असल में हम लोग बहुत ऑब्जर्व नहीं कर रहे, बहुत पढ़ नहीं रहे। बहुत सृजन नहीं कर रहे। टिप्पणियों की वाहियात वाहावाहियत में गोते लगा रिफ्रेश भर हो रहे हैं!"
ज्ञान भईया ने अपने ब्लॉग में सात नवम्बर को प्रकाशित पोस्ट पर उक्त पंक्तियाँ लिखीं, तभी दिल ने कहा प्यारे तुम भी तो ये ही सब कुछ कर रहे हो अपने ब्लॉग पर. याने अपनी एक आध ग़ज़ल और बीच बीच में किताबों की जानकारी ठेल रहे हो...कुछ और भी करो यार. तभी इस पोस्ट को लिखने का ख्याल आया. उम्मीद है सुधि पाठकों का जायका बदलने में ये पोस्ट थोडी बहुत सहायक होगी.
यूँ तो दिवाली कब की जा चुकी, लेकिन उसकी खुमारी अभी तक बरकरार है. पिछले दिनों यूँ ही शाम घर से लोनावला घूमने निकल गए. घूमते घूमते वहां के टाऊन हाल जा पहुंचे जहाँ रंगोली स्पर्धा का बोर्ड लगा हुआ था. रंगोली आप समझते हैं न अरे वोही जिसे बंगाल में 'अल्पना' , बिहार में 'अरिपना, राजस्थान में 'मांडना', गुजरात, महाराष्ट्र और कर्णाटक में 'रंगोली' , उत्तर प्रदेश में 'चौक पुराना' केरल और तमिल नाडू में 'कोलम' और आन्ध्र प्रदेश में 'मुग्गु' के नाम से पुकारा जाता है. जिसमें गुलाल, रंगीन मिटटी, संगमरमर के रंगीन चूरे के मिश्रण से फर्श पर चित्रकारी की जाती है .ये प्रथा बहुत पुरानी है. उत्सुकता हमें अन्दर खींच ले गयी. एक बड़े से हाल में जब वहां उकेरी हुई रंगोलियों को देखा तो मुंह खुले का खुला ही रह गया. आप लोगों ने शायद इस से पहले इस तरह की रंगोली देखी हो लेकिन मेरे लिए ये पहला मौका था.
आयीये देखते हैं उन्हीं प्रर्दशित रंगोलियों में से कुछ के चित्र जो मैंने अपने मोबाईल कैमरे से खींचे खास तौर पर आपके लिए, पसंद ना आयें तो दोष मेरे मोबाईल को दें मुझे नहीं.
(चित्रों पर क्लिक करने से आप इस कला की बारीकियां शायद अच्छे से पकड़ पायें)
सबसे पहले देखते हैं हाल में घुसते ही नज़र आने वाले दृश्य को
आगे बढ़ने पर परम्परागत रूप को प्रर्दशित करती हुई ये रंगोली देख ठिठकने को मजबूर होना पड़ा. रंग संयोजन और आकर्षक डिजाईन देख बरबस हाथ ताली बजाने लगे.
तभी दायें हाथ नज़र पड़ी तो मुंह खुला का खुला रह गया. ये चित्र बहुत आकर्षक था. देखिये लड़की की चुम्बकीय आँखें और लहराते बाल...और दाद दीजिये इस कलाकार की कलाकारी को.
थोडा आगे बढ़ते ही दिखाई दिया सिर्फ दो रंगों से सजी अद्भुत रंगोली . ईंट के बुरादे और काले रंग के माध्यम से साक्षात् चाणक्य स्वरुप चित्र देख कर मेरा सर कलाकार के आदर में झुक गया.
फिर आयी बारी उस चित्र की जिसे देख आँखें धन्य हुईं...आकाश पर उड़ते परिंदों को देखती युवती के इस चित्र ने अजब उदासी का समां बाँध दिया. हैरत हुई की कैसे इन नाज़ुक पलों को घूसर रंगों से कलाकार ने पकड़ लिया .
बात यहीं ख़तम हो जाती तो ठीक था लेकिन एक छोटे से कोने में कप प्याली में पढ़ी चाय के चित्र ने ग़ज़ब ढा दिया. कलाकार की कलाकारी ही थी की इस सामान्य से चित्र को उसने अपने कौशल से नयनाभिराम बना दिया.
