Monday, December 18, 2017

किताबों की दुनिया - 156

जो पसीने से इबारत पे यकीं रखता है 
वो भला कैसे हथेली पे लिखा याद रखे 

जिसके सीने से निकलता है निरंतर लावा 
मैं दिया हूँ उसी मिटटी का हवा याद रखे 

अब मुहब्बत भी गुनाहों में गिनी जाती है 
हर गुनहगार यहाँ अपनी सज़ा याद रखे 

इस ग़ज़ल के शेर 'जिसके सीने से ..." पर उर्दू शायरी के उस्ताद शायर जनाब किशन बिहारी नूर साहब ने फ़रमाया था कि "किस क़दर हौसला मंदी से और बेबाक होकर इस शेर में शायर ने यह बता ही दिया कि हवा मेरे वजूद को ख़तम करने की कोशिश न करे क्यूंकि मेरे वजूद को बुझा पाना उसके लिए आसान नहीं होगा। " एक नए उभरते शायर द्वारा इस तरह का कद्दावर शेर कहना क़ाबिले जिक्र बात थी। ये शेर इस और भी इशारा कर रहा था कि आने वाले वक्त में उर्दू शायरी के आसमान में एक नया सितारा जगमगाने वाला है. इस सितारे की चमक बहुत पहले एक मुशायरे के दौरान दिखाई दी, हुआ यूँ ....नहीं नहीं अभी नहीं ये किस्सा उनकी एक ग़ज़ल के इन शेरों के बाद...

मिल जायेगा मुझे भी समंदर का पैरहन 
मैं चल रहा हूँ साथ जहाँ तक नदी चले 

इस तरह तैरती रही अश्कों पे ज़िन्दगी 
पानी पे जैसे नाव कोई काग़ज़ी चले 

हम यूँ निकल चुके हैं कफ़स अपना तोड़ कर 
बादल से ज्यूँ निकल के कभी चांदनी चले 

बात बहुत पुरानी है हुआ यूँ कि दिल्ली के पास शाहदरा में एक मुशायरे का आयोजन किया गया था जिसमें गंगा-जमुनी तहज़ीब सभी बड़े शुअरा शिरकत कर रहे थे उन्हीं में सबसे पीछे एक गुमनाम सांवले से रंग का खोये खोये वुजूद वाला लड़का भी बैठा था। एक के बाद एक बड़े बड़े तमाम शुअरा अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद सामअईन से दाद हासिल करने में नाकामयाब हो रहे थे। सामअईन जैसे सोच के बैठे थे कि इस मुशायरे को हर हाल में क़ामयाब नहीं होने देना है। मायूसी पूरे मंच पर फैली हुई थी ,किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मुशायरे को उठाने के लिए किया क्या जाय ? निज़ामत कर रहे शायर ने मरे मन से उसी पीछे बैठे लड़के का नाम पुकारा और बिना किसी तआर्रुफ़ के माइक के आगे खड़ा कर दिया। सामअईन तो जैसे हूट करने को तैयार ही बैठे थे लेकिन जैसे ही इस लड़के ने गला साफ़ कर एक खुशगवार तरन्नुम में ये शेर पढ़े तो महफ़िल अचानक पूरे रंग में आ गयी :

आते रहे वो याद भुलाने के बाद भी 
जलता रहा चिराग़ बुझाने के बाद भी 

फिर उसके बाद ज़ुल्फ़ के हम पर हुए करम
पर्दा रहा, नक़ाब उठाने के बाद भी 

जादू है मेरी आँख में या उनके नाम में 
उनका मिटा न नाम मिटाने के बाद भी 

उस गुमनाम लड़के "गोविन्द गुलशन "का नाम रातों रात शायरी के दीवानों के ज़ेहन में हमेशा के लिए दर्ज़ हो गया. आज "किताबों की दुनिया " श्रृंखला की इस कड़ी में उनकी ग़ज़लों की किताब "जलता रहा चिराग " की बात करेंगे जिसे चित्रांश प्रकाशन, चिरंजीव विहार, गाज़ियाबाद ने सन 2001 में प्रकाशित किया था। सोलह से भी अधिक बरस पहले लिखी ये ग़ज़लें आज भी अपनी कहन के कारण उतनी ही ताज़ा लगती हैं जितनी उस वक्त थीं.


आदमी जब-जब ग़मों की भीड़ में खो जायेगा 
आदमी सच पूछिए तो आदमी हो जायेगा 

आइने के रू-ब-रू जाने से घबराता है क्यूँ 
आईना रख सामने तू आइना हो जायेगा 

लाएगी चूनर के बदले रोटियां मुमकिन है वो 
रोज़ भूखा लाल बेवा का अगर सो जायेगा

7 फ़रवरी 1957, मोहल्ला ऊँची गढ़ी, गंगा तट अनूप शहर , ज़िला- बुलन्द शहर में जन्में गोविन्द जी ने कला विषयों में स्नातक की डिग्री हासिल की और नेशनल इन्श्योरेंस की गाज़ियाबाद शाखा में विकास अधिकारी के पद पर काम किया। गोविन्द जी को शायरी उनके पिता स्व. श्री हरिशंकर जी से विरासत में मिली। उनके बाबूजी खुद तो शेर नहीं कहते थे लेकिन उन्हें सैंकड़ो शेर याद थे जिन्हें वो रोजमर्रा की बातचीत के दौरान इस्तेमाल किया करते थे। बचपन से ही शेर सुनते सुनते गोविन्द जी का रुझान शायरी की तरफ हो गया और ये दीवानगी उन्हें सूफ़ियाना महफ़िलों तक ले गयी। वो डिबाई बुलंद शहर स्तिथ आस्ताने पर हाज़री देने लगे जहाँ देश भर से आये कव्वाल अपनी कव्वालियां सुनाया करते थे। इससे उन पर चढ़ा शायरी का रंग और गहरा हो गया।

इस बरस सैलाब में मिटटी के घर सब बह गये 
रह गए ऊंचे महल इस पार भी उस पार भी 

छीन कर सच्ची किताबें और हाथों से क़लम 
नस्ल को सौंपे गये बारूद भी हथियार भी 

दर्मियाँ बरसात का मौसम बना कर देखिये 
ख़ुद-ब-ख़ुद गिर जायेगी नफ़रत की ये दीवार भी 

ऐसा नहीं है कि गोविन्द जी सीधे ही ग़ज़ल कहने लगे। सबसे पहले उन्होंने भजन लिखने शुरू किये और देखते ही देखते उनके पांच भजन संग्रह छप कर लोकप्रिय हो गए। पहली ग़ज़ल उन्होंने शादी के एक बरस बाद सं 1987 में अपनी लखनऊ यात्रा के दौरान लिखी और ये सिलसिला 1994 तक अबाध गति से चलता रहा।ग़ज़ल के इस सफर के दौरान उन्हें बहुत से रहनुमा मिले जिन्होंने समय समय पर उनकी लेखनी को संवारा। डायरी में दर्ज़ ग़ज़लें धीरे धीरे उनके मुशायरों और नशिस्तों में शिरकत करने की वजह से लोगों तक पहुँचने लगीं। प्रतिभा छुपती नहीं इसीलिए उनका नाम गाज़ियाबाद में होने वाले हर बड़े छोटे मुशायरों और नशिस्तों में लिया जाने लगा।

क़ुसूरवार वही है ये कौन मानेगा 
सबूत भी है ज़रूरी बयान से पहले 

यक़ीन कैसे दिलाऊँ कि मेरे हाथों में 
कभी गुलाब रहे हैं कमान से पहले 

न मिल सका न मिलेगा कभी कहीं 'गुलशन'
सुकून तुझको ख़ुदा की अमान से पहले 

गुलशन जी की शायरी की सबसे बड़ी खूबी है उसकी सरलता। बिना कठिन शब्दों का सहारा लिए वो बहुत बड़ी बात भी आसानी से कह देते हैं। उनकी शायरी हमारे सामाजिक और राजनीतिक परिवेश के साथ साथ मानवीय कमज़ोरियों और खूबियों को ख़ूबसूरती से बयां करती है। शायरी में ये परिपक्वता उन्होंने अपने मार्गदर्शक डा कुँअर बैचैन और जनाब इशरत किरतपुरी साहब के प्रोत्साहन और जनाब किशन बिहारी 'नूर' साहब की सोहबत से प्राप्त की। इनके अलावा जनाब गुलज़ार देहलवी , जनाब शरर जयपुरी , जनाब ओम प्रकाश चतुर्वेदी 'पराग', जनाब तुफैल चतुर्वेदी , जनाब कुमार विश्वास , जनाब सीमाब सुल्तानपुरी जैसे बहुत से दिग्गजों की रहनुमाई से भी उन्हें लाभ मिला।

घोंसलों में बंद हैं पंछी है ख़ाली आस्मां 
होने वाली है यहाँ आमद किसी तूफ़ान की 

उनके आने की खबर ने आज इतना तो किया 
हो गयी ज़िंदा लबों पर ख़्वाइशें मुस्कान की 

काग़ज़ी फूलों से अब सजने लगी हर अंजुमन 
है बहुत खतरे में 'गुलशन' आबरू गुलदान की

गोविन्द गुलशन साहब ने ग़ज़ल और भजनों के अलावा गीत और दोहो की रचना भी की है। साहित्य में उनके द्वारा किये गए योगदान पर उन्हें युग प्रतिनिधि सम्मान,सारस्वत सम्मान,अग्निवेश सम्मान,साहित्य शिरोमणि सम्मान, कायस्थ कुल भूषण सम्मान,निर्मला देवी साहित्य स्मॄति पुरस्कार,इशरत किरत पुरी एवार्ड आदि से नवाज़ा गया है.उनकी रचनाएँ इंटरनेट की सभी प्रमुख साहित्यिक साइट पर उपलब्ध हैं। अनेक पत्र पत्रिकाओं में भी उनकी रचनाएँ लगातार प्रकाशित होती रहती हैं और उनकी लोकप्रियता में लगातार इज़ाफ़ा करती रहती हैं। 

वो एक अश्क का क़तरा जरूर है लेकिन 
मुकाबले में समंदर ग़ुलाम हो जाये 

रवायतें नहीं मालूम आदमीयत की 
वो चाहता है फ़रिश्तों में नाम हो जाये 

किसी पे तेज़ दवाएं असर नहीं करतीं 
किसी का सिर्फ दुआओं से काम हो जाये

गुलशन जी की के इस पहले संग्रह में उनकी लगभग 70 ग़ज़लें शामिल हैं,सभी पठनीय हैंऔर अपने कथ्य शिल्प तथा भाषा की सरलता के कारण पाठक को बाँध लेती हैं. संग्रह की प्राप्ति के लिए आप गुलशन जी से 0120/2766040,01204552440 मोबाइल -: 09810261241 ई-मेल आइ डी -: govindgulshan@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं। जनाब 'इशरत किरतपुरी' साहब के इन अल्फ़ाज़ के साथ कि " जनाब गोविन्द गुलशन ने मुझे ही नहीं पूरी गाज़ियाबाद की पूरी अदबी बिरादरी को मुताअसिर किया है लेकिन बहैसियत इंसान वो अपने अंदर के शायर से भी ज्यादा बुलंद हैं। मैंने उनसे कभी किसी की शिकायत नहीं सुनी वो बुजुर्गों का बड़ा एहतराम करते हैं , जब भी उन्हें मुफ़्लिसाना मशवरा दिया जाता है वो उसे क़ुबूल कर लेते हैं " मैं आपको उनके कुछ फुटकर शेर पढ़वाता चलता हूँ और निकलता हूँ अगली किताब की तलाश में ::

उनके शानों से लिपट कर आज आई है हवा
वर्ना पहले तो कभी खुशबू भरी इतनी न थी
***
मुझको मुजरिम तो कर दिया साबित
उसके चेहरे पे इतना डर क्यों है
***
तुम घर की कहानी को दीवार पे मत लिखना
दिल में जो शिकायत हो रुख़सार पे मत लिखना
***
भूख बढ़ती जा रही है आज के इंसान की
क़ीमतें गिरने लगीं हैं दिन ब दिन ईमान की
***
बस यही सोच के पलकें न उठाईं मैंने
ढूंढ लेगा मेरी आँखों में ठिकाना कोई
***
खुली आँखें रखें तो नींद गायब
पलक झपकें तो मंज़र टूटता है
*** 
तुम कैसे सुन लेते हो 
जब मैं हिचकी लेता हूँ

12 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-12-2017) को "ढकी ढोल की पोल" (चर्चा अंक-2822) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. गोविंद गुलशन जी बड़े मोतबर शायर हैं। उनके एक एक शेर नगीने की तरह हैं। बतौर उस्ताद कई नौजवानों को वे शायरी का हुनर सिखाने का नेक काम भी कर रहे हैं। आपने उनकी शायरी को सबके सामने पेश करने का सराहनीय काम किया। इसके लिए आपको बधाई।

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  3. वो एक अश्क का क़तरा जरूर है लेकिन
    मुकाबले में समंदर ग़ुलाम हो जाये

    आज के लिये मौजूँ शेर

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    1. शब्द नहीं है, क्या बात है।

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  4. शायरी की दुनिया में कुछ शायरों का परिचय उनके शेर होते हैं। ऐसे ही नायाब शायरों में गोविंद जी का नाम अदब से लिया जाता है। इनकी वो ग़ज़ल विशेष रूप से देखने लायक हैं जिनमें रदीफ़ और क़ाफ़िया का दुगन में प्रयोग हुआ है।

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  5. गुलशन दादा जब तरन्नुम में ग़ज़लें पढते हैं दिल झूम-झूम जाता है।

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  6. फिर उसके बाद ज़ुल्फ़ के हम पर हुए करम
    पर्दा रहा, नक़ाब उठाने के बाद भी
    गुलशन जी का ये शेर और कुछ पढ़ने दे तो कुछ कहें। इस एक शेर में सैकड़ों गानो और फिल्मों की रूमानियत है मुझे चौहदवी कै चाँद जाने से लेकर साहब बीवी गुलाम की मीनाकुमारी तक याद आए जा रही है।

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  7. यह मेरा सौभाग्य ही कहिए कि एक दिन दफ्तर से आकर मुझे एक किताब दी और कहा कि यह आपके लिए किसी ने तोहफा भेजा है।
    श्रीमती जी को मालूम था कि मुझे शायरी काफी पसंद है। मैंने सोचा चलो देखते हैं क्या है।
    अरे जनाब क्या बताऊँ, एक बार जो पढ़ने बैठा तो फिर और किसी बात का ख़याल ही नहीं रहा। यकीन मानिए श्रीमती जी के बार-बार कहने के बावजूद भी मैंने तब तक खाना नहीं खाया जब तक कि आख़िरी ग़ज़ल नहीं पढ़ ली।
    अब शायद यह तो बताने की ज़रूरत नहीं होगी कि ग़ज़लें कैसी लगीं। हम तो उसी पल से गोविन्द जी के मुरीद हो गए बिल्कुल Love at first sight की तरह, यह बात अलग है कि अभी तक उनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ है। भगवान् ने चाहा तो वह भी जल्दी ही हो जाएँगे ।
    तब से अब तक गोविन्द जी को इंटरनेट और यू-ट्यूब पर पढ़-सुन कर आनन्दित होते रहते हैं।
    अंत में एक बात - गोविन्द जी की शायरी कभी तो संजीदा होती है और कभी शरारती। मसलन् -
    मेरी नज़रों ने बरसात में छू लिया उनका गीला बदन
    उनसे नज़रें मिलीं और फिर
    शर्मसारी रही उम्र भर
    यह गज़ल जब भी देखता हूँ तो वाह-वाह के साथ हँसी भी आ जाती है, ऐसा लगता ही नहीं कि साहब रिटायर हो चुके हैं ।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
    धन्यवाद।

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  8. Waaaaaah waaaaaah kya kahne bahut umda
    Bahut shukriya janab
    Naman

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  9. गोविन्द जी एक बड़े शायर होने के साथ एक मुख़लिस इंसान हैं । मैं उनकी मज़ीद कामयाबी के लिए दुआ करता हूँ ।

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे