ये न समझो के अश्क सस्ते हैं
जान लेकर ही तो बरसते हैं
दलदली है ज़मीन चाहत की
लोग क्यों जाके इसपे बसते हैं
टूटते गर करें ज़रा कोशिश
आज कल के ऊसूल खस्ते हैं
यार आदत बदल नहीं सकते
दूध पी के भी नाग डसते हैं **
है बड़ी दूर प्यार की मंजिल
खार वाले जनाब रस्ते हैं
नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
(** ये कथन ग़लत है क्यों की सांप दूध नहीं पीते)
बहुत अच्छे, ख़ास तौर पे ये :
ReplyDeleteनाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
बहुत खूब नीरज जी.काफी बेहतरीन किस्म की ग़ज़लें लिखते हैं आप.आपका लहजा बहुत आकर्षक लगा और मैं उम्मीद करता हूँ आप में बहुत ऊँची संभावनाएं हैं .आप व्यवस्था की विसंगतियों पर बहुत ही सटीक ढंग से चोट करते हैं .
ReplyDeleteबहुत खूब नीरज जी.काफी बेहतरीन किस्म की ग़ज़लें लिखते हैं आप.आपका लहजा बहुत आकर्षक लगा और मैं उम्मीद करता हूँ आप में बहुत ऊँची संभावनाएं हैं .आप व्यवस्था की विसंगतियों पर बहुत ही सटीक ढंग से चोट करते हैं .
ReplyDeleteठीक कहा नीरज भाई
ReplyDeleteनाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
...अच्छा लिखा है आपने। बधाई
sundar...layaatmak rachnaa NEERAJ ji...bahut khuub
ReplyDeleteनीरज जी,बहुत बढिया रचना है।
ReplyDeleteयार आदत बदल नहीं सकती
दूध पी के भी नाग डसते हैं **
बहुत खूब!!
ReplyDeleteसर जी, दोबारा ये ग़ज़ल पढ़ रहा था तो ये शेर पढ़ कर एक random सा ख़याल आया :
ReplyDeleteयार आदत बदल नहीं सकती
दूध पी के भी नाग डसते हैं
इस शेर के एक शब्द की एक मात्रा भर बदल के यही शेर हाजिर है :
यार आदत बदल नहीं सकते
दूध पी के भी नाग डसते हैं
रिश्तो की रेत को खुली हथेली में बस भर लो.
ReplyDeleteप्यार का पानी छिड़क उसे पक्का घर कर लो.
नीरज जी पहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ, गज़ल पढी जो बहुत ही पसंद ही आई आपको बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteजान भी लेते हैं आप और हँसते भी हैं - [रश्क एक और सीढ़ी चढा :-)] - हमेशा की तरह लाजवाब - RGDS मनीष
ReplyDeleteबहुत खूब भैया...हमेशा की तरह.
ReplyDeleteपढ़ी जब ये गजल तो दिल बोला
आप दिल में हमारे बसते हैं
है बड़ी दूर प्यार की मंजिल
ReplyDeleteखार वाले जनाब रस्ते हैं
वड्डे पापाजी,
बहुत बढ़िया गजल. बहुत खूब. कितनी बार वाह वाह वाह कहें, मन नहीं भरता..
ये न समझो के अश्क सस्ते हैं
ReplyDeleteजान लेकर के ही बरसते हैं
नीरजजी
शब्दों से परे जहां एक और अर्थ है
वाणी व्यक्त करने में जिसे असमर्थ है
उंगली धर मौन की वहीं पर आ गया हूँ मैं
इसके अतिरिक्त कहना कुछ व्यर्थ है
नीरज जी सचमुच क्या लिखते है जनाब! वाकई हर शेर अपने आप में इतना खूबसूरत है कि कहने के लिये हमारे पास अल्फ़ाज नही है...
ReplyDeleteक्या केलिडोस्कोप सी है यह गज़ल! हर बार पढ़ने पर नये सन्दर्भ और नये अर्थ देती है।
ReplyDeleteक्या अद्भुत प्रयोग है नीरज जी।
>नाते रिश्ते हैं रेत से "नीरज"
ReplyDelete>हम जिन्हें मुटठियों में कसते हैं
बहुत अच्छे नीरज जी !