अच्छे बुरे का मेरे, जमा ख़र्च तुम रखो
मैं तो जीऊंगा ज़िन्दगी अपने हिसाब से
आदत सी पड़ न जाय कहीं जीत की मुझे
सो चाहता हूँ खेलना बाज़ी जनाब से
दौरे-ख़िज़ाँ का पहरा है गुलशन में चारसू
कैसे मैं हाल खुशबू का पूछूं गुलाब से
ऐसा नहीं है कि ये पहली बार हुआ है इस श्रृंखला में ऐसा पहले भी हो चुका है कि जिस शायर की किताब की हम चर्चा करने जा रहे हैं उस शायर के उस्ताद मोहतरम की किताब की चर्चा भी पहले कर चुके हैं। ये बात दोनों, याने उस्ताद और शागिर्द, के लिए बाइसे फ़क्र है। उस्ताद के लिए इसलिए कि उनका शागिर्द इस लायक हो गया है कि दुनिया उसकी शायरी की चर्चा करे और शागिर्द के लिए इसलिए कि उसकी किताब की चर्चा भी वहां हो रही हैं जहाँ उसके उस्ताद मोहतरम की हुई है,एक ही प्लेटफार्म पर। हमारे आज के शायर हैं जनाब 'चन्दर वाहिद' साहब जिनकी किताब 'समय कुम्हार है' की बात हम करेंगे। इनके उस्ताद दिल्ली के जाने माने शायर जनाब ' मंगल नसीम' साहब हैं जिनकी किताब ' तीतरपंखी ' की चर्चा हम पहले कर चुके हैं।
मैंने भूले से छू दिया गुल को
पत्ती-पत्ती सिसक-सिसक उठ्ठी
साज़ छेड़ा चटक के गुंचों ने
ओस पत्तों पे फिर थिरक उठ्ठी
याद क्या है? दरख़्त पर जैसे
नन्हीं चिड़िया कोई चहक उठ्ठी
याद को नन्हीं चिड़िया की चहक सा बताने वाले जनाब चन्दर वाहिद साहब का जन्म गाँव बादशाहपुर, जो उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड जिले में पड़ता है, में 5 अगस्त 1958 को हुआ। चन्दर साहब ने अपने शेरी सफर की शुरुआत सन 1996 में याने ज़िन्दगी के लगभग 38 वसंत देख चुकने के बाद की। इस से पहले उनके अहसास और तसव्वुरात ग़ज़ल की शक्ल में बाहर आने को बैचैन तो रहते थे लेकिन रास्ता नहीं मिल रहा था। चन्दर साहब को एक मुकम्मल उस्ताद की तलाश थी जो उनका हाथ पकड़ कर शायरी के जोख़िम भरे टेड़े मेढे रास्तों पर चलना सिखाये। उनकी ये तलाश उस्तादे मोहतरम जनाब मंगल नसीम साहब पर जा कर ख़तम हुई। उस्ताद ने हाथ क्या पकड़ा चन्दर साहब के दिल में घुमड़ते शायरी के बादल अशआर की शक्ल अख्तियार कर बरसने लगे।
झिलमिलाये जैसे लहरों पर किरन
आस लेती दिल में यूँ अंगड़ाइयां
पलक की पाज़ेब के घुँघरू थे अश्क
टूटने पर बज उठी शहनाइयाँ
जब नगर की धूप में जलना पड़ा
याद आयी गाँव की अमराइयाँ
'टूटने पर बज उठी शहनाइयां/ जैसे मिसरे बिना उस्ताद की रहनुमाई के दिमाग में नहीं आ सकते। ग़ज़ल के कारवां का हिस्सा होने की इजाज़त देते हुए मंगल साहब ने वाहिद साहब को सफर के तौर तरीके समझते हुए कहा था कि 'मेरे अज़ीज़ ग़ज़ल कहना आग के दरिया से गुज़ारना है. सब कुछ फूंक सकने का हौसला रखते हो तो आओ मेरे साथ वर्ना वापस लौट जाओ कि अनगिनत खुशियां तुम्हारी राह तकती हैं। वाहिद साहब ज़ाहिर सी बात है वापस लौटने के लिए तो मंगल साहब के पास आये नहीं थे सो बस उनके घुटनों पर सर रख कर अपना सब कुछ उन पर न्योछावर कर दिया। ऐसे धुनि शागिर्द को पा कर उस्ताद को कितनी ख़ुशी मिलती है इसका अंदाज़ा भी नहीं लगाया जा सकता।
समय कुम्हार है जो चाक पर नचाता है
ये ज़िन्दगी तो सुराही का नाचना भर है
जो खाली हाथ है आया वो क्या खरीदेगा
उसे तो दुनिया के मेले को देखना भर है
ग़मों की आग से खुद को ज़रा बचा रखना
कि जिसमें रहते हो 'वाहिद' वो मोम का घर है
ग़मों की आग से खुद को बचाये रखने का संदेशा देने वाले चन्दर साहब खुद उसकी लपटों में घिर गए और उनका मोम का घर पिघलने लगा। हुआ यूँ कि एक दिन सुबह जब बिस्तर से उठने लगे तो उन्होंने पाया कि उनका आधा जिस्म बेहरकत हो चुका है। पैरालिसिस के इस अटैक ने उनकी ग़ज़ल यात्रा को विराम सा लगा दिया। लगभग ढेड़ दो बरस के इस यातना भरे दौर का उन्होंने दवाओं ,दुआओं और दोस्तों रिश्तेदारों की सेवाओं के साथ डट कर मुकाबला किया और आखिर कार विजयी हुए। ये अलग बात है कि ज़िन्दगी वैसी नहीं रही जैसी फालिज से पहले थी।
सूरत उतर न जाय कहीं माहताब की
कह दो कि बात झूठ है उनके शबाब की
मंज़िल क़रीब आई तो भटका दिया गया
इन रहबरों ने ज़िन्दगी मेरी ख़राब की
हालात ने बिगाड़ दी ' वाहिद' की शक्ल यूँ
जैसे ख़राब जिल्द हो अच्छी किताब की
'समय कुम्हार है' का प्रकाशन 2001 में हुआ था याने आज से 16 साल पहले लेकिन इसके अशआर आज भी उतने ही ताज़ा हैं जितने कि ये इन्हें लिखते वक्त थे। शायरी वही ज़िंदा रहती है जो इंसान की जद्दोजहद की उसके गुण-दोष की, ऊंच-नीच की उसकी फ़िक्र की नुमाइंदगी करे. पढ़ने वाले और सुनने वाले को उसमें अपना अक्स नज़र आना चाहिए । आज सदियों बाद भी तभी ग़ालिब को वैसे ही पसंद किया जाता है बल्कि ज्यादा पसंद किया जाता है जितना कि उसके वक्त में उसे पसंद किया गया होगा।
लौट आ जाती है पिंजरे में पलट कर बुलबुल
ये जिस्मों-जां के भी क्या खूब ताने-बाने हैं
बेबसी प्यास तड़प दर्द घुटन और थकन
मैं जो टूटा तो सभी मोती बिखर जाने हैं
खुद से हर रोज़ मैं लड़ता हूँ सुलह करता हूँ
मेरे अशआर इसी जंग के अफ़साने हैं
हिंदी और उर्दू दोनों लिपियों में याने एक पृष्ठ पर हिंदी और सामने वाले पर उर्दू में इस किताब को अमृत प्रकाशन शाहदरा दिल्ली ने प्रकाशित किया है जिसमें वाहिद साहब की लगभग 40 ग़ज़लें संगृहीत हैं ।आप अमृत प्रकाशन से 011 -223254568 पर बात करके किताब प्राप्त करने का तरीका पूछ सकते हैं। बेहतर तो ये रहेगा कि आप चन्दर वाहिद साहब को उनके मोबाइल न 09891782782 पर संपर्क करें और उन्हें उनकी लाजवाब शायरी पर बधाई दें और उनके उस्ताद मोहतरम जनाब मंगल नसीम साहब से उनके मोबाइल न 9968060733 संपर्क कर उनसे किताब प्राप्ति का रास्ता पूछें। चलते चलते उनकी एक ग़ज़ल के चंद शेर और पढ़वाता चलता हूँ :-
टूटे दीपक को हटा मत तू मिरे आगे से
मेरी नज़रों को उजाले का भरम रहने दे
अक्स अपना कोई देखे है मेरे अश्कों में
और कुछ देर मिरी आँखों को नम रहने दे
शाइरे-वक़्त हक़ीक़त में वही होता है
अपने अशआर को जो आम फ़हम रहने दे
एक बार फिर से बहुत सुंदर विवेचना आपकी। गज़ल के लाज़वाब अंश प्रस्तुत किये है। आपकी लेखनी से किये गये विश्लेषण व्यक्तिव को खास बना देते है।
ReplyDeleteबेहतरीन शाइरी को हम सब तक पहुंचा कर आप बहुत सवाब कमाने का काम कर रहे हो। जितनी तारीफ़ की जाए, कम है
ReplyDeleteचंदर साहब की बेमिसाल तीखी कलम कोआपने बाखूबी पकड़ा है ... एक से बढ़ कर एक कलाम .... आपका भी जवाब नै है नीरज जी ... नगीने छांट के लाते हैं आप ...
ReplyDeleteबेहतरीन विश्लेषण किया आपने....चयनित शे'र शानदार हैं...क़ाबिले-तारीफ़ है आपका काम....आपके ब्लॉग का हिस्सा होना किसी के लिये भी गर्व की बात है.....
ReplyDeleteReceived on mail :-
ReplyDeleteहमेशा की तरह बहुत अच्छे संग्रह का चयन किया नीरज भाई !
आप के चुने हुए अशआर प्रभावित करते हैं और संग्रह के बारे में आप की राय का सुबूत भी पेश करते हैं.
एक और अच्छे शायर की शायरी का सुंदर आकलन.
आप और शायर दोनों को हार्दिक बधाई
Alam Khursheed
Received on Mail :-
ReplyDeleteDEAR MEERAJ JI
NAMSATEY
THANX FOR SENDING THIS WRITE UP ABOUT GREAT
GAZALS OF CHANDER NAHID-
HE LIVES IN DELHI AND I OFTEN TALK TO HIM-
THE QUOTED GAZALS ARE NICE ESPECIALLY THE FOLLOWING--
लौट आ जाती है पिंजरे में पलट कर बुलबुल
ये जिस्मों-जां के भी क्या खूब ताने-बाने हैं
बेबसी प्यास तड़प दर्द घुटन और थकन
मैं जो टूटा तो सभी मोती बिखर जाने हैं
खुद से हर रोज़ मैं लड़ता हूँ सुलह करता हूँ
मेरे अशआर इसी जंग के अफ़साने हैं
AGAIN THANX--
-OM SAPRA-
N-22, DR. MUKHERJEE NAGAR,
DELHI-110009
981818 0932
Received on Messanger :-
ReplyDeleteNeeraj sb
It's Very well written
Waaahh
Madan Mohan Mishra
Gwalior
Received on Fb:-
ReplyDeleteबहुत शानदार ..............
Pramod Kumar
DELHI
Received on Fb:-
ReplyDeleteWaaah waah behtareen
Shailesh Jain
LALITPUR
Received through Messanger :-
ReplyDeleteआपकी बदौलत एक किताब और एक अच्छे शायर से परिचय हो गया है
AMIT THAPA
Ghaziabad
Received on Messanger ;-
ReplyDeleteBhut khoob..
SAGAR MALIK
FIROZEPUR
Received on messanger :-
ReplyDeleteबेहतरीन समीक्षा पुस्तकों की
बहुत ही उम्दा
JAiN SAURABH CHORDIYA
Jaipur
हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट। जानकारी से भरपूर।जय हो।
ReplyDeleteहमेशा की तरह शायरी के समंदर में गोता लगवा दिया आपने, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
waah bahut khoob umdaah shayari
ReplyDeleteMausam e zard me har harf jhulas jaate hain. Warna haal e diya bayaani me kaisi #haya saram #shair
aap Shaandaar likhte hain ek aur achche shair se milane unka Kalam padhwane ka shukriya aur blog par is nayi sameecha ki badhai
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत शायरी। पढ़वाने का शुक्रिया।
ReplyDeleteReaceived on Messanger :-
ReplyDeleteNeeraj sb
It's Very well written
Waaahh
Madan Mohan Danish
प्रिय भाई नीरज, स्वप्निल की किताब पर आपकी टिप्पणी बेहद सराहनीय है। स्वप्निल ने अपने आसपास की जानी-पहचानी दुनिया को अपनी ग़ज़लों के ज़रिए एक नया पैरहन अता किया है। वे ग़ज़ल की दुनिया में एक नई संभावना बन कर उभरे हैं। उनसे ग़ज़ल को बहुत उम्मीदें हैं। -
ReplyDelete--- देवमणि पांडेय
प्रिय भाई नीरज, स्वप्निल की किताब पर आपकी टिप्पणी बेहद सराहनीय है। स्वप्निल ने अपने आसपास की जानी-पहचानी दुनिया को अपनी ग़ज़लों के ज़रिए एक नया पैरहन अता किया है। वे ग़ज़ल की दुनिया में एक नई संभावना बन कर उभरे हैं। उनसे ग़ज़ल को बहुत उम्मीदें हैं। -
ReplyDelete--- देवमणि पांडेय