हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
***
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं
हम छलनी में पानी भरने निकले हैं
होठों पर तो कर पाए साकार नहीं
चित्रों पर मुस्काने धरने निकले हैं
ये ही नहीं,ऐसे ही खूबसूरत अशआरों से भरी इस किताब का शीर्षक है "तुम्ही कुछ कहो ना" और इसे लिखा है डा.कविता किरण जी ने जो अपना एक ब्लॉग डा. कविता 'किरण' (कवयित्री) के नाम से चलातीं हैं. इस ब्लॉग में आप उनकी ग़ज़लों और एवं अन्य काव्य रचनाओं को समय समय पर पढ़ सकते हैं. मैं कविता जी का आभारी हूँ जिन्होंने मुझे ये किताब पढने और आप सब के सम्मुख प्रस्तुत करने का मौका दिया.
किरण जी कहती हैं "ग़ज़ल एक किरदार नहीं, कायनात है, जिसमें एक शायर अपनी साँसों को शेरों की तरह बुनता है. कभी महबूब के ख्वाबों से सजाता है तो कभी हकीक़त से रु-ब-रु होने की कोशिश करता है." हकीकत से रु-ब-रु होने की कोशिश उनके इन शेरों में साफ़ झलकती है:
एक ही छत के नीचे थीं दोनों की दुनिया अलग अलग
अपने ही घर में बरसों तक बन कर के मेहमान रहे
नहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे
मन पर लादा मौन साध इक अनचाहे रिश्ते का बोध
ना निगला ना उगला उसको बस करते विषपान रहे
दोस्त ! तू जो बेवफा हो जायेगा
ज़िन्दगी में क्या नया हो जायेगा
क्या तेरे तानों से इक बेरोज़गार
अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा
आंसुओं की शाम मत तोहफे में दो
आज फिर इक रतजगा हो जायेगा
मुझको अक्सर मेरे अन्दर से बुलाती है जो
नन्हें मुन्ने किसी बच्चे की सदा लगती है
याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है
है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है
ज़िन्दगी में तनाव मत रखिये
इतना मरने का चाव मत रखिये
दुश्मनी कौन फिर निभाएगा
दोस्तों से दुराव मत रखिये
बेवज़ह बहस से जो बचना हो
अपना कोई बचाव मत रखिये
रूह जिंदा रहे ज़रूरी है
जिस्म का रख रखाव मत रखिये
देखेंगे जिस और कुआँ मुड जायेंगे
कोई धर्म नहीं होता है प्यासों का
ना होते हैं ख़त्म न ही कम होते हैं
जीवन कितना लम्बा है संत्रासों का
इश्वर - अल्लाह हैं तो आ जाएँ वरना
क़त्ल नहीं हो जाये पांच पचासों का
उम्मीद है आपको इस श्रृंखला में प्रस्तुत पहली शायरा के अशआर पसंद आये होंगे...अपनी प्रति क्रियाएं अगर यहाँ देने में आपको कोई संकोच हो तो आप अपने उदगार किरण जी तक जरूर पहुंचाएं.
अभी इतना ही...जल्द ही मिलते हैं एक नयी पुस्तक के साथ.
ise jankaree ke liye dhanyvad .
ReplyDeleteआदरणीय नीरज जी, आदाब
ReplyDeleteनहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे
है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है
आज महिला दिवस पर.. आपने
.डां कविता किरण जी के कीमती कलाम का तोहफ़ा दिया है.
वाह , दिन गीत गीत क्या , दिल बाग बाग हो गया है | बहुत सुन्दर तोहफा है
ReplyDeleteWah! Bahut gazabki shayarase ru-b-ru karaya aapne!
ReplyDeleteneeraj ji
ReplyDeletehamesha ki tarah sagar mein se moti chunte hain ...............wakai tarif ke liye shabd kam pad rahe hain.............aabhar.
आज महिला दिवस पर.. आपने
ReplyDelete.डां कविता किरण जी के कीमती कलाम का तोहफ़ा दिया है.
Sundar, Neeraj Ji.
ReplyDeleteनमस्कार नीरज जी,
ReplyDeleteआज के दिन के लिए इस से बेहतर और क्या हो सकता था...........
डा.कविता किरण जी के लफ़्ज़ों का जादू ही है जो हर शेर को बार बार पढने पे मजबूर कर रहा है, चाहे वो
हमसे कायम ये भरम है वरना
चाँद धरती पे उतरता कब है
या फिर ये शेर हों...........................
नहीं पता था उन्हें हमारा हमको उनकी खबर न थी
इक दूजे की खातिर केवल जीने का सामान रहे
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दोस्त ! तू जो बेवफा हो जायेगा
ज़िन्दगी में क्या नया हो जायेगा
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याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है
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है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है
किरण जी लिखे शेर पसंद आए।
ReplyDeleteदेखेंगे जिस और कुआँ मुड जायेंगे
कोई धर्म नहीं होता है प्यासों का
......................
बेहतरीन।
आपका तरीका बिल्कुल अलहदा है .....अच्छा लगा .
ReplyDeleteमन पर लादा मौन साध इक अनचाहे रिश्ते का बोध
ReplyDeleteना निगला ना उगला उसको बस करते विषपान रहे
bahut khoob ! yeh baRee khushii ki baat hai ki internet par ab shayiroN ka ek kunba ban chuka hai aur mehfileN sajne lageeN haiN.
neeraj ji ,pranam,
ReplyDeleteaap ke madyam se kavita ji ki naye kriti ka pata chala, aap ko aur kavita ji ka bahut bahut badhae,
आज महिला दिवस पर अच्छा तोहफा दिया है आपने। कविता जी के गज़लें बेहद पसंद आयी और पुस्तक पढने की उत्सुकता बढ गयी। कविता जी को बहुत बहुत बधाई। आपका धन्यवाद्
ReplyDeleteआज महिला दिवस पर महिला गज़लकार को प्रस्तुत कर के बढ़िया काम किया है आपने ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया लगे सभी शेर ।
आभार।
बहुत लाजवाब और सामयिक पोस्ट, शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
हमसे कायम ये भरम है वरना
ReplyDeleteचाँद धरती पे उतरता कब है
***
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं
हम छलनी में पानी भरने निकले हैं
होठों पर तो कर पाए साकार नहीं
चित्रों पर मुस्काने धरने निकले हैं
..ये तीनों शेर लाजवाब हैं.
हमसे कायम ये भरम है वरना
ReplyDeleteचाँद धरती पे उतरता कब है
waaaaaah ..kamal likha hai...aabhar Neeraj ji itna pyaara tohfa ddene ke liye.
अच्छा व्यक्तित्व-अच्छी रचना-अच्छा परिचय.
ReplyDeleteजनाब नीरज भाई
ReplyDeleteइस बार फिर आपने "कविता किरण" रूपी एक हीरे की किरण को
मुख़ातिब करवाया है क़िबला कद्र दान जौहरी हैं आप
किरण साहिबा का ख़ुश बयां कलाम पाकीज़ा है
बाहुनर और दानिशवर कवित्री काबिले तारीफ है
चाँद शुक्ला हदियाबादी
डेनमार्क
shukriya ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteनारी-दिवस पर मातृ-शक्ति को नमन!
क्या तेरे तानों से इक बेरोज़गार
ReplyDeleteअपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा
is she'r ne jhakjhor ke rakh diyaa hai kavita ji ka ... waah badhaayee
arsh
हमने हाल ही में इलाहाबाद स्थित उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में कविता किरन जी को सुना था। अशोक चक्रधर जी के साथ पधारी किरन जी ने ्बहुत प्रभावित किया था।
ReplyDeleteइतनी बढ़िया पोस्ट के माध्यम से किरन जी का परिचय कराना आपकी नेकदिली और काव्यसाहित्य के प्रति अनुपम अनुराग को प्रदर्शित करता है।
नीरज जी नमस्कार,
ReplyDeleteएक एक करके शेर पढता गया और हर शेर पर दिल से आवाज आयी कि हाँ ये वो शेर है जिसे कमेन्ट में कोट किया जाए और ये स्थति है बिना कोई शेर कोट कियी अपनी बात रख रहा हूँ :)
नीरज जी मुझे सबसे बड़ा अफसोस ये है कि आज तक किरण जी के ब्लॉग से अनजान रहा और आज तक एक बार भी उनके ब्लॉग और उनकी गजलों को पढ़ नहीं पाया था
ये मुझे कुछ अजीब भी लगा क्योकी मई तो चुन चुन कर गजले पढता रहता हूँ और आपकी , अर्श भाईऔर गौतम जी के द्वारा अनुसरित ब्लॉग के अपडेट को चेक करता रहता हूँ :)
खैर भूल सुधार कर लिया है अब तो किरण जी का ब्लॉग फालो कर लिया है
किताबों की दुनिया का ये अंक वास्तव में विशेष है
कोशिश करते हैं किताब प्राप्ति की...आपने तो उत्कंठा जगा दी..
