ज़बान पर सभी की बात है फ़क़त सवार की
कभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की
गुलों को तित्तलियों को किस तरह करेगा याद वो
कि जिसको फ़िक्र रात दिन लगी हो रोजगार की
बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुत्फ़े-ज़िन्दगी
नहीं सुनेगा फिर वो बात कोई भी सुधार की
वो खुश रहे ये सोच कर सदा मैं हारता गया
लड़ाई जब किसी के साथ लड़ी आरपार की
जिसे भी देखिये इसे वो तोड़ कर के ही बढ़ा
कहाँ रहीं हैं देश में जरूरतें कतार की
तुझे पढ़ा हमेशा मैंने अपनी बंद आँखों से
ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की
चढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके
तलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की
कभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की
गुलों को तित्तलियों को किस तरह करेगा याद वो
कि जिसको फ़िक्र रात दिन लगी हो रोजगार की
बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुत्फ़े-ज़िन्दगी
नहीं सुनेगा फिर वो बात कोई भी सुधार की
वो खुश रहे ये सोच कर सदा मैं हारता गया
लड़ाई जब किसी के साथ लड़ी आरपार की
जिसे भी देखिये इसे वो तोड़ कर के ही बढ़ा
कहाँ रहीं हैं देश में जरूरतें कतार की
तुझे पढ़ा हमेशा मैंने अपनी बंद आँखों से
ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की
चढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके
तलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की
चढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके
ReplyDeleteतलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की ....mujhe bhi....nice expression
बाकमाल ख़ूबसूरत ग़ज़ल ।
ReplyDeleteतलाश जिंदगी में है मुझे उसी खुमार की
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब
खूबसूरत ग़ज़ल.
ReplyDeleteतुझे पढ़ा हमेशा मैंने अपनी बंद आँखों से
ReplyDeleteये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की
वाह! वाह! वाह! बहुत ही खूबसूरत, लाजवाब और बेहतरीन गज़ल !
"जिसे भी देखिये इसे वो तोड़ कर के ही बढ़ा
ReplyDeleteकहाँ रहीं हैं देश में जरूरतें कतार की " वाह नीरज भाई साहब। एक और उम्दा ग़ज़ल ।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, फ़िल्मी गीत और बीमारियां - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteUmda Ghazal Ke Liye Aapko Badhaaee Aur Shubh Kamna
ReplyDeleteचढ़े जो इस कदर कि फिर कभी उतर नहीं सके
ReplyDeleteतलाश ज़िन्दगी में है मुझे उसी खुमार की.
सुंदर ग़ज़ल.
बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुत्फ़े-ज़िन्दगी
ReplyDeleteनहीं सुनेगा फिर वो बात कोई भी सुधार की
एख ऐसा शेर जो आज के तमाम राजनीतिक दलों पर एक साथ व्यंग्य कर रहा है... खूबसूरत रचना।......
वो खुश रहे ये सोच कर सदा मैं हारता गया
ReplyDeleteलड़ाई जब किसी के साथ लड़ी आरपार की ..
नीरज जी ... दिली दाद कबूल करें इस बेहतरीन ग़ज़ल पर ... मज़ा आ गया सर ...
vaah vaah , har sher behad khubsurat
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ReplyDeleteअमित कुमार नेमा
बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुफ़्ते ज़िन्दगी
नहीं सुनेगा फिर वो बात कोई भी सुधार की...............क्या बात ! क्या बात !!
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ReplyDeleteVijay Sappatti
बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुफ़्ते ज़िन्दगी
नहीं सुनेगा फिर वो बात कोई भी सुधार की
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ReplyDeleteRambabu Soni
You are great sir.
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ReplyDeleteBakul Dev
वाह !!
क्या कहने नीरज जी..
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ReplyDeleteParul Singh
कभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की.. वाह सर बहुत ख़ूब । पूरी ग़ज़ल तो पढ़नी ही होगी अब।
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ReplyDeleteप्रकाश सिंह अर्श
bahut achhee ghazal hui hai sir............. daad qubul karen.
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ReplyDeleteKamna Chaturvedi Saxena
Bahut umdaa jazbaat aur kareegari alfaaz ki.Mashallah
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ReplyDeletePramod Kumar
पढ़ लिए ...........बहुत ही शानदार .........तलाश ज़िंदगी मे है मुझे उसी खुमार की
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ReplyDeleteNirmla Kapila चढ़े जो इस कदर की उतर नहीं सके____। वाह लाजवाब बहुत दिनों बाद आपको पढने का अवसर मिला ब्लॉग पर कंरन्त पोस्ट नहीं हुया मोबालि से । गूगल पास वार्ड माग रहा था ज़ुबानी याद नहीं।
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ReplyDeleteVijay Bansal .
तलाश ज़िंदगी मे है मुझे उसी खुमार की
बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteकमाल की गज़ल ।
ReplyDeleteRespected Neeraj Sahib,
ReplyDeleteKya ghazab ki Ghazal kahee hai maza aa gaya padhkar
ek se badhkar ek she'r .... aur is she'r ka to jawab
hi naheen lagta mere liye hi kaha gaya hai...
" गुलों को तित्तलियों को किस तरह करेगा याद वो
कि जिसको फ़िक्र रात दिन लगी हो रोजगार की"
Bahut mubaarak........
Satish Shukla 'Raqeeb'
Juhu, Mumbai
सुंदर प्रस्तुति
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