Monday, August 18, 2014

किताबों की दुनिया - 98


अक्सर मुझे ही शायरी की किताब ढूंढने के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है , बहुत सी किताबें देखता हूँ ,खरीदता हूँ पढता हूँ और उन में से मुझे जो किताब पसंद आती है उसका जिक्र अपनी इस 'किताबों की दुनिया' श्रृंखला में करता हूँ। ये सिलसिला पिछले छै:- सात सालों से लगातार चल रहा है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि कोई किताब भी मुझे अचानक ढूंढ लेती है। और जब ऐसा होता है तो उस ख़ुशी को बयां करना लफ़्ज़ों के बस में नहीं होता।

नतीजा कुछ न निकला उनको हाल-दिल सुनाने का 
वो बल देते रहे आँचल को ,बल खाता रहा आँचल 

इधर मज़बूर था मैं भी, उधर पाबन्द थे वो भी 
खुली छत पर इशारे बन के लहराता रहा आँचल 

वो आँचल को समेटे जब भी मेरे पास से गुज़रे 
मिरे कानों में कुछ चुपके से कह जाता रहा आँचल 

दरअसल हुआ यूँ कि इंदौर निवासी कामयाब कवयित्री और उभरती शायरा ' पूजा भाटिया 'प्रीत' जो अब नवी मुंबई के बेलापुर बस गयी हैं ,ने अपने घर एक दिन चाय पे बुलाया। उनके पति 'पंकज' जो खुद कविता और शायरी के घनघोर प्रेमी हैं ने अपने हाथ से बनाई लाजवाब नीम्बू वाली चाय पिलाई। गपशप के दौरान जब किताबों का जिक्र आया तो उन्होंने ने कहा कि नीरज जी आज आपको हम एक ऐसे शायर की किताब पढ़ने को देते हैं जिसे आपने अभी तक अपनी किताबों की दुनिया श्रृंखला में शामिल नहीं किया है। अंधे को क्या चाहिए ? दो आँखें। तो साहब आज मैं उसी किताब का जिक्र कर रहा हूँ जिसका शीर्षक है "याद आऊंगा " और शायर हैं जनाब 'राजेंद्र नाथ रहबर '


तू कृष्ण ही ठहरा तो सुदामा का भी कुछ कर 
काम आते हैं मुश्किल में फ़क़त यार पुराने 

फाकों पे जब आ जाता है फ़नकार हमारा 
बेच आता है बाजार में अखबार पुराने 

देखा जो उन्हें एक सदी बाद तो 'रहबर ' 
छालों की तरह फूट पड़े प्यार पुराने 

शकरगढ़ पाकिस्तान में पैदा हुए रहबर साहब मुल्क के बटवारे के बाद अपने माता -पिता के साथ पठानकोट में चले आये और यहीं के हो कर रह गए.हिन्दू कॉलेज अमृतसर से बी.ऐ , खालसा कॉलेज अमृतसर से एम.ए और पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से एल.एल बी के इम्तिहान पास किये। शायरी का शौक उन्हें लकड़पन से ही हो गया जो फिर ता-उम्र उनका हमसफ़र रहा।

आइना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा 
अपनी जुल्फों को संवारोगे तो याद आऊंगा 

ध्यान हर हाल में जाएगा मिरि ही जानिब 
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊंगा 

याद आऊंगा उदासी की जो रुत आएगी 
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा 

शैल्फ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से 
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊंगा 

मशहूर शायर 'प्रेम कुमार बर्टनी' फरमाते हैं कि 'राजेंद्र नाथ' के अशआर निहायत पाकीज़ा , सच्चे और पुर ख़ुलूस हैं और उनकी शायरी किसी गुनगुनाती हुई नदी की लहरों पर बहते हुए उस नन्हे दिए की मानिंद है जो किसी सुहागिन ने अपने रंग भरे हाथों से बहुत प्यार के साथ गंगा की गोद के हवाले किया हो। आप हो सकता है 'रहबर' साहब के नाम से अधिक वाकिफ न हों लेकिन अगर आप ग़ज़ल प्रेमी हैं और जगजीत सिंह जी को सुने हैं तो उनकी ये नज़्म जरूर आपके ज़हन में होगी :

तेरे खुशबू में बसे ख़त मैं जलाता कैसे 
प्यार में डूबे हुए ख़त मैं जलाता कैसे 
तेरे हाथों के लिखे ख़त मैं जलाता कैसे 
तेरे ख़त आज मैं गंगा में बहा आया हूँ 
आग बहते हुए पानी में लगा आया हूँ 

इस नज़्म से रहबर साहब को वो मकबूलियत हासिल हुई जो जनाब हफ़ीज़ जालंधरी को ' अभी तो मैं जवान हूँ ...." और साहिर लुधियानवी साहब को 'ताजमहल' से हुई थी। ऐसी ही कई और बेमिसाल नज़्में और ग़ज़लें कहने का फ़न आपने पंजाब के उस्ताद शायर प. रतन पंडोरवी जी की शागिर्दी में सीखा।

दुनिया को हमने गीत सुनाये हैं प्यार के 
दुनिया ने हमको दी हैं सज़ाएं नयी नयी 

ये जोगिया लिबास , ये गेसू खुले हुए 
सीखीं कहाँ से तुमने अदाएं नयी नयी 

जब भी हमें मिलो ज़रा हंस कर मिला करो 
देंगे फकीर तुम को दुआएं नयी नयी 

उर्दू ज़बान की टिमटिमाती लौ को जलाये रखने का काम रहबर साहब ने खूब किया है. उनकी सभी किताबें 'तेरे खुशबू में बसे खत' , 'जेबे सुखन' ,' ..... और शाम ढल गयी' 'मल्हार', 'कलस' और 'आग़ोशे गुल ' उर्दू ज़बान में ही प्रकाशित हुई थीं। 'याद आऊंगा ' उनकी देवनागरी में छपी पहली किताब है , जो यक़ीनन हिंदी में शायरी पढ़ने वालों को खूब पसंद आ रही है क्यूंकि इसमें शायरी की वो ज़बान है जो आजकल पढ़ने को कम मिलती है

तुम जन्नते कश्मीर हो तुम ताज महल हो
'जगजीत' की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल हो 

हर पल जो गुज़रता है वो लाता है तिरी याद 
जो साथ तुझे लाये कोई ऐसा भी पल हो 

मिल जाओ किसी मोड़ पे इक रोज अचानक 
गलियों में हमारा ये भटकना भी सफल हो 

किसी भी ज़बान को ज़िंदा रखने के लिए जरूरी है कि उसे अवाम के करीब तर लाया जाय लिहाज़ा रहबर साहब ने अपनी उर्दू ग़ज़लों में भारी भरकम अल्फ़ाज़ इस्तेमाल नहीं किये हैं। सादगी और रेशमी अहसास उनकी हर ग़ज़ल में पढ़ने को मिलते हैं। अपनी पूरी शायरी में वो एक बेहतरीन इंसान, दोस्त और पुर ख़ुलूस रूमानी शायर के रूप में उभर कर सामने आते हैं.

शायरी और खास तौर पर उर्दू साहित्य को अपनी अनोखी प्रतिभा से चार चाँद लगाने वाले रहबर साहब को हाल ही में पंजाब सरकार ने अपने सर्वोच्च साहित्यक पुरूस्कार 'शिरोमणि उर्दू साहित्यकार अवार्ड ' से सम्मानित किया है। दूरदर्शन द्वारा उन पर निर्मित 23 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई गयी है जिसे डी डी पंजाबी व् डी डी जालंधर केन्द्रों से प्रसारित किया गया है। 

फेंका था जिस दरख़्त को कल हमने काट के 
पत्ता हरा फिर उस से निकलने लगा है यार 

ये जान साहिलों के मुकद्दर संवर गए 
वो ग़ुस्ले-आफताब को चलने लगा है यार 
ग़ुस्ले-आफताब = सन बॉथ ( सूर्य -स्नान ) 

उठ और अपने होने का कुछ तो सबूत दे 
पानी तो अब सरों से निकलने लगा है यार 

दर्पण पब्लिकेशन बी -35 /117 , सुभाष नगर , पठानकोट -145001 द्वारा प्रकाशित इस किताब इस किताब में 'रहबर' साहब की सौ से अधिक ग़ज़लें संकलित की गयी हैं। दर्पण वालों ने इस किताब में न तो अपना ई -मेल एड्रेस दिया है और न ही फोन नंबर लिहाज़ा आप के पास इस किताब की प्राप्ति के लिए सिवा उन्हें चिट्टी लिखने के यूँ तो कोई दूसरा विकल्प नहीं है लेकिन फिर भी आप एक काम कर सकते हैं आप सीधे राजेंद्र नाथ रहबर साहब से उनके मोबाइल न. 09417067191 या 01862227522 पर बात करके उनसे इस किताब की प्राप्ति का रास्ता पूछ सकते हैं। यकीन माने रहबर साहब की बुलंद परवाज़ी और उम्दा ख़यालात-ओ-ज़ज़्बात से लबरेज़ ग़ज़लें आपकी ज़िन्दगी में रंग भर देंगीं।

चलते चलते आईये पढ़ते हैं उनकी एक नज़्म जिसके बारे में प्रेम वार बर्टनी साहब ने कहा था कि 'पांच मिसरों की इस नज़्म में पचास मिसरों की काट है " 

फर्क है तुझमें, मुझमें बस इतना, 
तूने अपने उसूल की खातिर, 
सैंकड़ों दोस्त कर दिए क़ुर्बा, 
और मैं ! एक दोस्त की खातिर , 
सौ उसूलों को तोड़ देता हूँ।

16 comments:

  1. बहुत ही उम्दा और बेहतरीन शेरो वाली किताब से परिचित करवाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया नीरज जी

    आपकी इस लत को देखकर मुझे भी किताबों की लत लग गयी.



    आप कमाल हैं … यूँ ही इस श्रृंख्ला को जारी रखियेगा :)

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  2. प्यास का एक ये भी मकाम हैं
    जब प्यासे की शख्शियत की
    बुलंदी कुएं को ही उसके पास

    लाती है। ऐसे ही किताबें आप
    तक पहुँच ही जाती हैं।

    कमाल है रहबर साहब की शायरी
    और आपकी समीक्षा बधाई।

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  3. हर बार की तरह नायाब प्रस्तुति .... नए शायरों को निश्चित ही ऐसी प्रस्तुतियों से प्रोत्साहन मिलता है
    ..आभार आपका!
    श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें!
    .

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  4. तू कृष्ण ही ठहरा तो सुदामा का भी कुछ कर
    काम आते हैं मुश्किल में फ़क़त यार पुराने ।

    रहबर साहब की शायरी से परिचय करवाने का शुक्रिया।

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  5. पता नहीं, स्‍कूलों में बढ़ती अंग्रेज़ी दूसरी ज़ुबानों को कि‍तने दि‍न ज़िंदा रहने देगी

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  6. आपकी लिखी रचना बुधवार 20 अगस्त 2014 को लिंक की जाएगी........
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  7. ग़ज़ब.. आप तो किताब के बारे में ऐसे लिखते हैं जैसे हर किताब को अपना लिया जाए!

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  8. Received on e- mail :-

    वाह वाह !
    इस बार फिर आप ने एक बेहतरीन शायर का चयन किया है
    राजेंद्र नाथ रहबर वाकई बे मिशल शायर हैं .वैसे ये किताबों की दुनिया में पहले आग नहीं लगा सके लेकिन इस बार बहते हुए पानी में आग लगवाने का काम किया है उभरती हुई शायरा पूजा भाटिया प्रीत ने ,
    बेहतरीन शायरी से रूबरू करने के लिए

    आपको, आपकी 'प्रीत' को और रहबर जी को बहुत बहुत बधाई ...मुबारकबाद

    Ramesh Kanwal ( Shayar)
    Patna

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  9. Received on e-mail :-

    भाईजी
    प्रणाम
    रहबर साहब को सुनना भी गज़ब का अनुभव है
    चंडीगढ़ में उन्हें सुना
    कमाल है साहब
    खैर आप सुनाइए कैसे हैं ?

    शुभकामनाओं सहित

    Yogendra Maudgil

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  10. वाह ...बेहतरीन प्रस्‍तुति

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  11. बहुत बढ़िया समीक्षा

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  12. Aadarneey Neeraj Ji,
    Sadar Namaskar

    Bahut achchha laga....Rahabar Sahab se yoon to gahe bagahe phone par baat hoti rahti hai aaj bhi is she'r ke hawale se huye...
    दुनिया को हमने गीत सुनाये हैं प्यार के
    दुनिया ने हमको दी हैं सज़ाएं नयी नयी
    poore ghazal Sangrah ko padhkar us men se chuninda ashaar khoob soorat andaz men pesh karne ka hunar to koyee aapse seekhe...
    aapka bahut shukriya aur Rahbar Sahab ko mubaarakbaad.
    Satish Shukla 'Raqeeb'

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  13. बहुत सुंदर शेर

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  14. आपके माध्यम से एक उम्दा शायर की उम्दा शायरी से परिचय हुआ।आनन्द आया ।

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तुझको रक्खे राम तुझको अल्लाह रक्खे
दे दाता के नाम तुझको अल्लाह रक्खे