Monday, April 16, 2018

किताबों की दुनिया -173

सोये सपनों को जगाने की ज़रूरत क्या है 
बे सबब अश्क बहाने की ज़रूरत क्या है 

तेरा एहसास ही काफ़ी है मेरे जीने को 
तेरे आने कि न आने की ज़रुरत क्या है 

यह फ़िजा तेरी ज़मीं तेरी हवा भी तेरी 
सरहदें इस पे बनाने की ज़रूरत क्या है 

आज अपनी पोस्ट की शुरुआत हम जनाब 'अज़हर जावेद' साहब की बात से करते हैं जो उन्होंने उस किताब के फ्लैप पे लिखी है जिसका जिक्र आज होने जा रहा है। वो लिखते हैं कि " जदीदियत की लहर और मुशायरों की भरमार ने ग़ज़ल का बांकपन बिगाड़ने में बहुत बड़ा किरदार अदा किया है। मगर कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने तग़ज़्ज़ुल को संभाला ही नहीं उजाला भी है,उनमें जाखू 'साहिल' का नाम भी बहुत नुमाया और बेहद अहम हैं। " जाखू 'साहिल' ? अरे ? ये कौन है ?ये नाम तो मैंने कभी पढ़ा सुना नहीं। फिर अपने आप को समझाया कि शायरी का समंदर बहुत विशाल है 'नीरज' बाबू ,अभी तो आप इसकी सतह पर ही तैर रहे हैं ,अभी आपने डुबकी लगाई कहाँ हैं? सच्ची बात है ,सिर्फ सतह पर तैरने भर से समंदर की गहराई का अंदाज़ा थोड़े होता है।

जन्नत मिरे ख्याल की है, मेरी मुन्तज़िर 
 लेकिन मैं हूँ कि जिसको ख़राबे ही रास हैं 

होती हैं मुद्दतों में कभी मेरी उनसे बात 
कहने को घर हमारे बहुत पास पास हैं 

बस है वही ख़ुलूस का परचम लिए हुए 
रहने को जिन के घर न बदन पर लिबास हैं 

अब जब उनके बारे में पता करना शुरू किया तो अपनी कमअक्ली पर शर्म सी आयी क्यूंकि रमेंद्र जाखू 'साहिल' तो बड़े नामी गरामी शायर और कवि निकले। अपने आप को फिर ये कह कर सांत्वना दी कि कोई बात नहीं - 'नहीं' से देर भली या देर आये दुरुस्त आये। तो लीजिये पेश है उनके बारे में पता की गयी जानकारी के साथ साथ उनकी ग़ज़लों की किताब "एक जज़ीरा धूप का" का थोड़ा सा जिक्र। शुरुआत पंजाब के खूबसूरत शहर जालंधर के पास के क़स्बे "नकोदर" से करते हैं ,नकोदर नाम पर्शियन शब्द 'नेकी का दर" से पड़ा है ,जहाँ 17 अप्रेल 1953 को श्री ऊधोराम और श्रीमती करम देवी के यहाँ जिस बालक का जन्म हुआ उसका नाम रखा गया "रमेंद्र". तब ये किसे पता था कि 'रमेंद्र" नकोदर का नाम आगे जाकर खूब रौशन करने वाला है।"रमेंद्र" ने वहीँ नकोदर के स्कूलों में उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और फिर आगे पढ़ने के लिए 49 कि.मी. दूर बसे जालंधर चले गए।


 आपने ऐसा मसीहा भी कभी देखा है क्या 
 ज़ख़्म दे कर जो यह पूछे दर्द-सा होता है क्या 

कोई भी उम्मीद उसके घर से बर आती नहीं 
अब खुदा के घर सिफ़ारिश का चलन चलता है क्या 

जाने कैसे लोग थे जो मर मिटे इक बात पर 
अब किसे मालूम दस्तूर-ऐ-वफ़ा होता है क्या 

कॉलेज के दिनों में जब वो मात्र 17 साल के थे उन्हें कवितायेँ और नज़्में कहने और संगीत का शौक चढ़ा। उन्हें लगता था जैसे कवितायेँ और नज़्में उनसे कान में हलके से आ कर कह रही हैं कि हमें कागज़ पर उतारो। कॉलेज में लगातार तीन सालों तक उन्हें कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान मिलता रहा। काव्य की रसधार जो उनमें उस समय से बही वो अभी तक अबाध गति से बहे जा रही है। भारतीय प्रशासनिक अधिकारी की परीक्षा में वो उत्तीर्ण हुए और मसूरी ट्रेनिंग पर चले गए जहाँ उनकी मुलाकात शकुंतला जी हुई जो अंग्रेजी की लेक्चररशिप की नौकरी छोड़ कर के प्रशासनिक अधिकारी की परीक्षा पास कर मसूरी में ट्रेनिंग पर आयी हुई थीं। शंकुन्तला जी उनसे एक साल सीनियर थीं। मुलाकातें दोस्ती में बदलीं, दोस्ती प्यार में और प्यार शादी में। शकुंतला जी की प्रेरणा से शादी के लगभग 10 साल बाद उन्होंने ग़ज़लें कहनी शुरू कीं।

