय-हय अब आपका क्या किया जाये?
तेरी गली में तो अब बचा ही नहीं कुछ करने को :)
ReplyDeleteनीरज जी , होली की मस्ती चल ही रही है अभी । चलिए अब तो पूरे साल इंतज़ार करना है।
ReplyDeleteऔर ये राज भी जान लें सब कि ये ग़ज़ल नीरज जी ने एक ही सिटिंग में लिख डाली है । होली की परूी मस्ती भरी है इस ग़ज़ल में । इस ग़ज़ल को देखकर ही भभ्भड़ कवि भटियारे ने हथियार डाल दिये कि अब मैं क्या लिखूं सब कुछ तो नीरज जी ने ही लिख दिया ।
ReplyDeleteरंगीली-भंगीली शायरी....
ReplyDeleteडरे,बजे भी पिटे,चढ़े फिर गिरे तो देखा कि हमने नीरज,
कमल है कीचड़ के बीच में भी,पड़े हुए है तेरी गली में.
-MANSOOR ALI HASHMI
http://aatm-manthan.com
तौबा-तौबा उस गली में न जाना ।
ReplyDeleteकमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
ReplyDeleteरकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में
अरे भिखारी का रुप धारण कर के जाये.... कोई नही पकड पायेगा आजमाया हुआ तरीखा.
बहुत सुंदर लिखा आप ने, अब जरा उस गली का अत पत भी लिख दो हम तो उस गली से दस गलिया दुर से भी ना निकले जी
तभी तो समझाया था कि होली के दिन घर से बाहर मत निकलना ...अब भुगतो ....
ReplyDeleteतमाम रस्ता कि जैसे कीचड़, कहीं पे गढ्ढा कहीं पे गोबर
ReplyDeleteतेरी मुहब्बत में डूबकर हम मगर हैं आये तेरी गली में
गली का नाम और नम्बर बताइए
अगली बार आप मत जाइए
बहुत खूब
mast.
ReplyDeleteबेहतरीन। लाजवाब।
ReplyDeleteअहमक नई गाली सिख ली इसी बहाने आखिर बड़ों से कुछ ना कुछ तो सीखने ही चाहिए... हज़ल
ReplyDeleteउस्तादाना है ... बधाई हो फिर से ...
अर्श
आपने सच ही कहा है...और साबित भी कर दिया कि हंसना हंसाना आपकी फ़ितरत है.....
ReplyDeleteमेरे चार मिसरे शायद आपने जज़्बात पर पढ़े होंगे-
वफ़ा मुहब्बत ख़ुलूस जिनमें हैं रंग सारे तेरी गली में
मेरे भी कूचे में फूल महकें तो खुशबू जाये तेरी गली में
मैं भाईचारे के गीत लिखूं तू अपनी आवाज़ से सजा दे
हों मेरे लब पर तेरी सदाएं, मेरे तराने तेरी गली में.
हमेशा गुजरते रहे यहाँ से ।
ReplyDeleteजय हो!
ReplyDeletebahut badhiya koi baat nahi kabhi kabhi aisa ho jata hai aasan nahi hota kisi ke gali me kisi se mil pana ...badhiya rachana badhai
ReplyDeleteतेरी गलियों में न रखेंगे कदम आज के बाद,
ReplyDeleteहोली पर तो घर से भी न निकलेंगे आज के बाद...
जय हिंद...
E-Mail received from Sh.Chaand Shukla, Denmark :
ReplyDeleteNeeraj bhai jan
kamal kartay ho aap!
Bat karengay
Chaand
Wah ji.. wah.. bahut khoob Neeraj Uncle.. Maja aaya gaya..
ReplyDeleteAbb kabhi hamari gali mein bhi aa jaao... yaar.. :-)
Love..
Deepika & Ratan
लगे चमकने चाँदी चाहे बालों पर
ReplyDeleteरहे थिरकता मन मस्ती की तालों पर
इसी भावना से हम आज लगाते हैं
आदर सहित गुलाल आपके गालों पर
बहुत मज़ेदार हज़ल है ! ख़ुश रहो! आपकी गली में दिलदार लोगों की बड़ी भीड़ है। कुछ को मेरी गली का भी पता दीजिए।
इधर आये बहुत वक्त गुज़र गया था मुझे, इस हज़ल ने तो हंसा हंसा कर एक ही दिन में काम तमाम कर दिया :)
ReplyDeleteसजाब कि लिखी है नीरज जी...इतने दिन बाद भी हम होली कि फगुनाहट में भीग गए.
ha ha ha..
ReplyDeleteMajedar prastuti Neeraj ji.
maf kariye deri se comment karne ke liye.
आदरनीय नीरज जी ,
ReplyDeleteसबसे पहले तो आपको नवसम्वत्सर की शुभकामनाये .इस साल भी और साल दर साल आप हम सबको nai nai पुस्तकों से रूबरू करते रहें ,हँसाते रहें .कविता किरण जी की शायरी से परिचित करवाने के लिए बहुत बहुत आभार .फागुन की बिदाई के लिए लिखी हज़ल भी पसंद आई .धन्यवाद
वाह वाह क्या बात है! बहुत ही बढ़िया और सुन्दर प्रस्तुती!
ReplyDeleteइस गजल में क्या नशा है क्या बताएँ आपको
ReplyDeleteदिल तो करता है कि ले के लोट जाएँ आपको
हा हा हा
होली का नशा अब उतारिये भी नीरज जी होली तो हो ली :):):)
कमीने, पाजी, हरामी, अहमक, टपोरी सारे, तेरी गली में
ReplyDeleteरकीब* बन कर मुझे डराते मैं आऊँ कैसे, तेरी गली में
वल्लाह .....गलियों से सजे शे'र पहली बार देखे .........
किसी को मामा किसी को नाना किसी को चाचा किसी को ताऊ
बनाये हमने तुम्हारी खातिर ये फ़र्ज़ी रिश्ते तेरी गली में
आपने जवानी में जरुर ऐसा ही किया होगा तभी ये आडिया आया ......है न .......????
नमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteधमाकेदार हज़ल है, ठुमके आप ही नहीं हज़ल भी लगा रही है और लुभा रही है
छिछोरी बहनें
ReplyDeleteबजाएं मुझको समझ नगाड़ा ये सारे मिल के, तेरी गली में
नीरज जी
मैं अब तक गंभीर रचनाये ही होली की लिखा करता था , आप को पढ़ने के बाद लगा की जो हंसा हंसा कर लोट पोत करदे वो भी लिखना चाहिए,
saadar
मुस्कान से कुछ आगे चली गई !!!!!!!!!
ReplyDeleteमै इसे शोहरत कहूं या मेरी बदनामी कहूं | मेरे आने से पहले मेरे अफ़साने पहुंचे ' तेरी गली में '
ReplyDeleteवाह !क्या बात है! :)
ReplyDeleteमज़ेदार हज़ल.
lga ke thumke teri gali me...
ReplyDeleteWonderful........
पड़ा हुआ है जमीं पे 'नीरज' लगा के ठुमके तेरी गली में
ReplyDeleteवाह साब मजा आ गया। ईश्वर ने बहुत ही खूब नेमत बख्शी है आपको।