ReplyDelete...आभार इस समिक्षा के लिए.
डां कविता किरण जी के अशआर से रु-ब-रु कराया आपने. शुक्रिया.
ReplyDeleteनमस्कार ,नीरज जी ,
ReplyDeleteआप के सौजन्य से इतने उमदा अश’आर पढ़ने को मिले ,किसी एक शेर की तारीफ़ करना बहुत मुश्किल है ,हर शेर अपने आप में जज़्बात और तजुर्बात की दुनिया समेटे हुए है ,
बहुत बहुत धन्यवाद
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद किरण जी से परिचय करवाने के लिये। जो शेर आपने छांटे हैं उसे पढ़ने के बाद कौन है जो पूरी किताब पढ़े बिना रूक सकता है!!! आनंद आ गया।
बहुत ही बढ़िया और लाजवाब पोस्ट रहा! कविता जी से रूबरू करवाने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteआज तो गागर में सागर भर दिया भाई जी ! आनंद आ गया !
ReplyDeleteमंच के कवियों की रचनायें जब पुस्तकाकार मे आती हैं तो उन्हे ज़्यादा करीब से जानने का अवसर मिलता है । किरण जी को इस पुस्तक के लिये बधाई ।
ReplyDeletesabhi ash`aar padh kar
ReplyDeletedili sukoon haasil huaa
majmooe ke liye abhi
darkhwaast daal rahaa hu jiiii
aabhaar .
neraji ji meri kitab aur mere sher itne sare adeebon ne pasand kiye dekhker bahut abhibhoot hun.kuch achhe sher mujhse bhi ho gaye janker dili khushi ho rahi hai.main yahan sabhi tippanikaron ka tahe-dil se shukriya ada karna chahti hun aur yaqeen dilati hun ki aap sabki housla-afzahi se meri kalam aur pukhta hogi aur mere ashaar aur bhi ziyada khoobsurti se ubharkar baher aayenge.shukriya neeraj ji mere lekhan ko sab tak pahunchane ka.
ReplyDeleteये हमारी लाइब्रेरी में नहीं है नीरज जी और शुक्रिया आपका किरण जी से परिचय करवाने का, वर्ना इस "चांद धरती पे उतरता कब है" के अंदाज़ रखने वाली इस अद्भुत शायरा से जाने कब तक नहीं मिल पाते। अब देखिये ना ये वाला शेर भी तो एक कोई शायरा ही कह सकती हैं।
ReplyDeleteजल्द ही जुगत भिड़ाता हूँ इस किताब को भी अपनी लाइब्रेरी में शामिल करने हेतु।
नामुमकिन को मुमकिन करने निकले हैं वाले जज्बे की शायरा का परिचय महिला दिवस पर देकर आपने हमारा महिला सप्ताह भी गीतों भरी कहानी कर दिया ।
ReplyDeleteआभार
आपकी प्रस्तुति का अंदाज़ आकर्षित कर रहा है कि मैं भी बुरका पहन कर अगली प्रस्तुति के लिये आ जाउँ, लेकिन उससे होगा क्या? मेरी तो कोई किताब अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है, लिखेंगे क्या?खैर ये तो अभी होली की खुमारी का असर है। प्रस्तुति बहुत जानदार है। आपने जितना प्रस्तुत किया उससे बड़े अच्छे प्रयोग सामने आये, और फिर जिस शायरा पर मानिक वर्मा जी और बालकवि बैरागी जी ने कुछ कहने का समय निकाला उसे पढ़ना तो बनता है।
ReplyDeleteमुझको अक्सर मेरे अन्दर से बुलाती है जो
ReplyDeleteनन्हें मुन्ने किसी बच्चे की सदा लगती है
याद आते हैं क्यूँ बचपन के खिलौने फिर से
मैं बताऊँ तो, मगर मुझको हया लगती है
है अचानक मेरे आँगन में जो बिखरी खुशबू
ये यकीनन मेरे अपने की दुआ लगती है
Bahut hi sundar...
hi aapki yaha kavitaye padh kar achcha laga aap jaise khubsoorat hei waise hi aap khubsoorati se kavitaye likhte hei aapki rachnao ko padh kar aisa lagta hei mano yeh mei khud kaha raha hu ............ iss tarah ki achchi kavitao ke liye bahut bahut badhai and best og luck...............
ReplyDeletehttp://aakharalakh.blogspot.com/2010/09/blog-post_05.html
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