ग्रामीण परिवेश और उसी वेशभूषा में इस वृद्ध के चित्र पर आप कुछ कहना चाहेंगे, मैं तो कह नहीं पाऊंगा क्यूँ की मेरी तो बोलती ही इसे देख कर बंद हो गयी थी.
सुधि पाठको पहले से आगाह कर दूं की अगले दो चित्र आपको तालियाँ बजाने पर मजबूर कर देंगे. क्यूँ इन चित्रों में रंग संयोजन तो कमाल का है ही लेकिन जो भाव हैं वो बस अद्भुत हैं.
पहला चित्र है एक लड़की जिसके बाल बिखरे बिखरे से हैं...आँखें आपसे कुछ कह रही हैं...इतना बोलता चित्र वो भी रंगों के माध्यम से फर्श पर बनाना एक चमत्कार ही है.
दूसरा चित्र है इंतज़ार रत युवती का. टकटकी लगाये आँखें...उदास चेहरा...ढीले लटके हाथ...बेताबी...हताशा...उफ्फ्फ...इन सब को शेड्स डाल कर इस खूबसूरती से चित्रित किया गया था की बस आँखें वहां से हिलने का नाम ही नहीं ले रहीं थीं...
अगला चित्र प्रेम की पराकाष्ठा के प्रतीक राधा और कृष्ण का था...आँखें शायद बूंदी शैली जैसी थीं...मैं क्षमा चाहूँगा अगर कहीं ये बात गलत साबित हुई तो क्यूँ की मैं चित्रकला विशेषग्य नहीं हूँ एक साधारण दर्शक हूँ और इन रंगोलियों को देखने का मेरा दृष्टिकोण भी एक साधारण दर्शक का ही है. जो विशेषग्य हैं वो ही शायद इन चित्रों में निहित कला की ऊचाईयों या कमियों को समझ सकते हैं
यूँ तो इस प्रदर्शनी में पचास से अधिक रंगोलियाँ प्रर्दशित थीं लेकिन मेरे लिए सबको दिखाना यहाँ संभव नहीं है, इसलिए चलते चलते आखरी चित्र दिखा कर विदा लेता हूँ.
मुझे मालूम पढ़ा की ये सभी चित्रकार लोनावला के आसपास बसे छोटे छोटे गाँव के कलाकारों के द्वारा ही उकेरे गए हैं. कला किसी जगह या परिवेश की मोहताज़ नहीं मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से उन अनाम चित्रकारों के और अश्वमेघ क्लब के प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूँ , जिन्होंने बिना जे जे स्कूल आफ आर्ट्स या बड़ी डिग्री का सहारा लिए इतनी खूबसूरत चित्रकारी या रंगोली प्रदर्शन से मेरी एक शाम रंगीन कर दी. मुझे उम्मीद है इस आभार प्रदर्शन में आप भी मेरा साथ देंगे.
neeraj jee ye to hamaree parampara rahee hai .
ReplyDeletemarwad me to mandana sirf tyoharo tak hee seemit hai par karnataka Andhra T n me subah subah har roz moggu ya rangolee dalana shubh samajha jata hai .Ghar se kaam par koi nikale usake pahile ye kaam kar liya jata hai . Bahut hee acchee post kitanee kala dabee padee hai hamare desh me.kash sabhee kalaakaro ko apane-apane hisse kee roshanee mil jae isee dua ke sath .
सुन्दर चित्रकारी , सजीव चित्रण किया आपने भी ब्लॉग पर इनका !
ReplyDeleteरंगोली के परिचय के साथ साथ सुन्दर चित्रकारी, अद्भूत चित्रकारी का अनोखा चित्रण अपने ब्लॉग पृष्ठों पर लाकर निश्चित ही एक श्रेष्ठ कार्य किया है.
ReplyDeleteसभी चित्रकारों का आभार.
चित्रकारी लाजवाब रही । आभार व्यक्त करता हूँ आपका, इसको हम तक पहुचाने के लिए।
ReplyDeleteग़ज़ब नीरज जी ग़ज़ब!!! धन्य हो गए!!
ReplyDeleteऐसी कलाकृति दिखाने के हार्दिक धन्यवाद !!!
waah !
ReplyDeletehat kar.........
sundar post
badhai !
एक बारगी तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि ये रंगोली ही है । इतनी सफाई के साथ काम किया गया है कि कैनवास पर बने चित्रों को भी मात दे दिया गया है । काश इनको किसी प्रोफेशनल कैमरे से खींचा गया होता तो शिवना प्रकाशन की आगामी पुस्तकों में इनको उपयोग किया जाता है । अद्भुत है ।
ReplyDeleteबस मुंह से यही निकलता है
ReplyDeleteवाह! नयनाभिराम
हे! चित्रकारों तुम्हे सलाम,
कला पनपने के लिए परिवेश कहां देखती है?
ReplyDeletechitra pradarshini mein alpanaaon kee chhata aut intzaar mein khadee yuvti bahut pasand kiya maine........sabhi chitra kuch kahte hain, par inmein mohakta hai
ReplyDeleteक्या कहूं? इतनी सुंदर रंगोली और इस तरह के उत्कृष्ट चित्रों कि अभिव्यक्ति? यकीन नही होता.
ReplyDeleteआपको बहुत बहुत धन्यवाद इससे रुबरू करवाने के लिये. और इनके बनाने वाले कलाकारों को नमन और शुभकमनाएं.
रामराम.
रंगोली के साथ साथ आपके कैमरे का भी कमाल कम नहीं है ............ बहुत ही सुन्दर चित्र और रंगोली है ...... ऐसे अनाम कलाकारों को मेरा प्रणाम ...........
ReplyDeleteइतनी सजीव चित्रण सब एक से बढ़कर एक प्रस्तुति के लिये आभार ।
ReplyDeletebahut hi sundar kalakritiyaan hain...main bhi jab bhi dekhti hun,aashcharya se bhar jaati hun...itni khubsoorti itni mehnat aur chand ghanton ya adhik se adhik do din, rahti hai...aapne camera me qaid kar inhe sthayee kar diya..bahut bahut dhanyvaad
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteआज तक कभी भी चित्रकला में रूचि नहीं दिखाई, लेकिन आज लगा कि वाकई चित्रकला में जादू है, सम्मोहन है.
बहुत बहुत शुक्रिया आपको भी जो आप इतने सारे खुबसूरत अनुभव लेकर आते हो ........................सही कला किसी भी चीज की मोहताज नही होती है ..........एक बार फिर ढेरो शुभकामनाये......
ReplyDeleteइतनी खूबसूरत रंगोली है, और ऐसी बारीकी की यकीन ही नहीं होता की वाकई रंगोली है. इंतजार करती युवती, नन्हा बालक, चेहरे पर रौशनी तक उभर के आई है...आपका बहुत धन्यवाद, नहीं देखती तो यकीन भी नहीं होता की ऐसी भी होती है रंगोली.
ReplyDeleteरंगोली के बहाने ज्ञानवर्द्धक और सांस्कृतिक पोस्ट पढने को मिली। आभार।
ReplyDelete------------------
और अब दो स्क्रीन वाले लैपटॉप।
एक आसान सी पहेली-बूझ सकें तो बूझें।
अच्छी रंगोलियां दिखाई हैं आपने। हमारा नया चित्रगान भी देखियेगा।
ReplyDeleteNEERAJ JEE,EK SACHCHAA KALAKAAR VO
ReplyDeleteHAI JO HAR KALAA KAA MAAN KARTAA
HAI.AAP MEIN DHERON HEE KHOOBIAN
HAIN.AAPNE APNE BLOG KO INDRADHANUSHEE KAR DIYA HAI.BAHUT
HEE ACHCHHA LAGAA HAI.MEREE BADHAAI
बहुत आकर्षक है यह रंगोली परिचय और साथ ही सुन्दर चित्र्
ReplyDeleteये मुए ख्याल होते है ना नीरज जी ...सब्जेक्ट की राह नहीं देखते ..बस एरोप्लेन की माफिक रफ़्तार पकड लेते है ....खैर आपके फोटो बड़े ही टिचन्न है जी.....
ReplyDeleteneeraj ji ghar baithe lonavla ki vadiyon me ankit alpnaon aur rangoli ke naynabhiram darshan karane ke liye abhar.
ReplyDeletemukhytah aapn prarambh me jo vyangy kiya hai ki hum log'tippaniyono ki wahiyat wah wahiyat me gote ....' bahut apeal ki mere mann ko.lagta hai hum vakai bas yahi kar rahe hain.
विश्वाश नही होता ये अल्पनायें हैं ..अद्भुत!
ReplyDeleteनीरज जी रंगोली से घर सजवाना मुझे बहुत अच्छा लगता था पर फिर व्यस्ताओं के चलते अपनी इस पसंद को दबाना पड़ा। पर आज जब आपकी पोस्ट देखी तो दिल खुश हो गया। और इतनी प्यारी सुन्दर रंगोली देखकर बस दिल से वाह वाह निकल रही है। और तो और आपसे बगैर पूछे कई फोटो हमने चोरी कर ली:) और हाँ रंगोली के कई और नाम जानकार हमारी शब्दों के ज्ञान में बढोतरी भी हो गई।
ReplyDeleteवाह नीरज जी, रंगोली से इतना बढ़िया परिचय कराया आपने.
ReplyDeleteसभी चित्र एक से बढ़कर एक है .
कलाकारों की कला तो कुदरत की भेंट है. वह किसी ट्रेनिंग की मोहताज़ नहीं.
आपकी फोटोग्राफी को सलाम.
इंडिया गेट की सैर हमारे ब्लॉग पर भी.
आप को कई रंगों मे दखा है गज़ल ,पुस्तक समीक्षा आदि लेकिन ये प्रयास तो लाजवाब है बहुत सुन्दर तस्वीरें हैं रंगोली की बधाई और शुभकामनायें
ReplyDeleteaap to aap hae hi camera bhi aapka kamaal hae
ReplyDeleteआपने तो हमारे शुक्ला सर की याद दिला दी.. जो चित्रकला क्लास में चित्रकारी के नाम पर सिर्फ 'अल्पना' बनाना सिखाते थे... सोच रहा हूँ सीख ही लेता तो आज एक पोस्ट बनाने के काम तो आती :)
ReplyDeleteसुन्दर चित्रों के लिए आपका शुक्रिया...
यह दुआ है मेरी कि यह रंगोली यूं ही सजी रहे,
ReplyDeleteसभी रंगोली देखने वाले मगन हो कहें कि अभी तो दिल भरा नहीं नहीं।
rangoli ke iss naye rang se parichit karane k liye bahut bahut dhanyawad. bas issi tarah Gyan ke दीप जलते रहें झिलमिलाते रहें
ReplyDeleteतम सभी के दिलों से मिटाते रहे .
सुन्दर चित्रों से सजी इस पोस्ट के लिए बधाई!
ReplyDeleteहस्त कला
ReplyDeleteहस्त कला के ये मंत्र
निर्जीव को भी जीवित करने के ये तंत्र
मुझे भी सिखाओ
दिल की भावनायेकुछ अक्षय अकिर्तियाँ
मन की जिज्ञासाएं
अपनी ये हस्त कलाएं
मुझे भी बतलाओ
मोन मैं भी अमोनता
एक निर्जीव वस्तु से दिल की बात
कहलवाने की तुम्हारी क्षमता हमें भी समझाओ
इनकी अमिट मुस्कुराहट से दिल लुभाती इस बनावट से
हमारी भी पहेचान कराओअश्रुओ से मिट्टी के मिलन का
दर्द मैं ढलकर हँसते जीवन का एहेसास हमें भी तो कराओ अक्षय-मन
माफ़ी चाहूंगा स्वास्थ्य ठीक ना रहने के कारण काफी समय से आपसे अलग रहा
अक्षय-मन "मन दर्पण" से
बहुत ही सुंदर आंखॆ धन्य होगई, सभी चित्र एक से बढ कर एक...
ReplyDeleteधन्यवाद
bahut hi alg si post .rngoli se sjii bolti tasvire dekhkar klakar ki shresthta drshati hai .ye bhi sach hai ki kala koi vishvvidhalay ki mohtaj nahi hoti .
ReplyDeleteaapka bahut dhnywad jo aapne jeevan ke rago se prichy karvaya .
abhar
कला किसी जगह या परिवेश की मोहताज़ नहीं... बिलकुल सच कहा आपने ...
ReplyDeleteअद्भुत रंगोली तथा लोनावाला के अनाम चित्रकारों की कला का दर्शन कराने के लिए मैं आपका आभारी हूँ।
ReplyDeleteलोभ जगा है कि आपकी घुम्मकड़ व खोजी स्वभाव से हमें आगे और भी ऐसे ही हैरतअंगेज कर देने वाले लेखों से रूबरू होने का अवसर मिलेगा।
वाह नीरज जी बहुत ही ख़ूबसूरत रंगोली हैं और तरह तरह के डिजाईन के साथ शानदार पोस्ट रहा ! मुझे बेहद पसंद आया आपका ये पोस्ट! सुंदर चित्रों के साथ आपने बखूबी प्रस्तुत किया है!
ReplyDeletehar चित्र हर रंग कुछ कहता है बहुत बहुत शुक्रिया इन खुबसूरत चित्रों को हमारे साथ बांटने के लिए ..
ReplyDeleteआपके कैमरे का कमाल तो पहले भी देख चुके हैं हम उस लोनावला और आसपास के इलाके में भ्रमण वाली पोस्ट पर, यहाँ भी लाजवाब है ये कमाल। सोच रहा हूँ मोबाइल के कैमरे से इतनी खूबसूरत फोटोग्राफी कर सकते हैं आप तो अच्छे कैमरे से तो कयामत बरसाते होंगे...
ReplyDeleteरंगोली के बारे में तो सबने कह ही दिया है।
bahut khoobsurat rangolian hain aur kai ghazalen apne daaman me samete hue haiN.
ReplyDeletesabse alag vishay aur kamaal ki photography... neeraj ji ise kahte hai versatile personality.. kitane hunarmand hain aap yahi soch ke dil khush hua jaa rahaa hai ... kamaal ki rangoliyaan...badhaayee in hunarmandon ko...
ReplyDeletearsh
behad khubsurat kalakari hain!
ReplyDeleteshukriya in ko ham tak pahunchane hetu.
Adbhut! ye rangoliyan to paintings ko bhi maat de dein. aapka behad aabhar is kala ko apne camre ke madhyam se hum tak pahuchane ke liye.
ReplyDeleteइंतज़ार में खडी स्त्री ,
ReplyDeleteमधुबाला - सी लगी :)
बेहद सुन्दर मनोहारी पोस्ट लगी नीरज भाई
जय जय
सादर,
- लावण्या
ओह, निश्चय ही; जब मैं सार्थक ब्लॉगिंग की बात सोचता हूं तो इसी प्रकार की पोस्ट मन में आती है।
ReplyDeleteआपने तो मन हर लिया!
मुझे वास्तव में खेद है कि कई दिनों से अस्वस्थता के कारण बहुत देखा-पढ़ा-टिपेरा नहीं। पर यह पोस्ट मिस करना तो वास्तव में गड़बड़ हो जाता। आपने चेताया, उसके लिये बहुत धन्यवाद!
आपका मोबाइल जिन्दाबाद!
Kya gazab kee rangoliyan hai...chehreke sooksh bhaav, lakeeren sabkuchh darshatee huee...!
ReplyDeleteBombay Natural History Society ne aayojit kee ek parindon kee ragolee pradarshanee yaad aa gayee..Dr. Saalim Ali ke kitab parse rangoliyan rachee gayeen thee..
नीरज जी,
ReplyDeleteआज सच कहूँ बहुत दिनों बाद
कुछ पोस्ट गौर से पढ़ पाया.
...पर ये पोस्ट !....यह कला !
और उसकी ऐसी सुन्दर प्रस्तुति !
बस इतना ही.... आपको नमन.
============================
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
इतनी सुंदर रंगोलियाँ सुंदर शब्द जैसे इनके वर्णन के लिये कम पड जाता है, अद्भुत । इतनी मेहनत ओर लगन, वह भी यह जानते हुए कि यह क्षण-भंगुर है, शायद यह बताने के लिये कि जीवन भी तो क्षण-भंगुर है पर इतना ही सुंदर भी ।
ReplyDeletewow Beautiful! Hamare pass is kala ka hunar nahi hai liye bada wala "WOW".....aur kuch bolne layak nahi hai :-)
ReplyDeleteनीरज जी,
ReplyDeleteनमस्कार,
आप जो भी काम करते हैं , नायाब करते हैं।अब मेरे तारीफ़ के लिये कुछ बचा ही नही है......हां आप के मोबाइल का नाम और माडल न० जरूर जानना चाहूँगा,जिसके द्वारा आप ने ये सुन्दर चित्र खींचे हैं......
