Wednesday, January 9, 2008

दूध पी के भी नाग डसते हैं



ये न समझो के अश्क सस्ते हैं
जान लेकर ही तो बरसते हैं

दलदली है ज़मीन चाहत की
लोग क्यों जाके इसपे बसते हैं

टूटते गर करें ज़रा कोशिश
आज कल के ऊसूल खस्ते हैं

यार आदत बदल नहीं सकते
दूध पी के भी नाग डसते हैं **

है बड़ी दूर प्यार की मंजिल
खार वाले जनाब रस्ते हैं

नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं



(** ये कथन ग़लत है क्यों की सांप दूध नहीं पीते)

17 comments:

  1. बहुत अच्छे, ख़ास तौर पे ये :

    नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
    हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं

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  2. बहुत खूब नीरज जी.काफी बेहतरीन किस्म की ग़ज़लें लिखते हैं आप.आपका लहजा बहुत आकर्षक लगा और मैं उम्मीद करता हूँ आप में बहुत ऊँची संभावनाएं हैं .आप व्यवस्था की विसंगतियों पर बहुत ही सटीक ढंग से चोट करते हैं .

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  3. बहुत खूब नीरज जी.काफी बेहतरीन किस्म की ग़ज़लें लिखते हैं आप.आपका लहजा बहुत आकर्षक लगा और मैं उम्मीद करता हूँ आप में बहुत ऊँची संभावनाएं हैं .आप व्यवस्था की विसंगतियों पर बहुत ही सटीक ढंग से चोट करते हैं .

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  4. ठीक कहा नीरज भाई
    नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
    हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
    ...अच्छा लिखा है आपने। बधाई

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  5. नीरज जी,बहुत बढिया रचना है।

    यार आदत बदल नहीं सकती
    दूध पी के भी नाग डसते हैं **

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  6. सर जी, दोबारा ये ग़ज़ल पढ़ रहा था तो ये शेर पढ़ कर एक random सा ख़याल आया :
    यार आदत बदल नहीं सकती
    दूध पी के भी नाग डसते हैं
    इस शेर के एक शब्द की एक मात्रा भर बदल के यही शेर हाजिर है :
    यार आदत बदल नहीं सकते
    दूध पी के भी नाग डसते हैं

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  7. रिश्तो की रेत को खुली हथेली में बस भर लो.
    प्यार का पानी छिड़क उसे पक्का घर कर लो.

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  8. नीरज जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ, गज़ल पढी जो बहुत ही पसंद ही आई आपको बहुत-बहुत बधाई...

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  9. जान भी लेते हैं आप और हँसते भी हैं - [रश्क एक और सीढ़ी चढा :-)] - हमेशा की तरह लाजवाब - RGDS मनीष

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  10. बहुत खूब भैया...हमेशा की तरह.

    पढ़ी जब ये गजल तो दिल बोला
    आप दिल में हमारे बसते हैं

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  11. है बड़ी दूर प्यार की मंजिल
    खार वाले जनाब रस्ते हैं

    वड्डे पापाजी,
    बहुत बढ़िया गजल. बहुत खूब. कितनी बार वाह वाह वाह कहें, मन नहीं भरता..

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  12. ये न समझो के अश्क सस्ते हैं
    जान लेकर के ही बरसते हैं

    नीरजजी

    शब्दों से परे जहां एक और अर्थ है
    वाणी व्यक्त करने में जिसे असमर्थ है
    उंगली धर मौन की वहीं पर आ गया हूँ मैं
    इसके अतिरिक्त कहना कुछ व्यर्थ है

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  13. नीरज जी सचमुच क्या लिखते है जनाब! वाकई हर शेर अपने आप में इतना खूबसूरत है कि कहने के लिये हमारे पास अल्फ़ाज नही है...

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  14. क्या केलिडोस्कोप सी है यह गज़ल! हर बार पढ़ने पर नये सन्दर्भ और नये अर्थ देती है।
    क्या अद्भुत प्रयोग है नीरज जी।

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  15. >नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
    >हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं

    बहुत अच्छे नीरज जी !

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे