मुंबई के लोग जितने दिलचस्प हैं उतनी ही दिलचस्प है उनकी भाषा. ये भाषा जो न मराठी है और ना ही हिंदी ये अजीब सी भाषा है, जिसका भारतीय संविधान में दी गयी भाषा सूची में कोई जिक्र नहीं है लेकिन इसे बोलने सुनने में जो आनंद मिलता है उसे बयां नहीं किया जा सकता. ये दिल से बोली जाती है और दिल से ही सुनी जाती है.
आज की ग़ज़ल उसी भाषा में कही गयी है ,जिसे मुंबई वाले दिन रात बोलते नहीं थकते. उम्मीद है भाषा विद इस प्रयोग से नाराज़ नहीं होंगे, क्यूँ की ग़ज़ल की भाषा अगर रोज मर्रा वाली हो तो उसका मजा ही कुछ और है. जो लोग भाषा का आनंद नहीं उठाना चाहते वो ग़ज़ल में कही गयी बातों का आनंद लें. मतलब आनंद लेने से है जैसे भी हो लें. .
रदीफ़ में भिडू शब्द प्रयोग किया गया है जिसका अर्थ है दोस्त, मित्र, सखा...
बे-मतलब इन्सान भिडू
होता है हलकान भिडू
अख्खा लाइफ मच मच में
काटे वो, नादान भिडू
प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू
कैसे हम बिन्दास रहें
ग़म लाखों, इक जान भिडू
बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू
जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू
फुल टू मस्ती में गा रे
तू जीवन का गान भिडू
सब झगडे खल्लास करे
होता है हलकान भिडू
अख्खा लाइफ मच मच में
काटे वो, नादान भिडू
प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू
कैसे हम बिन्दास रहें
ग़म लाखों, इक जान भिडू
बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू
जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू
फुल टू मस्ती में गा रे
तू जीवन का गान भिडू
सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू
जीवन है सूखी रोटी
तू 'मस्का-बन' मान भिडू
'मस्का-बन' मुंबई वासियों का बहुत प्रिय आहार है...इसमें दो पाव के बीच, जिसे 'बन' कहते हैं खूब सारा मख्खन (मस्का) लगा के खाया जाता है...मुंबई के हर गली नुक्कड़ पर आपको इसका ठेला मिल जायेगा....
'खोखा' 'पेटी' ले डूबी
हम सब का ईमान भिडू
('खोखा' 'पेटी' मुम्बईया जबान में एक करोड़ रूपये और एक लाख रूपये के लिए प्रयुक्त प्रचिलित शब्द हैं.)
'नीरज' उसकी वाट लगा
जो दिखलाये शान भिडू
(इस ग़ज़ल को गुरुदेव पंकज सुबीर का आर्शीवाद प्राप्त है)
मुंबई के लोग जितने दिलचस्प हैं उतनी ही दिलचस्प है उनकी भाषा. ये भाषा जो न मराठी है और ना ही हिंदी ये अजीब सी भाषा है, जिसका भारतीय संविधान में दी गयी भाषा सूची में कोई जिक्र नहीं है लेकिन इसे बोलने सुनने में जो आनंद मिलता है उसे बयां नहीं किया जा सकता. ये दिल से बोली जाती है और दिल से ही सुनी जाती है.
ReplyDeleteyeh baat aapne bilkul sahi kahi....
Mumbaiya bhaasha mein aapki ghazal bahut achchi lagi....
बहुत सुन्दर कविता भिडू, अरे नहीं नीरजी जी .. क्षमा करे, :) क्या है कि मुंबई में देश के हर कोने का निवासी राकर ठहरता है इसलिए भाषा गडबडा गई, मैं भी जब ५-७ रोज के लिए बोम्बे (जानबूझ कर लिखा ) जाता हूँ तो वहा टैक्सी द्रीवारो के साथ बोलते बोलते ऐसी आदत पद जाती है कि दो-तीन दिन वापस थिखाने पर पहुच कर भी उन्ही शब्दों को इस्तेमाल करता हूँ !
ReplyDeleteवाह नीरज जी अपने तो बम्बइया भाषा में एक अलग ही जान डाल दी है !!! अति सुन्दर !!!
ReplyDeleteबेहद सुंदर लगा आपका ये पोस्ट ! कुछ अलग सा बिल्कुल मुंबई की भाषा में आपने बड़े ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है ! बधाई !
ReplyDeleteजब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
achchha hai.
prayog hote rahne chaahiye.
बिंदास लिखेला है भिडू , बोले तो एकदम मस्त
ReplyDeleteजब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
aha satyavachan sir.....!!!
मुझे तो लगता है, इस भाषा की पहली खूबसूरत गजल । शानदार । एक दूसरा ही आयाम ।
ReplyDeleteफुल टू मस्ती में गा रे
ReplyDeleteतू जीवन का गान भिडू
......................
कमेंट तो इसमें शामिल ही है।
हा हा ...पहली बार इन शब्दों को एन्जॉय कर रही हूँ....वरना हमेशा बच्चों को डांटती रहती हूँ,ऐसे शब्दों के प्रयोग पे....बहुत ही अच्छी तरह पिरोया है इन शब्दों को...ग़ज़ल भी अर्थपूर्ण है
ReplyDeleteवाह भिडू.. क्या लिखा है.. अक्खा ग़ज़ल में छाया रहा भिडू.. बाकी सब ग़ज़ल को तो खल्लास ही कर दिया.. :)
ReplyDeleteमस्त है भिडू.. झकास..
ReplyDeleteनीरज भाई बहुत बढ़िया ,ग़ज़ल में भाषा का यह प्रयोग प्रशंसनीय है । आपके नए नए अंदाज़ हमें तो खूब भाते हैं .शुभकामनायें ।
ReplyDeleteरापचिक :)
ReplyDeleteआप जो नये नये प्रयोग करते हैं वो कमाल के होते हैं नीरज जी ......... आम लोगों को जोड़ते हैं रचना के माध्यम से ...
ReplyDeleteप्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू
वाह .... क्या बात है नीरज जी ...... प्यार में लफडा तो होना ही है ..... मुंबई या जहाँ कहीं
बात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू
ये भी सच है एक हाथ ले .... एक हाथ दे ........ कमाल की बात कही है आपने शेरो में .......
मुन्ना भाई जैसे चलते शेर है भिडू... नयी गजल लग रही है भिडू...
ReplyDeleteprayog karte rahna chahiye.........aakhir prayog karne par hi to avishkar hote hain..........ye tarika bhi bahut hi pasand aaya.
ReplyDeleteवाह वाह मजा आ गया ।
ReplyDeleteक्या झक्कास गजल लिखी है
मस्त हो गई जान भिडू
वाह,गजब! यह तो किसी फिल्म का गाना हो सकता था !
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ये तेवर और नया रूप , ऊपर से तरह तरह के प्रयोग बस आपके बस की ही बात है नीरज जी भिडू वाली बात बहुत जची...
ReplyDeleteकमाल करने में आप किस तरह माहिर हैं वो दिख रहा है ... हर शे'र उम्दा है... बहुत बहुत बढ़ाई कुबूल करें... आप
आपका
अर्श
नमस्ते नीरज जी,
ReplyDeleteऐ भिडू क्या रापचिक ग़ज़ल चिपकाया है,
मज़ा आ गया, कुछ शेर तो छु गए जैसे
अख्खा लाइफ मच मच में
काटे वो, नादान भिडू
प्यार अगर लफड़ा है तो
ये लफड़ा वरदान भिडू
सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू
bhai ne likha hota to kahti -
ReplyDeletekya mast likha hai bhidu
जब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
सब झगडे खल्लास करे
छोटी सी मुस्कान भिडू
क्या रंग जमाया है भिडू ने कमाल है बधाई भिडू जी को
भिड़न्त चालीसा बहुत बढ़िया रही!
ReplyDeleteआपकी मुम्बइया(व्यावहारिक) सूझ-बूझ की दाद देनी पड़ेगी, यह रचना आम लोगों के साथ-साथ खास लोगों में भी जगह बना लेगी और वो खास लोग बोलेंगे .. 'क्या झक्कास लिखेला है, भीड़ू, तूने तो आज सबकी वाट्ट लगा दी !!!'
ReplyDeleteसबसे पहले तो नीरज जी मुस्कराया तो नही बस जमकर खिलखिलाया। जब हँसी रुकी तब जाकर आपकी नए स्टाईल की रचना पढी। वाह गजब की है। उसके जरिए एक सही संदेश दिया। अजीब उलझन में हूँ कि अपनी पसंद की कौन सी लाईन के बारें में बताऊँ। हर लाईन बेहतरीन और गजब की है। सच पूछिए तो दिल खुश हो गया। और हाँ नैना बेटी तो इस फोटो को देखकर खूब खुश होगी।
ReplyDeleteप्यार अगर लफड़ा है तो
ReplyDeleteये लफड़ा वरदान भिडू
-ऐसा!! बहुत सही भिडू...मजाक मजाक में गहरी चोट करते हो भाई!!
बढ़िया सुन्दर प्रयोग ...सच कहा है इस में सभी शेर बहुत सुन्दर बन पड़े हैं ..शुक्रिया
ReplyDeleteक्या झक्कास ग़ज़ल है.. बोले तो एक दम रापचिक :)
ReplyDeleteक्या मस्त गज़ल लिक्खा तूने
ReplyDeleteइसमें तो है जान भिड़ू
मेरा अंदेशा पक्का है
बनेगा फिल्मी गान भिड़ू
प्राचीन शहरों की बोलचाल की भाषा में जो मिठास है उसका ज़वाब नहीं
ReplyDeleteजैसे बनारस की काशिका बोली में इसकी दाद देनी हो
तो कहूंगा-
"आज नीरज भैया ऐसन गज़ल लिखले हौवन की मजा आ गयल
पढ़बा तऽ तू हौ हिले लगबाऽ
हाँ राजा, मजा आ गयल, चौचक दर्शन छिपल हौ एहमें! झकास...!
जब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
कमाल है..कमाल है..इसे कहते हैं ग़ज़ल !!!
हम तो यही कहेंगे कि...
फ़ुल-टू नशा चढ़ेला है
और जरा सी छान भिड़ू
जब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
बहुत सही बात कही है.
और ये अंदाज़ तो बहुत भाया, भाया (भैया).
मस्त ग़ज़ल अब्बी पढ़ा तो,
ReplyDeleteतबियत हुआ झक्कास भिडू
वाह वाह ... नीरज जी ...अंदाज़ पसंद आया
मजा आ गया भिडू .
ReplyDeleteनीरज जी की यह अदा भी झक्कास
ये कैसी भाष लिख मारी
ReplyDeleteमै तो हूँ हैरान रे भिडू
क्या क्या रंग दिखाता है
तू कितना शैतान रे भिडू
वाह ....तेरे जलवे नित नए
मैं तो हूँ नतमस्तक रे भिडू
नीरज भिंडू जी यह लिये आप की इस सुंदर पोस्ट के बदले एक मस्का भरी टिपण्णी वाट लगा के.
ReplyDeleteवेसे मुझे भिंडू ओर वाट का अर्थ मालूम नही आप ने लिखा है तो जरुर अच्छा ही होगा.
धन्यवाद
.
ReplyDelete.
.
नीरज जी,
आपकी यह गज़ल पाठकों को लम्बे अर्से तक याद रहेगी...
और हाँ... नहीं कर रहा मैं मजाक भिड़ू!
रापचिक भिडू
ReplyDeleteha ha ha!
ReplyDeletekya gazal likhi hai..waah!
mumbayee bahsha mein Jhakkas!
us par yah chitr bhi!
MUMBAEEYA HINDI ZABAAN MEIN AAPKEE
ReplyDeleteGAZAL MUN MEIN GUDGUDEE PAIDA KAR
GAYEE HAI.BAHUT KHOOB.
क्या गज़ल कह डाली रे
ReplyDeleteतुझको रख्खे राम भिडू ।
भिडू पार्टनर को भी बोलते हैं ताश या कैरम के खेल मे ।
आदरणीय नीरज जी,
ReplyDeleteगज़ल ने मन में आनंद की सरिता बहा दी। जन-भाषा की गज़ल ही सच्ची गज़ल हो सकती है। शेर ऐसे हैं कि एक बार जुबान पर चढ़े तो उतरने का नाम नहीं लेते। बहुत-बहुत बधाई।
नीरज जी जानते हैं जब तुलसीदास जनभाषा में रामचरित मानस लिख रहे थे तो संस्कृत की ओर से बहुत हंगामा मचाया गया था । तुलसीकृत मानस की प्रतियां तक नष्ट करने की कोशिश की गई थी । किन्तु आज समय ने बताया कि आम आदमी की भाषा में मानस की रचना का निर्णय लेकर तुलसी ने कितना सही काम किया था 1 हम सब एक ही बात गाते हैं लोग साहित्य से दूर हो रहे हैं । किन्तु ये नहीं देखते कि उनको साहित्य से दूर कौन कर रहा है । हम ही तो कर रहे हैं इतना क्लिष्ट साहित्य रच कर हम ही तो है जो जन को साहित्य से दूर कर रहे हैं । आपकी इस प्रकार की ग़ज़लों का मैं हमेशा से प्रशंसक रहा हूं । इसलिये कि ये बोली की काव्य है । भाषा का अंग होती है बोली । बोली के शब्द भाषा में टहलते हुए आते हैं । और रच पच जाते हैं । मुम्बइया बोली में भी एक प्रकार का लास्य है । वो भले ही कुछ सीधी और सपाट है किन्तु उसका भी अपना आनंद हैं । ये भी सच है कि ग़ज़ल की नाजुकता और नफासत के हिसाब से ये बोली कहीं से भी उपयुक्त नहीं है किन्तु ग़ज़ल भी तो अपना चोला बदल चुकी है । अब वो केवल महबूबा की नहीं रही अब तो वो आम आदमी की हो गई है और यदि आम आदमी की हो गई है तो उसको आम आदमी की ही भाषा में बात करना होगा । आपकी बहुत अच्छी समझ है इस बोली को लेकर । इसलिये आपकी ग़ज़लों में ये बोली आकर चार चांद की तरह जगमगा उठती है । कुछ शेर बहुत अच्छे बन पड़े हैं जैसे सब झगड़े खल्लास करे छेटी सी मुस्कान भिड़ू । आप जानते हैं आपसे प्रेरणा लेकर मैं भी इसी प्रकार के एक रदीफ पर काम कर रहा हूं । रदीफ में दो अंग्रेजी के और एक मुम्बइया शब्द है । आखिर को मैं भी साल भर रहा हूं वहां मुम्बई में ।
ReplyDeleteखैर एक अच्छी ग़ज़ल के लिये बधाई ।
बोलचाल की सहज-सरल भाषा में गहरी बातें।
ReplyDeleteबधाई।
E-mail received from Om Sapra Ji
ReplyDeleteshri neeraj ji
good,
very interesting.
-om sapra, delhi-9
हंसती -हंसाती परन्तु गहरी बात करती हुई ग़ज़ल. आपकी प्रयोगधर्मिता बड़ी आनंददाई अभिव्यक्ति निकाली है :) चंद शेर तो लाजबाब है...
ReplyDeleteबात अपुन की सिंपल है
दे, फिर ले सम्मान भिडू
जब जी चाहे टपका दे
रब तो है इक डान भिडू
एक आध जयपुरिया ग़ज़ल भी ठोकी जाए भीडू..
ReplyDeleteवाह भाई वाह!! ये भाषा तो हीट है.
ReplyDeleteआपकी ग़ज़ल सुपर हीट है.
नीरज' उसकी वाट लगा
ReplyDeleteजो दिखलाये शान भिडू
एक शोट अपनी ओर से भी........
गजब शायरी कही भिडू।
ReplyDeleteलो टिप्पणियाँ ढेर भिडू।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut badiya...
ReplyDeleteअक्खा लाइफ मच मच में काते वो नादान भिडू
ReplyDeleteया फिर
रब तो है इक डान भिडू
...उफ़्फ़्फ़, नीरज जी..क्या कहें! इससे पहले वाला प्रयोग भी जबरदस्त था और ये तो माशल्लाह है गुरूवर!
बंबई -- में आज भी अपनी जान बसी है :०
ReplyDeleteआपका बिंदास अंदाज़ -- वाह क्या खूब कहा !!
- लावण्या
aapki ye mumbaiya gazal to bahot jhakkas hai baap! apun bhi bahot enjoy kiya.lage raho munnabhai.
ReplyDeleteyahi nikalta hai munh se.bahut achhe.
Meri Mumbai mujhe bahut pyaari hai aur usmein shamil ye shayari kya baat hai Neeraj is achoote radeef ke liye jo khoob sahaj sahaj kaam mein laya hai
ReplyDeleteDevi nangrani
भाई जी,
ReplyDeleteक्या ग़ज़ल कही है आपने... इस जनभाषा में..
बधाई........
'प्यार अगर लफड़ा है तो,
ये लफड़ा वरदान भिडू..
गजब....
मेरी स्मृति ठीक-ठाक है तो एक-दो बार पहले भी इसी ज़बान में आपकी ग़ज़ले इसी ब्लाग में दर्ज़ हैं
सब झगडे खल्लास करे
ReplyDeleteछोटी सी मुस्कान भिडू
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति ।
नीरज जी .........
ReplyDeleteकुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गयी!
....मराठी कल्चर को जी दिया आपने अपनी इस ग़ज़ल में...गज़ब की अभिव्यक्ति.... क्या बात हिया भिडू.....बहुत बहुत सुन्दर!
लगता है भाईजी आपपर मुंबई अपना खासा असर छोडती जा रही है \मुंबई है ही ऐसी जगह जो सबको आकर्षित करती है
ReplyDeleteये अलग बात है की कुछ इसको खम्खा अपनी जागीर समझते है |खैर
बहुत उम्दा गजल
भावनाओ की अभिव्यक्ति में भाषा का विज्ञान जरुरी नही |
क्या मस्त लिखा है भिडू!
ReplyDeleteजब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
... झक्कास है भिडु !!!!!
जब जी चाहे टपका दे
ReplyDeleteरब तो है इक डान भिडू
bahut hee prashansneey prayas raha aapka.aur sabhee ko bahut bhaya. comments kee lambee list gavah hai is baat kee. Badhai .
भिडू ,
ReplyDeleteअपन तो ऐसीच बोली बोलते पैदा हुआ .बाद में सीखा बचेला माल.
वाट लगा दी राज वाज की
तूने तो इस बार भिडू.
आपुन लोगों का चल जाये
तो खुजलाये ' राज ' भिडू. [ ठाकरे :) ]
कसम आपुन भी लेगा .'चुनकर'
तेरा ही अंदाज़ भिडू
फिर देखेंगा डान कौन है
देगा कान पे एक भिडू .
लोग समझ रहेला है की ये आपका पैला ' मुम्बैया ' है . पहले वाले का बी लिंक ठोक दे न भिडू ! बताना मत भूलना की अपुन ने बहुत पैलेच ऐसा लिखने के वास्ते तेरे को ' मस्का ' बी मारा था :) .
बोले तो आप ने एक कम्प्लेंट किया था अपन के पोस्ट पर की अपुन है किदर .अपन बी हाजिर हो गयेला है ,इदर बी उदर बी .देख लेना भिडू !
हम तो तुमको भाई बोला
ReplyDeleteतुम हमकू बोला भाईजान भीड़ू
इस रचना में मौलिकता कूट कूट कर भरी हुई है...और सुन्दरता बेपनाह है....गुरुदेव का आशीर्वाद है तो फिर किसी टिप्पणी की आवश्यकता नहीं रह जाती है...बधाई ..बड़े भाई!
ReplyDeletemaFt...
ReplyDeleteयही भाषा का जीवन चक्र है, जब कुछ लोग हिन्दी मराठी को लेकर भिडे पडे हैं, वहाँ एक नयी भाषा पनप चुकी है और उन लडाकों की लडाई बेमानी है. और लीजिये, अब तो नीरज जी ने इस भाषा में साहित्य स्रजन भी शुरु कर दिया.
ReplyDeletebahut hi behtareen ghazal hai aapki.badhai!
ReplyDeleteनीरज भाई यह आपकी गजल है ! भाई कमाल है भिडू ! बड़ी देर में खबर लग पाई ...
ReplyDeletesach mein kafi badi samajhdani hai apne bhidoo ki.. chitranjan se koi khas hi engin nikla hai
ReplyDeleteगजल तो कमाल की है ही लेकिन इस गजल पर अंकुर की टिप्पणी ने गजल को चार चाँद लगा दिया है. एक झक्कास गजल पर ऐसी झक्कास टिप्पणी, बोले तो कमेन्ट, कभी-कभी ही मिलती है. बोले तो सोलिड जुगलबंदी.
ReplyDeleteसोलिड गजल को मिलती है
लैंग्वेज से पहचान भीडू
इतनी झक्कास ग़ज़ल पर अपुन वैसे च टिप्पणी मार देते नीरज जी ! गुरूजी का नाम लेकर काहे को धमका रहेला ?
ReplyDeleteमुम्बईया इस बोली में
खूब डाल दी जान भिडू
वाह ! खूब मज़ा आ रहेला भिडू !
kasam se...aisi ghazal na dekhi na suni......... tad tad tad tad tad tad tad......ek ek sher par taliyaan bajio hain meri janib se.... itna umda radeef...aur zabaan aisi ki ..bas maska.....heheh...ek dum qatal ghazal hai ..... :)
ReplyDeletesadar