कल्पनामयी अल्पनायें....... वाहवा... शुभकामनायें...
ReplyDeleteBahut hi khubsurat chitr or rangoli hain or khubsurat prastuti ki aapne.
ReplyDeleteNeeraj
ReplyDeletebas awsome kahoon!!
Marvellous kahoon!!
ya ek balak ki madhur muskaan ki tarah man ko chooti in chitakalaon ki sajeev banakar pesh karne ke liye tumhein Daad doon!!
daad kabool ho..sahitya ke samunder mein itna gahartre utroge ye patta n tha, ab jaana
ssneh
Devi nangrani
Bemisal NEERAJ BHAI ,hamesha ki tarah,
ReplyDeleteI would not have imagined such nastery and artistic excellence in MANDANA before reading yr post,wonderful.
Heartly thanks for the same.
with regards,
dr.bhoopendra
दोबारा से आया हूँ... पहली बार में ही दिलो दिमाग पर छा गया था... ज्ञानदत्त सर वजह फरमा रहे हैं... ट्रू ब्लॉग्गिंग यही है...
ReplyDeleteसारी तस्वीरें मन में बसने वाली हैं... जय हो
अद्भुत . इस पारम्परिक और मांगलिक कला के इतने विविध और इतने सुंदर रूप . आभार !
ReplyDeleteअरे वह नीरज जी!!!
ReplyDeleteये कला के उत्कृष्ट नमूने दिखने के लिए बहु बहुत धन्यवाद !!!!
वास्तव में !! मैंने ऐसी रंगोली कभी नहीं देखी !!
रंगोली में फूल पत्ते आदि ही सोचता था लेकिन आपने तो रंगोली के विविध आकर प्रकार दिखा दिए !!
इन कलाकारों को और आपको बहुत बहुत आभार !!!!
Adhbhut kaam
ReplyDeletemaine aajtak aisi rangoli nahi dekhi
kamaal ka art hai duniya hai
शुक्रिया दुबारा दाद देने के लिये ;
ReplyDelete'हुस्न हर शय पर तवज्जो की नज़र का नाम है ' ये आपकी रंगोंली की पोस्ट ने साबित कर दिया ;वाह !
नीरज जी इस पोस्ट के लिए बहुत ही आभार .बड़ी पुरानी परंपरा है यह .बचपन में मैंने मुंबई में दीवाली के दिनों हर साल ऐसी अनगिनत ' रंगोली ' स्पर्धाएं देखीं और ऐसी ही कमाल वाली .मेरा बचपन का मित्र और पड़ोसी अशोक कुलकर्णी इस कला का बेजोड़ कलाकार था और उसने न जाने कितने पुरस्कार जीते थे .दुर्भाग्य से ' सेना ' के चक्कर में पड़ ,तत्कालीन कम्यूनिस्ट विधायक कृष्णा देसाई हत्याकांड का आरोपी बन आजीवन कारावास भोगा और छूटने के बाद ' सेना ' ने किनारा कर लिया .फिर उसे भूख और शराब निगल गयी.साथ साथ गोलियां खेलते बड़े हुए थे हम .उसकी याद मायूस कर गयी इस पोस्ट को देख पढ़. .उस पर कभी लिखूंगा. वह भी जे जे तो क्या स्कूली पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाया था .
ReplyDeleteILLAHI KAISI KAISI SOORTEIN TOONE BANAI HAIN KI HAR SOORAT KALEZE SE LAGA LENE KE KABIL HAI
ReplyDeleteKASH!
कमाल की पोस्ट है. सबसे बढ़िया लगा रंगोली के चित्रों के बारे में आपके शब्द.
ReplyDeleteअद्भुत पोस्ट लगी मुझे.
एक बार फिर सिद्ध हो गया साब कि सुंदरता देखने वाले की आँखों में होती है। आप हर अच्छी चीज हमारे लिए ले आते हैं। जितना धन्यवाद किया जाए कम है। कलाकारों की प्रशंसा के लिए तो शब्द नहीं हैं।
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