जाने कितनी सरहदों में बट गई है ज़िन्दगी 
बस ज़रा-सी बात पर खुद से लड़ाई हो गई 

भूल जाना हादसों को भीड़ का दस्तूर है 
एक पल में बात सब आई गई सी हो गई

क्या मिलेगा तुझको 'साहिल' रोने धोने से यहाँ 
थी समन्दर ही की कश्ती जो उसी में खो गई 

साहिल साहब के बारे में मशहूर ग़ज़लकार जनाब 'बशीर बद्र' साहब ने इस किताब में लिखा है कि "जाखू ज़िम्मेदार ज़हीन और खूबसूरत शख्सियत के मालिक हैं। ज़िम्मेदार और भरपूर ज़िन्दगी जीना प्रेक्टिकल ग़ज़ल है। ग़ज़ल जी लेने के बाद ग़ज़ल लिख लेना बहुत दुश्वार नहीं होता। आप ज़रा सी देर साहिल की ग़ज़लों के साथ रहिये फिर उनकी ग़ज़लों के कितने ही मिसरे ज़िन्दगी के सुख-दुःख की बहुत खूबसूरत इमेज बनकर आपके साथ रहेंगे। साहिल ग़ज़ल और नज़्म के सच्चे शायर हैं। आज की ग़ज़ल का एक खूबसूरत नाम जाखू साहिल है" इस किताब को पढ़ते वक्त बशीर बद्र साहब की उक्त पंक्तियाँ अक्षरशः सच्ची लगती हैं। पहले जाखू साहब हिंदी में ग़ज़लें लिखते थे लेकिन धीरे धीरे उन्हें लगा कि बिना उर्दू सीखे अच्छी ग़ज़ल नहीं कही जा सकती इसलिए उन्होंने बाकायदा उर्दू पढ़ने लिखने की तालीम हासिल की और फिर उर्दू में ग़ज़लें कहने लगे। उन्होंने सिद्ध किया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती सिर्फ आपने सीखने ज़ज़्बा होना चाहिए बस।

शिकवा ही क्या जो उम्र भर राहत मिली नहीं 
जैसी भी है ये ज़िन्दगी हरगिज़ बुरी नहीं 

तनक़ीद आपकी तो बहुत खूब है जनाब 
लेकिन किताब आपने शायद पढ़ी नहीं 

जब दोस्त कह दिया है तो फिर खामियां न देख
टुकड़ों में जो क़ुबूल हो , वो दोस्ती नहीं 

मैं इतना खो गया था खुदाओं की भीड़ में 
असली खुदा पे मेरी नज़र ही पड़ी नहीं 

ये तो आपको भी पता होगा कि शायरी महज़ उर्दू ज़बान सीखने भर से नहीं आ जाती उसके लिए आपको ये पता होना चाहिए कि आपके एहसास किस लफ्ज़ की सवारी करके दिल पर दस्तक देने में कामयाब होंगे। कुछ लोगों में ये हुनर जन्मजात होता है वो लोग उस्ताद कहलाते हैं जिनके पास ये हुनर नहीं होता वो उस्ताद की शरण में जाते हैं।आज सोशल मिडिया के इस दौर में आपको उस्ताद आसानी से मिल जायेंगे लेकिन जब मोबाईल और इंटरनेट का ज़माना नहीं था तब उस्ताद को ढूंढ निकालना टेढ़ी खीर हुआ करता था ,खास तौर पे सही उस्ताद का मिलना तो किस्मत की बात होती थी। रमेंद्र जाखू जी किस्मत के धनी थे तभी उन्हें जनाब "गोपाल कृष्ण" 'शफ़क' जैसे गुणी उस्ताद मिले जिन्होंने उनका शायरी की तकनीक के साथ-साथ ग़ज़ल की ख़ूबसूरती से परिचय करवाया।शायर की असली परख उसके द्वारा छोटी बहर में कही ग़ज़लों से होती है क्यूंकि ये गागर में सागर भरने जैसा दुष्कर काम होता है। छोटी बहर में कही जाखू जी की ग़ज़लें पढ़ कर पता चलता है कि उन्होंने अपने उस्ताद जी की रहनुमाई में कितना कुछ सीखा है :

