Sunday, January 27, 2008

पीछे निशाँ रखना


(मरियम आपा की ग़ज़ल)

सफर
में खुशनुमा यादों का कोई कारवाँ रखना
बुजुर्गों की दुआ का धूप में एक सायबाँ रखना

भुलाने का तरीका ये नहीं है अपने साथी को
जला देना खतों को और फ़िर दिलमें धुआँ रखना

नहीं परवा लुटा देना सभी दुनिया के मालो-ज़र
ज़मीं पैरों तले और सर पे अपने आसमाँ रखना

गंवाना मत सफर का तजुर्बा दे जाना औरों को
जिधर से भी गुज़र जाओ उधर पीछे निशाँ रखना

सफर सहरा की तपती धूप में तय तुमको करना है
नज़र में फूल दिल में तुम खयाले गुलिस्ताँ रखना

"ग़जा़ला" मशवरा यह है हमारे नौजवानों कों
अदा में बांकपन अपनी नज़र में शौखियाँ रखना

8 comments:

  1. यात्रा ही तो कर रहे हैं नीरज जी। आपने यात्रा के साथ के लिये मरियम जी की कविता और उसमें निहित नसीहत देकर अच्छा किया। चाहेंगे कि जीवन यात्रा अनूठी बन सके या कम से कम उसपर अफसोस न हो।
    फुटप्रिण्ट्स समय की रेत पर ...

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  2. किस शेर की तारीफ़ हो भाई. हर शेर इतना खूबसूरत कि क्या कहने. शुक्रिया सर जी, इतनी बढ़िया ग़ज़ल के लिए.

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  3. भुलाने का तरीका ये नहीं है अपने साथी को
    जला देना खतों को और फ़िर दिलमें धुआँ रखना

    सैकडो बार इसका जिक्र हुआ होगा पर आपका नजरिया ही एकदम अलग है। दिल मोह लिया इन पंक्तियो ने। वाह।

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  4. बहुत खूब - खासकर -" ज़मीं पैरों तले और सर पे अपने आसमाँ रखना" -rgds- मनीष [ पुनश्च : फोटो बहुत ही बढ़िया है ]

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  5. बुजुर्गों की दुआ का धूप में एक सायबाँ रखना
    बेहद खूबसूरत ग़ज़ल है। शुक्रिया पढ़वाने के लिए ।

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  6. bahut sara dhanyawaad lena hi padega sir aapko...adbhut rachna hai.bahut hi achcha laga..

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  7. सफर सहरा की तपती धूप में तय तुमको करना है
    नज़र में फूल दिल में तुम खयाले गुलिस्ताँ रखना
    iss safar main tapti dhup bhi sharad purnima ki chandani ka sukh deti hai. nazar main prem aur khayal main unki sirf rubiyan hai

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  8. सफर सहरा की तपती धूप में तय तुमको करना है
    नज़र में फूल दिल में तुम खयाले गुलिस्ताँ रखना
    iss safar main tapti dhup bhi sharad purnima ki chandani ka sukh deti hai. nazar main prem aur khayal main unki sirf rubiyan hai

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे