मेरा चेहरा वही ,वही हूँ मैं
बात इतनी है वक्त दुश्मन है
आ गयी फिर ख़ुशी मिरे दिल में
ये मेरी शायरी की सौतन है
चंद कतरे हैं मेरी आँखों में
मेरा सावन भी कितना निर्धन है
ये तो इत्तेफ़ाक़ ही है -आप इसे हसीन कहें तो आपकी मर्ज़ी लेकिन ये है इत्तेफ़ाक़ ही। आपको बताऊंगा तो आप भी कहेंगे क्या ग़ज़ब का इत्तेफ़ाक़ है। बताइये आज तारीख़ क्या है ? जी हाँ चौदह अगस्त सोमवार और चौदह अगस्त के दिन याने आज ,मैं जिस शायर की किताब की चर्चा मैं करने वाला हूँ वो भी चौदह अगस्त को पैदा हुए थे ,बात यहीं रुक जाती वहां तक भी ठीक था लेकिन रुकी नहीं आज याने चौदह अगस्त को ख़ाकसार का भी जनम दिन है। यूँ जन्मदिन का जीवन में कोई विशेष महत्त्व नहीं होता ,जिसने जनम लेना है वो आज नहीं तो कल लेगा ही, जनम लेने और जनम देने वाले का इस क्रिया में कोई विशेष योगदान नहीं होता। ये सब प्रकृति के नियमानुसार होता है। पर इस पोस्ट की तिथि का पोस्ट के शायर की जन्म तिथि और ब्लॉग लेखक की जनम तिथि के साथ पड़ना महज एक संजोग है जो पहली बार इस 8 साल पुरानी श्रृंखला में हो रहा है।
इस तथ्यहीन बात को यहीं छोड़ आईये आज उनकी ग़ज़लों की किताब से कुछ और ग़ज़लों के शेर पढ़ते हैं :-
थोड़ी सस्ती है थोड़ी महंगी है
ज़िन्दगी भी तो खीर टेढ़ी है
जब लिपटता है चाँद से सूरज
बर्फ जलती है आग बुझती है
एक जुगनू बता गया मुझको
तीरगी उससे खौफ खाती है
तुझसे बिछुड़ा तो हो गया शायर
तुझसे बेहतर तेरी जुदाई है
वो सलीके से जान लेते हैं
हम जिन्हें अपना मान लेते हैं
एक डाली पे फिर नहीं रहते
जब परिंदे उड़ान लेते हैं
लोग झूठी अना की इक चादर
ओढ़ लेते हैं तान लेते हैं
'शाद' इन्साफ यूँ भी होता है
बेजुबां से बयान लेते हैं
सपनों की जागीर हमारी
इतने भी कंगाल नहीं हम
ये मौसम ही रोने का है
मत समझो, खुशहाल नहीं हम
जो भी चाहे पकडे, झूले
उन पेड़ो की डाल नहीं हम
'शाद' अपने बारे में कहते हैं की ' शायरी भी अजीब शै या बीमारी है। कब, कहाँ और कैसे अपनी जुल्फों का असीर बना ले कुछ कहा नहीं जा सकता। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. मैं तकरीबन उम्र के 45 साल पूरे करने के बाद इस खूबसूरत बीमारी में मुब्तिला हुआ और अब तो ऐसा महसूस हो रहा है कि यह मर्ज़ आखिरी उम्र तक मेरे साथ ही रहेगा "
आप कहते हैं छोड़ दूँ पीना
आप क्या मयकशी समझते हैं
क्यों बुलाते हो प्यार से उनको
वो जुबाँ दूसरी समझते हैं
हम भटकते रहे हैं सहरा में
'शाद' हम तिश्नगी समझते हैं
भले ही शाद साहब ने 45 साल की उम्र से शेर कहना शुरू किया हो लेकिन मुझे लगता है कि शायरी उनके जहन में होश सँभालते ही पनपने लग गयी होगी , अगर ऐसा नहीं हुआ होता तो महज चार पांच साल के छोटे से वक़्फ़े में उनके चार शेरी मजमुए 'वो' सन 2013 में 'तुम' सन 2014 में 'हम' सन 2015 में और 'कागज़ी फूल' सन 2016 में मन्ज़रे आम पर नहीं आ पाते। चार सालों में चार मजमुए इस बात का सबूत हैं कि बरसों से रुकी हुई शायरी की नदिया एक दिन बाँध तोड़ कर जबरदस्त रफ़्तार से बह निकली। हाल ही में गुजरात सरकार द्वारा उनके शेरी मजमुए 'तुम' को सन 2014 के गुजरात साहित्य अकादमी के प्रथम पुरूस्कार के लिए चुना गया है ये सम्मान उन्हें अगले हफ्ते याने 22 अगस्त को अहमदाबाद में प्रदान किया जायेगा।
तेरे निज़ाम को जब चाहेगा बदल देगा
मियां ये वक्त है , बिगड़ा तो फिर कुचल देगा
जहाँ भी जाओ मोहब्बत के बीज बो देना
कहीं तो पेड़ उगेगा कहीं तो फल देगा
कभी न कहना 'शाद' उससे राज की बातें
यहाँ सुनेगा वहां जा के वो उगल देगा
'शाद' साहब की फितरत में ही शेर कहना है उनकी कहने की रफ़्तार हैरत में डाल देती है वो इंटरनेट फेसबुक व्हाट्सअप और ट्वीटर पर नियमित रूप से अपने नए नए मयारी शेर पोस्ट करते रहते हैं इसका नतीजा ये है कि अदब की दुनिया में उनका नाम बहुत इज़्ज़त से लिया जाता है । ज़िन्दगी का शायद ही कोई पहलू हो जिसपर 'शाद' साहब ने शेर न कहा हो।
इतनी कुर्बत हो इस मोहब्बत में
तुम जुबाँ दो मगर निभाएं हम
इतना रिश्ता रहे बिछड़ के भी
तुम पुकारो तो लौट आएं हम
वक्त आएगा 'शाद' वो कब तक
बेसबब तुम को याद आये हम
मेरी खुशियों की एक चाबी है
जो तेरे पास कबसे गिरवी है
फिर कभी प्यार-प्यार खेलेंगे
आज जाने दे पेट खाली है
तेरी चौखट पे मर गए कितने
ऐ मोहब्बत तू कितनी भूकी है
'शाद' हासिल नहीं अगरचे कुछ
पास रहने से बस तसल्ली है
आपके जन्म दिन की आपको हार्दिक शुभकामनाएं और एक और बेहतरीन किताब और बेहतरीन शायर से परिचय कराने के लिए आपका धन्यवाद
ReplyDeleteआ गयी फिर ख़ुशी मिरे दिल में
ये मेरी शायरी की सौतन है
शायरों की किस्मत बिना दर्द के कहा कुछ लिख पाते है; सब दर्द अपनी कलम से निकाल देते है
थोड़ी सस्ती है थोड़ी महंगी है
ज़िन्दगी भी तो खीर टेढ़ी है
ये तो हम सबकी की जिन्दगी से जुड़ा शेर है;
एक जुगनू बता गया मुझको
तीरगी उससे खौफ खाती है
क्या बात है; ये शेर उन लोगो के लिए जो अकेले अपने दम पे कुछ कर गुजरने का माद्दा रखते है
तुझसे बिछुड़ा तो हो गया शायर
तुझसे बेहतर तेरी जुदाई है
जुदाई तो सिर्फ कहने के लिए है; यादे कहा भूलती है
तेरे निज़ाम को जब चाहेगा बदल देगा
मियां ये वक्त है , बिगड़ा तो फिर कुचल देगा
सच्चाई है ये; कितने खूबसूरत हर्फ़ है ये
एक बढ़ कर एक शेर है; अब इनको खोजा जायेगा ताकि ये भी मेरे किताब घर का हिस्सा बन सके
शुक्रिया एक बार फिर से आपका इस बेहतरीन शायर से तआरुफ़ कराने के लिए
बहुत अच्छा आलेख
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
शाद साहब के लाजवाब शेरों के गुलदस्ते से फूल ले के आए हैं आप ... सदाभार ग़ज़लें और लाजवाब आपका अन्दाज़ और वो भी आपके जनन दिन पर ... ये तोहफ़ा तो आपने दे दिया आज
ReplyDeleteजन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति!
Received on Mail:-
ReplyDeleteसबसे पहले आप दोनों को जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनाएं!
हमेशा की तरह आपके जुनूने शौक़ ने सीधे सादे लहजे में सच्ची बात ख़ूबसूरती से कहने वाले शायर का इंतिख़ाब किया है और उसी भाषा में सुंदरता से उनका परिचय भी कराया है. शेर का चुनाव भी खूब है. आपको और शाद साहिब को दिली मुबारकबाद!
ख़ुदा आपको और आपके जज़्बा ए शौक़ को सलामत रखे!
Alam Khursheed
सुन्दर शेर. जन्मदिन की शुभकामनाएँ
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