Tuesday, January 29, 2008

कौवा सुर में गाता है


आज आप को मशहूर शायर प्राण शर्मा जी की ग़ज़ल से रूबरू करवाता हूँ. प्राण साहेब यू. के. में पिछले कई सालों से रहते हैं, उनकी एक किताब "ग़ज़ल कहता हूँ" बहुत चर्चित हो चुकी है. बुजुर्ग शायर प्राण शर्मा जी ने मुझे अपने ब्लॉग पर उनकी ग़ज़ल पोस्ट करने की अनुमति देकर बहुत उपकार किया है. देखिये उनकी शायरी का एक दिलचस्प और निराला अंदाज़.

वो सबके दिल लुभाता है कभी हमने नहीं देखा
की कौवा सुर में गाता है कभी हमने नहीं देखा

ये सच है झोपड़े ढ़ाते हुए सब ही को देखा है
कोई महलों को ढ़ाता है कभी हमने नहीं देखा

जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं
बुढापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा

उड़ाओ तुम भले ही,पर कोई बरखा के मौसम में
पतंगों को उडाता है कभी हमने नहीं देखा

वे आपस में तो लड़ते हैं मगर पंछी को पंछी से
कोई पंछी लड़ाता है कभी हमने नहीं देखा

बहुत कुछ देखा है जग में मगर ऐ "प्राण" दुश्मन को
गले दुश्मन लगाता है कभी हमने नहीं देखा

6 comments:

  1. एक बेहतरीन शायर, दूसरे बेहतरीन शायर से, इतना बेहतरीन परिचय कराता है - यह देखा है!

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  2. वे आपस में तो लड़ते हैं मगर पंछी को पंछी से
    कोई पंछी लड़ाता है कभी हमने नहीं देखा

    अब कुछ भी कह पाना असंभव है ऐसे बेहतरीन शायर के लिये

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  3. सच हमने देखा बहुत पर
    इसे शब्दो मे ढालता वो भी इस तरह
    हमने कभी देखा नही।


    नीरज आपकी महफिल मे तो सितारे ही सितारे है। वाह।

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  4. बहुत खूबसूरत गजल भैया. गजब का लिखते हैं प्राण शर्मा जी. आपको धन्यावाद जो आपने उनकी ये गजल पोस्ट की.

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  5. बहुत अच्छी गजल.
    मैं भी आपकी ही लाइन पर चल रहा हूँ बड्डे वापाजी.

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  6. जवानी सबको भाती है चलो हम मान लेते हैं
    बुढापा सबको भाता है कभी हमने नहीं देखा
    सचमुच निराला अंदाज़ है।

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे