हमें सर झुकाने की आदत नहीं है
छुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र
जो कहते किसी से अदावत नहीं है
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
फ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
उठा कर गिराना गिरा कर मिटाना
हमारे यहाँ की रिवायत नहीं है
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
बहुत करली पहले ज़माने से हमने
हमें अब किसी से शिकायत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
गहरी बातें, सरल शब्दों में
ReplyDeleteकरूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
ReplyDeleteफ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
मिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
वही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
वाह वाह वाह कमाल शेर। बहुत अरसे बाद हुई पर खूब ग़ज़ल हुई से। और ग़ज़लों का इन्तजार रहेगा । बधाईयां।
Bahut sundar gazal
ReplyDelete"बहुत करली पहले ज़माने से हमने
ReplyDeleteहमें अब किसी से शिकायत नहीं है"
हर शेर पर दाद कुबूल कीजिये नीरज भाईजी.. मतले से ही आपने जो माहौल बनाया है वो मक्ते तक बना रहा है. किसी एक शेर को सिंगल आउट करना इस ग़ज़ल की तौहीन होगी.
ReplyDeleteदिल की गहराइयों से उभरकर आयी इस ग़ज़ल पर बार-बार दाद कुबूल करें..
सौरभ जी से पूर्णरूपेण सहमत। लिखते रहिये। खिलते रहिये।
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteमिला कर निगाहें ,झुकाते जो गर्दन
ReplyDeleteवही कह रहे हैं मुहब्बत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
बहुत खूब! बहुत बढ़िया !
बहुत ख़ूब नीरज जी.
ReplyDeleteहर इक मिसरा नीरज के दिल से है निकला
नही है, नही कुछ बनावत नही है.
नीरज जी, सादगी में कही गई कमाल की शायरी के लिए दाद कबूल करें
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, देश का सच्चा नागरिक ... शराबी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteकरोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
ReplyDeleteअगर भीग जाने की चाहत नहीं है.....बहुत ख़ूब नीरज जी.
is sher ne dil ko chuaa hai sri
ReplyDeleteछुपाये हुए हैं वही लोग खंज़र
जो कहते किसी से अदावत नहीं है
shukriya aapka , aap itne acche shaayar hai aur mere guru hai
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
ReplyDeleteअगर भीग जाने की चाहत नहीं है ........वाह ...वाह....क्या बात है ।
बहुत करली पहले ज़माने से हमने
ReplyDeleteहमें अब किसी से शिकायत नहीं है
करोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
खूबसूरत मिसरों के साथ अच्छी ग़ज़ल ,नीरज जी बधाई
ReplyDeleteकरोगे घटाओं का क्या यार 'नीरज'
अगर भीग जाने की चाहत नहीं है
बहुत खूब!
हर शेर मुकम्मल। पूरी ग़ज़ल बाक़माल। बधाइयाँ।
ReplyDeleteNEERAJ JI MERI TARAF SE BHI DILI DAAD QUBOOL KIJIYE! IS SADHARA GHAZAL MEIN ASADHARAN SHER KAH DIYE HAIN AAPNE!''FALAQ NAAPNE KI IJAJAT NAHIN HAI''BADHAIAN!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल ! सहज में कही गयीं गहरी बातें।
ReplyDeleteकरूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
ReplyDeleteफ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है ..
अगर ये साधारण सी ग़ज़ल है तो धमाका किसे कहते हैं नीरज जी ...
बहुत ही कमाल के शेर ... सीधे दिल तक घर कर जाने वाले ...
bahut sundar ...vah
ReplyDelete"करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
ReplyDeleteफ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है."
फिर से एक छटपटाहट आज महसूस हो रही हैं इन पंखों में. हम पंछी उन्मुक्त गगन के, पिंजर-बद्ध ना गा पायेंगे.
करूँ क्या परों का अगर इनसे मुझको
ReplyDeleteफ़लक़ नापने की इज़ाज़त नहीं है
पूरी ग़ज़ल ही बहुत उम्दा ... यह शेर मुझे बेहतरीन लगा ..
बहुत अच्छी है जी। साधारण क्यों कहते हैं?
ReplyDeleteजाने कितनी पीठ पर खंजर पडे हैं!
ReplyDeleteइन परों का क्या करें जो उड़ने न दें.
अच्छी लगी गज़ल.
कमाल की ग़ज़ल आदरणीय
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteBehad sunder.
ReplyDeleteGajal khoobsurat ko Kahate hain sada
unhe Naz karne ki adat nahi hai.
Received on mail :-
ReplyDeleteRamesh Kanwal
06:48 (1 hour ago)
to me
साधारण नहीं अच्छी ग़ज़ल है .शुक्रिया और मुबारकबाद