ख़फ़ा ही सी रहती है क्यों मुझसे अक्सर 
बता ज़िन्दगी क्या मैं इतना बुरा हूँ 

मुझे गैर से कोई शिकवा नहीं है 
मैं अपनी अना का सताया हुआ हूँ 

हवस का जुनूं है मुहब्बत पे भारी 
हैं जिस्मों के मेले जिधर भी गया हूँ 

जाखू साहब की शायरी में एक रवानी है,सादगी है सरलता है जो ग़ज़ल गायकों को अपनी और खींचती है। उनकी शायरी आम आदमी की ज़िन्दगी के एहसासात और मुश्किलात को छू कर गुज़रती है और ज़िन्दगी के बहुत पास पास है। उनकी ग़ज़लें पढ़ कर जब आम पाठक ही गुनगुनाने लगता है तो गायकों की क्या बात करनी। ये ही कारण है कि उनकी ग़ज़लें "ग़ुलाम अली" , जगजीत सिंह ", "पीनाज़ मसानी" , "राजकुमार रिज़वी" "रूप कुमार राठौड़" और "परवीन मेहदी" जैसे श्रेष्ठ ग़ज़ल गायकों ने गायी हैं। साहिल साहब खुद जब मुशायरों में अपनी ग़ज़लें तरन्नुम से पढ़ते हैं तो श्रोता झूम-झूम जाते हैं। देश ही नहीं लाहौर, दुबई,अबुधाबी,मस्कट और कतर जैसे दूसरे मुल्कों में जहाँ उर्दू बोली या समझी जाती है साहिल साहब के चाहने वालों की कमी नहीं।

 मज़हब हज़ारों बन गये आदम की ज़ात के 
रस्में बदल के रह गईं, फितरत मगर नहीं 

इस दौरे खुद परस्ती में बदली है वो हवा 
अपनों से खौफ है मुझे गैरों का डर नहीं 

'साहिल' मुहब्बतों की रविश हो गई तमाम 
अब राह-ए-आशिक़ी में वफ़ा का शजर नहीं 

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधीन हरियाणा सरकार में वित्तायुक्त एवं प्रधान सचिव के पद से सेवामुक्त होने पर रमेंद्र जाखू साहब ने हरियाणा सरकार के अनुरोध पर उन्होंने हरियाणा उर्दू अकेडमी के सचिव पद पर तीन वर्षों तक सफलता पूर्वक कार्य किया। उन्हें ,उनकी साहित्य सेवाओं के लिए अनेको पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हुए जिनमें सन 2003 में मिला "बलराज साहनी अवार्ड और 2012 में मिला 'सरस्वती सम्मान" प्रमुख है। एक जज़ीरा धूप का" जाखू साहब की ग़ज़लों की दूसरी और यूँ तीसरी किताब है। इस से पूर्व सन 1987 में उनकी कविताओं का संग्रह "शब्द सैलाब" और सन 2001 में प्रकाशित पहला ग़ज़ल संग्रह " मेरे हिस्से की ग़ज़ल " साहित्यिक जगत में धूम मचा चुका है. उसी साल याने 2001 में ही उनकी चुनिंदा 12 ग़ज़लों का ऑडियो संग्रह बहुत लोकप्रिय हुआ था। इस किताब की प्राप्ति के लिए आप आधार प्रकाशन पंचकूला हरियाणा को aadhar_prakashan@yahoo. com पर मेल कर सकते हैं या नेट पर ढूंढ सकते हैं , जाखू साहब का नंबर मुझे पता नहीं इसलिए आप तक पहुँचाने में असमर्थ हूँ ,अगर किसी पाठक को पता हो तो मुझे बताये ताकि मैं इस पोस्ट में उसे दूसरों के लिए जोड़ सकूँ। चलते-चलते मैं आपको उनकी एक ग़ज़ल के शेर पढ़वाता चलता हूँ :

 कोई साजिश कहीं हुई होगी 
आग यूँ ही नहीं लगी होगी 

ज़र्द पत्तों से भर गया आँगन 
कोई उम्मीद मर गयी होगी 

कश्मकश कब तलक छुपी रहती 
 बात हद से गुज़र गयी होगी

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (17-04-2017) को ""चुनाव हरेक के बस की बात नहीं" (चर्चा अंक-2943) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब ...वाह !

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  3. Neeraj bhaiya aab se pehle jo misre share kiye haiN un par nazre-saanee kar leN ek baar

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  4. रमेंद्र जाखू साहब के बारे में , उनकी गज़लों के बारे में जानकर बहुत अच्‍छा लगा, जानकारी शेयर करने के लिए धन्‍यवाद

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  5. सुंदर रचना प्रस्तुति ...

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  6. This comment has been removed by the author.

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  7. ज़र्द पत्तों से भर गया आँगन
    कोई उम्मीद मर गयी होगी
    aah aur vaah sath sath...kamaal likha hai.

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  8. बहुत बढ़िया

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  9. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

    निमंत्रण

    विशेष : 'सोमवार' २३ अप्रैल २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच अपने साप्ताहिक सोमवारीय अंक में दो अतिथि रचनाकारों आदरणीय सुशील कुमार शर्मा एवं आदरणीया अनीता लागुरी 'अनु' का हार्दिक स्वागत करता है। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे